लू के कारण ,बचाव और घरेलू आयुर्वेदिक उपचार | Lu Lagne ka Gharelu Upchar

Last Updated on May 29, 2020 by admin

लू-लगना क्या होता है ? : lu lagna kya hota hai

ग्रीष्म ऋतु में सूर्य की किरणें सीधी पड़ती हैं, जिसके कारण पृथ्वी तथा उसके सम्पर्क की वायु अत्यधिक गर्म हो जाती है। ऐसे में साँस लेने पर गर्म वायु शरीर में प्रवेश करती है और शरीर के ताप में अप्रत्याशित वृद्धि करती है, जिसके कारण शरीर में जमा जलांश का वाष्पन होने लगता है। परिणाम स्वरूप जल के साथ-साथ लवणांश (नमक आदि) पसीने के रूप में बाहर आने लगते हैं और एक सीमा के बाद जल के वाष्पन एवं लवण के बाहर निकलने की क्रिया रुक जाती है तथा शरीर में निरन्तर जमा होती ऊष्मा अपना प्रभाव मनुष्य एवं जीव-जन्तुओं में डालने लगती है। तीव्र ऊष्णता का यह आघात ही अंशुघात ज्वर (Thermic Fever) या लू-लगना कहलाता है।

लूके लगते ही तेज प्यास, ज्वर-वृद्धि, शरीरमें टूटन, हाथ-पैरों में जकड़न, हथेली तथा पैरों के तलवों के साथ-साथ आँखों में तीव्र जलन होने लगती है, आँखें अंदर को धसने लगती हैं, असहनीय बैचेनी होती है। कई बार अधिक लू के प्रभाव के कारण श्वासावरोध (Asphyxia) हो मृत्यु भी हो जाती है अथवा स्मरण एवं विचारकी शक्ति भी क्षीण हो जाती है।

लू लगने के कारण : lu lagne ke kya karan hai

lu kyu lagti hai

  • लू के शिकार अधिकांशतः लगभग चालीस वर्ष की अवस्था वाले, शीतल एवं छायादार स्थानों पर अधिकांश समय व्यतीत करने वाले अथवा ठण्डे स्थानों से गर्म स्थानों पर आनेवाले कमजोर प्रकृति के लोग होते हैं। कभी-कभी इसके शिकार हृष्ट-पुष्ट व्यक्ति भी हो जाते हैं।
  • गर्मी के मौसम में खुले शरीर, नंगे सिर और नंगे पाँव चलने से व्यक्ति लू की चपेट में जल्दी आता है।
  • ऐसा व्यक्ति जो हाल ही में बीमारी से उठा हो, खाली पेट या प्यासा घर से निकला हो उसे भी लू लगने की सम्भावना रहती है।
  • इसी प्रकार कूलर या वातानुकूलित स्थान से निकलकर धूप में आ जाने से भी लू लग जाती है।
  • परिश्रम के तुरंत बाद पानी पीने से, गर्म एवं निर्वायु स्थानपर धूप में बैठने या काम करने आदि से भी लू की चपेट में आने का खतरा रहता है।

लू (अंशुघात) के प्रकार :

  1.  अतिशय क्लान्ति–(Heat Exhusation)
  2. ज्वरातिशय-(Heat Hyperpyrexia)
  3. श्वासावरोध-(Asphyxial Type)
  4.  सूर्य के सामान्य ताप का आघात-(Sun Traumatism)
  5. पचनेन्द्रिय संस्थानगत विकृति-(Gastro Intestinal Symtoms)
  6. गर्मी का आघात-(Srokers Cramp)

लू से बचाव के उपाय : loo lagne se bachne ke upay

  •  लू के ऊष्मीय प्रभाव से बचने के लिये गर्मी में बाहर निकलने से पहले पर्याप्त पानी पीना चाहिये।
  • गर्मी के मौसम में सूती एवं हलके रंगों के कपड़े पहनने चाहिये ताकि ऊष्मा आसानी से पार-गमन कर ले।
  • चेहरा तथा सिर ढककर निकलना चाहिये।
  • छाते आदिका उपयोग भी हितकर होता है।
  • उमसवाले स्थान से यथा सम्भव बचना चाहिये।
  • इन दिनों घरेलू, शर्बत, ठंडाई, मट्ठा (मही), शिकंजी के अलावा खाने में नीबू, जीरा, पोदीना, काला नमक आदि पाचक खाद्य पदार्थों का उपयोग करना चाहिये।

लू के घरेलू उपचार : lu lagne ka ilaj

अपनायी गयी असुरक्षा अथवा अन्य हुई असावधानी के कारण यदि कोई व्यक्ति लू की चपेट में आ ही जाता है तो सर्वप्रथम हमें उसे किसी छायादार शीतल स्थान पर लिटाकर उसके सिर एवं शरीर पर ठण्डे पानी में भिगोकर सूती कपड़े की पट्टी रखनी चाहिये। पंखे आदि की हवामें उसे लिटाना चाहिये। हाथ-पैरों में प्याज के रस तथा तेल की मालिश करनी चाहिये। तत्पश्चात् निम्नलिखित आयुर्वेदिक औषधियों को भी उपयोग में लाया जा सकता है

१- आम की कच्ची केरी को सेंककर (भूनकर) उसका गूदा निकाल लिया जाता है। फिर निकले गूदे को मिश्री या शक्कर में घोलकर शर्बत बना लिया जाता है। इस शर्बतको अधिक स्वादिष्ठ बनाने के लिये इसमें काला नमक भुना जीरा पीसकर मिलाया जा सकता है।

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२- चने की सूखी भाजी को पानी में गलाकर उसके निकले क्षार में सूती कपड़े की पट्टी भिगो कर लगाने से आराम मिलता है।

३- एरण्ड की जड़ तथा मुचकुन्द के फूल को मही (मई) में पीसकर सिरपर लगाने से हो रही बेचैनी से राहत मिलती है।

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४- अधिक पसीना निकल जाने पर लक्ष्मी विलास तथा प्रवालपिष्टी या ब्राह्मीवटी और प्रवालपिष्टी शहद में मिलाकर देनेसे आराम मिलता है।

५- इमली के रस को मिश्री या शक्कर के साथ उबालकर ठंडा होने पर शीशी में रख ले। तीन-तीन घण्टेके अन्तराल से रोगी को देने पर राहत मिलती है।

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६- बहुफली तथा वन तुलसी के बीजों को गलाकर शक्क रके साथ मथकर शर्बत बना लेना चाहिये। फिर इसे छानकर पीड़ित व्यक्ति को पिलानेसे आराम मिलता है।

७- साँस लेने में परेशानी होनेपर अभ्रक भस्म, रससिन्दूर तथा मौक्तिक पिष्टी को शहद में मिलाकर – देने से आराम मिलता है।

चूँकि लू के कई प्रकार हैं, इसलिये इसके उपचार से पूर्व वैद्य अथवा चिकित्सक से सलाह अवश्य ले लेनी – चाहिये ताकि उचित उपचार प्राप्त हो सके।

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