Last Updated on July 22, 2019 by admin
गाय के मूत्र में कार्बोलिक एसिड होता है, जो कीटाणुनाशक है। अतः यह शुद्धि और स्वच्छता को बढ़ाता है। प्राचीन ग्रन्थों ने गोमूत्र को अति पवित्र कहा है। आधुनिक दृष्टिसे गोमूत्र में नाइट्रोजन, फॉस्फेट, यूरिया, यूरिक एसिड, पोटैशियम और सोडियम होता है। जिन महीनों में गाय दूध देती है, उनमें उसके मूत्र में लेक्टोज रहता है, जो हृदय और मस्तिष्क के विकारों में बहुत हितकारी है। इसमें स्वर्णक्षार भी मौजूद रहता है, जो रसायन है।
जो गाय गोमूत्र-सेवन के लिये रखी जाती है वह नीरोगी और युवा होनी चाहिये। जंगली क्षेत्रों और चट्टानों, जहाँ गायों के चरनेके लिये प्राकृतिक वनस्पति खाद्य-रूपमें मिल सके वहाँ की गायों का मूत्र अधिक अच्छा है। गोमूत्र को स्वच्छ वस्त्र से छानकर सुबह में खाली पेट पीना चाहिये। गोमूत्र पीने के एक घंटे तक कुछ खाना नहीं चाहिये। स्तन-पान करनेवाले बच्चों को गोमूत्र देते समय उसकी माता को भी गोमूत्र देना चाहिये। मासिक धर्म के दौरान स्त्रियाँ यदि गोमूत्र-सेवन करें तो शान्ति और शक्ति मिलती है। सामान्यतः युवा व्यक्ति एक छटाँक से एक पाव की मात्रा में गोमूत्र-सेवन कर सकते हैं।
गोमूत्र का उपयोग विभिन्न रोगों में कैसे किया जा सकता है व गौमूत्र के फायदों को यहाँ संक्षेप में दिया जा रहा है
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गौमूत्र के घरेलू नुस्खे व उपयोग :
१-क़ब्ज़ के रोगी को उदर की शुद्धि के लिये गोमूत्र कई बार कपड़े से खूब छानकर पीना चाहिये।
२-गोमूत्र में हरड़ का चूर्ण भिगोकर धीमी आँच से गरम करना चाहिये। जलीय भाग जल जाने पर इसका चूर्ण उपयोग में लिया जाता है। गोमूत्र का सीधा सेवन जो नहीं कर सकता है उसे इस हरड़ का सेवन करने से गोमूत्र का लाभ मिल सकता है।
३-जीर्ण ज्वर, पाण्डु, सूजन आदि में किराततिक्त (चिरायता) के पानी में गोमूत्र मिलाकर, सात दिनतक सुबह और शाम पीना चाहिये।
४-खाँसी, दमा, जुकाम आदि विकारों में गोमूत्र सीधा ही प्रयोग में लाने से तुरंत ही कफ निकलकर विकार-शमन होता है।
५-पाण्डु-रोग में हर रोज सुबह खाली पेट ताजा और स्वच्छ गोमूत्र कपड़े से छानकर नियमित पीने से एक माह में अवश्य लाभ होता है
६-बच्चों को खोखली होने पर गोमूत्र को छानकर उसमें हलदी का चूर्ण मिलाकर पिलाना चाहिये।
७-उदर के किसी भी रोग में गोमूत्र-पान से लाभ होता है।
८-जलोदर में रोगी को केवल गो-दुग्ध सेवन करना चाहिये और साथ-साथ गोमूत्र में शहद मिलाकर नियमित पीना चाहिये।
९-चरक के मतानुसार लोहे के बारीक चूर्ण को गोमूत्र में भिगोकर और उसे खूब छानकर दूध के साथ उसका सेवन करे तो पाण्डुरोग में जल्दी लाभ होता है। सेवन से पहले उसे खूब छानना जरूरी है।
१०-शरीर की सूजन में केवल दूध पीकर साथ में गोमूत्र का सेवन करना चाहिये।
११-गोमूत्र में नमक और शक्कर समान भाग में मिलाकर सेवन करनेसे उदर-रोग का शमन होता है।
१२-गोमूत्र में सैंधव नमक और राई का चूर्ण मिलाकर पीने से उदर-रोग मिटता है।
१३-आँखों की जलन, क़ब्ज़, शरीर में सुस्ती और अरुचि में गोमूत्र में शक्कर मिलाकर लेना चाहिये।
१४-खाज, फुंसी तथा विचर्चिका में गोमूत्र में आँबा हलदी का चूर्ण मिलाकर पीना चाहिये।
१५-प्रसूति के बाद सुवा रोग में स्त्री को गोमूत्र पिलाने से अच्छा लाभ होता है।
१६-चर्म-रोगों में हरताल, बाकुची तथा मालकॅगनी को गोमूत्र में मिलाकर सोगठी बनाकर इसे दूषित करनी चाहिये और स्नान करना चाहिये।
२०-कृष्णजीरक को गोमूत्र में पीसकर इसका शरीरपर मालिश और गोमूत्र-स्नान से चर्म-रोग मिटते हैं।
२१- ईंट को खूब तपाकर गोमूत्र में इसे बुझाने तथा इसके बाद उसे कपड़े में लपेटकर यकृत् और प्लीहा (तिल्ली)-की सूजन पर सेंक करने से लाभ होता है।
२२-कृमि-रोग में डीकामाली का चूर्ण गोमूत्र के साथ देना चाहिये।
२३-सुवर्ण, लौह, वत्सनाभ, कुचला आदि का शोधन करने के लिये और भस्म बनाने के लिये औषध निर्माण में गोमूत्र का उपयोग होता है। गोमूत्र विषैले द्रव्यों का विषप्रभाव नष्ट करता है। शिलाजीतकी शुद्धि भी गोमूत्रसे होती है।
२४-चर्मरोगों में उपयोगी महामरिच्यादि तेल और – पञ्चगव्य घृत बनाने में गोमूत्र उपयोग में लाया जाता है।
२५-हाथीपाँव (फाइलेरिया)-रोग गोमूत्र सुबह में खाली पेट लेने से मिट जाता है।
२६-गोमूत्र का क्षार उदर-वेदना में, मूत्ररोध में तथा वायु का अनुलोमन करने में दिया जाता है।
२७-गोमूत्र सिर में लगाकर उसे अच्छी तरह मलकर थोड़ी देरतक रखना चाहिये। सूखने के बाद धोने से बाल सुन्दर होते हैं।
२८-कामला-रोग में गोमूत्र अतीव उपयोगी है।
२९-गोमूत्र में पुराना गुड़ और हलदी का चूर्ण मिलाकर पीने से दाद, कुष्ठरोग और हाथीपाँव ठीक होते हैं।
३०-गोमूत्र के साथ एरंड तेल एक मास तक पीने से संधिवात और अन्य वातविकार नष्ट होते हैं।
३१-बच्चों को उदर-वेदना तथा पेट फूलने पर एक चम्मच गोमूत्र में थोड़ा नमक मिलाकर पिलाना चाहिये।
३२-बच्चों को सूखा-रोग होनेपर एक मासतक सुबह और शाम गोमूत्र में केशर मिलाकर पिलाना चाहिये।
३३-शरीर में खाज-खुजली हो तो गोमूत्र में नीम के पत्ते पीसकर लगाना चाहिये।
३४-गोमूत्र के नियमित सेवन से शरीर में स्फूर्ति रहती है, भूख बढ़ती है और रक्तका दबाव स्वाभाविक होने लगता है।
३५- क्षयरोगीके क्षय-जन्तुका नाश गोबर और गोमूत्रकी गन्ध से होता है। अत: क्षयके रोगी को गौशाला में रखना चाहिये और इसकी खाट को गोमूत्र से बार-बार धोना चाहिये।
३६-दाद (Ring-Worm)-पर धतूरेके पत्ते गोमूत्र में पीसकर गोमूत्र में ही उबाले। गाढ़ा होने पर लगावे।
३७-टाइफॉइड या किसी भी दवाई के खाने से सिर या किसी स्थान के बाल उड़ जाते हैं तो गोमूत्र में तंबाकू को पीसकर डाल दे। दस दिनके बाद पेस्ट जैसा बन जानेपर अच्छी तरह रगड़कर बाल-झड़े स्थानपर लगाये तो बाल फिर आ जाते हैं। सिरमें भी लगा सकते हैं।