जगन्नाथ मंदिर की तीसरी सीढ़ी यमशिला का रहस्य | क्यों है तीसरी सीढ़ी पर कदम रखना वर्जित

Last Updated on January 14, 2025 by admin

ओडिशा के पवित्र शहर पूरी में स्थित जगन्नाथ धाम केवल एक मंदिर नहीं, बल्कि यह पृथ्वी पर मौजूद वैकुंठ लोक माना जाता है। हर साल लाखों श्रद्धालु यहां आकर अपने आपको धन्य समझते हैं। यहां महाप्रभु जगन्नाथ के साक्षात दर्शन होते हैं, और यहीं पर 16 कलाओं के ज्ञाता भगवान श्री कृष्ण की धड़कनें सुनाई देती है। 

इस पवित्र स्थान में महाप्रभु का महाप्रसाद ग्रहण करना, उनके दर्शन करना, और उन्हें नगर भ्रमण पर निकलते देखना हर भक्त के लिए एक स्वप्न जैसा होता है। हर साल जब प्रभु जगन्नाथ अपने भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा संग मौसी से मिलने गुंडिचा मंदिर जाते हैं, तो 16 विशाल पहियों पर सजे उनके दिव्य रथ को खींचने के लिए भक्तों की असीम भीड़ उमड़ती है। और हर बार भक्तों के कष्टों को काटने के लिए उनके बीच आते हैं प्रभु जगन्नाथ।

यहां आकर हर भक्त के मन में बस एक ही इच्छा होती है – इस बैकुंठ लोक में प्रभु जगन्नाथ के दिव्य दर्शन। उनका आशीर्वाद पाकर हर कोई खुद को संसार के सारे दुखों से मुक्त मानता है। लेकिन, इस चमत्कारिक मंदिर में एक ऐसा रहस्य है, जिसे जानने के बाद हर भक्त आश्चर्यचकित रह जाता है।

जगन्नाथ मंदिर की तीसरी सीढ़ी – एक अनसुलझा रहस्य

क्या आप जानते हैं, ओडिशा के जगन्नाथ मंदिर में प्रवेश करते समय भक्त 22 सीढ़ियों को पार करते हैं, लेकिन इन सीढ़ियों में से एक सीढ़ी ऐसी है, जो सबसे अलग और रहस्यमयी मानी जाती है। मंदिर के मुख्य द्वार से जुड़ी इस तीसरी सीढ़ी पर न तो कोई कदम रखता है, और न ही इसे छूने की हिम्मत करता है।

मंदिर में दर्शन के बाद, श्रद्धालु जब सिंह द्वार से लौटते हैं, तो 22 सीढ़ियों में से इस तीसरी सीढ़ी से खुद को दूर रखते हैं। आखिर ऐसा क्यों? यह सवाल हर किसी के मन में आता है। 

क्या इस सीढ़ी का संबंध यमराज से है? या फिर इसमें कोई अदृश्य शक्ति काम करती है? यह तीसरी सीढ़ी, जिसे “यमशिला” भी कहा जाता है, क्यों दुनिया भर के लोगों के लिए भय और श्रद्धा का कारण बनी हुई है? 

इस अनोखे रहस्य को जानने के लिए जुड़े रहिए। क्योंकि इस तीसरी सीढ़ी का रहस्य पौराणिक कथाओं में भगवान जगन्नाथ और यमराज से जुड़ा हुआ है। यह सवाल हर किसी को सोचने पर मजबूर कर देता है – आखिर क्यों दुनिया इस तीसरी सीढ़ी को छूने से डरती है?

जगन्नाथ धाम रहस्यों का अद्भुत संसार 

जगन्नाथ धाम, जो चार पवित्र धामों में से एक है, जगन्नाथ पुरी का मंदिर न केवल आस्था का प्रतीक है, बल्कि यह अद्भुत चमत्कारों से भरा हुआ है, जो आज भी वैज्ञानिकों और वास्तु विशेषज्ञों के लिए एक पहेली बने हुए हैं। सिंह द्वार से प्रवेश करते ही समुद्र की लहरों की गूंज अचानक कैसे गायब हो जाती है, यह सवाल हर किसी को चौंकाता है।

जगन्नाथ मंदिर के ऊपर लहराता ध्वज किसी चमत्कार से कम नहीं है। यह ध्वज हमेशा हवा की दिशा के विपरीत लहराता है, जो विज्ञान के हर सिद्धांत को चुनौती देता है। और इसे और भी खास बनाती है वह परंपरा, जिसमें प्रतिदिन इस ध्वज को उल्टा चढ़कर बदला जाता है। बिना किसी सुरक्षा उपकरण के, यह कार्य सिर्फ मानव कौशल और आस्था के बल पर होता है। यह दृश्य भक्तों के लिए रोमांच और श्रद्धा का अद्भुत संगम बन जाता है।

आप पुरी के किसी भी स्थान पर खड़े हों, मंदिर के शिखर पर स्थित सुदर्शन चक्र हमेशा ऐसा प्रतीत होता है जैसे वह आपको सीधे देख रहा हो। यह वास्तुकला का ऐसा चमत्कार है, जिसे समझने के लिए दूर-दूर से विशेषज्ञ यहां आते हैं। 

और बात करें रसोईघर की, तो यह दुनिया का सबसे बड़ा रसोईघर है। यहां मिट्टी के बर्तनों में प्रसाद पकाने की प्रक्रिया भी अनोखी है। सात बर्तनों को एक के ऊपर एक रखकर खाना बनाया जाता है, और सबसे ऊपर का बर्तन पहले पकता है। भगवान जगन्नाथ के महाप्रसाद की खासियत यह है कि इसे चाहे लाखों लोग ग्रहण करें, कभी भी भोजन व्यर्थ नहीं जाता। 

दिन के किसी भी समय, मुख्य गुंबद की छाया का अदृश्य रहना भी एक ऐसा चमत्कार है, जो इस स्थान को दिव्यता से भर देता है। और सबसे हैरानी की बात यह है कि पक्षी या विमान मंदिर के ऊपर से कभी नहीं उड़ते। 

जगन्नाथ मंदिर के ये अनगिनत चमत्कार न केवल भक्तों को मंत्रमुग्ध करते हैं, बल्कि यह आस्था, विज्ञान, और रहस्य का एक अद्भुत संगम प्रस्तुत करते हैं। यही वह स्थान है, जहां धर्म और प्रकृति दोनों मिलकर भगवान की दिव्यता का अहसास कराते हैं।

लेकिन इन चमत्कारों के बीच सबसे बड़ा और रहस्यमयी पहलू है – सिंह द्वार की 22 सीढ़ियों में से तीसरी सीढ़ी। इसे “यमशिला” कहा जाता है और यह माना जाता है कि इस सीढ़ी पर पैर रखते ही व्यक्ति के सारे पुण्य क्षीण हो जाते हैं। शायद यही कारण है कि इसे अन्य सीढ़ियों की तुलना में काले रंग से रंगा गया है, ताकि कोई भूल से भी इस पर पैर न रख दे। 

पौराणिक कथाओं के अनुसार, इस सीढ़ी का संबंध यमराज से है। मान्यता है कि महाप्रभु के दर्शन के बाद, अगर कोई इस सीढ़ी पर पैर रखता है, तो उसे सीधे यमलोक का मार्ग पकड़ना पड़ता है। महाप्रभु के आशीर्वाद के बाद अपने पुण्य को सुरक्षित रखना है तो इस सीढ़ी से दूर रहना ही बेहतर है। 

तीसरी सीढ़ी से जुड़ी रोचक पौराणिक कथा :

कथा उस समय की है जब भगवान जगन्नाथ के दर्शन करने मात्र से लोग अपने सारे पापों से मुक्त हो जाया करते थे। इसे देखकर यमराज चिंतित हो गए। आखिरकार, जब सभी लोग इतने सरल तरीके से पाप मुक्त हो जाएंगे, तो यमलोक में किसी का आना ही बंद हो जाएगा। यह सोचकर यमराज भगवान जगन्नाथ के पास पहुंचे और अपनी चिंता प्रकट की। 

यमराज ने भगवान से कहा, “प्रभु, आपने पाप मुक्ति का यह उपाय इतना आसान कर दिया है कि अब कोई भी यमलोक नहीं आएगा। इससे मेरे कर्तव्यों का पालन असंभव हो जाएगा।” यमराज की बात सुनकर भगवान मुस्कुराए और एक उपाय सुझाया। 

भगवान जगन्नाथ ने यमराज से कहा, “आप मंदिर के मुख्य द्वार की तीसरी सीढ़ी पर अपना स्थान ग्रहण करें। इस सीढ़ी को ‘यमशिला’ के नाम से जाना जाएगा। जो भी मेरे दर्शन के बाद इस सीढ़ी पर कदम रखेगा, उसके सारे पुण्य समाप्त हो जाएंगे, और उसे यमलोक का मार्ग अपनाना होगा।” 

इस वचन के साथ, भगवान ने यमराज की चिंता का समाधान कर दिया। तब से, तीसरी सीढ़ी को यमराज का निवास स्थान माना जाने लगा। यही कारण है कि भक्त महाप्रभु के दर्शन के बाद मुख्य द्वार की तीसरी सीढ़ी पर कभी कदम नहीं रखते। इस सीढ़ी को विशेष रूप से काले रंग से चिह्नित किया गया है, ताकि लोग इसे पहचान सकें और भूल से भी इस पर पैर न रखें। 

तो, अगर आप भी प्रभु जगन्नाथ के दर्शन करने जाते हैं, तो यह बात याद रखें – मुख्य द्वार की तीसरी सीढ़ी पर पैर रखना सख्त मनाही है। ऐसा कहा जाता है कि इस सीढ़ी का स्पर्श पुण्य को क्षीण कर देता है। यही वह पौराणिक मान्यता है, जिसने तीसरी सीढ़ी को एक ऐसा रहस्यमयी और पूजनीय स्थान बना दिया है, जिसे आज भी दुनिया भर के भक्त आदर और श्रद्धा से मानते हैं।

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