रक्त (खून) की संरचना व कार्य : khoon ka karya in hindi
हमारे शरीर के स्वास्थ्य का निर्धारण रक्त ही करता है और जितना हमारा रक्त स्वस्थ होगा उतना ही हमारा शरीर स्वस्थ होगा। यदि सम्पूर्ण शरीर को स्वस्थ रखना है तो हमारे रक्त को शक्ति अर्थात् सम्पूर्ण पोषक| तत्वों से परिपूर्ण रखना होगा क्योंकि जिस रक्त में शरीर को सम्पूर्ण पोषण प्रदान करने वाले तत्व मौजूद होते हैं वही स्वस्थ रक्त कहलाता है।
सामान्य अवस्था में हमारे शरीर में 5 से 6 लिटर रक्त रहता है। 100cc रक्त में 50 लाख लाल रक्त कण, 4 से 10 हजार श्वेत रक्त कण, 2.5 से 4 लाख प्लेट्लेट्स तथा 14-15gm % हीमोग्लोबिन होता है। रक्त में करीब 55% प्लाज्मा और 45% कोशिकाएं होती हैं। प्लाज्मा में 91% पानी होता है और बाकी के 9% में ठोस पदार्थ जैसे प्रोटीन्स, शर्करा, वसा व अकार्बनिक पदार्थ होते हैं। प्लाज्मा का मुख्य कार्य शरीर के भीतर दबाव को बनाये रखना होता है जिससे शरीर में रक्त का प्रवाह नियमित रूप से सुनिश्चित होता रहे। इसके अलावा घाव होने पर रक्त बहने की प्रक्रिया को रोकना, शरीर के तापमान को सन्तुलित बनाये रखना, रासायनिक सन्तुलन और पानी के सन्तुलन को बनाये रखने का कार्य भी यह प्लाज्मा ही करता है।
जिस प्रकार से किसी खेत में पर्याप्त फसल प्राप्त करने के लिए उस खेत में पर्याप्त पानी की आपूर्ति आवश्यक होती है उसी प्रकार सम्पूर्ण शरीर के अंगों को पोषण प्राप्त हो इस हेतु पूरे शरीर में रक्त की आपूर्ति आवश्यक होती है। रक्त के माध्यम से सम्पूर्ण शरीर के अंगों को प्राणवायु, पोषक तत्व आदि की सतत आपूर्ति होती है।
खून की कमी (रक्ताल्पता) क्या होता है ?
हमारे रक्त में एक तत्व होता है। हीमोग्लोबिन जो रक्त की स्थिति की खबर देता है। विज्ञान की भाषा में इसे अस्थि मज्जा (Bone Marrow) में बनने वाला, लाल रक्त कोशिकाओं (Red blood cells) का लौह युक्त एवं आक्सीजन वाहक वर्णक (Element) कहते हैं। हमारे रक्त में इसकी निश्चित मात्रा होती है या कि होना चाहिए- पुरुषों में प्रति 100 मि.लि. रक्त में 14 से 18 ग्राम तथा महिलाओं में प्रति 100 मि. लि. रक्त में 12 से 16 ग्राम सामान्य मात्रा होती है। यदि इसकी मात्रा इस निश्चित मात्रा से 10% कम होती है तो इस स्थिति को एनीमिया या रक्ताल्पता कहते हैं।
चूंकि हीमोग्लोबिन का कार्य आक्सीजन को शरीर के प्रत्येक कोशिका तक पहुंचाना है इसलिए इसकी कमी से शरीर में बहुत सी तकलीफें पैदा हो जाती है। वैसे तो रक्ताल्पता अपने आप में बहुत तरह की बीमारियों से उत्पन्न एक लक्षण होती है पर हमारे देश में इसने स्वयं एक बीमारी का पद प्राप्त कर लिया है ।
महिलाओं में खून की कमी होने के कारण : mahilao me khun ki kami ke karan
यूं तो एनीमिया कई कारणों से हो सकता है और कई तरह का होता है पर हमारे देश में लोह तत्व की कमी से होने वाला एनीमिया सबसे ज्यादा पाया जाता है। यही प्रकार महिलाओं में भी ज्यादा पायाजाता हैं। क्योंकि मासिक धर्म की विकृति के चलते अधिक रक्तस्राव होना और आहार में पर्याप्त पोषक तत्व न ग्रहण करने से शरीर की लौह तत्व की आपूर्ति न होना ही दो मुख्य कारण हैं। जिनसे महिलाएं एनीमिया से ग्रसित हो जाती हैं।
रक्ताल्पता यानी एनीमिया के कारणों को मोटे तौर पर तीन वर्ग में बांटा जा सकता है-
- रक्तस्राव होना
- लाल रक्त कणों का ठीक ढंग से उत्पादन न होना और
- लाल रक्त कणों का क्षरण होना।
महिलाओं में रक्तस्राव की समस्या ज्यादातर मासिक धर्म की गड़बड़ी से जुड़ी होती है, हालाकि इस वर्ग में बवासीर, पेट में छाले, पेट में कृमि आदि कारण भी आते हैं। लाल रक्त कणों का समुचित निर्माण न होने के पीछे आहार में पोषक तत्व जैसे लौह,विटामिन बी12, फॉलिक एसिड, विटामिन सी आदि की कमी, शरीर में किसी जीर्ण रोग की उपस्थिति जैसे यकृत व गुर्दे के रोग तथा शरीर का किसी प्रकार के तनाव से गुजरना आदि कारण होते हैं। लाल रक्त का क्षरण होना किन्हीं प्रकार के संक्रमणों जैसे मलेरिया, लाल रक्त कण की संरचनात्मक विकृति, दवाओं के दुष्प्रभाव आदि कारणों से होता है। ये कुछ सामान्य कारण हैं जो ज्यादातर रक्ताल्पता उत्पन्न करने वाले होते हैं हालाकि कभी कभार कुछ विशिष्ट कारण भी होते हैं पर उनके मामले बहुत कम देखने में आते है, जैसे अस्थिमज्जा (Bone Marrow) के रोग, अतः यहां हमने उन पर चर्चा करना जरूरी नहीं समझा।
महिलाओं में खून की कमी (एनीमिया) के लक्षण : mahilao me khun ki kami ke lakshan in hindi
एनीमिया के लक्षण उसकी तीव्रता और समयावधि यानी कितना पुराना है। इस पर निर्भर करते हैं। यदि एनीमिया धीरे-धीरे बढ़ता है तो शरीर की क्षतिपूर्ति करने की प्राकृतिक व्यवस्था के कारण लक्षण धीरे-धीरे और हल्के-हल्के प्रकट होते हैं यानी दिखाई पड़ते हैं और यदि एनीमिया तेज़ी से बढ़ता है तो लक्षण न सिर्फ जल्दी ही प्रकट होते हैं वरन तीव्रता लिये हुए भी होते हैं। तात्पर्य यह है कि एनीमिया के लक्षण उसके शुरू होने के ढंग पर भी निर्भर करते हैं।
- कोई भी मेहनत का काम करने पर थकान होना, सांस फूलना, दिल की धड़कन तेज़ होना आदि एनीमिया के शुरुआती लक्षण हैं। लेकिन जब एनीमिया बढ़ जाता है तब विश्राम की अवस्था में भी ये लक्षण मौजूद रहते हैं।
- दूसरे अंगों पर प्रभाव पड़ने पर सिरदर्द, चक्कर आना, बेहोशी सी मालूम देना, कान में सीटी बजना आदि लक्षण उत्पन्न होते हैं।
- कई मामलों में चिड़चिड़ापन, नींद मुश्किल से आना आदि लक्षण उत्पन्न होते हैं।
- चूंकि रक्त में हीमोग्लोबिन कम होने से आक्सीजन की कमी हो जाती है। इसलिए जरूरी अंगों में आक्सीजन की पूर्ति हो। इसके लिए उन अंगों में रक्तप्रवाह बढ़ जाता है। परिणाम यह होता है कि त्वचा में रक्तप्रवाह की कमी से रोगी को ठण्ड अधिक लगती है तथा त्वचा गोरी दिखने लगती है और पाचन तन्त्र मार्ग को रक्त कम मिलने से अपच, भूख न लगना, शौच साफ़ न होना आदि लक्षण प्रकट होते हैं।
- महिलाओं में मासिक स्राव अनियमित हो जाता है या कम ज्यादा हो जाता है, त्वचा और श्लेष्मिक कला (Skin and Mucous imembrane) पीली पड़ जाती है। त्वचा पर दिखाई देना ज़रा मुश्किल होता है पर हथेली, आंखों की पुतलियों की श्लेष्मिक कला (Palpebral Conjunctiva) और नाखूनों पर यह पीलापन साफ़ दिखाई देता है।
महिलाओं में ज्यादातर पाये जाने वाला एनीमिया लौहतत्व की कमी (Iron Deficiency Anemia) से होता जिसके कुछ विशिष्ट लक्षण होते हैं-
लौह तत्व की कमी होने पर कोशिकाओं का आकार और इनकी संख्या बढ़ना (Cell growth and Proliferation) रुक जाता है। अस्थि मज्जा की कोशिकाओं के बाद जिन कोशिकाओं में वृद्धि और बहुगुणन की दर बहुत ज्यादा होती है वे पाचन संस्थान मार्ग (Gastro Intestinal tract) की कोशिकाएं होती हैं। फलस्वरूप एनीमिया के बहुत से लक्षण इस संस्थान से सम्बन्धित होते हैं जैसे जिव्हा शोथ (Glossitis) जिसमें जीभ लाल, सूजी हुई, चिकनी व चमकीली हो जाती है, इसे छूने से भी दर्द होता है। एक लक्षण मुखपाक होना (Angular stoinatitis) होता है जिसमें मुंह के कोने (होठों के जोड़) फट जाते हैं, सूज जाते हैं। महिलाओं में मासिक स्राव में अधिक रक्त जाना (Menorrhagia) भी एक लक्षण है।
खून की कमी से बचने व दूर करने के उपाय : mahilao me khun ki kami dur karne ke upay in hindi
रक्ताल्पता के कारण और लक्षण पर इतनी चर्चा के बाद आइए अब उन उपायों पर चर्चा करते हैं जिनके द्वारा रक्ताल्पता की समस्या से बचा जा सके या यदि रक्ताल्पता की समस्या उत्पन्न हो गई हो तो उससे मुक्ति पायी जा सके। स्वस्थ जीवन शैली अपनाकर इस समस्या से बचा ही नहीं जा सकता बल्कि मुक्त भी हुआ जा सकता है, सबसे पहले तो इसके कारणों की जानकारी रखते हुए उनसे दूर रहना आवश्यक है।
यदि शरीर में कोई गम्भीर रोग अपनी जड़ जमाये हुए है तो सर्वप्रथम उसकी चिकित्सा करानी चाहिए। यहां हम कुछ प्राकृतिक उपायों की चर्चा कर रहे हैं। जिनके प्रयोग द्वारा हम हमारे शरीर को रक्त की कमी का शिकार होने से बचा सकते हैं।
☛ लौह तत्व युक्त आहार का करें सेवन – हमारे शरीर में हीमोग्लोबिन की पर्याप्त वृद्धि के लिए आहार में पर्याप्त मात्रा में लौह तत्व, विटामिन बी12, विटामिन सी और फोलिक एसिड का होना आवश्यक है। आहार में व्याप्त लौह तत्व का अवशोषण हो इसके लिए विटामिन सी की उपस्थिति आवश्यक है।
लौह तत्व युक्त आहार का सेवन करें शरीर में लौह तत्व की कमी न हो इसके लिएअपने आहार में ऐसे खाद्य पदार्थों का समायोजन जरूरी होता है जिनमें लौह तत्व की मात्रा अच्छी हो। प्रतिदिन पुरुषों को 8 मि. ग्रा. और महिलाओं को 18 मि. ग्रा. लौह तत्व की आवश्यकता रहती है। इस आपूर्ति के लिए अपने आहार में इन खाद्य पदार्थों का समावेश करना चाहिए –
हरी पत्तेदार सब्जियां जैसे पालक, चौलाई, मैथी आदि अनार, चुकन्दर, दालें प्रोसेस किया सोयाबीन, सूखे मेवे (बादाम पिस्ता), किशमिश, अंकुरित गेहूं, गेहूं के ज्वारे का रस, नारियल पानी, नारियल की गिरी का दूध, टोफू (सोया पनीर), कद्दू के बीज, आलू, ब्रोकली आदि।
☛ लोहे की कड़ाही का उपयोग फायदेमंद – सब्जी भाजी लोहे की कड़ाही में ही बनानी चाहिए। आजकल एल्यूमिनियम के बर्तनों का चलन है जिससे लौह तत्व की प्राप्ति नहीं हो पाती है।
☛ विटामिन सी युक्त आहार लें – ग्रहण किये गये आहार से लौह तत्व अवशोषित हो इसके लिए विटामिन सी का होना बहुत ज़रूरी है। इसके लिए अपने आहार में खट्टे फल जैसे नींबू, सन्तरा, अनानास, आंवला इत्यादि के अलावा मौसमी, किशमिश, अमरूद, टमाटर, हरी पत्तेदार सब्जियां जैसे ब्रोकली, हरी मटर, अंगूर, जामुन रसबेरी, पपीता इत्यादि को भी शामिल करना जरूरी होता है। लगभग 90 मि. ग्रा. विटामिन सी की प्रतिदिन आवश्यकता शरीर को होती है।
☛ विटामिन बी युक्त आहार लें – इस विटामिन की शरीर में कमी रक्ताल्पता के साथ-साथ थकान, मानसिक अवसाद और मस्तिष्क को स्थायी नुकसान पहुंचाने का कार्य करती है। इसका स्रोत सिर्फ पशु होते हैं। अतः शाकाहारी व्यक्ति के लिए दूध, दही, पनीर, चीज इत्यादि दूध से बने पदार्थ ही एक मात्र स्रोत होते हैं।
☛ फोलिक एसिड युक्त आहार लें – फोलिक एसिड अर्थात् विटामिन बी की आपूर्ति के लिए अपने आहार में निम्न खाद्य पदार्थों का समावेश करें- विभिन्न प्रकार की बीन्स (सूखी फलियों के दाने) जैसे चवला, आदि सलाद पत्ता, सरसों का साग, फूलगोभी, हरी फूलगोभी (ब्रोकली), चुकन्दर, मसूर, सोया पनीर, पालक, मैथी, लौकी, खरबूज, मूंगफली, आम, सन्तरा, सम्पूर्ण अनाज से बनी चपाती आदि।
☛ इस प्रकार यदि मौसमी फलों, सब्जियों, दालों, दूध व दूध के उत्पाद, मेवे इत्यादि का अपनी पाचन प्रणाली की क्षमता के अनुसार सेवन किया जाए प्रतिदिन योगाभ्यास व प्राणायाम का नियमित अभ्यास किया जाए तो शरीर में रक्ताल्पता की स्थिति निर्मित होने से बचा जा सकता है।
☛ यदि रक्ताल्पता की स्थिति निर्मित हो ही गई हो तो आधे दिन का पूर्ण उपवास करने से समस्त अंगों की सफ़ाई हो जाती है। इसके साथ ही सप्ताह में एक दिन फलों पर रहकर उपवास करना चाहिए। यदि शरीर कमज़ोर व दुबला हो तो ऐसी स्थिति में फलों के साथ दूध का सेवन करना चाहिए। इस साप्ताहिक आहार क्रम को अपनाने से धीरे-धीरे शरीर में स्वस्थ रक्त के निर्माण के साथ-साथ सम्पूर्ण शरीर का स्वास्थ्य उन्नत होता है। उपवास करने से शरीर की पाचन प्रणाली पर से अनावश्यक बोझ हट जाता है, फलों के सेवन से शरीर को सुपाच्य आहार मिलता है जिससे पाचन प्रणाली को पोषण प्राप्त होने के साथसाथ शरीर के आन्तरिक अंगों की सफाई भी होती है। रसाहार केवल फलों व सब्जियों का उसके प्राकृतिक स्वरूप में ही होना चाहिए। उपवास शुरु करने के पूर्व 7 दिन तक ठण्डे पानी का एनिमा लेना आवश्यक है। शीत ऋतु में गुनगुने पानी का एनिमा लिया जा सकता है।
ताकि शरीर अनावश्यक मल से मुक्त हो सके व उपवास की सार्थकता सिद्ध हो सके । फलों पर रहकर उपवास करने का आहार क्रम इस प्रकार है-
- प्रातःकाल 6 बजे 25-30 किशमिश रात को पानी में भिर्गो हुई सेवन करें।
- प्रातः 8 बजे से दोपहर 12 बजे तक प्रत्येक 2 घण्टे में मौसम्बी, सन्तरा, अंगूर, पाइनएपल का रस लिया जा सकता है।
- कोशिश करें कि दोपहर 12 बजे तक खट्टे फलों का सेवन किया जाए व दोपहर 12 बजे के बाद अन्य फलों जैसे पपीता, चीकू, केला, खजूर, अंजीर, अनार, दूध व अन्य मौसमी फलों व सब्जियों का सेवन किया जाए।
उक्त आहारक्रम को रोग की अवस्था के अनुसार 5-6 माह तक जारी रखा जा सकता है। इस उपाय को करने से रक्ताल्पता दूर होने के साथ-साथ सम्पूर्ण शरीर का स्वास्थ्य भी उन्नत होता है।
प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति के कुछ प्रयोग जैसे घर्षणस्नान, वाष्प स्नान, पेडू व यकृत का गर्म ठण्डा सेक आदि करने से शरीर के अंगों की कार्यक्षमता बढ़ती है और साथ ही रक्ताल्पता से भी मुक्ति मिलती है।
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