Last Updated on May 21, 2022 by admin
हमारे जीवन के लिये आहार की जितनी जरुरत है, उससे कहीं ज्यादा जरूरी है उसके ठीक प्रकार से पाचन की। इस लिए हमें उन सब कारणों से बचना चाहिये, जो आहार के पाचन में बाधा उत्पन्न करते हैं।
प्रकृति में एक निश्चित नियम के अनुसार दिन और रात्री होती हैं। इसके साथ ही व्यक्ति की दिनचर्या और रात्रिचर्या का भी शास्त्रों में भिन्न-भिन्न विधान किया गया है। हमारे शरीर के विभिन्न अंग और अवयव भी उसी के अनुसार कम और ज्यादा सक्रिय होते हैं। इसलिए भोजन कब किया जाए ? कैसे किया जाए ? कहां किया जाए ? इन तथ्यों की जानकारी भी जरुरी है ताकि जो आहार हम सेवन करते हैं, उसका ज्यादा से ज्यादा लाभ हमें मिल सके। इन नियमों की उपेक्षा करने पर अच्छे से अच्छा पौष्टिक आहार भी हमें लाभ पहुंचाने के स्थान पर रोग उत्पन्न करनेवाला व हानिकारक बन जाता है।
कब ग्रहण करें आहार ? :
जब हमें अच्छी भूख लगे, तब ही भोजन करना चाहिए। भूख का संबंध हमारी आदत पर निर्भर होता है। जैसी हम आदत डालते हैं, उस समय हमें भूख लगने लगती है। जब आमाशय-पैंक्रियाज अपेक्षाकृत अधिक सक्रिय हों तब हमें भूख लगती है और जब प्राण ऊर्जा का प्रकृति से प्रवाह उन अंगों में कम हो तो भूख नहीं लगती।
प्रातःकाल सूर्योदय के लगभग 1 घंटे पश्चात् से 2 घंटे तक आमाशय एवं उसके लगभग 2 घंटे पश्चात् आमाशय का सहयोगी पूरक अंग तिल्ली, पैंक्रियाज प्रकृति से प्राण ऊर्जा मिलने से अधिक सक्रिय होता है। मुख्य भोजन का सबसे श्रेष्ठ समय यही होना चाहिए।
इसी प्रकार सूर्यास्त के लगभग 2 घंटे पूर्व तक आमाशय और उसके 2 घंटे पश्चात् तिल्ली, पैंक्रियाज प्रकृति से निम्नतम प्राण ऊर्जा का प्रवाह होने से पूर्ण रूप से सक्रिय नहीं होती। उस समय किए गए भोजन का पाचन सरलता से नहीं होता। अतः उस समय भोजन नहीं करना चाहिए।
रात्रि में भोजन के दुष्प्रभावों को समझने के कारण आज अमेरिकी व्यक्ति रात्रि भोजन को पसंद नहीं करते। वे सूर्यास्त से पहले भोजन करने लगे हैं तो हमारे लिए ऐसा करना क्यों संभव नहीं है ?
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शरीर पर सूर्य प्रकाश का प्रभाव :
सूर्य की किरणों से हमारे शरीर में रोग-प्रतिकारक शक्ति का विकास होता है। इसी लिए अधिकांश रोगों का प्रकोप रात्रि में बढ़ने लगता है। प्रत्येक बीमारी भी दिन के अपेक्षा रात में ज्यादा कष्टदायक होती है। इसका मुख्य व प्रमुख कारण रात में सूर्य प्रकाश का अभाव होता है।
मच्छर रात्रि में ही क्यों अक्सर अधिक काटते हैं ? क्या कभी हमने चिंतन किया है कि सूर्यास्त होने के पश्चात् शरीर की प्रतिरोधक शक्ति क्यों कम हो जाती है?
हमारे शरीर में सारे ऊर्जा चक्र, जिन्हें कमल की उपमा दी गई है, सूर्योदय के साथ सक्रिय होते हैं और सूर्यास्त के पश्चात् निष्क्रिय होने लगते हैं। अतः रात्रि में भोजन का पाचन कठिनाई से होता है। आयुर्वेद में स्पष्ट कहा गया है कि पहला मुख्य भोजन सूर्योदय से एक प्रहर (तीन घंटे) बाद ही किया जाना चाहिए और दूसरा भोजन यदि आवश्यक हो तो सूर्यास्त के कम से कम 1 घंटा पूर्व करें। उनका निष्कर्ष है कि दिन के क्षय के अनुपात में वायु और पित्त बढ़ जाते हैं। चरक संहिता के अनुसार रात्रि भोजन दूषित, तामसिक और अम्लीभूत होकर शरीर को भारी क्षति पहुंचाता है।
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कीटाणुओं का प्रकोप :
सूर्यास्त के बाद वातावरण में सूक्ष्म जीवों का प्रभाव बड जाता हैं। सूर्य की किरणें इन कीटाणुओं को उत्पन्न होने से रोकती है। सूर्य किरणों के प्रभाव से अनेक विषैले कीटाणु निष्क्रिय व बलहीन हो जाते हैं, जो सूर्यास्त के बाद फिर से सक्रिय होने लगते हैं।
प्रायः हम अनुभव करते हैं कि दिन में एक हजार वाट के बल्ब के पास भी सूक्ष्म जीव नहीं आते है, जबकि रात्री में कम रौशनी के बल्ब के आसपास मच्छर व छोटे जिव मंडराने लगते हैं। ये जीव भोजन की गंध के कारण आहार योग्य पदार्थों की तरफ आकर्षित होते हैं। साथ ही अन्न में भी अनेक सूक्ष्म बैक्टीरिया उत्पन्न हो जाते हैं।
इन सूक्ष्मजीवों का रंग भोजन के रंग जैसा होने के कारण कृत्रिम रौशनी में हम इन्हें प्रायः नहीं देख पाते हैं। कृत्रिम रौशनी में प्रकाश तो होता है, किंतु वह सूर्य की रोशनी की बराबरी नहीं कर सकता।
पूर्ण शाकाहारियों के लिए रात्रि का भोजन निश्चित रूप से त्याज्य होता है। रात्रि में तमस (अंधेरे) के कारण वैसे भी भोजन तामसिक बन जाता है। रात्रि भोजन से जहाँ यादशक्ति कमजोर होने लगती है वहीं व्यक्ति अपनी क्षमताओं को पूर्ण रूप से विकसित नहीं कर पाता है।
रात्रि में कृतिम प्रकाश से अंधेरे के कीटाणु तो हमारे आहार के नजदीक आते ही हैं, साथ नए उत्पन्न कीटाणु भी भोजन में सम्मिलित हो जाते हैं। यह स्वास्थ्य बिगाड़ने में सहायक होते हैं।
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स्वयं को प्रकृति के अनुरूप ढालें :
कहने का आशय बस इतना है कि प्रकृति के नियम व्यक्तिगत अनुकूलताओं के आधार पर नहीं बदलते है। हमारी जीवन पद्धति के अनुरूप सूर्योदय और सूर्यास्त का समय निश्चित नहीं होता। विवेकवान वही है, जो प्रकृति के अनुरूप अपने आपको ढाल लेता है।
परंतु आज हमारे दिल और दिमाग में यह बातें नहीं बैठ पा रही हैं। हमारे “लंच” और “डिनर” रोगों के मंच बनते जा रहे हैं। स्वास्थ्य मंत्रालय को पूर्वाग्रह छोड़ इस सत्य को स्वीकार करना चाहिए तथा भोजन के उपयुक्त सर्वोत्तम समय की जानकारी जनसाधारण तक पहुंचानी चाहिए। सारी सामाजिक एवं सरकारी व्यवस्थाओं को उसके अनुरूप बदलने की पहल करनी चाहिए।
यदि उचित समय पर भोजन न किया जाए, तो हमें अपनी पाचन क्रिया को अच्छा रखने के लिए बाह्य साधनों का उपयोग करना पड़ेगा। तात्पर्य यह है कि रात्रि भोजन आरोग्य के साथ वैज्ञानिक, आध्यात्मिक, सामाजिक एवं पारिवारिक दृष्टिकोण से अनुपयोगी, हानिकारक और प्रकृति के विरुद्ध है, अतः स्वास्थ्य प्रेमियों के लिए त्याज्य है। उन्हें यथासंभव दिन में सूर्यास्त के पूर्व ही भोजन करने का प्रयास करना चाहिए।
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