हरपिज जोस्टर (शींगल्स) के लक्षण, कारण और उपचार

Last Updated on June 16, 2021 by admin

हरपिज जोस्टर त्वचा के तकलीफदेह रोगों में से है। इसमें शरीर के एक तरफ किसी एक हिस्से की तंत्रिका सूज जाती है, जिससे यह भाग दर्द से घिर जाता है और उस पर फफोलों की पंक्ति उभर आती है। यह सूजन दो-तीन हफ्ते रहकर अपने से चली जाती है और कुछेक मामलों को छोड़ फिर कष्ट नहीं देती।

1). हरपिज जोस्टर किस कारण होती है ?

हमारे पूरे शरीर पर संवेदनशील तंत्रिकाओं का जाल बिछा हुआ है। उनमें से किसी एक की जड़ में वैरिसैला वायरस की घुसपैठ से तंत्रिका सूज जाती है और उससे संबंधित त्वचा का भाग दर्द से भर उठता है तथा उस पर फफोले उठ आते हैं।

अधिकांश मामलों में हमलावर वायरस पहले से ही शरीर में छिपा बैठा होता है। बचपन में हुई चिकिनपॉक्स के समय से उसने अपना अड्डा जमाया होता है और अनुकूल परिस्थितियाँ पाकर वह धावा बोल देता है, जिससे हरपिज जोस्टर हो जाती है।

बचपन से इतने साल तक वायरस का चुप रहना और फिर अचानक दुबारा हमला करना-बात कुछ रहस्यमय सी लगती है ! लेकिन इसके वैज्ञानिक प्रमाण मौजूद हैं। कुछ मामलों में वायरस का पुनः सक्रिय होना यह सूचना भी देता है कि शरीर की रोगों से लड़ने की ताकत कमजोर पड़ रही है। लिम्फोमा और ल्यूकीमिया के मरीजों में और बुढ़ापे में हुई हरपिज इसीलिए अधिक तकलीफदेह होती है।

2). हरपिज जोस्टर के लक्षण क्या हैं ?

  • शरीर के एक तरफ पीठ, छाती, पेट या चेहरे के सीमित क्षेत्र में पीड़ित तंत्रिका के हिसाब से दर्द होने लगता है, जिसका शुरू में कोई कारण नहीं मिलता। पर दो-तीन दिन गुजरते ही शरीर का वही हिस्सा फफोलों की कतार से भर जाता है।
  • ये फफोले बहुत कुछ चिकिनपॉक्स के फफोलों जैसे ही दिखते हैं। साथ में हलका बुखार भी आ जाता है और शरीर के उस भाग की लसीका पर्व (लिम्फनोड) भी सूजकर फूल जाती हैं।
  • सात-आठ दिन के बाद फफोले किसी भी समय सूखना शुरू कर देते हैं, और पंद्रह दिन पूरे होते-होते अक्सर गिरने लगते हैं। उनके गिरने के साथ ही अधिकतर मरीजों में दर्द भी खत्म हो जाता है।
  • चेहरे पर हुई हरपिज जोस्टर आँख पर भी असर दिखा सकती है, जिससे कॉर्निया पर फफोले बन जाते हैं और उसके जख्मी होने का अंदेशा हो जाता है। लापरवाही बरतने से कॉर्निया की पारदर्शिता नष्ट हो जाती है और आँख से दिखना बंद हो जाता है।

3). क्या हरपिज जैसे लक्षण किसी अन्य रोग में भी उपज सकते हैं ?

हरपिज जोस्टर के लक्षण अपने में इतने शास्त्रीय हैं कि इन्हें देखते ही रोग का पता चल जाता है। फिर भी, कुछ जंगली पेड़-पौधों के लगने से भी कुछ ऐसे ही लक्षण उत्पन्न हो सकते हैं, पर उन मामलों में मरीज खुद पूरी बात बता देता है।

हाँ, हरपिज सिंपलैक्स जो एक वायरस से ही होता है, कभी-कभी मामले को मुश्किल बना देता है, पर उसमें न तो तकलीफ एक तरफा होती है, न ही हरपिज जोस्टर जितना तेज दर्द होता है।

4). क्या हरपिज जोस्टर के मरीज से रोग दूसरों में फैल सकता है ?

हाँ, संपर्क में रहनेवाले व्यक्ति को चिकिनपॉक्स होने की सदा संभावना रहती है। लेकिन यह अंदेशा उन्हीं व्यक्तियों में होता है जिन्हें पहले यह रोग न हुआ हो। चिकिनपॉक्स की यह विशेषता है कि एक बार हो जाने के बाद यह दुबारा नहीं होता।

5). हरपिज जोस्टर के इलाज के लिए क्या करना चाहिए ?

चर्मरोग-विशेषज्ञ या फेमिली डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए ताकि स्थापित हो जाए कि हरपिज जोस्टर ही है। यह पुष्टि हो जाने पर बात दिन गिनने की ही रह जाती है। दो-तीन हफ्तों में हरपिज के फफोले खुद गिर जाते हैं और कष्ट अपने से मिट जाता है। तब तक कुछ छोटे-मोटे उपायों से आराम मिल सकता है।

  • फफोलों पर कैलेमीन लोशन लगाकर उन्हें साफ रुई और हलकी पट्टी से ढंक देना चाहिए।
  • कैलेमीन लोशन जलन कम करता है और पट्टी हो जाने से फफोलों पर पहने हुए कपड़े की रगड़ नहीं लगती।
  • दर्द कम करने के लिए दर्द-निवारक गोली-जैसे एस्प्रिन-ली जा सकती है।
  • खास मामलों में विशेषज्ञ वायरस रोधी दवाएँ भी प्रयोग में लाते हैं।
  • जिन मरीजों में आँख में हरपिज हो, उन्हें बिना समय गँवाए नेत्र-विशेषज्ञ से सलाह लेनी चाहिए।
  • विशेषज्ञ पीड़ाहारी दवा, वायरसरोधी दवा और आँख की पुतली फैलाकर रखनेवाली एट्रोपीन
  • दवा आँख में डालते रहने की सलाह देता है, ताकि आँख क्षति से – बच सके।

6). क्या बेटनोवेट काम नहीं करती ?

नहीं, उसे लगाने से मामला बिगड़ सकता है। अधिक छेड़छाड़ करने से फफोलों में दूसरे सूक्ष्मजीव हमला कर सकते हैं, जिससे तकलीफ बढ़ जाती है।

7). क्या हरपिज जोस्टर ठीक हो जाने के बाद फिर से भी हो सकता है ?

नहीं, लेकिन कुछेक मामलों में फफोले दूर हो जाने के बाद भी दर्द नहीं जाता और कई महीनों तक परेशान किए रहता है। यह संभावना प्रौढ़ उम्र के मरीजों में अधिक प्रबल होती है। साठ साल से अधिक उम्र के मरीजों में बीस प्रतिशत और सत्तर साल से अधिक उम्र के मरीजों में तीस प्रतिशत मरीज इस परेशानी से गुजरते हैं, लेकिन उनमें भी दर्द अपना समय पूरा कर अपने से मिट जाता है।

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