Last Updated on July 24, 2019 by admin
क्या होता है गुदाभ्रंश(prolapsus ani) :
मलद्वार का बाहर निकलना (गुदाभ्रंश)यह रोग कब्ज के कारण या पैखाना के समय काखने या पेचिश, आंव के समय कांखने के कारण होता है। जब कोई कब्ज से पीड़ित होता है तो उसका मल अधिक सूखा (शुष्क) और कठोर हो जाता है जिससे पैखाने के समय अधिक जोर लगाना पड़ता है। अधिक जोर लगाने पर गुदा की त्वचा भी मल के साथ मलद्वार से बाहर निकल आती है। इसे गुदाभ्रंश (कांच निकलना) कहते हैं। बच्चों में अधिक दस्त होने के कारण मलद्वार की त्वचा अधिक कोमल हो जाती है और बाहर की ओर निकलने लगती है। जब कोई बच्चा बीमारी के कारण शारीरिक रूप से कमजोर होता है तो उसके गुदा की मांस-पेशियां क्षीण (कमजोर) हो जाती है, जिससे लगातार दस्त होने पर गुदाभ्रंश (कांच निकलना) होने लगता है। ऐसे में मलद्वार के बाहर निकले गुदा में सूजन हो जाती है। सूजन में जख्म बनने पर जीवाणु के फैलने से रोग अधिक फैल जाता है। यह रोग बच्चों एवं वयस्क स्त्री-पुरुष में भी होता है।
गुदाभ्रंश(prolapsus ani) के कारण :
कब्ज होने के कारण पैखाना के समय या आंव, (मल में सफेद चिकना पदार्थ) पेचिश के समय अधिक जोड़ लगाने से गुदाभ्रंश (कांच निकलना) बाहर की ओर निकलने लगता है जो गुदाभ्रंश रोग का मुख्य कारण है। पैखाना के समय अधिक जोर लगाने के कारण आंत की पतली झिल्ली निकलने लगती है जब आंत का भाग कठिनाई से अन्दर जाता है तो रगड़ के कारण पतली झिल्ली छिलने से उसमें जख्म होने का भय बना रहता है।
विभिन्न भाषाओं में रोग का नाम : हिन्दी-कांच , अंग्रेजी-प्रोलेप्स एनाई। , अरबी-ओलोया। ,बंगाली-गुदाभ्रांश। , गुजराती-माण निकलवुण। ,कन्नड़ी-गुदाइलिता। ,मलयालम-गुदाभ्रंष्म। ,उड़िया-मलद्वार बानारी पाड़िबा। ,तेलगु-पेयी जरुत। ,पंजाबी-गुदा उतरना। ,तमिल-असनोवोय वैलिप दुथला
भोजन और परहेज :
क्या खायें –
गुदाभ्रंश रोग में मुलायम चीजे खाना चाहिए जैसे चांगेरी का साग आदि।
क्या न खायें –
गुदाभ्रंश (कांच निकलना) इस रोग में अधिक कठोर चीजों को खाने से परहेज करना चाहिए तथा अधिक मिर्च, मसाला व गर्म पदार्थ का सेवन नहीं करना चाहिए।
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गुदाभ्रंश(prolapsus ani) के आयुर्वेदिक घरेलु उपचार :
1. अनार :
★ अनार के 100 ग्राम पत्तों को 1 लीटर जल के साथ मिलाकर उबाल लें। उबले पानी से पत्तों को छानकर उस पानी से रोजाना 3 से 4 बार गुदा को धोने से गुदाभ्रश (कांच निकलना) का निकलना बन्द हो जाता है।
★ अनार के छिलके 5 ग्राम, हब्ब अलायस 5 ग्राम और माजूफल 5 ग्राम को मिलाकर कूट लें। इस कूट को 150 मिलीलीटर पानी में मिलाकर उबाले, एक चौथाई पानी रह जाने पर छानकर गुदा को धोएं। इससे गुदाभ्रश (कांच निकलना) बन्द हो जाता है।
2. कमल : कांच निकलने पर छोटे बच्चों के आंव या पेचिश की तकलीफ होती है। कमल के पत्तों का एक चम्मच चूर्ण इतनी ही मात्रा में मिसरी के साथ मिलाकर 3 बार सेवन कराने से जल्दी फायदा होता है।
3. अमरूद :
★ अमरूद के पेड़ की छाल 50 ग्राम, अमरूद की जड़ 50 ग्राम और अमरूद के पत्ते 50 ग्राम को मिलाकर कूटकर 400 मिलीलीटर पानी में मिलाकर उबाल लें। आधा पानी शेष रहने पर छानकर गुदा को धोऐं। इससे गुदाभ्रंश (कांच निकलना) ठीक होता है।
★ अमरुद के पत्तों को पीसकर इसके लुगदी (पेस्ट) गुदा को अन्दर कर मलद्वार पर बांधने से गुदा बाहर नहीं निकलता है।
★ बच्चों के गुदभ्रंश रोग पर इसकी जड़ की छाल का काढ़ा गाढ़ा-गाढ़ा लेप करने से लाभ होता है।
★ तीव्र अतिसार में गुदाभ्रंश होने पर अमरूद के पत्तों की पुल्टिश बनाकर बांधने से सूजन कम हो जाती है और गुदा अन्दर बैठ जाता है।
★ आंतरिक प्रयोग के लिए अमरूद और नागकेशर दोनों को महीन पीसकर उड़द के समान गोलियां बनाकर देनी चाहिए।
★ अमरूद के पेड़ की छाल, जड़ और पत्ते, बराबर-बराबर 250 ग्राम लेकर जौकुट कर लें तथा एक लीटर पानी में उबालें, जब आधा पानी शेष रह जाये। तब इस काढ़े से गुदा को बार-बार धोना चाहिए और उसे अन्दर धकेलें। इससे गुदा अन्दर चली जायेगी।
4. कालीमिर्च :
★ कालीमिर्च 5 ग्राम और भुना हुआ जीरा 10 ग्राम दोनों को मिलाकर चूर्ण बना लें। यह चूर्ण छाछ के साथ मिलाकर रोजाना सुबह-शाम पीयें। इससे गुदाभ्रंश (कांच निकलना) बन्द हो जाता है।
★ कालीमिर्च और स्याह जीरा बराबर मात्रा में लेकर कूटकर चूर्ण बना लें। लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग से लगभग आधा ग्राम चूर्ण शहद के साथ मिलाकर प्रतिदिन सुबह-शाम खिलायें। इससे गुदाभ्रंश में लाभ होता है।
5. फिटकरी : 1 ग्राम फिटकरी को 30 ग्राम जल में घोल लें शौच के बाद मलद्वार को साफ करके फिटकरी वाले जल को रुई से गुदा पर लगाएं। इससे गुदाभ्रंश ठीक होता है।
6. बबूल : बबूल की छाल 10 ग्राम को 500 मिलीलीटर पानी में उबालकर काढ़ा बना लें। इस काढ़े से गुदाद्वार को धोने से गुदाभ्रंश नष्ट होता है।
7. भांगरा : भांगरा की जड़ 30 ग्राम और हल्दी का चूर्ण 20 ग्राम को मिलाकर पानी के साथ पीसकर मलहम बना लें। उस मलहम को गुदाभ्रंश पर लगाने से गुदाभ्रंश ठीक होता है।
8. पपीते : पपीते के पत्तों को पीसकर जल में मिलाकर गुदाभ्रंश पर लगाएं। इससे गुदाभ्रंश ठीक होता है।
9. जामुन : जामुन, पीपल, बड़ और बहेड़ा 20-20 ग्राम की मात्रा में लेकर 500 मिलीलीटर जल में मिलाकर उबालें। रोजाना शौच के बाद मलद्वार को स्वच्छ (साफ) कर बनायें हुए काढ़ा को छानकर मलद्वार को धोएं। इससे गुदाभ्रंश ठीक होता है।
10. भांग का पत्ता : भांग के पत्तों का रस निकालकर गुदाभ्रंश पर लगायें। इससे गुदाभ्रंश (कांच निकलना) बन्द होता है।
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11. एरण्ड :
★ एरण्ड के तेल को हरे कांच की शीशी में भरकर 1 सप्ताह तक धूप में सुखायें। इस तेल को गुदाभ्रंश पर रूई से लगाएं। इससे गुदाभ्रंश निकलना बन्द होता है।
★ एरण्डी का तेल आधे से एक चम्मच उम्र के अनुसार हल्के गर्म दूध में मिलाकर रोज रात को सोते समय दें। यह कब्ज और आमाशय दोनों शिकायतें को खत्मकर गुदा रोग ठीक करता है।
12. हरड़ : छोटी हरड़ को कूट-पीसकर चूर्ण बना लें। यह चूर्ण 2-2 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम हल्के गर्म पानी के साथ लें। इसको पीने से पेट की कब्ज नष्ट होती है और मलद्वार से गुदा बाहर नहीं आता।
13. आंवला : आंवले या हरड़ का मुरब्बा बनाकर दूध के साथ बच्चे को खिलाने से कब्ज खत्म होती है और गुदाभ्रंश (कांच निकलना) बन्द होता है।
14. कत्था : कत्थे को पीसकर उसमें मोम को गर्म करके और घी मिलाकर मलहम बना लें। इस मलहम को गुदाभ्रंश पर लगाएं। इससे कब्ज ठीक होती है एवं मलद्वार से गुदा बाहर नहीं आता है।
15. नागकेसर :
★ नागकेसर लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग को एक अमरूद के साथ मिलाकर बच्चे को खिलायें। इससे गुदाभ्रंश (कांच निकलना) बन्द हो जाता है।
★ भुनी फिटकरी 2 ग्राम को 2 माजूफल के साथ पीसकर 100 ग्राम पानी में घोलकर घोल बना लें। उस घोल में रूई को भिगोकर गुदा पर लगाएं और गुदा को अन्दर कर लंगोट बांध दें। चार से पांच दिन तक इसका प्रयोग करने से गुदाभ्रंश (कांच निकलना) बन्द हो जाता है।
16. माजूफल :
★ माजूफल और फिटकरी का पाउडर बनाकर गुदा पर छिड़कें। इससे दर्द में आराम रहता है।
★ एक गिलास पानी में दो माजूफल पीसकर डालें और आग पर उबाल लें। ठंड़ा होने पर उस पानी से मलद्वार को धोने से गुदा का बाहर आना बन्द हो जाता है।
17. फिटकरी : कच्ची फिटकरी आधा ग्राम को पीसकर 100 मिलीलीटर पानी में घोलकर गुदा को धोने से गुदाभ्रंश ठीक होता है।
18. तिल : तिल का तेल लगाकर हल्का सेक लें और गुदा को अन्दर कर ऊपर से टी आकार की पट्टी बांध दें। रोजाना सुबह-शाम इसे गुदा पर लगाने से गुदा अपनी जगह पर आ जाती है और गुदा मलद्वार से बाहर नहीं निकलता है।
19. त्रिफला : माजूफल, फिटकरी तथा त्रिफला चूर्ण लगभग 10-10 ग्राम की मात्रा में लेकर जल में भिगो दें। लगभग 1 से 2 घंटे तक भिगोने के बाद जल को कपड़े से छानकर उस जल से मलद्वार को धोने से गुदाभ्रंश ठीक होता है।
20. कुटकी : लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग कुटकी का चूर्ण बना लें और शहद में मिलाकर रोजाना सुबह-शाम खायें। इस मिश्रण को खाने से आंत की शिथिलता दूर होती है तथा गुदाभ्रंश ठीक होता है।
21. पाषाण भेद (सिलफड़ा) : पाषाण भेद (सिलफड़ा) लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग की मात्रा रोजाना सुबह-शाम रोगी को सेवन कराएं। इससे आंत की कमजोरी के कारण हुए रोग ठीक होता है तथा कांच निकलना बन्द होता है।
22. प्याज : प्याज का रस निकालकर 2 से 4 मिलीलीटर बच्चे को रोजाना सुबह-शाम पिलाने से गुदाभ्रंश (कांच निकलना) बन्द हो जाता है।
23. सौंफ : सौंफ और पोस्ता को अलग-अलग लेकर थोड़े-से घी में भून लें। दोनों को मिलाकर कूटकर कपड़े से छान लें। यह चूर्ण आधा से एक चम्मच रोजाना सुबह-शाम मिश्री मिले दूध के साथ बच्चे को पिलायें। इससे कब्ज दूर होता है और गुदाभ्रंश ठीक होता है।
24. चांगेरी (तिनपतिया) :
★ चांगेरी (तिनपतिया) के पत्तों को पीसकर 40 ग्राम से 80 ग्राम की मात्रा में रोजाना सुबह-शाम लें। इससे गुदाभ्रंश (कांच निकलना) में आराम मिलता है।
★ चांगेरी के रस में घी को गर्म करके गुदा पर लेप करने से कांच का निकलना बन्द हो जाता है।
25. कुटकी : कुटकी लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग, शहद के साथ मिलाकर रोजाना सुबह-शाम खायें। इससे आंत का ढीलापन (शिथिलता) दूर होता है तथा गुदाभ्रंश धीरे-धीरे अपने स्थान पर आ जाता है।
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