Last Updated on July 24, 2019 by admin
★ डिप्टी इंजिनियर श्री जयंतिभाई को अभी अभी खतरनाक दिल का दिल का दौरा आ गया । सारा परिवार थोडे दिन तक भयंकर आँधी से फँस गया अगम्य शक्ति की लीला से इस तूफान के शान्त होने के बाद उनसे मुलाकात की । जीवन के अत्यन्त नाजुक और विषम काल में उन्होंने प्रकृति से ऊपर जिस अगम्य शक्ति का अनुभव किया, उसकी गहन गाथा सुनकर लगा कि आज के विज्ञानप्रेमी युग में मानव की श्रद्धा परमात्मा से कैसी करुणालीला करा सकती है, उसका जीता जागता प्रमाण (दस्तावेज) नास्तिक जगत के सामने रखने योग्य है । अर्वाचीन युग में वैज्ञानिक संशोधनों के साथ कदम मिलाकर चलनेवाले हृदय विशेषज्ञ डॉक्टरों का स्पष्ट समर्थनवाला यह दस्तावेज (प्रमाण) है ।तो आयें, हम उस मुलाकात से प्राप्त संघर्षमय काल की करुणता तथा श्रद्धा के सुमनों का माधुर्य अनुभव करें ।
★ श्री जयंतिभाईने बताया : ‘‘तारीख १२ जुलाई की शाम को छः बजे अपनी गाडी में बैठकर मिल से घर जाने के लिए निकला, तब छाती में दर्द आरंभ हुआ । गेस के कारण ऐसा हुआ होगा ऐसा समझकर रास्ते में गाडी रोकी और गोली खाई । इस पर भी पीडा बढने लगी । पसीने से तरबतर हो गया । सिर के बाल, कपडे सहित शरीर से पसीना बहने लगा । रास्ते में फिर दो बार गाडी रोकी । गेस की दो दो गोलियाँ निगल गया किंतु पीडा कम नहीं हुई । क्षण के लिए विचार हुआ कि आज घर पहुच सकूँगा या नहीं ।
★ जैसे तैसे करके घर पहुँचा । कपडे निकाल दिये । हृदय पर भयंकर, दबाव पडने लगा । गेस की दूसरी गोलियों के साथ सोडा जीजर की दो बोतल पीकर कमरे में इधर उधर दौडा दौडी करने लगा… इस विचार से कि जैसे तैसे करके शरीर में से गेस निकल जाय तो शान्ति हो । मुझे स्वप्न में भी ख्याल न था कि जीवनज्योति को बुझानेवाला यह हृदयरोग का हमला है ।
★ शाम को ७-३० बजे मेरी भतीजी डॉक्टर कुमकुम घर आयी । मेरे स्वास्थ्य की जाँच करते समय चौंक उठी । तात्कालिक अपने निकट के परिचित हृदय विशेषज्ञ डॉक्टर अतुल आर. परीख को फोन करके बुलाये । डॉ ने आकर इ.सी.जी (इलेक्ट्रिक कार्डियोग्राम ग्राफ) ली तो परिणाम खराब । डॉक्टर गंभीर बन गये । घर के लोगों को बाहर बुलाये । फिर क्या हुआ बेटी कुमकुम ?
★ कुमकुम बहन ने अपने आँसू पोछते हुये कहा – ‘‘डॉक्टर ने हमें बाहर आकर बताया कि अपने सगे-संबंधियों को जिनको बुलाने हों, बुला लो । केस समाप्त है । हृदय के नीचे का आधा भाग बंद पड गया है । अस्पताल में भले ले जाओ किंतु दर्दी अस्पताल तक पहुँच सके तो तुम्हारा भाग्य । बाकी…
★ इस पर भी डॉक्टर ने इन्जेक्शन दिये । हम रात को ११-३० बजे अम्ब्युलन्स बुलाकर तथा डॉक्टर की लिखित रिपोर्ट लेकर शारदाबहन होस्पीटल जाने के लिए निकले । चाचा की यह दशा देखकर घर के सभी व्याकुल हो गये । ‘गुरुदेव… गुरुदेव. की पुकार के साथ आकुल-व्याकुल होते हुये पूज्य बापू का स्मरण करने लगे ।
★ जयंतिभाई : ‘‘डॉक्टर के मतानुसार एम्ब्युलन्स में जाते हुये एक छोटा-सा धक्का भी जीवनदीप बुझाने के लिए काफी था किंतु गुरुदेव की कृपा निरंतर मेरे साथ थी । गाडी के प्रत्येक धक्के से मेरा दर्द घटने लगा । अस्पताल में पहुँचे तब मैं पूर्ण भान में था ।
कुमकुम : ‘‘डॉक्टर ने परीख साहब का सम्पूर्ण रिपोर्ट ध्यानपूर्वक पढा और फिर अंकल की ओर देखा । उनकी स्वस्थता देखकर आश्चर्यचकित हो गये । उन्होंने पूछा- ‘इन्हें कोई उपचार दिया है ?. मैंने कहा- ‘साहब ! सभी ट्रीटमेंट देना बाकी है । आप जल्दी से जल्दी आरंभ करें ।.
★ तात्कालिक उपचार किया गया । सभी के जाने के बाद बेहोश चाचा के पास मैं बैठकर गुरुदेव का स्मरण कर रही थी तब विलक्षण दृश्य मैंने देखा । चाचा के स्थान पर मुझे पलंग पर सोये हुये गुरुदेव दिखाई दिये । नाक में आक्सीजन भी नहीं है । उनके सिर पर कोई दिव्य शक्ति हाथ फिरा रही है । मैं जाग पडी । लंबे समय तक यही दृश्य दिखता रहा । मैंने आँखे मसलकर दो मिनट बाद देखा तो फिर चाचा ही दिखाई दिये ।
★ उसके बाद गुरुदेव की दिव्य वाणी सुनाई दी : ‘पीछे देख, भयंकर दो आदमी आ रहे हैं….
मैंने दरवाजे की ओर देखा तो यमराज के स्टाफ के हों ऐसे दो भयंकर क्रूर दिखाई देनेवाले दो मानव हमारी ओर आ रहे थे । फिर गुरुदेव ने गर्जना की : ‘उनको वही रोक दो….
दोनों व्यक्ति डॉक्टर की मेज के पास खडे रह गये तथा वहीं से अंकल को क्रूर दृष्टि से ताकते रहे । थोडी देर में तो ऐसे लोगों का समूह इकट्ठा हो गया । परंतु कोई भी हमारी ओर आगे न बढ सका । अंकल तो बेहोश थे । नाक में आक्सीजन की नली थी । हृदय के साथ मोनीटर जोड दिया गया था जिससे हृदय की तत्कालीन परिस्थिति की रिपोर्ट टी.वी. की स्क्रीन पर निरन्तर दिखाई देती थी ।
तारीख १३ की शाम को स्वास्थ्य अधिक बिगडा भयंकर हृदयरोग हुआ ।
★ डेढ घंटे के बाद फिर से ऐसा ही हमला हुआ । इस समय डॉक्टर साथ में ही थे । उन्होंने जाँच की, नाडी बंद…! और अंकल का हृदय भी बंद…! मोनीटर टी.वी. की स्क्रीन पर हृदय के खराब समाचार के संकेत मिल रहे थे । डॉक्टर जोर से हृदय को मसलकर पंपींग करने लगे । पाँच सात बार के प्रयत्न के बाद हृदय की धडकन फिर से आरंभ हो गयी । चल बसे हुये काका अगम्य शक्ति लीला से वापस आये । बुझे हुये जीव की दीप की ज्योति पुनः चेतनामय बनी । अंकल का हृदय अत्यन्त खराब हालत में काम कर रहा था । डॉक्टरों ने हम सबके हस्ताक्षर कराके हृदय को (पीस मेकर) (हृदय को कृत्रिम रूप से चलानेवाला यंत्र) के साथ जोड दिया ।
★ इस पर भी हृदय बिल्कुल मंद गति से चलता था । कम से कम खून परिभ्रमण कर रहा था । नाडी की धडकन ८९ ऊपर से घट कर ३० हो गयी थी ।
थोडे समय तक सब बराबर चलता रहा । किंतु १५ तारीख को दोपहर तीन बजे फिर से अंकल को जोरदार हमला हुआ ।
अंकल इस तरह एक के बाद एक हिचकी की घात में से बच रहे थे । किंतु पुनः रात को बारह बजे दर्द शुरू हुआ । ऐसा कातिल दर्द कि अंकल हाथ, पाँव तथा सिर पछाडते… पसीने से तरबतर… बारबार ‘हे राम.. हे गुरुदेव…. ऐसा चिल्लाते ।
★ बाहर का कुछ ज्ञान नहीं । तात्कालिक बुलाने से डॉक्टर आये और रात को दो बजे तक ट्रीटमेन्ट दी । अन्त में डॉक्टर भी निराश हो गये । उन्होंने कहा :
‘‘इन्हें जो कुछ भी दवा दी जानी चाहिए वह सब हम दे चुके हैं… सभी गोलियाँ दे चुके हैं… छः छः इन्जेक्शनों का मिश्रण एक इन्जेक्शन में दे चुके हैं… परंतु… हृदय तो बैठ रहा है… पल्स (नाडी की धडकन) गयी… हम अपने सभी प्रयास कर चुके । इस दर्द के लिए उपलब्ध आज तक कोई भी प्रयास हमने बाकी नहीं रखा । अब… अब तो एक मात्र ईश्वर का आधार… ।
★ मिनट पर मिनट बीत रहे थे । सभी शांत थे । प्रकृति की करामत के आगे मानव के हाथ अqकचन मालूम होते थे । हम मन में ही गुरुदेव को प्रार्थना कर रहे थे । पाँच मिनट के बाद डॉक्टर ने पूछा :
‘‘जयंतिभाई ! तुम्हें क्या होता है ?
बंद आँखों से ही जवाब मिला : ‘मुझे कुछ भी नहीं होता । अब मुझे बिलकुल आराम है ।
और सचमुच दस पन्द्रह मिनट में अंकल बिलकुल नोर्मल बन गये । डॉक्टर यह देखकर आश्चर्यचकित हो गये । ऐसा अनोखा केस उन्हें पहली ही बार देखने को मिला होगा । गुरुदेव की पूर्ण कृपा के सिवाय इसमें दूसरा क्या हो सकता है ?
★ घर के सभी सदस्य पागल होकर जीते थे । खाने पीने तथा सोने का भान न था । छोटे बडे सभी पूज्य गुरुदेव का स्मरण कर रहे थे ।
सुबह ४-४५ बजे फिर से अंकल को हिचकी आयी । डॉक्टर का उपचार मिलने से शान्ति हुई । परंतु ६-४५ बजे ऐसा भयंकर हमला हुआ कि बस… सीमा आ गयी । अब तक के हुये हमलों में से यह सब से अधिक और खतरनाक हमला था । सात मिनट तक हृदय बिलकुल बंद रहा । डॉक्टरों ने अंकल की चाती में मुक्के मारे, हथेली से हृदय को मसलकर पंपींग किया किंतु हृदय सचेतन नहीं हुआ । हमेशा के लिए नाराज होकर बैठ जाने की तैयारी कर ली । मानो यमदूत अपमृत्यु के लिए बार-बार प्रयत्न करते हों तथा कुटुंब के लोगों की प्रार्थना तथा गुरुदेव की कृपा उनके साथ संघर्ष में उतरी हो, ऐसा लगता था ।
★ डॉक्टर थके । मुझसे कहा-‘बहन ! अब तुम प्रयास करके देखो… शायद चालू हो जाय ।.
डॉक्टर के किये हुये प्रयत्नों को मैं देख रही थी । उनसे अधिक प्रयत्न मैं क्या करनेवाली थी । मैंने एक मिनट आँखें बंद की । हृदय को खूब खूब अहोभाव से भरकर पूज्य गुरुदेव का स्मरण किया… प्रार्थना की… गुरुमंत्र का मन ही मन रटन किया… हे अनाथों के नाथ ! इस डूबती नैया को अब आप ही को कुशलक्षेम किनारे पर पहुँचानी है….
★ फिर मैंने बिलकुल हल्के हाथ से अंकल का हृदय थोडा मसला… पंपींग किया… दूसरे ही प्रयत्न के बाद डॉक्टर खुशी के मारे उछल पडे । कूदका लगाकर आनंद से कहने लगे : ‘चालू हुआ… चालू हुआ… बराबर है… तुम पंपींग चालू रखो… चालू रखो….
…और ऐसा करते करते अंतिम सात मिनट से बंद पडा हुआ अंकल का हृदय फिर से धडकने लगा और थोडी ही देर में नोर्मल गति में हो गया ।
★ अब डॉक्टरों को लगने लगा कि इस हृदय को चालू रखने के लिए सामान्य ‘पेस मेकर. नहीं चलता । हृदय को ‘ओटोमेटिक डिमांड पेस मेकर. पर चलाना होगा । इस ऑपरेशन के लिए बम्बई अथवा मद्रास जाना पडे । लगभग साठ हजार का खर्च भी वहन करना पडे ।
अंतिम बार अंकल को हिचकी आयी तब हृदय को चालू करने के लिए अंतिम से अंतिम उपाय के तौर पर डॉक्टरों ने सिर में करंट देने की तैयारी की किंतु गुरुदेव की कृपा से बिना करंट के ही हृदय चालू हुआ और उसके बाद कोई हमला नहीं हुआ ।
★ ७६ घंटों में तो हृदय एकदम .ऑलराइट…।. सामान्य तौर पर अंतिम हमले के बाद ‘पेसमेकर. १२८ घंटे कार्य करे तभी अच्छा परिणाम देखने को मिल सकता है परंतु इसमें तो ७६ घंटों में ही धारणा के अनुसार परिणाम मिल गया । सभी साधन हटा दिये गये । इस अनोखे केस को देखने के लिए दूसरे डॉक्टर भी उमड पडे थे । हमें तो इसमें पूज्य गुरुदेव की असीम करुणाकृपा के आश्चर्य के सिवाय दूसरा कुछ भी दिखाई नहीं देता ।
★ जयंतिभाई : ‘‘यह सब तो अत्यन्त संक्षेप में बताया है । वास्तव में प्रत्येक क्षण पूज्य गुरुदेव का आश्वासन कैसे कार्य कर रहा था, यह सब तो अवर्णनीय है । तारीख २७ को मैं बिस्तर से उठ सका और तारीख २९ को घर आया । डॉक्टर ने मुझे सख्त मनाही की थी कि उनकी इजाजत के बिना मुझे किसी भी संयोग में कमरे से बाहर नहीं निकलना चाहिए ।
तारीख ५ वीं अगस्त को डॉक्टर अतुल भाई परीख हमारे घर पर आये । बातचीत के सिलसिले में उन्होंने मुझसे पूछा :
‘‘जयंतीभाई ! अस्पताल में तुम्हें कन्वर्जन आते, हिचकी आती तब तुम्हें क्या होता था ? तुम्हें कैसा अनुभव होता था ?
मैंने कहा : ‘‘उस समय पीड़ित अवस्था में मैं अत्यन्त गहराई में उतरता जा रहा हूँ, ऐसा अनुभव करता था किंतु मेरे प्राण बाहर निकल नहीं सकते थे । उन्हें कोई रोक रहा था । फिर मुझे कोई चेतना नहीं रहती थी जब धीरे धीरे पुनः चेतना में आता तो अनुभव होता की मेरी छाती पर, हृदय पर कोई मुक्के मार रहा है, हृदय को हाथ से मसल रहा है । जब सम्पूर्ण होश में आते तब आप सबको मेरे उपचार में जुटे हुये देखता ।
★ डॉक्टर बोले : तुम पाँचदिन में आठ बार मर चुके थे… हम डेड सर्टिफिकेट दें दें ऐसे । किंतु तुम्हारे पीछे कोई अगम्य शक्ति काम कर रही है । (पूज्य गुरुदेव की तस्वीर के सामने लम्बे हाथ करते हुये बोले :… और वह शक्ति यही है । उनकी कृपा के सिवाय हम आपके साथ आज इस ढंग से बातचीत करने में असमर्थ रहते । वैसे तो हम ऐसे खतरनाक हृदय रोग के रोगी को तीन महीने तक बिस्तर से उठने की भी इजाजत नहीं देते किंतु इस दैवी शक्ति का चमत्कार हमें कह रहा है, अतः कहने का साहस कर रहा हूँ कि तुम केवल दस मिनट के लिए आश्रम में गुरुदेव के दर्शन के लिए भले ही जाओ ।
★ डॉक्टर ने दूसरी अनेक सावधानी रखने की सूचनाएँ दीं । जब आश्रम में पूज्य गुरुदेव के श्रीचरणों में पहुँचा तब गुरुदेव ने मानो डॉक्टर की सभी सूचनाएँ सून ली हो उसी तरह मेरे पास शब्दशः उसी तरह का व्यवहार कराया । अगम निगम के औलिया श्री गुरुदेव की लीला अगम्य है । इस बीमारी के बाद मुझे संसार के सार-असार का ख्याल बराबर आ गया । संसार के रंग-राग, खान-पान और स्त्री के विषय की जो थोडी बहुत वासना थी, वह भी धुल गयी । मुझे संसार के प्रति उदासीनता आ गयी । गुरुदेव ने मेरे मन का मैल धो डाला । मुझे निर्मल बना दिया ।
श्रोत – ऋषि प्रसाद मासिक पत्रिका (Sant Shri Asaram Bapu ji Ashram)
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