हाइड्रोफोबिया के कारण ,लक्षण और इलाज

Last Updated on August 30, 2019 by admin

हाइड्रोफोबिया(जल संत्रास) रोग क्या है : Hydrophobia in Hindi

हाइड्रोफोबिया और जल संत्रास(पानी से डर) दोनों का योगार्थ एक ही है। रेबीज शब्द यद्यपि हाइड्रोफोबिया का पर्याय करके प्रयुक्त होता है। लेकिन यह वास्तव में इसका पर्याय नहीं है। रेबीज का मतलब कुत्तों का उन्माद है। इसको संस्कृत में अलर्क कहते हैं। कुत्ते में इस रोग से उन्माद अधिक होता है और पेशियों के आक्षेप कम होते हैं।
कुत्ता तथा तज्जातीय पशुओं का यह एक तीव्र औपसर्गिक (रोग जो छूत से फैलता हो)रोग है। उसीसे पीड़ित पशुओं के काटने से मनुष्यों में संक्रमण होता है।

हाइड्रोफोबिया के कारण :

☛ इस रोग का कारण एक सूक्ष्मदर्शकातीत विषाणु है।
☛ यह विषाणु रोगी के मस्तिष्क में और लालाग्रंथियों (लार ग्रंथि) में होता है। अतएव इसका उत्सर्ग लाला-स्त्राव(लार) में होता है।
☛ यह रोग अधिकतर कुत्ता, गीदड़, भेड़िया, लोमड़ी, बिल्ली, सियार, बकरी, सूअर आदि प्राणियों में होता है।
☛ इससे मृत प्राणियों के मस्तिष्क में एक विशेष प्रकार के पिण्ड मिलते हैं जो नेगरी पिण्ड (Negri body) कहलाते हैं।
☛ यह रोग पागल कुत्ता, गीदड़, भेड़िया, भेड़िया, विशेषतया कुत्ते के काटने से मनुष्य को होता है।
☛ पागल कुत्ते के काटने की अपेक्षा गीदड़ या भेड़िया के काटने से इसके होने का प्रमाण दुगुना अधिक होता है।
☛ जब कुत्ता पागल बनता है तब वह बिना कारण भौंकता है, दूसरे कुत्तों पर या मनुष्यों पर हमला करता है। बहुत दूर तक इधर-उधर दौड़ता है और घास, लकड़ी, कोयला, पत्थर आदि अनाहार्य चीजों को भी खाता है।
☛ रोग के प्रारम्भ से १० दिन में रोगी पशु की मृत्यु हो जाती है।
☛ पागल कुत्ते के मुंह से लार टपकती है। इस लार में ही रोग का विष विद्यमान रहता है। काटने पर मुख की लाला दंश के छेदों में गिरती है, जिससे रोग का संक्रमण होता है।
☛ पागल जानवर के काटने पर साधारणतयाः एक दो मास में रोग प्रादुर्भूत होता है। यह काल दंशों की संख्या, दंश का स्थान और गहराई, दंश स्थान पर वस्त्र का होना या न होना इत्यादि अनेक बातों पर न्यूनाधिक (पन्द्रह दिन से तीन वर्ष तक) हुआ करता है।

हाइड्रोफोबिया के लक्षण :

(१) इस रोग का सबसे बड़ा यह लक्षण है कि वह पानी दिखाने पर डरता है। कोई भी द्रव पी नहीं सकता है।
(२) दर्पण दिखाने पर डरता है तथा हा-हा-करता रहता है।
(३) अंधेरे की अपेक्षा अगर रोगी को प्रकाश में लाया जाता है, तो वह डरता है तथा आवाज करता है।
(४) कंठ रुका हुआ सा लगता है।
(५) मुंह से लाल टपकती रहती है, जिसमें इस रोग के विषाणु होते हैं।
(६) कई-कई बार काटने को दौड़ता है।

हाइड्रोफोबिया का इलाज / चिकित्सा : hydrophobia treatment in hindi

✦ इस रोग के पूर्ण लक्षण प्रगट होने के बाद कोई इलाज नहीं है। यह तीव्र संक्रामक रोग होता है।
✦ रोगी को कमरे में रखना चाहिए।
✦ उसे दर्पण तथा पानी नहीं दिखाना चाहिए। इसको देखकर वह डरता रहता है।
✦ रोगी की लार टपकती रहती है, जिसमें इस रोग के विषाणु होते हैं- अत: स्वस्थ व्यक्ति अगर इसके सम्पर्क में आ जाता है, तो वह भी इस रोग का शिकार हो सकता है।
✦ दर्दादि कम करने के लिए जिस सीरिंग का प्रयोग किया जायें, उसको नष्ट कर जमीन में गाड़ देनी चाहिए।
✦ रोगी को कोई वस्तु देनी हो तो दस्तानों का प्रयोग कर, नष्ट कर दें।
✦ रोगी द्वारा प्रयुक्त वस्तुओं को गाड़ दें या जलाकर नष्ट कर देना ही हितकर रहता है।
✦ रोगी को जिस कुत्ते ने या जानवर ने काटा है, उसको बांधकर उसपर नजर रखें। अगर वह जानवर मर जाता है, तो यह निश्चित माने की वह ‘पागल’ हो गया है। फिर भी कोई भी जानवर काटने पर तुरंत इसके सूचीवेध जो कि सरकारी अस्पताल में निःशुल्क उपलब्ध हैं- अवश्य ही लगा लेने चाहिए।
✦ कई बार देरी से चिकित्सा व्यवस्था शुरु करने पर औषधियां चलते-चलते भी “हाइड्रोफोबिया’ हो सकता है, फिर उसका कोई उपाय नहीं होता है। अत: जानवर के काटते ही चिकित्सा व्यवस्था शुरु कर देनी चाहिए।
✦ यह रोग होने पर इसका कोई इलाज नहीं है- इस बात की जानकारी होनी जरूरी है। अत: इसका बचाव ही एक मात्र चिकित्सा है।

पागल कुत्ते में रोगनिदान :

रोग प्रतिषेध की दृष्टि से कुत्ते में रोग निदान करना बहुत आवश्यक है। यदि कोई जानवर काटे तो, उसको बांधे रखें, जान से मत मारो। यह देखें कि क्या वह जीवित रहता है या मर गया है। अगर मर गया है, तो इस रोग से ग्रसित मानें।

पागल कुत्ते के काटने पर घरेलू चिकित्सा :

दंश स्थान से रक्त निकलाकर पश्चात् साबुन के पानी से या रस कर्पूर के घोल से दंश स्थान को साफ धो डालो और अन्त में भूयिक (नाइट्रिक) का कार्बोलिक अम्ल से या तप्त लोहे से जलवाओ।

एंटी रेबीज वैक्सीन या आलर्क निरोधी वैक्सीन : Antirabic vaccine

• विशेष पद्धति से बनाई हुई मसूरी (वैक्सीन) की १४-२१ सुई प्रतिदिन एक सुई के हिसाब से त्वचा में दी जाती हैं। इस टीका से उत्पन्न हुई क्षमता वर्ष सवा वर्ष तक टिकती है।

• टीका लगवाने के दिनों में तथा इसके बाद दस दिन तक नशा , अधिक व्यायाम, खेलकूद इत्यादि थकावट उत्पन्न करने वाले व्यवसाय न करने चाहिए।

• आजकल तीन इंजेक्शन भी बाजार में आ गये है। “रिबापुर” (रेनबैक्सी) कम्पनी का बाजार में उपलब्ध है। ये तीन इंजेक्शन लगाना ही काफी है।

परम क्षम लसिका (Hyper immune serum)

अत्यधिक पागल श्वास-शृङ्गाल दंष्ट व्यक्तियों में रोग प्रतिबन्धन में स्थानिक चिकित्सा और टीका से भी अनेक बार सफलता नहीं मिलती। उनमें उनके साथ-साथ परमक्षय लसिका भी प्रयोग किया जाने लगा है। इससे रोग प्रतिबंधन में ही अधिक सफलता नहीं अपितु टीका का औषधि क्रम काल भी छोटा कर सकते हैं।

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