Last Updated on February 17, 2017 by admin
तेल मालिश के संबंध में चरक ने कहा हैः
स्पर्शने चाधिको वायुः स्पर्शनं च त्वगाश्रितम्।
त्वचश्च परमोऽभ्यंग तस्मात्तं शीलयेन्नरः।।
‘शरीर की स्वस्थता के लिए अधिक वायु की आवश्यकता है, वायु का ग्रहण त्वचा पर आश्रित है, त्वचा के लिए अभ्यंग (तेल मालिश) परमोपकारी है, इसलिए मालिश करनी चाहिए।’
एक अन्य स्थान पर आता है किः
अभ्यंगमाचरेन्नित्यं सर्वेष्वंगेषु पुष्टिदम्।
शिरः श्रवणपादेषु तं विशेषेण शीलयेत्।।
‘सभी अंगों को पुष्टि प्रदान करने वाली मालिश हमेशा करनी चाहिए। विशेषकर सिर, कान तथा पैरों में (तेल की) मालिश करने से बहुत लाभ होता है।’
साधारण तौर पर हम लोग सिर्फ यही जानते हैं कि शरीर को वायु सिर्फ नासिका द्वारा ही मिलती है लेकिन वास्तव में ईश्वर ने रोम छिद्रों को इसलिए बनाया है कि इनके माध्यम से शरीर की आवश्यक वायु की पूर्ति हो सके। अनुसंधानकर्त्ताओं ने इस बात की सत्यता का पता लगाने के लिए एक आदमी के सम्पूर्ण शरीर पर तारकोल पोतकर उसके रोमछिद्रों को बंद कर दिया तो वह हाँफने लगा और थोड़ी देर में छटपटाने लगा। तारकोल हटाने पर ही उसने राहत की साँस ली। इन रोमछिद्रों को स्वच्छ, शुद्ध तथा खुला रखने के लिए ही मुख्यरूप से तेल मालिश का विधान किया गया है।
कहते हैं कि दो किलो बादाम खाने से भी उतना लाभ नहीं मिलता जितना कि मालिश करके रोमछिद्रों द्वारा पचास ग्राम तेल शरीर में पहुँचने पर लाभ होता है।
शरीर की मालिश के लिए अनेक प्रकार के तेल उपयोग में लाये जाते हैं, यथा-ब्राह्मी तेल, बादाम का तेल, अरंडी, नारियल, तिल, सरसों व मूँगफली का तेल आदि। इनमें सरसों का तेल अधिक उपयोगी माना जाता है। आयुर्वेद के अनुसार मालिश करने या खाने के तेल का शोधन करना आवश्यक है।
मालिश की विधि
मालिश के लिए आयुर्वेद में अभ्यंग शब्द का प्रयोग किया गया है। शरीर को अनुकूल तेल से सुखपूर्वक धीरे-धीरे अनुलोम गति से मलना अभ्यंग है।
भोजन के तीन घण्टे बाद, जब समय मिले तब, रात्रि अथवा दिन में जब अनुकूल हो मालिश की जा सकती है।
मालिश की शुरुआत भी सर्वप्रथम पैरों से करनी चाहिए तथा अन्त में सिर पर पहुँचकर समाप्त करनी चाहिए। इसका आशय यह नहीं कि पैर से सिर तक एक साथ हाथ घुमा दिया जाय। नहीं। पैर के तलुओं एवं उँगली से एड़ी तक, फिर पैर के पंजों से घुटने तक, घुटने से जाँघों एवं कमर तक, हाथ की उँगलियों तथा हथेलियों से लेकर कंधे तक, पेट की, छाती की, चेहरे एवं सिर की, गर्दन एवं कमर की, इस क्रम से मालिश करनी चाहिए।
सिर, पाँव और कान में अभ्यंग विशेषतः करना चाहिए। सिर में अभ्यंग के लिए शीत तेल या सुखोष्ण तेल का उपयोग करें। हाथ-पैर आदि अवयवों पर गरम तेल से अभ्यंग करें। इसी तरह शीत ऋतु में गरम तेल से ग्रीष्म ऋतु में शीत तेल से अभ्यंग करना उचित है। दीर्घाकारवाले अवयवों-हाथ-पैर पर अनुलोमतः अर्थात् ऊपर से नीचे की ओर, संधिस्थान में कर्पूर एवं जानु, गुल्फ, कटि में वर्तुलाकार अभ्यंग करें। अभ्यंग का मुख्य उद्देश्य भीतर के अवयवों की गतियों को उत्तेजित करना है।
शरीर के सभी अंगों पर एक समान दबाव से मालिश नहीं करनी चाहिए। आँख, नाक, कान, गला, मस्तक व पेट जैसे कोमल अंगों पर हल्के हाथों से तथा शेष समस्त अवयवों पर आवश्यक दबाव के साथ मालिश करनी चाहिए।
शीघ्रता से की गई मालिश शरीर में थकान पैदा करती है अतः मालिश करते समय शीघ्रता न करें तथा निश्चिंतता व प्रसन्नतापूर्वक यह सोचते हुए आराम से तालबद्ध मालिश करें कि ‘मेरे शरीर में एक नई चेतना व स्फूर्ति का संचार हो रहा है।’
अभ्यंग काल
पूरे शरीर में अभ्यंग अच्छी तरह से हो इसलिए उपर्युक्त प्रत्येक दशा में 2 से 5 मिनट तक अभ्यंग करें।
यदि एक ही अंग पर अभ्यंग करना हो तो कम से कम 15 मिनट तक अवश्य करना चाहिए। प्रतिदिन स्नानादि से पूर्व 5 मिनट की अवधि स्वस्थ व्यक्ति के लिए है। रोगावस्था में इससे अधिक अपेक्षित है। अभ्यंग के बाद 15 मिनट विश्राम करें।
बाद में नैपकीन या टॉवल गर्म पानी में डुबोकर पानी निचोड़कर तेल पोंछ लें। फिर गरम पानी से स्नान करें। साबुन से न नहायें क्योंकि साबुन से रोमकूप में प्रविष्ट तेल भी धुल जाता है। इसलिए साबुन की जगह चने के आटे का प्रयोग करें।
अभ्यंग से लाभ
1)नियमित मालिश करने से निम्नलिखित लाभ होते हैं।
2)शरीर की थकान मिटकर शरीर में एक नई ताजगी, शक्ति व स्फूर्ति का संचार होता है।
3)शरीर की वायु का नाश होकर त्वचा को उचित पोषण मिलता है जिससे त्वचा में कांति का तेज निखरने लगता है।
4)मालिश से असमय आने वाला वृद्धत्व मिटकर चिरयौवन मिलता है तथा आलस्य व निष्क्रियता नष्ट होती है। शरीर उत्साही बनता है।
5)नियमित मालिश से नेत्र-ज्योति में वृद्धि एवं बुद्धि का विकास होता है।
6)मालिश से मोटा शरीर दुबला होता है तथा दुबला शरीर पुष्ट होकर बलशाली बनता है।
7)मालिश से सिरदर्द, हाथ-पैर के दर्द एवं अन्य दर्दों में राहत मिलती है।
8)मालिश करने से त्वचा फटती नहीं है। त्वचा में झुर्रियाँ पड़ना, बाल का सफेद होना व झड़ना मिटता है एवं त्वचा के रोग होने की संभावना नष्ट होती है।
रोमिछिद्रों द्वारा तेल शरीर की विविध ग्रंथियों के माध्यम से भिन्न-भिन्न अवयवों में पहुँचकर उन्हें अधिक क्रियाशीलता प्रदान करता है।
भलीभाँति नियमानुसार की गई मालिश स्वयं एक व्यायाम है, जो शरीर के विभिन्न अंगों की कार्यक्षमता में वृद्धि करती है।
पैरों के तलवों में मालिश करने से सारे दिन की मेहनत के बाद उत्पन्न तीनों दोषों का नाश होता है।
हृदयस्थल पर मुलायम हाथ से गोल-गोल हाथ घुमाकर सावधानीपूर्वक मालिश करने से हृदय की दुर्बलता नष्ट होकर हार्टफेल जैसी बीमारियों का भयनाश होता है।
इसके अतिरिक्त नियमित मालिश से वायु से होने वाले अस्सी प्रकार के रोग-जोड़ों का दर्द, अन्य दर्द, वात-पित्त-कफजन्य रोग, सर्दी, दमा, अनिद्रा, कब्जियत, मोटापा, रक्तदोष आदि रोगों में आशातीत लाभ मिलता है तथा मालिश किये हुए शरीर पर छोटे-मोटे जीव जंतुओं के काटने का कोई असर ही नहीं होता। मालिश से श्रवणशक्ति, प्राणशक्ति, हृदयशक्ति, कार्यशक्ति और तेजबल की वृद्धि होती है।
रात्रि में सोने से पहले सरसों के तेल की पूरे शरीर पर मालिश करने से रोमछिद्रों द्वारा रातभर में अधिक मात्रा में तेल सोखा जाता है, निद्रा भी अच्छी आती है और मस्तिष्क को आराम मिलता है।
मालिश के द्वारा बिना ऑपरेशन के भी नसों के अवरोध दूर हो जाते हैं। वृद्धावस्था, रोग, बैठालु जीवन आदि के कारण कई बार मनुष्य चल-फिर नहीं सकता और न ही व्यायाम कर सकता है। तब उसके शरीर में रक्तपरिभ्रमण उचित ढंग से नहीं हो पाता जिसके परिणामस्वरूप अनेक रोग जैसे कि कब्जियत, संधिवात, सिरदर्द से लेकर लकवे तक का आक्रमण होने की संभावना रहती है। ऐसे मनुष्यों के लिए मालिश अत्यंत लाभदायक है क्योंकि मालिश द्वारा रक्त-संचरण में बहुत मदद मिलती है।
रविवार को पुष्प, गुरुवार को दुर्वा, मंगलवार को मिट्टी और शुक्रवार को गोबर मिलाकर तेल मालिश करने से, शास्त्र में उक्त दिवसों को मालिश निषिद्ध बताने के दोषों का मार्जन होता है अर्थात् मालिश के प्रतिदिन के नियम में यदि इन चार दिवसों में तेल के साथ उपरोक्त वर्णित वस्तुओं का वार अनुसार मिश्रण कर मालिश करें तो किसी भी प्रकार की हानि नहीं होती है यथा-
रवौ पुष्पं गुरौ दुर्वा भौमवारे च मृत्तिका।
गोमयं शुक्रवारे च तैलाभ्यंगे न दोषभाक्।।
महारानी मदालसा के अनुसार चतुर्दशी, पूर्णिमा, अष्टमी तथा पर्व के दिन तैलाभ्यंग न करें।
आजकल सिर में तेल न डालने का प्रचलन चला है या विभिन्न प्रकार के रासायनिक तत्त्वों के मिश्रण से तैयार किये गये सुगंधित तेलों को लुभावने एवं आकर्षक विज्ञापनों द्वारा प्रचारित-प्रसारित कर बाजार में बेचा जा रहा है। आयुर्वैदिक पद्धति से तैयार किये गये तेल तो ठीक होते हैं लेकिन रासायनिक मिश्रणों से तैयार कृत्रिम तेल सिर, त्वचा व आँखों को नुकसान पहुँचा सकते हैं।
सिर में तेल लगाने से बाल सुन्दर, मजबूत, घने व काले होकर बढ़ते हैं साथ ही बुद्धि, मुख का सौन्दर्य नेत्रज्योति विकसित होती है एवं बालों की सफेदी तथा सिरदर्द का रोग नहीं होता तथा इन्द्रियों व मस्तिष्क की शून्यता दूर होती है। अतः सिर में तेल अवश्य ही लगाना चाहिए।
अभ्यंग किसका न करें
हृदय रोगी, दाद, खाज, कोढ़ जैसे त्वचा रोगी, क्षय रोगी, अति कमजोर व्यक्तियों की मालिश नहीं करनी चाहिए।
जिनको कफप्रधान रोग हुआ हो, जिन्हें वमन या विरेचन दिया गया हो, जो अजीर्ण, आम, तरूण ज्वर तथा संतपर्णजन्य व्याधियों से पीड़ित हों उनकी मालिश न करें। इन रोगों में प्रारंभ से ही त्वचा में कफ-आम का संचय होता है जिससे अभ्यंग करने से व्याधि कष्टसाध्य या असाध्य हो जाती है।