मुक्ता शुक्ति भस्म के फायदे ,गुण उपयोग और नुकसान | Mukta Shukti Bhasma Benefits and Side Effects

Last Updated on August 17, 2019 by admin

मुक्ता शुक्ति भस्म : Mukta Shukti Bhasma in Hindi

मुक्ता शुक्ति भस्म एक आयुर्वेदिक दवा है , इसका उपयोग विभिन्न बीमारियों जैसे –
क्षय, खाँसी, जीर्णज्वर, नेत्रदाह, उदरवात, पित्तजगुल्म, श्वास, हृद्रोग (पित्तप्रकोपज), पित्तप्रधान अरुचि, पित्तज परिणाम शूल, यकृतशूल, पित्तज वमन, पित्तातिसार, अम्लपित्त, विदग्धाजीर्ण उद्गार (डकार आना), रक्तप्रदर और निर्बलता आदि के उपचार में किया जाता है।

मुक्ता शुक्ति भस्म बनाने की विधि :

शुद्ध मोती की सीप के ऊपर लगे हुए उज्वल भाग को हांडी में घीकुंवार (एलोवेरा) का गूदा ऊपर नीचे रख सम्पुटकर गजपुट दें। स्वांग शीतल होने पर निकाल पुनः नींबू के रस में ६ घण्टे खरलकर टिकिया बाँध संपुटकर गजपुट देने से मुलायम सफेद रंग की उत्तम भस्म बन जाती है। २० तोले सीप हो तो ८० तोले घीकुंवार(एलोवेरा) का गूदा लेवें।
नोट – 1 तोला [भारत] = 11.6638125 ग्राम

उपलब्धता : यह योग इसी नाम से बना बनाया आयुर्वेदिक औषधि विक्रेता के यहां मिलता है।

सेवन की मात्रा और अनुपान :

१ रत्ती से ३ रत्ती, दिन में २ बार, मक्खन मिश्री अथवा शहद या पान में अथवा सितोपलादि चूर्ण, घी और शहद मिलाकर देवें।
नोट – 1 रत्ती (sunari) goldsmith = 121.5 मिली ग्राम

मुक्ता शुक्ति भस्म के गुण : Mukta Shukti Bhasma ke Gun

मुक्ता शुक्ति भस्म अग्नि प्रदीपक तथा पंक्तिशूलहर है। शेष गुण मुक्ता(मोती भस्म) के समान शीतल, मस्तिष्क पौष्टिक और हृद्य(हृदय को अच्छा लगनेवाला) है, किन्तु कुछ कम परिमाण में है।

मुक्ता शुक्ति भस्म के फायदे और उपयोग : Mukta Shukti Bhasma ke Fayde in Hindi

• यह भस्म क्षय, खाँसी, जीर्णज्वर, नेत्रदाह, उदरवात, पित्तजगुल्म, श्वास, हृद्रोग (पित्तप्रकोपज), पित्तप्रधान अरुचि, पित्तज परिणाम शूल, यकृतशूल, पित्तज वमन, पित्तातिसार, अम्लपित्त, विदग्धाजीर्ण उद्गार (डकार आना), रक्तप्रदर और निर्बलता को दूर करती है। शुक्ति में मुक्ता की अपेक्षा न्यून गुण है।

• मुक्ता शुक्ति भस्म में शंखभस्म को अपेक्षा तीव्रता कम है। वस्तुतः शुक्ति, शंख, वराटिका तीनों भस्में स्थूल रसायनशास्त्र की दृष्टि से एक ही प्रकार की हैं। तीनों ही चूने के सेन्द्रिय कल्प हैं। परन्तु जीवन रसायन शास्र या गुणधर्म शास्र की दृष्टि से तीनों में कुछ-कुछ अन्तर है।

• शंख और वराटिका में अधिक साधर्म्य एवं शुक्ति और मुक्ता में भी विशेष साधर्म्य हैं। इस हेतु से सीप यदि मोती पिष्टी के अनुसार केवल शीत भावनापुट विधि से की हो तो उसका धर्म मुक्ता से किञ्चित् न्यून देखने में आवेगा। परन्तु उस रीति से शुक्तिपिष्टी बनाने का रिवाज नहीं है। मुक्ता शुक्ति भस्म गजपुट विधि से तैयार करते हैं। यह कुछ उग्र बनती है, फिर भी वराटिका और शंख भस्म से उग्रता न्यून ही है। इसी हेतु से मुक्ता शुक्ति भस्म छोटे बच्चों, सुकुमार तथा नाजुक प्रकृति के स्त्री पुरुषों को दी जाती है।

• शुक्ति के सेवन से स्वादुता उत्पन्न होती है, जिससे अम्लपित्त, पित्तजशूल परिणाम शूल, और अन्नद्रवशूल में पित्त की तीव्रता कम होती है।

1- अम्लपित्त में मुक्ता शुक्ति भस्म के फायदे –
अम्लपित्त में शुक्ति और माक्षिक का अच्छा उपयोग होता है। विदग्धाजीर्णमें दूषित डकारें बहुत आती हो और कण्ठ में दाह होता हो, तो शंख की अपेक्षा शुक्ति विशेष हितकर है। रसाजीर्ण की तीव्र और जीर्ण अवस्था में नाजुक मनुष्यों को शुक्ति से ज्यादा लाभ होता है।

2-दस्त में मुक्ता शुक्ति भस्म के फायदे –
पित्तातिसार में बार-बार दस्त होते हों, दस्त का रंग पीला, नीला, अथवा लाल-नीला हों, साथ में विलक्षण तृषा, बार-बार चक्कर आना, मूर्छा, सर्वाङ्ग में दाह, गुदा के बाहर के अंश में त्वचा का फटना, छोटी-छोटी फुन्सियां हो जाना आदि लक्षण हों तो मुक्ता शुक्ति भस्म देनी चाहिये।
अनुपान (औषध के साथ खाएँ) – दाडिमावलेह, आम का मुरब्बा, मक्खन या अनार शर्बत।

3-वमन में मुक्ता शुक्ति भस्म के फायदे –
पित्तजन्य वमन में शक्ति का उपयोग होता है। अत्यन्त गरम-गरम कडवी पीली, नीली वमन, कण्ठ में जलन, उदर में दाह, नेत्र के समक्ष अन्धकार चक्कर आना आदि लक्षण हों तो यह हितावह है।

4-पित्तगुल्म में मुक्ता शुक्ति भस्म के फायदे –
पित्तगुल्म में यह भस्म हितकर है। मुँह, नेत्र और सारा शरीर लाल हो जाना, ज्वर, तृषा, अन्न का पाचन होने पर कोष्ठ में भयंकर शूल, व्रण के समान गुल्म पर हाथ या अन्य वस्तु का स्पर्श सहन न होना आदि लक्षणों से युक्त आदि की वृद्धि होकर नहीं होता।

5-रक्तगुल्म में मुक्ता शुक्ति भस्म के फायदे –
रक्तगुल्म में शुक्ति का उपयोग होता है। केवल उसमें अन्य दोष की अपेक्षा पित्ताधिक्य होना चाहिये।

6-रक्तस्राव में मुक्ता शुक्ति भस्म के फायदे –
पित्त शीर्षशूल में भी इसका उपयोग होता है। मूत्रकृच्छ, दांत या अन्य मार्ग से रक्तस्राव होने की प्रकृति हो, तो शंख या वराटिका भस्म दी जाती है। परन्तु कोमल प्रकृति वालों के लिए इस भस्म का उपयोग करना चाहिये।

7-कोष्ठगत वात में मुक्ता शुक्ति भस्म के फायदे –
शुक्ति से कोष्ठगत वात का शमन होता है। कोष्ठगत वात के साथ श्वास हो तो भी इसका उपयोग लाभदायक है।

8-हृदय पीड़ा में मुक्ता शुक्ति भस्म के फायदे –
हृदय में वात की रुकावट होना, हृदय में वात के योग से बोझा-सा मालूम होना, पीड़ा होना, शूल चलना, कोष्ठ(पेट) में जलन होने के समान भासना, हाथ-पैर शून्य से होकर झनझनाहट होना, हाथ-पैर में शीतलता का भास होना इत्यादि लक्षण होते हैं। डकार आने पर व्यथा कम हो जाती है या बिल्कुल शमन हो जाती है ऐसी स्थिति में शंख तथा वराटिका की अपेक्षा शुक्ति का अधिक उपयोग होता है।

9-अरुचि में मुक्ता शुक्ति भस्म के फायदे –
अरुचि में, विशेषतः पित्तप्रधान अरुचि में, शुक्ति का उपयोग किया जाता है इस भस्म के सेवन से मुंह की बेस्वादुता, मुंह में से दुर्गन्ध आना, मुँह कड़वा, खट्टा, खारा या चरपरा हो जाना, मुंह में से गरम-गरम भाप निकलना ये सब लक्षण दूर होते हैं।

मुक्ता शुक्ति भस्म पित्त और किञ्चित् कफ दोष, रस, रक्त, मांस, अस्थि ये दूष्य और आमाशय, यकृत, प्लीहा और ग्रहणी इन सब पर लाभ पहुंचाती हैं।

मुक्ता शुक्ति भस्म के नुकसान : Mukta Shukti Bhasma ke Nuksan in Hindi

1-मुक्ता शुक्ति भस्म केवल चिकित्सक की देखरेख में लिया जाना चाहिए।
2-अधिक खुराक के गंभीर दुष्प्रभाव हो सकते हैं ।
3-डॉक्टर की सलाह के अनुसार मुक्ता शुक्ति भस्म की सटीक खुराक समय की सीमित अवधि के लिए लें।

आगे पढ़ने के लिए कुछ अन्य सुझाव :
• स्वर्ण भस्म 29 लाजवाब फायदे
• स्वर्ण माक्षिक भस्म के फायदे और नुकसान
रजत भस्म (चांदी भस्म) के फायदे

error: Alert: Content selection is disabled!!
Share to...