Last Updated on November 11, 2019 by admin
पेशाब में दर्द व जलन (मूत्रकृच्छ/डिस्यूरिया) क्या होता है? Dysuria in Hindi
मूत्रवह संस्थान यानी मूत्र विसर्जन प्रणाली शरीर का एक अत्यन्त महत्वपूर्ण अंग है जिसके अन्तर्गत, पेट के अन्दर, ऊपरी पिछले भाग में, रीढ़ की हड्डी की दाहिनी व बायीं ओर एक-एक किडनी होती है। इन दोनों किडनियों से एक-एक मूत्रवाहिनी नलिका (यूरेटर) निकल कर मूत्राशय (ब्लेडर) से जुड़ती हैं जिसका अन्तिम सिरा मूत्र मार्ग से शरीर के बाहर खुलता है। किडनी (वृक्क या गुर्दा ) में हृदय की धमनी से अशुद्ध रक्त आता है जहां लाखों नेफ्रान्स द्वारा रक्त छन कर शुद्ध होता है और शुद्ध रक्त दूसरी शिरा द्वारा हृदय में पहुंचता है और वहां से शरीर में भेज दिया जाता है। किडनी से छना हुआ अपशिष्ट, जल के रूप में, बूंद बूंद करके यूरेटर के माध्यम से मूत्राशय में इकट्ठा होता है। यह प्रक्रिया शरीर में अबाध गति से निरन्तर चलती रहती है। जब मूत्राशय भर जाता है तो व्यक्ति को दबाव सा महसूस होता है जिससे मूत्र विसर्जन करने की हाजत होती है और व्यक्ति मूत्र विसर्जन करके मूत्राशय को खाली कर देता है।
सामान्य स्वस्थ अवस्था में, बिना दर्द या जलन के 4-5 बार मूत्र विसर्जन होता है किन्तु रोग ग्रस्त होने पर मूत्र विसर्जन करते समय दर्द या जलन होना, भारीपन का अहसास होना, मूत्र का वेग तो ज़ोरदार हो पर मूत्र मार्ग में रुकावट होने से पेशाब रुक जानाये सब अलग-अलग प्रकार के मूत्र रोगों की स्थिति दर्शाते हैं। ये मूत्र रोग हैं- मूत्र कृच्छ्र । मूत्राघात, अश्मरी, पूयमेह, प्रमेह, वृक्क,निर्बलता, वृक्कशोथ, प्रोस्टेट की वृद्धि आदि। इनमें से एक मूत्र कृच्छ्र रोग के विषय में यहां चर्चा की जा रही है।
पेशाब में दर्द व जलन (मूत्रकृच्छ/डिस्यूरिया) के लक्षण : peshab me dard aur jalan ke lakshan
Painful Urination (Dysuria) Symptoms in Hindi
1-मूत्र कृच्छ्र (Dysuria) का अर्थ है कष्ट के साथ मूत्र विसर्जन होना।
2-इस अवस्था में, किडनी में मूत्र का निर्माण तो होता है, मूत्राशय (ब्लेडर) में मूत्र रहता भी है और व्यक्ति को मूत्र त्याग करने की इच्छा भी होती है पर मूत्र मार्ग में कहीं रुकावट होने से कष्ट के साथ मूत्र विसर्जन होता है, खुल कर नहीं होता। बार बार थोड़ा थोड़ा मूत्र दर्द या जलन के साथ होता है।
3- मूत्र कृच्छ्र के प्रमुख लक्षणों में मूत्र गरम होना,
4-गहरा पीला या लाल रंग का होना,
5-मूत्र मार्ग में भारीपन,
6- इन्द्रिय पर सूजन,
7-कभी कभी मूत्र के साथ 1-2 बूंद खून आ जाए,
8-सारे शरीर में जलन,
9-दर्द व चक्कर की अनुभूति हो,
10-बूंद बूंद कर कष्ट के साथ मूत्र निकलना आदि लक्षण मूत्र कृच्छ्र होने पर प्रकट होते हैं।
पेशाब में दर्द व जलन (मूत्रकृच्छ/डिस्यूरिया) के कारण : peshab me dard aur jalan ke karan
Painful Urination (Dysuria) Causes in Hindi
✱मूत्रकृच्छ रोग अधिक ठण्ड लगने के कारण।
✱गोनोरिया, मूत्राशय की पथरी होने पर।
✱प्रोस्टेट की सूजन आदि के कारण होता है।
✱स्त्रियों में यह रोग गर्भाशय के अपने स्थान से हटने के कारण होता है।
पेशाब में दर्द और जलन का इलाज : peshab me dard aur jalan ka ilaj
Painful Urination (Dysuria) Home Remedies in Hindi
प्रथम रोगी की कोष्ठ- शुद्धि करानी चाहिये । उसके लिये एरण्ड तैल कैस्टर आइल) 4 चम्मच दूध में मिला कर लिया जाय । इससे मल का शोधन सरलता से होता है ।
✦ छोटी हरड़ में समान भाग सोंफ मिला कर 4-6 ग्राम की मात्रा में दूध के साथ फंकी लेनी चाहिये । यह प्रयोग रात्रि में शयन समय किया जाय तो अधिक सुविधाजनक रहेगा ।
✦ मुनक्का 10-15 नग दूध के साथ लेना भी हितकर रहता है। किन्तु इससे कठिन कोष्ठ वालों को लाभ नहीं हो पाता।
✦ मृदु कोष्ठ वालों को दूध के साथ 10-12 ग्राम गुलकन्द का सेवन भी इच्छित फल दिखाता है। किन्तु कठिन कोष्ठ वालों को यह गोली बहुत लाभदायक रहती है बड़ी हरड़ का वक्कल कूट- छान कर 20 ग्राम लें और उसमें 4 ग्राम शुद्ध जमालगोटा मिलावें । फिर थूहर के दूध में खरल करके चना प्रमाण गोलियाँ बना लें ।
मात्रा – रोगी के बलाबल और आवश्यकतानुसार 1 से 2 गोली तक सुखोष्ण जल अथवा ताजा जल के साथ देनी चाहिये । इसके सेवन से कब्ज मिट जाती है, आम नष्ट होता है, अफरा तथा उदरशूल शान्त हो जाता है। अर्श, भगंदर आदि में भी उपयोगी है। मलाशय की स्वच्छता के साथ- साथ मूत्राशय भी अनुकूल रूप से प्रभावित होने लगता है।
मूत्रावरोध रोग के अन्तर्गत लिखी औषधियाँ प्रयोग में लायें । मूत्राशय की सूजन आदि जो कारण हो, उसका इलाज करें।
1- काली मिर्च 6 से 7 नग का काढ़ा बनाकर प्रतिदिन पिलायें लाभ होगा।
2- गोक्षुरादि गुटिका या चन्द्रप्रभा वटी जैसी मूत्रल एवं स्निग्ध दवाएं दें। खुराक में दूध अधिक दे, ठन्डे पानी से रोगी को नहलायें।
3-सत्यानाशी की जड़ 20 ग्राम और काली मिर्च 11 नग लेकर दोनों ठन्डाई की भाँति घोटकर पिलायें।
4- जौ का पानी पिलायें।
5- यदि पैदाइशी मूत्रकृच्छता हो तो हरी दूब (घास) 10 ग्राम पानी में पीसकर एक सप्ताह तक पिलायें।
6- फिटकरी भुनी हुई और मिश्री दोनों 14-14 ग्राम लेकर बारीक पीसकर 14 पुड़िया बनायें। यह 1-1 पुड़िया प्रातः सायं मुँह में डालकर ऊपर से दूध की लस्सी पिलायें । सात दिन औषधि लेना पर्याप्त है।
7-शीतल चीनी 3 ग्राम, गोखरू4 ग्राम, अनार का छिलका 5 ग्राम, लाल चन्दन 1 ग्राम,चन्दन का तैल 1 चम्मच । सभी द्रव्य कूटे- छाने हुए हों, उन्हें चन्दन के तैल में मिला कर ठण्डे पानी के साथ सेवन करना चाहिये । यह एक मात्रा है, इसी प्रकार की अन्य मात्राएँ प्रयोग में लानी चाहिये । इस मात्रा को रोगी के बलाबल अनुसार न्यूनाधिक कर सकते हैं। इसके सेवन से मूत्र अधिक आता है, जिससे मूत्र नलिका बन्द हो तो खुल जाती है ।
8-गोघृत के साथ तला हुआ बबूल का गोंद और मोचरस 10-10 ग्राम, शिलाजीत शुद्ध और सतगिलोय 6-6 ग्राम, रूमी मस्तंगी, छोटी इलायची के दाने, वंश लोचन और वंग भस्म 3-3 ग्राम, इमली के चीये, बड़ा गोखरू और संगजहारत 20-20 ग्राम तथा शीतल चीनी 15 ग्राम लेकर सब द्रव्यों को कूट- छान लें ।
मात्रा -2-3 ग्राम यह चूर्ण दूध की लस्सी के साथ प्रातः- सायं सेवन करना चाहिये। यह मूत्रकृच्छता में हितकर है तथा पूयमेह में, मूत्र के साथ शुक्रस्राव, शुक्र तारल्य, शीघ्रक्षरण आदि में भी लाभकारी है ।
9- शीतलचीनी 24 ग्राम जौकुट करके आठ गुने जल के साथ क्वाथ करें और चौथाई शेष रहने पर अग्नि से उतार कर छान लें जब पानी ठण्डा हो जाय तब उसमें असली चन्दनतैल की 10 बूंद डालें और मिला कर पीयें । यह एक मात्रा है, इस प्रकार का प्रयोग दिन में तीन बार करें । निरन्तर 4-5 या कुछ अधिक दिन सेवन करने से मूत्रावरोध, जलन, घाव आदि दूर होकर, मूत्रकृच्छता से छुटकारा मिल जाता है।
10- ककड़ी के बीजों की गिरी और श्वेत कमल की पंखुड़ी 12-12 ग्राम, श्वेत जीरा 2 ग्राम और मिश्री 35 ग्राम । सबको सिल पर पानी के साथ ठण्डाई के समान घोट कर पीयें। 5-7 दिन के सेवन से सुजाक, पूयमेह या मूत्रकृच्छ में पर्याप्त लाभ होता है । यह योग पुरुषों के प्रमेह तथा स्त्रियों के प्रदर में भी हितकर है। मूत्र-संस्थान पर अनुकूल प्रभाव डालता है, जिससे शोधन और रोगोन्मूलन की क्रिया स्वतः चलती है।
11-सेमल की नई मूसली का स्वरस 4 चम्मच तथा मिश्री का चूर्ण आधा चम्मच मिला कर प्रातः- सायं नित्य सेवन करें । इसका भी अनुकूल प्रभाव पड़ता है। प्रमेह तथा उसके अन्यान्य उपसर्गों में भी लाभदायक है । मूत्र साफ लाने और जलन दूर करने का भी इसमें गुण है।
12- शीतलचीनी 40 ग्राम, सेलखड़ी 10 ग्राम, कलमी सोरा 6 ग्राम, फिटकरी और गेरू 2-2 ग्राम, भीमसेनी कर्पूर 500 मिलीग्राम लेकर सबको कूट- कपड़छन करें तथा कर्पूर को पृथक् खरल करके मिलावें ।
मात्रा – डेढ़- दो ग्राम तक, गाय के धारोष्ण अथवा ठण्डे दूध के साथ, दिन में 3-4 बार लेनी चाहिये । भोजन में चावल की खीर खाना अधिक उपयुक्त है। खीर के लिये चावल पुराने बढ़िया किस्म के बासमती लेने चाहिये । इससे मूत्र अधिक आकर, मूत्र – नलिका स्वच्छ हो जाती है। सामान्यतः एक सप्ताह में ही मूत्रकृच्छता दूर हो जाता है। आवश्यक होने पर कुछ अधिक दिन भी प्रयोग कर सकते हैं।
13-शीतल चीनी, यवक्षार, इन्द्रजौ, सत बिरोजा और कलमी शोरा 15-15 ग्राम लेकर सूक्ष्म चूर्ण बनावें और उसमें 25-30 मिली ग्राम चन्दन तैल डाल कर पर्याप्त खरल करके रखें।
मात्रा-1 से 2 ग्राम तक ठण्डे पानी के साथ सेवन करें। इससे सुजाक रोग शीघ्र नष्ट होता है।
14-देशी कर्पूर 20 ग्राम और रसकर्पूर 10 ग्राम लेकर दोनों को पृथक् पृथक् खरल करके दो प्यालों में रखें और बेरी की लकड़ी की अग्नि एक घंटाभर देकर डमरू यन्त्र द्वारा जौहर उड़ावें । यदि रसकर्पूर का जौहर न उड़े तो उसे पुनः कर्पूर के साथ मिलायें और उसी विधि से जौहर उड़ावें । इस बार जौहर उड़ने में बाधा उपस्थित नहीं होगी।
मात्रा – यह जौहर 2 से 4 चावल भर तक प्रातः- सायं दोनों बार मक्खन या मलाई के साथ सेवन करें। घृत- मक्खन का अधिक सेवन आवश्यक है। सुजाक में शीघ्र लाभकारी
पेशाब में दर्द और जलन की दवा : peshab me dard aur jalan ki dawa
Ayurvedic Medicines for Painful Urination in Hindi
अच्युताय हरिओम फार्मा द्वारा निर्मित पेशाब में दर्द और जलन में शीघ्र राहत देने वाली लाभदायक आयुर्वेदिक औषधियां |
1) पुनर्नवा अर्क(Achyutaya Hariom Punarnava Ark)
2) रसायन चूर्ण(Rasayan Churna)
3) गुलकंद(Achyutaya hariom Gulkand)
(दवा व नुस्खों को वैद्यकीय सलाहनुसार सेवन करें)