Last Updated on October 12, 2020 by admin
स्त्री को मां और जीवनदाता का नाम दिया गया है। एक तरह से वे इस सष्टि की जन्मदाता हैं। महिलाओं का सबसे बड़ा सौभाग्य है उनका मां बनना। प्रकृति ने उनकी रचना इस प्रकार की है कि वे अपने शरीर के माध्यम से नए जीवन को जन्म देती हैं। लेकिन अनेक औरतों को यह सौभाग्य नहीं मिल पाता है। ऐसे में आई. वी. एफ. की सहायक तकनीकों की मदद ली जाती है, जिसके कई आवश्यक तत्व होते हैं। ऐसा ही एक तत्व है- एग डोनेशन।
आईवीएफ में अहम एग डोनेशन :
जब भी कोई कन्या पैदा होती है तो उसके भीतर लाखों अंडे होते हैं। लेकिन समय के साथ यह अंडे बढ़ते नहीं हैं, बल्कि कम होते हैं। एग डोनेशन या ओसाइट डोनेशन के अनुसार वे महिलाएं भी उन अंडों की मदद से मां बन सकती हैं, जिनके अपने अंडे कम हैं या संतान सुख में अड़चन पैदा कर रहे हैं।
उम्रदराज महिलाएं संतान पाने के लिए इस प्रक्रिया को अधिक अपनाती हैं। ऐसे में डोनर द्वारा एग डोनेशन और उससे आई. वी. एफ. की सफलता दर भी उच्च पाई जाती है।
क्या है आईवीएफ पद्धति ? (What is IVF in Hindi)
आई. वी. एफ. यानी इन विट्रो फर्टिलाइजेशन एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें अंडा व शुक्राणुओं को शरीर से बाहर फर्टिलाइज कराया जाता है। इसमें औरत के शरीर में अंडा विकसित होने की प्रक्रिया पर ध्यान दिया जाता है। उसके अंडाशय में से अंडे को बाहर निकालकर डॉक्टरी देखरेख में पुरुष के शुक्राणुओं के साथ द्रव्य रूप में फर्टिलाइज कराया जाता है। उसके बाद प्रयोगशाला में उस अंडे को भ्रूण के रूप में विकसित कर, औरत के गर्भाशय में पुनः प्रत्यारोपित किया जाता है ताकि वह गर्भवती हो सके। इसे ही आई. वी. एफ. कहा जाता है।
प्राकृतिक तौर पर औरत के गर्भाशय में जब अंडा और शुक्राणु फर्टिलाइज हो जाते हैं और फर्टिलाइज्ड अंडा औरत की कोख में विकसित होने लगता है, तो 9 माह के बाद वह एक बच्चे के रूप में जन्म लेता है। यह प्राकृतिक प्रक्रिया होती है, जिसमें किसी प्रकार की तकनीक का इस्तेमाल नहीं किया जाता है। इस पद्धति का इस्तेमाल 1978 से ही सफलतापूर्वक किया जा रहा है।
प्रजनन में सहायक तकनीक –
यह एक फर्टिलिटी सहायक तकनीक होती है, जिसके दौरान डोनर के द्वारा दिए जाने वाले अंडे से आई. वी. एफ. की प्रक्रिया की जाती है। इसमें डोनर द्वारा दिए गए अंडे को बायोलॉजिकल पिता के शुक्राणुओं के साथ लैब में फर्टिलाइज कराया जाता है। फिर उससे विकसित होने वाले भ्रूण को लैब डिश में विकसित कर मां के गर्भाशय में प्रत्यारोपित कर दिया जाता है। ऐसे में अगर महिला डोनर के एग से गर्भवती होती है तो बच्चे में कुछ अंश एग डोनर के भी देखने को मिलते हैं।
यूं होती है आईवीएफ प्रक्रिया (Procedure of IVF in Hindi )
इस प्रक्रिया में दंपति अक्सर जाने-पहचाने एग डोनर की तलाश करते हैं। किसी-किसी केस में अनजान डोनर से भी एग लिया जा सकता है। फिर डोनर की अन्य बीमारियों जैसे – एचआईवी, हेपेटाइटिस, टोक्सिकोलोजी आदि के अलावा उसके रक्त की भी जांच की जाती है।
सामान्यतः एग डोनर की उम्र यदि 25 वर्ष से कम हो, तो उसके एग की क्वालिटी अच्छी ही पाई जाती है। दरअसल, इस प्रक्रिया के दौरान एग डोनर और प्राप्तकर्ता के मासिक धर्म के समय को मिलाया जाता है और प्राप्तकर्ता को कई हार्मोनल दवाइयां दी जाती हैं।
जिस दिन डोनर से अंडे प्राप्त किये जाते है ठीक उसी दिन प्राप्तकर्ता के पार्टनर से अपने शुक्राणु के सैम्पल जमा कराने के लिए कहा जाता है। फिर शुक्राणुओं और एग को लैब में एकसाथ फर्टिलाइज कराया जाता है।
अंडा निकालने के 3 दिन तक उसे लैब में भ्रूण बनने तक रखा जाता है। जैसे ही भ्रूण बनता है, लगभग 3 दिनों में उसे प्राप्तकर्ता के गर्भाशय में प्रत्यारोपित कर दिया जाता है। भ्रूण प्रत्यारोपण के 10 दिन के बाद प्राप्तकर्ता के रक्त की जांच करके यह पता लगाया जाता है कि वह गर्भवती हुई या नहीं।
भ्रूण प्रत्यारोपण की यह प्रक्रिया दर्दरहित होती है। इसमें एक कैथेटर की सहायता से भ्रूण को औरत के गर्भाशय तक पहुंचाया जाता है। इसकी सफलता के अनुसार उन केसों से भी अधिक होते हैं, जहां पर नॉन डोनर एग के साथ आई. वी. एफ. कराया जाता है।
अंडे की गुणवत्ता तथा डोनर की उम्र अच्छी होने से यह प्रक्रिया कामयाब होती है। इस प्रक्रिया की मदद से अंडा प्राप्तकर्ता डोनर के अंडे व उसकी फर्टिलिटी क्षमता को भी प्राप्त करती है।
आईवीएफ के जोखिम (IVF Risks in Hindi)
- प्राप्तकर्ता को कई ऐसे रोगों से संक्रमित होने का खतरा रहता हैं जिन रोगों से एग डोनर पहले से संक्रमित रहा हो । यद्यपि प्रक्रिया की शुरुआत में ही पूरी जांच की जाती हैं, लेकिन कई एचआईवी जैसी बीमारियां पूरी तरह से पकड़ में नहीं आती हैं।
- इसके अलावा यदि एक से अधिक भ्रूण प्रत्यारोपित हो जाएं तो कई गर्भ ठहर सकते हैं, जो कि मां और बच्चों दोनों के लिए सही नहीं होता है।
इन स्थितियों में आईवीएफ लाभप्रद (IVF is Beneficial in These Situations in Hindi)
- वे महिलाएं, जिनकी रजोनिवृत्ति हो चुकी हो।
- पहले की आईवीएफ प्रक्रिया असफल रही हो।
- अंडे की गुणवत्ता बेहद निम्न हो।
- आनुवंशिक समस्या।
- 39 वर्ष से अधिक उम्र।
- एबनार्मल ओवेरियन रिजर्व।
भारत में सभी अत्याधुनिक तकनीकों व विशेषज्ञों की उपलब्धता से पूरे विश्व से लोग आईवीएफ कराने यहां आते हैं। सबसे बड़ी बात तो यह है कि यहां कम खर्च में आईवीएफ की तकनीक और सस्ते एग डोनर आसानी से मिल जाते हैं। भारत की मेडिकल सुविधाओं ने इस प्रक्रिया के लिए मनपसंद स्थान बना दिया है। इसलिए बाहरी देशों के लोग भी आईवीएफ कराने के लिए भारत की ओर बड़ी आशा भरी निगाहों से देखते हैं और हमारा देश उनकी अपेक्षाओं पर खरा भी उतरता है।