Last Updated on July 22, 2019 by admin
Motivational stories in Hindi : प्रेरक हिंदी कहानियाँ
★ उस समय काशी में रामानन्द स्वामी बडे उच्च कोटि के महापुरुष माने जाते थे । कबीरजी ने उनके आश्रम के मुख्य द्वार पर आकर विनती की : ‘‘मुझे गुरुजी के दर्शन कराओ ।
★ उस समय जात-पात का बडा आग्रह रहता था । और फिर काशी ! पण्डितों और पण्डे लोगों का अधिक प्रभाव था । कबीरजी किसके घर में पैदा हुये थे, हिन्दू के या मुस्लिम के, कुछ पता नहीं था । एक जुलाहे को रास्ते में किसी पेड के नीचे से मिले थे । उसने पालन-पोषण करके कबीरजी को बडा किया था । जुलाहे के घर बडे हुये तो जुलाहे का धन्धा करने लगे । लोग मानते थे कि वे मुसलमान की संतान हैं ।
★ द्वारपालों ने कबीरजी को आश्रम में जाने नहीं दिया । कबीरजी ने सोचा कि पहुँचे हुये महात्मा से अगर गुरुमंत्र नहीं मिलता तो मनमानी साधना से ‘हरिदास, बन सकते हैं, ‘हरिमय, नहीं बन सकते । कैसे भी करके रामानन्दजी महाराज से मंत्रदीक्षा लेनी है ।
★ कबीरजी ने देखा कि हररोज सुबह तीन चार बजे स्वामी रामानन्दजी खडाउँ पहनकर ‘टप… टप… आवाज करते हुये गंगा में स्नान करने जाते हैं । कबीरजी ने गंगा के घाट पर उनके जाने के रास्ते में सब जगह बाड कर दी और एक ही मार्ग रखा । उस मार्ग में सुबह के अन्धेरे में कबीर सो गये । गुरु महाराज आये तो अन्धेरे के कारण कबीरजी पर पैर पड गया । उनके मुख से उद्गार निकल पडे : ‘राम… राम…!
★ कबीरजी का तो काम बन गया । गुरुजी के दर्शन भी हो गये, उनकी पादुकाओं का स्पर्श एवं मुख से राम मंत्र भी मिल गया । अब दीक्षा में बाकी ही क्या रहा ? कबीरजी नाचते, गुनगुनाते घर वापस आये । रामनाम की और गुरुदेव के नाम की रट लगा दी । अत्यंत स्नेहपूर्ण हृदय से गुरुमंत्र का जप करते, गुरुनाम का कीर्तन करते साधना करने लगे । दिनोदिन उनकी मस्ती बढने लगी ।
★ जो महापुरुष जहाँ पहुँचे हैं वहाँ की अनुभूति उनका भावपूर्ण हृदय से चिन्तन करनेवाले को भी होने लगती है ।
काशी के पण्डितों ने देखा कि यवन का पुत्र कबीर रामनाम जपता है, रामानन्द के नाम का कीर्तन करता है उस यवन को रामनाम की दीक्षा किसने दी ? क्यों दी ? मंत्र को भ्रष्ट कर दिया ।
★ पण्डितों ने कबीर से पूछा : ‘‘रामनाम की दीक्षा तेरे को किसने दी ?
‘‘स्वामी रामानन्दजी महाराज के श्रीमुख से मिली ।
‘‘कहाँ दी ?
‘‘सुबह गंगा के घाट पर ।
पण्डित पहुँचे रामानन्दजी के पास : ‘‘आपने यवन को राममंत्र की दीक्षा देकर मंत्र को भ्रष्ट कर दिया, सम्प्रदाय को भ्रष्ट कर दिया । गुरु महाराज ! यह आपने क्या किया ?
★ गुरु महाराज ने कहा : ‘‘मैंने तो किसी को दीक्षा नहीं दी ।
‘‘वह यवन जुलाहा तो ‘रामानन्द.. रामानन्द… मेरे गुरुदेव रामान्द.. की रट लगाकर नाचता है, आपका नाम बदनाम करता है ।
‘‘भाई ! मैंने तो उसको कुछ नहीं कहा । उसको बुलाकर पूछा जाय । पता चल जायगा ।
★ काशी के पण्डित इकट्ठे हो गये । जुलाहा सच्चा कि रामानन्दजी सच्चे यह देखने के लिए भीड हो गयी । कबीरजी को बुलाया गया । गुरु महाराज मंच पर विराजमान हैं सामने विद्वाान पण्डितों की सभा मिली है । रामानन्दजी ने कबीरजी से पूछा : ‘‘मैंने तुझे कब दीक्षा दी ? मैं कब तेरा गुरु बना ? कबीर बोले : ‘‘महाराज ! उस दिन प्रभात को आपने मुझे पादुका स्पर्श कराया और राममंत्र भी दिया, वहाँ गंगा के घाट पर ।
★ रामानन्द ने कबीर के सिर पर मृदु खडाऊँ मारते हुये कहा : ‘‘राम… राम.. राम… मुझे झूठा बनाता है ? गंगा के घाट पर कब मैंने तुझे दीक्षा दी थी ?
कबीरजी बोले उठे : ‘‘गुरु महाराज ! तब की दीक्षा झूठी तो अब की तो सच्ची…! मुख से रामनाम का मंत्र भी मिल गया और सिर में आपकी पावन पादुका का स्पर्श भी हो गया ।
★ स्वामी रामानन्दजी उच्च कोटि के संत-महात्मा थे । पण्डितों से कहा : ‘‘चलो, यवन हो या कुछ भी हो, मेरा पहले नम्बर का शिष्य यही है ।
ब्रह्मनिष्ठ सत्पुरुषों की विद्या या दीक्षा प्रसाद खाकर मिले तो भी बेडा पार करती है और मार खाकर मिले तो भी बेडा पार कर देती है ।
★ इस प्रकार कबीरजी ने गुरुनाम कीर्तन से अपनी सुषुप्त शक्तियाँ जगायीं और शीघ्र आत्मकल्याण किया । धनभागी हैं ऐसे गुरुभक्त जो दृढता और तत्परता से कीर्तन-ध्यान-भजन करके अपना जीवन धन्य करते हैं, कीर्तन से समाज में सात्त्विकता फैलाते हैं, वातावरण में शुद्धि और अपने तन-मन की शुद्धि करनेवाला हरिनाम का कीर्तन सडकों पर खुले आम नाचते गाते हुये करते हैं ।
★ दुनिया का सब कुछ धन, यश कमा लिया जाय या प्रतिष्ठा के सुमेरु पर स्थित हुआ जाय, उन सब श्रेष्ठ उपलब्धियों से भी गुरुशरणागति एवं गुरु-चरणों की भक्ति श्रेष्ठ है ।
इसके विषय में आद्य शंकराचार्य कहते हैं कि :
मन्स्चेन न लग्नं गुरोरंध्रिपद्मे ।
ततः किं ततः किं ततः किम् ततः किं ।।
अगर गुरु के श्रीचरणों में मन न लगा तो फिर क्या ? इस सबसे क्या ? कौन-सा परमार्थ सिद्ध हुआ ?
★ कलियुग में केवल नाम अधारा क्यों न इस कलिकालqचतामणि हरि-गुरुनाम कीर्तन कल्पतरु का विशेष फायदा उठाया जाय ?
श्रोत – ऋषि प्रसाद मासिक पत्रिका (Sant Shri Asaram Bapu ji Ashram)
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