Last Updated on June 16, 2020 by admin
हाइड्रोसिल , एक आम विकार : Hydrocele in Hindi
यह भारतीय पुरुषों में पाई जाने वाली आम बीमारी है। इसे आम बोलचाल की भाषा में अंडकोष वृद्धि या नस (शिरा) का फूल जाना भी कहते हैं।
हर पुरुष के अंडकोष एक झिल्ली सी थैली में बंद होते हैं। यह झिल्ली एक पतले, पारदर्शक पदार्थ का स्राव करती है जो अंडकोष की बाहरी सतह को चिकना रखने में मदद करता है। यह चिकनापन अंडकोषों की झिल्ली के भीतर की हलचल को सुगम करता है।
हाइड्रोसिल वास्तव में अंडकोष की वृद्धि नहीं है वरन् इस के ऊपर की झिल्ली के भीतर तरल पदार्थ का जमा हो जाना है जिस से यह थैली फूल जाती है।
हाइड्रोसील क्यों होता है इसके कारण : Hydrocele ke Karan in Hindi
थैली के भीतर तरल पदार्थ (जिसे हाइड्रोसिल फ्लूइड कहते हैं) के बढ़ने के कई कारण हो सकते हैं-
- आमतौर पर जितना स्राव होता है उतना झिल्ली स्वयं ही सोख लेती है और एक संतुलन बना रहता है, मगर जब रिसाव बहुत बढ़ जाता है तो झिल्ली उसे पूरी तरह सोख नहीं पाती व अतिरिक्त जल थैली के भीतर जमा होता रहता है।
- कई बार ऐसा होता है कि झिल्ली की जल सोखने की शक्ति कम या नष्ट हो जाती है। ऐसे में जो कुछ जल स्रवित होता है वह सोखा न जाने के कारण थैली के भीतर जमा होता रहता है। अंडकोष कुछ हद तक इस अवस्था के लिए उत्तरदायी है।
- आमतौर पर सोखा हुआ जल महीन नसों द्वारा खून की नसों में प्रवाहित कर दिया जाता है। भारत जैसे गरम जलवायु वाले देश में मच्छरों द्वारा फैलाया जाने वाला फाइलेरिसिस या हाथी रोग अस्सी प्रतिशत से भी अधिक मरीजों में हाइडोसिल पैदा करने के लिए मच्छर जिम्मेदार हैं। इस बीमारी के जीवाणु इन महीन नसों को या तो अवरुद्ध कर देते हैं या नष्ट कर देते हैं। अतः सोखा हुआ जल रक्त नलिकाओं तक नहीं पहुंचता और थैली में ही जमा होता रहता है।
ऐसी अवस्था से उत्पन्न होने वाले हाइड्रोसिल का जल थोड़ा गाढ़ा होने के साथ-साथ सफेदी लिए होता है। यह स्राव गोंद की तरह चिपचिपा होता है और कई बार तो यह अंडकोषों एवं झिल्ली को आपस में इतना चिपका देता है कि वे आसानी से अलग नहीं किए जा सकते हैं। - कुछ मरीजों में इस रोग का कारण पेट और अंडकोष की थैली के बीच एक रास्ता बन जाना भी होता है जिस में पेट से रिसा द्रव इस थैली में जमा हो कर थैली को फुला देता है।
उपर्युक्त सभी हाइड्रोसिल के प्राथमिक कारण हैं और इस में अंडकोष में कोई बीमारी नहीं पाई जाती। मगर कभी-कभी अंडकोष में उत्पन्न होने वाली बीमारियां भी हाइड्रोसिल को जन्म दे सकती हैं। मसलन अंडकोष में संक्रमण या अंडकोष का कैंसर भी हाइड्रोसिल की गंभीर अवस्था का कारण हो सकता है। मगर ऐसी अवस्था में अंडकोष की वृद्धि बहुत अधिक नहीं होती।
हाइड्रोसील की पहचान व इसके लक्षण : Hydrocele ke Lakshan Hindi me
आमतौर पर यह रोग किशोरावस्था के पश्चात ही होता है, जो धीरे-धीरे बढ़ता हुआ बड़ा स्वरूप ले लेता है।
मरीज को अंडकोष के आकार में बढ़ने के अलावा, भारीपन, पेट में हलका सा खिंचाव व चलने में थोड़ी परेशानी महसूस होती है।
हाइड्रोसिल एवं उस से उत्पन्न जटिलताएं :
हाइड्रोसिल से कई अन्य परेशानियां भी बढ़ सकती हैं, जैसे –
a). अंडकोष की थैली का फूट जाना –
कभी-कभी दुर्घटनावश या गैर जानकार व्यक्ति द्वारा इलाज के समय नुकीली वस्तु द्वारा थैली के फूट जाने का भय रहता है। ऐसी अवस्था में संक्रमण भीतर फैल सकता है और अंडकोषों को क्षति पहुंच सकती है।
b). अंडकोषों की थैली में रक्तस्राव होना –
यह अवस्था अंडकोषों की थैली में रक्तवाहिनी के फूट जाने से होती है।यह दशा विशेषकर तब उत्पन्न होती है जब सूई को थैली में डाल कर उस से जल को निकाला जाता है। यह नीमहकीमों द्वारा अपनाया जाने वाला आम तरीका है। थैली में रक्त के जमा होते ही रोगी को उस भाग में अत्यधिक पीड़ा होने लगती है व जो थैली सूई से पानी निकाल लेने के बाद खाली हो चुकी होती है, वह पुनः तेजी से भरने लगती है। ऐसी अवस्था में तुरंत शल्यक्रिया करवाना जरूरी हो जाता है।
c). हाइड्रोसिल के जल में संक्रमण होना –
इस अवस्था में जब किसी बाहरी जख्म या खून में जैविक संक्रमण की वजह से संक्रमण अंडकोषों की थैली तक पहुंच जाए तो इस के जल में भी संक्रमण उत्पन्न हो सकता है। तब जल मवाद का रूप ले लेता है। मरीज को अंडकोषों के स्थान पर दर्द, ऊपरी चमड़ी में सूजन और सुर्जी पैदा हो जाती है। बुखार, भूख न लगना, कमजोरी, पेशाब में जलन जैसे अन्य लक्षण भी दिखाई देने लगते हैं।इस अवस्था को ‘पायोसिल’ कहते हैं। इस में भी तुरंत शल्यक्रिया जरूरी हो जाती है।
d). थैली में कैल्सियम जमा होना –
जिन लोगों में यह बीमारी सालों से चली आ रही होती है, उन के जल का रूपांतर धीरेधीरे कैल्सियम में हो जाता है। इस अवस्था में अंडकोष पत्थर की तरह सख्त एवं वजनी हो जाते हैं।
हाइड्रोसिल के अन्य प्रकार : Types of Hydrocele in Hindi
हाइड्रोसिल के अन्य प्रकार इस प्रकार है –
1). बाल्यावस्था का हाइड्रोसिल –
यह कम उम्र के लड़कों में पाया जाता है। ऐसी दशा में बच्चे के अंडकोष में वृद्धि शाम के समय नजर आती है। मगर सुबह जब बच्चा सो कर उठता है तब यह वृद्धि पूरी तरह गायब हो जाती है। इस का कारण थैली और पेट के बीच आपसी रास्ते का होना है। बच्चे को जब दिनभर की उछलकूद और भागदौड़ के बाद शाम को देखा जाए तो पेट के जल के अंडकोष में जमा हो जाने के कारण वह जगह फूली नजर आती है। रात में सोने की अवस्था में अंडकोषों में जमा जल पुनः पेट में चला जाता है और सुबह सूजन दिखाई नहीं देती।
कुछ बच्चों में उम्र के साथ यह रास्ता बंद हो जाता है व अंडकोषों में जमा जल के कारण वयस्कों की तरह का हाइड्रोसिल पैदा हो जाता है। उपर्युक्त अवस्था का इलाज भी शल्यक्रिया है।
2). दोहरा हाइड्रोसिल –
इस तरह की अवस्था में एक ही अंडकोष में जल से भरी दो थैलियां पाई जाती हैं। एक अपनी सामान्य जगह पर होती है तो दूसरी उस के ऊपर पेड़ के करीब दिखाई देती है।
3). शुक्राणु नस का हाइड्रोसिल –
यह अंडकोषों में न हो कर उस के ऊपरी भाग में, जहां से शुक्राणु एवं वीर्य को लिंग तक पहुंचाने वाली नस होती है, पाया जाता है। यह बहुत कम लोगों में देखने में आता है।
हाइड्रोसिल का उपचार : Hydrocele ka Upchar Hindi me
hydrocele ka upchar kya hai
इस बीमारी का सौ प्रतिशत कारगर उपचार शल्यक्रिया ही है जिस के लिए कई विधियां प्रचलित हैं। इन में से किसी एक को अंडकोषों का आकार, उन के भीतर मौजूद जल की अवस्था, अंडकोषों की अवस्था के अनुसार अपनाया जाता है। शल्यक्रिया के पश्चात इस रोग के पुनः होने की संभावना बहुत कम है।केवल उस अवस्था में जब शल्यक्रिया कुशल सर्जन के द्वारा न की जाए तभी यह रोग पुनः हो सकता है।
सूई के द्वारा जल निकालना –
यह विधि केवल उन रोगियों के लिए अपनाई जाती है जो बहुत वृद्ध या या कमजोर हो और शल्यक्रिया सहन करने के योग्य न हों ।
इस क्रिया का सब से बड़ा खतरा यह है कि यदि सूई अंडकोष में घुस जाए तो भीषण रक्तस्राव हो सकता है। यदि यह क्रिया स्थान की अच्छी तरह सफाई किए बिना या कीटाणुनाशक दवा लगाए बिना या संक्रमित सूई से की जाए तो संक्रमण के भीतर फैलने का डर रहता है।
वैसे भी इस क्रिया के पश्चात कुछ महीनों के भीतर जल पुनः भर जाता है व क्रिया को दोहराना पड़ता है। बारबार ऐसा करने से त्वचा में कड़ापन आने लगता है, जिस से सूई डालना अत्यंत पीड़ादायक हो जाता है।
उपसंहार :
हाइड्रोसिल का पूर्ण सफल उपचार केवल शल्यक्रिया है। आमतौर पर मरीज शल्यक्रिया से डरता है व इसे टालना चाहता है। इसलिए वह नीम हकीमों के उन लुभावने विज्ञापनों की ओर आकर्षित हो जाता है जो यह दावा करते हैं कि वे बिना आपरेशन के इस बीमारी को ठीक कर सकते हैं। उन में से अधिकांश सूई के द्वारा पानी निकालने की प्रक्रिया अपनाते हैं। मगर मरीज को अंत तक इस बीमारी से छुटकारा नहीं मिलता। इस की शल्यक्रिया एक मामूली शल्यक्रिया है, जिस में मरीज एक महीने में पूर्ण स्वस्थ हो जाता है व उसे पुनः उस बीमारी के होने का कोई डर नहीं रहता।
हाइड्रोसिल : कुछ सवालजवाब (FAQ)
प्रश्न – क्या हर प्रकार की अंडकोष वृद्धि को हाइड्रोसिल कहते हैं?
उत्तर – जी नहीं, अंडकोष वृद्धि के कई कारण हैं जिन में अंडकोषों का कैंसर, क्षयरोग और आतशक जैसे यौन रोग शामिल हैं, जो इस प्रकार की वृद्धि कर सकते हैं।इसी तरह अंडकोषों के बाहरी आवरण में रक्त, पीप या लसिका स्राव के जमा होने पर भी इस स्थान में बढ़त दिखाई पड़ती है।
प्रश्न – क्या यह सच है कि ज्यादा साइकिल चलाने से या स्कूटर को किक मारने से हाइड्रोसिल हो जाता है?
उत्तर – यह एक भ्रामक धारणा है जो लोगों के मन में घर कर गई है। यह पूरी तरह गलत है।साइकिल ज्यादा चलाने या स्कूटर को किक मारने से न तो हाइड्रोसिल होता है और न ही आपरेशन के पश्चात कोई जटिलता पैदा होती है।
प्रश्न – क्या हाइड्रोसिल सामान्य यौन संबंधों में या प्रजनन क्षमता पर कोई असर करता है?
उत्तर – जी हां, उपर्युक्त दोनों बातों पर हाइड्रोसिल प्रजनन क्षमता पर कुप्रभाव डाल सकता है। अंडकोषों पर लगातार बने रहने वाले दबाव की वजह से उन की क्षमता में कमी आने लगती है, उसी तरह उन के बढ़े आकार की वजह से सामान्य संबंधों में कठिनाई आती है।
प्रश्न – क्या हाइड्रोसिल के आपरेशन में अंडकोषों को हानि पहुंच सकती है?
उत्तर – नहीं, आमतौर पर इस आपरेशन में अंडकोषों को कोई चोट या हानि नहीं पहुंचती, मगर यदि भीतर मवाद या रक्त जमा हो तो अंडकोषों को निकालना पड़ सकता है।
प्रश्न – क्या आपरेशन के बाद यह बीमारी पुनः हो सकती है?
उत्तर – यदि इस के लिए शल्यक्रिया की जाए तो यह दोबारा नहीं होती, मगर केवल सूई द्वारा पानी निकाल कर उस का आकार छोटा करने की क्रिया अपनाई जाए तो अस्थायी लाभ होता है और अंडकोषों में पुनः वृद्धि हो जाती है.
प्रश्न – इस शल्यक्रिया में कितनी तकलीफ होती है?
उत्तर – इस आपरेशन के दौरान मरीज की नाभि के नीचे का सारा हिस्सा सुन्न कर दिया जाता है, अतः उसे कोई तकलीफ नहीं होती।
प्रश्न – आपरेशन के बाद कितने दिन अस्पताल में रहना पड़ता है?
उत्तर – आमतौर पर आपरेशन के चौथे दिन मरीज घर जा सकता है और आठ या दस दिन के बाद टांके निकाले जाते हैं।
प्रश्न – शल्यक्रिया के कितने दिनों बाद मरीज अपनी सामान्य दिनचर्या में लौट सकता है?
उत्तर – करीब दो सप्ताह में व्यक्ति पूर्णतया स्वस्थ हो कर पूर्ववत अपनी सामान्य दिनचर्या अपना सकता है।
प्रश्न – यदि दोनों तरफ यह वृद्धि हो तो क्या एक साथ दोनों ओर का आपरेशन किया जा सकता है? उत्तर – जी हां, एक ही बार में दोनों ओर की शल्यक्रिया की जा सकती है।