Last Updated on March 31, 2023 by admin
अपनी तो क़िस्मत ही ख़राब है, मेरे साथ ही ऐसा क्यों होता है, लाख कोशिशों के बावजूद मुझे कामयाबी नहीं। मिलती…अपनी जिंदगी तो ऐसे ही बीत जाएगी। आपने भी अपने आसपास कुछ लोगों को ऐसी शिकायतें करते ज़रूर सुना होगा। लोगों की छोड़िए, ज़रा अपने भीतर झांककर देखें। क्या आपके मन में भी ऐसे ही विचार आते हैं? अगर सचमुच ऐसा है तो आपको सचेत तरीके से ऐसी मनोदशा पर क़ाबू पाने की कोशिश करनी चाहिए। अगर ऐसी सोच को सही समय पर नियंत्रित नहीं किया गया तो इससे व्यक्ति को डिप्रेशन जैसी गंभीर मनोवैज्ञानिक समस्या भी हो सकती है।
क्यों होता है ऐसा ?
किसी भी व्यक्ति के मन में यह नकारात्मक भावना अचानक नहीं आती। असंतुष्टि के इस विष-वृक्ष की जड़ें बहुत गहरी हैं। अगर किसी को बचपन में माता-पिता का स्नेह और सही मार्गदर्शन नहीं मिल पाता तो उसके मन में असंतुष्टि की भावना स्थायी रूप से घर कर जाती है। कमज़ोर आर्थिक-सामाजिक स्थिति, मामूली शक्ल-सूरत या बार-बार मिलने वाली असफलता से उपजी हीन । भावना भी इसके लिए ज़िम्मेदार होती है।
क्या है नुकसान ?
हमेशा असंतुष्ट रहने की आदत इंसान की सोच को पूरी तरह नकारात्मक बना देती है। इससे उसे अच्छी बातों में भी कोई न कोई बुराई नज़र आने लगती है। ऐसे इंसान दूसरों की सहज आत्मीयता को भी शक़ की निगाहों से देखते हैं। अगर कोई उनसे अच्छा व्यवहार करे तो उन्हें ऐसा लगता है कि दूसरा व्यक्ति किसी फ़ायदे के लालच में उनके साथ ऐसा कर रहा है। इनको अपने आसपास के लोगों और माहौल में हमेशा कोई न कोई कमी दिखाई देती है। इसलिए ये कोई भी काम सही ढंग से नहीं कर पाते और अपनी नाकामी का सारा दोष हालात पर डाल देते हैं। चाहे प्रोफेशनल हो या पर्सनल लाइफ, हर जगह इनके संबंध ख़राब होते हैं। किसी भी रिश्ते में ये बहुत ज्यादा डिमांडिंग होते हैं। दूसरों में बुराई ढूंढने वाले ऐसे लोग अपनी ख़ामियों पर ध्यान नहीं दे पाते। असंतुष्टि की वजह से इन्हें गुस्सा भी बहुत जल्दी आता है। आइये जाने nakaratmak vichar kaise dur kare
नकारात्मक विचार दूर करने के उपाय :
1. अपने अच्छे गुणों को याद करते हुए खुद अपना उत्साहवर्धन करें।
2. अगर कभी किसी ने आपके लिए कुछ अच्छा किया है तो उसे याद रखें और वक्त आने पर उसकी मदद करना न भूलें।
3. सकारात्मक सोच वाले लोगों से दोस्ती बढ़ाएं। उनकी अच्छी आदतों को खुद भी अपनाने की कोशिश करें। (और पढ़े –तनाव और चिंता दूर करने के यौगिक प्रयोग )
4. हमेशा ठंडे दिमाग़ से सोच-समझ कर निर्णय लें। सच्चाई जाने बिना गुस्से में लिया गया फैसला आपके लिए नुकसानदेह साबित हो सकता है।
5. अपनी रुचि से जुड़े कार्यों में खुद को व्यस्त रखने की कोशिश करें। इससे आसपास के माहौल की कमियों की ओर आपका ध्यान नहीं जाएगा।
6. प्रातः जागने पर पूर्व दिशा की ओर मुँह करके सूर्य को धन्यवाद दें कि उन्होंने जीवन का एक नया दिन दिया। उनका आशीर्वाद माँगें कि आपके जीवनपर्यन्त सभी इन्द्रियाँ सुचारु रूप से कार्य करें आप लम्बी, सुख-सन्तोषपूर्ण आय प्राप्त करें। ( और पढ़े –मानसिक तनाव के कारण लक्षण और दूर करने के उपाय )
7. पूर्ण सतर्कता के साथ अपने नित्य कर्म निबटाएँ; नित्य अपने मल को ध्यान से देखें ताकि उसके माध्यम से आप अपने स्वास्थ्य का अनुमान लगा सकें।
8. स्नान करते समय शरीर को ध्यान से देखें और यह भावना करें कि बाहरी मलिनता के साथ-साथ आन्तरिक मलिनता भी दूर हो जाए जिससे आपका चित्त शुद्ध हो और आपको आन्तरिक शान्ति और सौख्य प्राप्त हो। यदि शरीर में कहीं दर्द हो अथवा कोई गड़बड़ी हो तो शरीर पर स्नानार्थ जल पड़ते समय भावना करो कि बहते जल के साथ वह शरीर की परेशानी भी बहा ले जाए। शरीर की अन्य मलिनता के समान, यह शरीर-कष्ट भी नाली में बह जाए।
9. भोजन करते समय गहरी श्वास लो और परमात्मा के प्रति आभार व्यक्त करो कि उसने आपको भोजन सुलभ कराया। ( और पढ़े – मानसिक रोग के कारण व घरेलु उपचार)
10. दिन का कर्म आरम्भ करते समय, या कार चलाते समय सदैव कुछ गहरी साँसे लीजिए और किसी पवित्र वस्तु अथवा शुद्ध चाँदी का पात्र या क्रिस्टल स्पर्श करें। गाड़ी चलाते समय अपना ध्यान सदा एकाग्र रखें और दीर्घ निश्वास लेते रहें। इस प्रकार अपनी प्राणऊर्जा को अपने मस्तिष्क तक पहुँचाएँ।
11. दिन में काम से थकने की स्थिति में दीर्घ निश्वास लेने का क्रम कई बार करें और अपनी प्राण ऊर्जा को उस अंग तक भेजें, जो थकान अनुभव कर रहा हो। एक या दो घंटों के अन्दर गहरी श्वास लेने की क्रिया करते रहें, जिसके लिए अलग से समय निकालने की जरूरत नहीं है।
12. जब आपमें कोई भावनात्मक विस्फोट हो तो आत्म-सत्ता से सम्पर्क न छूटने दें। आप उसमें न उलझे और जब क्रोध आए, द्वेष भाव या आत्म-दया की भावना उभरे आप अपने आपको देखने की अवस्था में रहें इससे आपका अपने पर नियन्त्रण बना रहेगा।
13. सोने से पूर्व स्वयं को रात्रि-ऊर्जा से प्रभावित होने दें और रजस एवं तमस रहित निद्रा की कामना करें। सोते समय जब आन्तरिक शान्ति बनी रहे अथवा जो निद्रा प्राणायाम एवं जप के उपरान्त आए, उसे ‘योग निद्रा‘ कहते हैं। योग निद्रा आने पर व्यक्ति अल्प निद्रा काल में ही अधिक से अधिक विश्राम कर लेता है।
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