Last Updated on December 3, 2022 by admin
परिचय :
गर्भधारण करने के पश्चात गर्भवती स्त्री कभी-कभी रोगों से ग्रस्त हो जाती है। उन रोगों से गर्भ की रक्षा करने के लिए प्रत्येक महीने अलग-अलग योगों को करना पड़ता है। कोई भी स्त्री शर्म और संकोच के कारण अपने रोग के बारे में किसी को भी नहीं बताती है। यहां तक कि स्त्रियां अपनी बीमारी को अपने पति को भी नहीं बताती और वे रोगों से तड़पती रहती है जिसकी वजह से उन्हें बहुत कष्ट उठाने पड़ते हैं। गर्भ की अवस्था में स्त्रियां स्वयं अपना उपचार कर सकती हैं। गर्भाधान के बाद भी गर्भवती स्त्री कभी-कभी विकारों से ग्रस्त हो जाती हैं।
माह अनुसार गर्भ-रक्षा का उपाय (Garbh Raksha ke Upay in Hindi)
1. प्रथम महीने में गर्भ की रक्षा करना :
- तिल : तिल पदमाख, कमल कन्द और शालि चावल (सेल्हा चावल) समान मात्रा में लेकर गाय के दूध के साथ पीसें और उसे शहद और मिश्री युक्त गाय के दूध में गर्भवती स्त्री को घोलकर पिलाने से प्रथम महीने के गर्भ के विकार नष्ट हो जाते हैं।
- आहार : जब औषधि पच जाए तब उसे भोजन देना चाहिए। उसमें गाय के दूध की अधिकता होती है अथवा सफेद चंदन, सतावर, भांगरा और मिश्री समान मात्रा में 6-6 ग्राम लेकर चावलों के पानी के पीसकर लुगदी बनाकर उसमें गाय के दूध में घोलकर पिलाना चाहिए।
- मुलेठी : मुलेठी, सागौन के बीज, क्षीरकाकोली और देवदारू समान भाग का कल्क यानी लई गाय के दूध में मिलाकर देने से गर्भाशय में दर्द या गर्भस्राव में लाभकारी होता है।
2. द्वितीय महीने में गर्भ की रक्षा करना :
- कमल : यदि दूसरे महीने में गर्भ में किसी प्रकार की गड़बड़ी हो अथवा गड़बड़ी की शंका हो तो कमल, सिंघाड़ा और कसेरू का चावलों के पानी के साथ पीसकर तथा चावलों के पानी में ही घोलकर पिलाना चाहिए। इससे गर्भ स्थिर होता है और गर्भाशय में दर्द हो तो दर्द भी नष्ट होता है।
- पाषाण भेद : पाषाण भेद, काले तिल, मंजीठ और शतावरी को समान मात्रा में लेकर दूध के साथ कल्क करें और घोल कर दें या इनके काढ़ा का सेवन कराएं। इससे गर्भ से रक्त का निकलना, गर्भाशय में दर्द तथा गर्भाशय के सभी विकार नष्ट हो जाते हैं तथा इससे गर्भ की पुष्टि होती है।
3. तीसरे महीने में गर्भ की रक्षा करना :
- क्षीर काकोली : यदि तीसरे महीने में पीड़ा या उपद्रव की स्थिति प्रतीत हो तो गर्भवती स्त्री को क्षीर काकोली, काकोली और आंवला पानी के साथ पीसकर गर्म पानी के साथ पिलाना चाहिए।
- पद्माख : पद्माख, कमल कटु और कमल को मिश्रीयुक्त पानी के साथ पीसकर कल्क बनाएं और गाय के दूध में घोलकर सेवन करायें अथवा बांदा, क्षीर काकोली, कमल और अनन्तमूल की समान मात्रा को दूध के साथ पीसकर या काढ़ा बनाकर सेवन कराना चाहिए। यह तीनों योग गर्भधारण के तीसरे महीने में होने वाले गर्भाशय के दर्द, गर्भस्राव तथा गर्भाशय के सभी विकारों को नष्ट करते हैं।
4. चौथे महीने में गर्भ की रक्षा करना :
- गोखरू : चौथे महीने में गोखरू, बड़ी कटेरी, नीलकमल के बारीक चूर्ण को नेत्रबाला के दूध के साथ घोलकर कल्क बनाएं और दूध में घोलकर पिलाने गर्भाशय के विकार नष्ट हो जाते हैं।
- छोटी कटेरी : छोटी कटेरी, गोखरू, कमल और कमलचन्द की लुगदी दूध में मिलाकर पिलाने से लाभ होता है।
- अनन्तमूल : अनन्तमूल, काली सारिवा रास्ना, भारंगी और मुलहठी का शीतकषाय या काढ़ा सेवन कराने या योग देने से चौथे महीने के गर्भ के विकारों दूर हो जाते हैं।
5. पांचवें महीने में गर्भ की रक्षा करना :
- नीलकमल : नीलकमल और क्षीर काकोली को पीसकर गाय के दूध के साथ पकाएं और असमान भाग घी और शक्कर मिलाकर पिलाएं अथवा नीलकमल, ग्वारपाठा और काकोली समान भाग को शीतल जल के साथ कल्क बनाकर, दूध में घोलकर सेवन कराने से गर्भ के विकार नष्ट हो जाते हैं।
- बड़ी कटेरी : बड़ी कटेरी या कंभारी के फल की छाल का कल्क या काढ़ा देने से गर्भ के विकार नष्ट हो जाते हैं।
- बरगद : बरगद की कोपल और छाल भी पीसकर कल्क बनाने और दूध में घोलकर पिलाने से भी लाभकारी होती है। यह सभी योग पांचवें माह में गर्भ की रक्षा, गर्भिणी (गर्भवत्ती स्त्री) की पीड़ा का नष्ट करना तथा स्राव को रोकने वाले होते हैं।
6. छठे महीने में गर्भ की रक्षा करना :
- बिजौरा : नीलकमल, बिजौरा नींबू के बीज, प्रियंगु पुष्प, सफेद चंदन और कमल को दूध में पीसकर और दूध में ही घोलकर देने से छठे महीने गर्भ के विकार नष्ट हो जाते हैं।
- चिरौंजी : चिरौंजी, मुनक्का और धान की खीलों का सत्तू, ठंडे पानी में मिलाकर पिलाने से गर्भ का दर्द और गर्भस्राव आदि रोग समाप्त हो जाते हैं।
7. सातवें महीने में गर्भ की रक्षा करना :
- शतावर : शतावर और कमलनाल को समान मात्रा में लेकर पीसे और गाय के दूध के साथ सेवन कराएं।
- कैथ : कैथ, सुपारी की जड़, धान की खील और शर्करा या मिश्री को पानी के साथ काढ़ा बनाकर दूध में घोलकर पिलाएं। इससे सातवें महीने के गर्भ के विकार नष्ट हो जाते हैं।
8. आठवें महीने में गर्भ की रक्षा करना :
- धनिया : धनिया को पीसकर चावलों के पानी के साथ पिलाने से आठवें महीने के गर्भ का दर्द नष्ट होता है और इससे गर्भ की पुष्टि होती है।
- ढाक : ढाक का पत्ता पानी के साथ पीसकर घोटकर पिलाने से गर्भशूल यानी गर्भ का दर्द नष्ट होकर गर्भ की पुष्टि होती है।
9. नवें महीने में गर्भ की रक्षा करना :
- बरगद : बरगद के वृक्ष की जड़ और काकोली को पीसकर ताजे पानी के साथ पिलाने से नवें महीने में होने वाली गर्भ सम्बन्धी सभी समस्याएं समाप्त होती हैं।
- पलाश : पलाश, ढाक के बीज, काकोली और प्रियवांसा की जड़ को पीसकर पानी के साथ सेवन कराने से नवें महीने में होने वाली गर्भ सम्बन्धी सभी समस्याएं समाप्त होती हैं।
10. दसवें महीने में गर्भ की रक्षा करना :
- नीलकमल : नीलकमल, मुलहठी, मूंग और शर्करा के बराबर भाग को पानी के साथ पीसकर और दूध में घोलकर गर्भवती स्त्री को पिलाने या योग से असमय की पीड़ा या गर्भपात से सुरक्षा सम्भव है।
11. अधिक दिनों के गर्भ की चिकित्सा :
अधिकांश स्त्रियों में नौ महीने में संतान का जन्म होता है परन्तु किसी-किसी महिला के 10-11 तथा 12 महीने तक संतान का जन्म होता है। यदि इसके बाद भी संतान उत्पत्ति न हो तो निम्न चिकित्सा करना चाहिए।
- सांप की केंचुली : सांप की केंचुली की धूनी योनि के चारों तरफ देनी चाहिए या कलिहारी की जड़ को डोरे में बांधकर, हाथ-पैरों में बांध देना चाहिए।
(अस्वीकरण : दवा, उपाय व नुस्खों को वैद्यकीय सलाहनुसार उपयोग करें)