Last Updated on July 15, 2019 by admin
पागल कुत्ते का काटना (DOG BITING)
केवल पागल कुत्ते के काट लेने मात्र से तत्काल मनुष्य पागल नहीं हो जाता है। पागलपन का विष तो 2-3 दिनों के बाद धीरे-धीरे अपना प्रभाव उत्पन्न करता है। यदि एक माह के अन्दर ही ऐसे रोगी को ‘‘पास्टर इन्स्टीटयूट” भेज दें जहाँ पागल कुत्ते के काटने की चिकित्सा की जाती है, तो रोगी मनुष्य के पागल होने की संभावना कम हो जाती है। ऐसे सुप्रसिद्ध इन्स्टीट्यूट कसौली (हरियाणा) तथा कुन्नूर (मद्रास) में संचालित है।
पागल कुत्ते के काटने की पहचान :
कुत्ता काटे हुए जख्म पर एक रोटी का टुकड़ा रखकर पांच-सात मिनट के बाद किसी अन्य कुत्ते को वह रोटी खिलावें और यदि वह कुत्ता रोटी न खाये तो निश्चित समझे कि-काटने वाला कुत्ता पागल ही था। इसी प्रकार यदि ठन्डा पानी डालने से कुत्ता काटे हुए व्यक्ति का शरीर गरम हो जाये तो भी ‘पागल कुत्ते का विष’ ही समझना चाहिए।
पागल कुत्ते के काटने पर दिखाई देने वाले लक्षण :
पागल कुत्ता काटे व्यक्ति की साधारणतः एक सप्ताह के बाद दशा बदलती है। कभी-कभी सातवें सप्ताह या सातवें मास में विष का प्रभाव दिखलायी पड़ने लगता है। ऐसे रोगी को हाइड्रोफोबिया (जल से डरना) जल पीने से तथा देखने दोनों से डरना (क्योंकि जल में पागल कुत्ता देखलाई देता है) तथा गले की नसों में गांठे (विष के कारण) उत्पन्न होने से पानी न पी सकना, अन्धकार में रहना, शरीर पर ललाई आना, क्रोध, चिन्ता इत्यादि प्रमुख लक्षण हुआ करते है।
पागल कुत्ते के काटने पर इलाज :
• पागल कुत्ते के काटने पर शरीर में फैले जहर को उतारने के लिए वह स्थान जहाँ पर कुत्ते ने काटा है उस स्थान को दबा-दबाकर काफी रक्त(Blood) निकाल देना चाहिए। इसके पश्चात घाव को नींबू के रस मिले पानी से ठीक तरह से धो लेना चाहिए और फिर इसके बाद घाव को साफ करके उस पर लोहे की सलाई का सिरा लाल करके घाव को जलाना चाहिए।
• कपड़े की पतली पट्टी लेकर घाव के ऊपर के भाग में बाँधकर उसमें एक लकड़ी की डन्डी देकर उसे इतना मरोड़ कर कस दें कि उससे घायल को पीड़ा होने लगे। जैसे-पिन्डली में काटे तो उससे ऊपर अर्थात पांव में घुटने तथा घाव के बीच में बांधने हेतु निर्देशित करें। घाव चुसवायें तथा इस प्रक्रिया से जो कुछ भी मुँह में आये उसे थुकवा दें। यह क्रिया कई बार करवायें। बाद में ‘एल्कोहल’ से खूब भली प्रकार कुल्ले करवा कर चूसने वाले व्यक्ति की मुख-शुद्धि करवा दें। रोगी के जख्म पर गरम जल डालना तथा रक्तस्राव (रुधिर बहना) जारी रखें।
नोट :- ऊपर बताये गए उपाय और नुस्खे आपकी जानकारी के लिए है। कोई भी उपाय और दवा प्रयोग करने से पहले आयुर्वेदिक चिकित्सक की सलाह जरुर ले और उपचार का तरीका विस्तार में जाने।