Last Updated on December 17, 2021 by admin
डीप वेन थ्राम्बोसिस (डी.वी.टी.) क्या है ? (What is Deep vein thrombosis)
अचानक एक पैर में सूजन, लाली और गर्माहट तथा चलने-फिरने पर पैर में खिंचाव जैसे लक्षण डीप वेन थ्राम्बोसिस (डी.वी.टी.) नामक अत्यंत गंभीर स्थिति के सूचक हो सकते हैं।
डीप वेन थ्राम्बोसिस (डी.वी.टी.) वास्तव में रक्त का थक्का है जो शरीर की निचली शिरा में विकसित होता है। यह थक्का शिरा के माध्यम से रक्त के प्रवाह को आंशिक रूप से या पूरी तरह से अवरुद्ध कर सकता है।
अधिकांशतः डी.वी.टी. निचले पैर, जांघ या श्रोणि (वस्ति-प्रदेश) में होता हैं, हालांकि यह हाथ, मस्तिष्क, आंतों, यकृत या गुर्दे सहित शरीर के अन्य हिस्सों में भी हो सकता हैं। शिराओं में रक्त के बहाव में अवरोध आने के कारण यह बीमारी होती है।
डीप वेन थ्राम्बोसिस (डी.वी.टी.) के लक्षण (Deep vein thrombosis Symptoms in Hindi)
डीप वेन थ्राम्बोसिस (डी.वी.टी.) के क्या लक्षण होते हैं ?
डीप वेन थ्राम्बोसिस (डी.वी.टी.) के लक्षणों में शामिल हैं –
- रोगी के पैर या टखने में सूजन का होना,
- रोगी के प्रभावित पैर में ऐंठन व दर्द का होना,
- त्वचा के एक विशेष भाग का आसपास की त्वचा की अपेक्षा अधिक गर्म महसूस होना,
- प्रभावित क्षेत्र पर त्वचा का रंग पीला,लाल या नीला हो जाना,
डी.वी.टी. बीमारी में पैर या हाथ में गंदे रक्त के साथ-साथ शरीर का पानी और इलेक्ट्रोलाइट्स एवं खनिज जैसे जरूरी अवयव भी जमा हो जाते हैं। इससे शरीर की अंदरूनी क्रियाएँ गंभीर रूप से बाधित हो जाती हैं । इससे फलेग्मेसिया सेरूलिया डोलेंस (पी.सी.डी.) नामक जानलेवा स्थिति पैदा हो सकती है।
पैर अथवा हाथ की शिराओं में गंदे रक्त, पानी एवं अन्य जरूरी अवयवों के जमा हो जाने से शिराओं में ऊतक दबाव (टिश्यू प्रेशर) बहुत अधिक बढ़ जाता है। इससे शुद्ध रक्त ले जाने वाली रक्त धमनियाँ दब जाती हैं और धमनियों में भी रक्त का बहाव रुक जाता है। इससे पैर अथवा हाथ काले पड़ने लगते हैं और गैंगरीन नामक भयंकर अवस्था की शुरुआत हो जाती है।
डीप वेन थ्राम्बोसिस (डी.वी.टी.) के कारण (Deep vein thrombosis Causes in Hindi)
डीप वेन थ्राम्बोसिस (डी.वी.टी.) क्यों होता है ?
इस रोग में थक्का नस के मार्ग को अवरुद्ध करता है, जिससे रोगी के शरीर में रक्त का संचार ठीक से नहीं हो पाता है। थक्के कई कारणों से हो सकते हैं। इसमे शामिल है –
- मौजूदा समय में व्यायाम नहीं करने की प्रवृत्ति से डीप वेन थ्राम्बोसिस का खतरा बढ़ रहा है।
- महिलाओं में गर्भ निरोधक दवाओं एवं हार्मोन का बढ़ता सेवन भी इसका एक प्रमुख कारण है।
- हाई हील वाली सैंडिलों के बढते प्रयोग के कारण भी डीप वेन थ्राम्बोसिस का प्रकोप बढ़ रहा है।
- फेफड़े, पैंक्रियाज या आँतों के कैंसर होने और किसी खराबी या बीमारी के कारण खून के जरूरत से ज्यादा गाढ़ा हो जाने पर भी यह रोग हो सकता है।
- रक्त वाहिनी पर लगी चोट के कारण भी रक्त प्रवाह का मार्ग संकीर्ण या अवरुद्ध हो सकता है। परिणामस्वरूप रक्त का थक्का बन सकता है।
- सर्जरी के दौरान रक्त वाहिनी को नुकसान हो सकता है, जिससे रक्त के थक्के का विकास हो सकता है। सर्जरी के बाद रोगी के बिस्तर पर ज्यादा आराम करने से भी रक्त का थक्का बनने का खतरा बढ़ सकता है।
डीप वेन थ्राम्बोसिस (डी.वी.टी.) का उपचार (Deep vein thrombosisTreatment in Hindi )
डीप वेन थ्राम्बोसिस (डी.वी.टी.) का इलाज कैसे किया जाता है ?
डी.वी.टी. के मरीजों को आम तौर पर खून की नस के जरिए रक्त को पतला करनेवाली दवाएँ अधिक मात्रा में दी जाती हैं, लेकिन जब मरीज में पल्मोनरी इंबोलिज्म की भी शुरुआत हो जाती है तो थ्रोबोलाइटिक थेरैपी दी जाती है। ऐसे रोगियों के इलाज के लिए अत्याधुनिक उपकरणों से सुसज्जित आई.सी.यू. की जरूरत होती है, जिसमें कृत्रिम साँस की व्यवस्था होनी बहुत जरूरी है। ऐसे मरीजों का इलाज अगर तत्काल नहीं किया जाता तो स्थिति प्राण घातक हो जाती है।
इसके रोगियों में पी.सी.डी. (फ्लेग्मेसिया सेरूलिया डोलेंस) जब खतरनाक रूप ले लेता है तो इस रोग से ग्रस्त पैर के खराब होने की संभावना बढ़ जाती है। ऐसी स्थिति में तत्काल वेनस थ्रोबेक्टोमी नामक ऑपरेशन करना जरूरी हो जाता है। इस ऑपरेशन में मोटी शिराओं को खोलकर खून के कतरे निकाल दिए जाते हैं और धमनी को शिराओं से जोड़कर धमनियों का शुद्ध रक्त शिराओं में डाला जाता है। पल्मोनरी इंबोलिज्म की कुछ विशेष परिस्थितियों में पेट की मोटी एवं मुख्य शिरा में एंजियोग्राफी या ऑपरेशन के जरिए आई.वी.सी. फिल्टर डाला जाता है जिससे पैर की शिराओं में जमा हुए खून के कतरे पेट की शिराओं में रुक जाए और दिल के जरिए फेफड़े तक न पहुँच पाए।
डीप वेन थ्राम्बोसिस (डी.वी.टी.) से बचाव (Prevention of Deep vein thrombosis in Hindi)
डीप वेन थ्राम्बोसिस (डी.वी.टी.) की रोकथाम कैसे करें ?
डी.वी.टी. के काफी मरीजों में इसके इलाज के बावजूद पोस्ट थ्रोबोटिक सिंड्रोम होने की संभावना बनी रहती है। इसमें शिराओं के वॉल्व क्षतिग्रस्त हो जाते हैं और सूजन बनी रहती है। ऐसे मरीजों को ताउम्र कुछ खास तरह के व्यायाम करने तथा कुछ एहतियात बरतने जरूरी होते हैं, ताकि आगे चलकर उनमें वेरीकोस वेंस उत्पन्न न हो। इस बीमारी की रोकथाम के लिए नियमित व्यायाम करना चाहिए।