Last Updated on January 11, 2025 by admin
मैं अब आपको भक्त अमल का चरित्र सुनाने जा रहा हूँ। यह घटना द्वापर युग या प्राचीन समय की नहीं है, बल्कि हाल ही की बात है। इसे घटित हुए अभी सौ वर्ष भी पूरे नहीं हुए हैं।
लेकिन भक्त अमल के चरित्र को पूरी तरह से समझने के लिए, हमें पहले उस व्यक्ति की बात को समझना होगा, जिसके बारे में मैं बताने जा रहा हूँ। यह व्यक्ति सूरत का रहने वाला भोला भाई पारेख है।
सेठ जी, जिनका नाम भूला भाई पारेख था, रोज सुबह और शाम श्रीकृष्ण की पूजा करते थे। लेकिन उनकी प्रार्थना भक्ति से प्रेरित नहीं थी। वे भगवान से अपने व्यापार में वृद्धि और परिवार की सुख-समृद्धि की प्रार्थना करते थे। उनका भक्ति भाव केवल अपनी इच्छाओं की पूर्ति तक सीमित था।
ऐसी प्रार्थनाएँ केवल स्वार्थपरक होती हैं। भगवान से प्रेम करने के बजाय, लोग भगवान को केवल एक माध्यम मानते हैं, जिससे वे अपनी इच्छाओं को पूरा कर सकें। “यदि हमारी इच्छा पूरी होती है, तो भगवान भगवान हैं, और यदि नहीं होती, तो हम उन्हें मानने से इनकार कर देते हैं।” यह भाव भक्ति के खोखलेपन को दर्शाता है।
सेठ जी का यही स्वार्थपूर्ण दृष्टिकोण था। जब उनकी पत्नी गंभीर रूप से बीमार पड़ीं, तो डॉक्टरों ने कहा कि उनकी स्थिति बहुत चिंताजनक है और उनके बचने की आशा नहीं है। सेठ जी ने डॉक्टर की बात को नकारते हुए कहा, ” डॉक्टर चिंता की कोई बात नहीं, वह अवश्य ठीक हो जाएगी। मैं प्रार्थना में विश्वास करता हूँ, रोज़ सुबह शाम ठाकुर जी से प्रार्थना करता हूँ और ठाकुर क्या मेरी सुनेंगे नहीं?।”
उनकी पत्नी की हालत और बिगड़ने लगी। एक दिन डॉक्टर ने स्पष्ट रूप से कह दिया कि उनकी पत्नी के बचने की कोई संभावना नहीं है।
अब इस कथा में अमल का आगमन होता है। अमल, जो नवद्वीप का रहने वाला था, सेठ जी के आठ वर्षीय बेटे को पढ़ाने के लिए शिक्षक के रूप में रखा गया था। अमल का जन्म चैतन्य महाप्रभु की भूमि में हुआ था। वह एमए पास, ईमानदार, और सत्यनिष्ठ युवक था, जो अपनी विधवा माँ की देखभाल के लिए नौकरी की तलाश में सूरत आया था।
अमल का व्यक्तित्व उसके नाम को चरितार्थ करता था। उसका हृदय सरल, निष्कपट, और मलिनता से रहित था। वह अपने जीवन की सफलता को सदाचार और परोपकार में मानता था। लेकिन वह भगवान के अस्तित्व में विश्वास नहीं करता था। अमल का मानना था कि जीवन की सच्चाई मानवता की सेवा में है, और वह अपने कर्तव्यों का पालन बिना किसी धार्मिक आस्था के करता था।
सेठ जी की पत्नी की हालत बिगड़ने लगी। डॉक्टरों ने जब कहा कि अब उनके बचने की कोई उम्मीद नहीं है।
सेठ जी ने फिर कहा नहीं डॉक्टर ऐसा नहीं हो सकता। मेरी इतने दिन की सेवा, पूजा और प्रार्थना निष्फल नहीं हो सकती हैं।
सेठ जी को विश्वास था की उनके सेवित गोपाल जी उनकी जरूर सुनेंगे। पर वे अपनी स्त्री में इतने आशक्त थे कि उसके जीवन को केवल अपने विश्वास की डोर से बांध रखने का खतरा नहीं लेना चाहते थे। उन्होंने सोचा कि कभी ऐसा हो कि गोपाल उनकी न सुनें तो शुद्ध सरल हृदय अमल की तो सुनेंगे ही। उनको ऐसा लगा की अमल जो हमारे बच्चे को पढ़ाता है, ये बहुत सरल स्वभाव का है, शुद्ध हृदय का है ये प्रार्थना करेगा तो मेरी पत्नी नहीं मरेगी, बच जाएगी।
सेठ जी ने अपने बेटे के शिक्षक अमल से कहा, “तुम भी ठाकुर जी से प्रार्थना करो कि मेरी पत्नी स्वस्थ हो जाए।”
अमल ने उत्तर दिया, “मेरा तो अभी तक यह संदेह भी दूर नहीं हुआ है कि भगवान हैं भी या नहीं। मैं प्रार्थना किससे और कैसे करूँ?”
अमल ने भगवान में विश्वास न होने के कारण प्रार्थना करने से इंकार कर दिया।
सेठ जी ने रातभर ठाकुर जी से प्रार्थना की, लेकिन अगले दिन उनकी पत्नी का देहांत हो गया। इस घटना ने उनके विश्वास को पूरी तरह से समाप्त कर दिया। क्रोध और निराशा में उन्होंने गोपाल की मूर्ति को उठाकर घर से बाहर कूड़ेदान में फेंक दिया।
उन्होंने अमल को भी नौकरी से निकाल दिया। उनका मानना था कि अगर अमल ने प्रार्थना की होती, तो शायद उनकी पत्नी बच जाती।
जब अमल घर से बाहर निकला, तो उसने गोपाल की मूर्ति को सड़क किनारे कूड़ेदान में पड़ा देखा। उसका हृदय कांप उठा। वह सोचने लगा, “चाहे भगवान हों या न हों, लेकिन यह मूर्ति इतनी सुंदर है कि इसे इस तरह कूड़े में पड़ा नहीं रहने दिया जा सकता।” उसने मूर्ति को उठाया और अपने छोटे से कमरे में ले गया।
अमल ने मूर्ति को साबुन से धोया और साफ किया। अमल जब मूर्ति को साफ कर रहा था, उसी समय उसका एक मित्र आसित, जो एक प्रसिद्ध साहित्यकार और संगीतज्ञ था, अमल से मिलने आया। जब उसने अमल को मूर्ति को बड़े प्रेम से साबुन से धोते देखा, तो वह चकित रह गया। उसने अमल से पूछा, “तुम्हें कब से भगवान में विश्वास होने लगा?”
अमल ने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया, आसित ये तो सेठ जी के श्री विग्रह हैं, सेठ जी ने अब मेरी और इनकी दोनों की छुट्टी कर दी है। फिर अमल ने आसित को घटित घटना का सारा वृत्तांत कह सुनाया।
उसने कहा, “मैं यह मूर्ति इसलिए नहीं लाया कि मैं भगवान को मानता हूँ। मुझे यह मूर्ति सुंदर लगी और इसे कूड़े में छोड़ने का विचार भी असहनीय था। अगर भगवान सचमुच होते है, तो कूड़े में पड़े रहने से उन्हें दुःख होता होगा। यही सोचकर मैंने इन्हें उठा लिया।”
आसित ने अमल से कहा, “तुम्हारे जैसे सरल और पवित्र हृदय वाले व्यक्ति पर भगवान की कृपा अवश्य होगी। मुझे विश्वास है कि तुम्हारा संदेह शीघ्र ही समाप्त हो जाएगा।”
आसित ने महसूस किया कि अमल के भीतर भगवान के प्रति प्रेम का अंकुर है, जिसे वह खुद भी नहीं पहचान पा रहा है।
आसित ने पूछा, “तुम अब इस मूर्ति का क्या करोगे? इन्हें कहाँ ले जाओगे?”
अमल ने जवाब दिया, “मैं सोच रहा हूँ कि इन्हें लेकर नवद्वीप चला जाऊँ। वहाँ माँ के साथ रह सकूँगा। लेकिन मुझे चिंता है कि नवद्वीप में मैं अपना और माँ का पेट कैसे पालूँगा? मेरे पास कोई नौकरी नहीं है और न ही कोई आमदनी का साधन।”
आसित ने अमल को धैर्य बंधाते हुए कहा, “सुनो, मैं अभी पटना जा रहा हूँ। मेरे एक मित्र हैं जो बहुत प्रभावशाली व्यक्ति हैं। मेरे साथ चलो। मुझे पूरा विश्वास है कि वह तुम्हें एक नौकरी दिला देंगे। तुम इतने पढ़े-लिखे और सज्जन हो, तुम्हारे लिए पटना में नौकरी मिलना मुश्किल नहीं है।”
आसित के कहने पर अमल उसके साथ पटना चला गया। वहाँ आसित के मित्र ने अमल को एक स्कूल में शिक्षक की नौकरी दिलवा दी। उस समय की यह नौकरी 150 रुपये महीने की थी, जो उस जमाने में बहुत अच्छी तनखा मानी जाती थी।
पटना में अमल का जीवन स्थिर हो गया। वह बच्चों को पढ़ाने लगा और धीरे-धीरे समय बीतने लगा। एक दिन उसने अपने मित्र आसित से कहा, “दादा, मैं रोज ठाकुर जी को देखता हूँ। न जाने क्यों, उन्हें देखकर मेरा मन भर आता है।”
आसित ने मुस्कुराते हुए पूछा, “तो क्या तुम्हें अब भगवान पर विश्वास होने लगा है?”
अमल ने हँसते हुए उत्तर दिया, “भूल जाओ। भूला भाई के विश्वास की दुर्गति देखकर विश्वास कैसे हो सकता है?” अमल का संकेत सेठ जी की ओर था, जिन्होंने वर्षों तक गोपाल जी की पूजा की, लेकिन उनकी प्रार्थना अस्वीकार होने पर मूर्ति को डस्टबिन में फेंक दिया।
आसित ने गंभीरता से कहा, “भूला भाई का विश्वास कोई सच्चा विश्वास नहीं था। वे भगवान को व्यापार की तरह मानते थे। जब तक भगवान उनकी इच्छाएँ पूरी करते रहे, तब तक उनका विश्वास था। लेकिन जैसे ही उनकी प्रार्थना पूरी नहीं हुई, उनका विश्वास समाप्त हो गया। यह विश्वास नहीं, बल्कि व्यापार है। सच्चा विश्वास तो निस्वार्थ होता है।”
अमल ने सिर झुकाते हुए कहा, “तुम सही कहते हो। लेकिन मैं क्या करूँ? मुझे विश्वास नहीं होता। मैं यह जानता हूँ कि सच्चा विश्वास क्या होता है, लेकिन मेरे भीतर वह विश्वास नहीं जागता।”
आसित ने उसे सांत्वना देते हुए कहा, “अमल, सच्चा विश्वास समय और अनुभव से जागता है। तुम्हारे जैसे सरल और सच्चे हृदय वाले व्यक्ति पर भगवान की कृपा अवश्य होगी।”
अमल के भीतर बहुत कुछ चल रहा था। उसने अपने मित्र आसित से कहा, “मैंने बचपन से भगवान के बारे में बहुत कुछ सुना है। जब से मैं छोटा था, तब से ही सुन रहा हूँ, लेकिन यह सब सुनकर भी मेरा मन कभी उनकी ओर पूरी तरह झुक नहीं पाया।” फिर थोड़ी झिझक के बाद उसने कहा, “जाने दो, यह सब मेरी पागलपन की बातें हैं।”
आसित ने तुरंत कहा, “नहीं, तुम जो भी कहना चाहते हो, खुलकर कहो। कोई बात है तो मुझे बताओ।”
अमल ने थोड़ी देर रुककर कहा, “ठीक है, लेकिन एक शर्त पर। पहली बात, तुम यह बात किसी से कहोगे नहीं। दूसरी बात, अगर तुम्हें मेरी बात सुनकर लगे कि मेरा मस्तिष्क सही नहीं है या मेरे विचारों में कोई विकृति है, तो बिना झिझक मुझे बता देना।”
आसित ने उसकी बात सुनकर गंभीरता से कहा, “मुझे तुम्हारी दोनों शर्तें मंजूर हैं। अब कहो, जो भी तुम्हारे मन में है।”
थोड़ी देर चुप रहने के बाद अमल ने कहा, “दादा, मैं आजकल न जाने क्यों बार-बार ठाकुर की ओर देखता हूँ। उन्हें देखकर ऐसा लगता है जैसे वे प्रसन्न हैं और मुस्कुरा रहे हैं। लेकिन कल कुछ ऐसा हुआ जिसने मेरे दिल को गहरा आघात पहुँचाया।”
अमल ने बताया, “नवद्वीप से एक चिट्ठी आई। उसमें लिखा था कि मेरी माँ, जो हमेशा दूसरों की भलाई में लगी रहती थीं, एक अनाथ बच्चे को सड़क से उठाकर लाई थीं। वह बच्चा कालरा से पीड़ित था। माँ ने उसकी सेवा की और उसे ठीक कर दिया। लेकिन इसी सेवा के दौरान माँ को कालरा हो गया और वह चल बसीं।”
यह कहते हुए अमल की आँखें भर आईं। उसने कहा, “तुम जानते हो, दादा, मेरा पूरा संसार माँ के इर्द-गिर्द था। मैं सूरत से हर महीने 50 रुपय भेजता था ताकि माँ को किसी चीज की कमी न हो। लेकिन माँ की सबसे बड़ी इच्छा थी कि एक बार वृंदावन जाकर कन्हैया की नगरी के दर्शन कर सकें। वे मुझे हमेशा लिखती थीं कि ‘बेटा, मुझे एक बार वृंदावन ले चलो। वहाँ की मिट्टी को प्रणाम कर लूँ, वहाँ के मंदिरों का दर्शन कर लूँ।’ मैं सोच रहा था कि पटना आकर कुछ प्राइवेट ट्यूशन करूँगा, पैसे जमा करूँगा और माँ को जल्द ही वृंदावन लेकर जाऊँगा। लेकिन इसके पहले ही माँ चल बसीं।
अमल ने भारी मन से आगे कहा, “जब मैंने चिट्ठी पढ़ी, तो मेरा दिल टूट गया। मैं रात भर रोया। मैं माँ को वृंदावन ले जाने की सोच रहा था, और माँ दूसरों के बच्चे की सेवा करते-करते स्वर्ग सिधार गईं। उनके जाने के बाद मेरा मन इतना खराब हो गया कि मैं किसी को बता नहीं सकता।”
आसित ध्यान से उसकी बातें सुन रहा था। अमल ने गहरी साँस लेते हुए फिर कहा, “दादा, जब लोग दुखी होते हैं, तो वे भगवान को याद करते हैं। लेकिन मैंने एक बार भी उन्हें नहीं पुकारा। उल्टा मैंने सोचा, अगर भगवान होते, तो क्या मेरी माँ, जो इतनी पुण्यवती थीं, उन्हें ऐसे मरना पड़ता? क्या उन्हें दूसरों के बच्चे को बचाने के लिए अपनी जान देनी पड़ती?”
अमल ने कहना जारी रखा “मैं अपनी माँ की मृत्यु के बाद गहरे शोक में डूबा हुआ था। रातभर रोते हुए, मैं खुद को संभालने की कोशिश कर रहा था। अचानक, रोते-रोते मुझे एक अजीब-सी अनुभूति हुई। बेहोशी और शोक के उस क्षण में मैंने सुना, गोपाल की ओर से बांसुरी की मधुर ध्वनि आ रही है। पहले तो मुझे लगा कि यह मेरा भ्रम है, लेकिन ध्वनि इतनी स्पष्ट थी कि मै चौंक गया।
मैंने मुड़कर गोपाल की ओर देखा। वही गोपाल, जिसे मैं कूड़े के ढेर से उठाकर लाया था। उसे देखकर ऐसा प्रतीत हुआ जैसे गोपाल मुस्कुरा रहे हैं। पहले मुझे लगा कि यह केवल मेरी आँखों का भ्रम है, लेकिन अब बांसुरी की ध्वनि ने मुझे और चौंका दिया। “शायद यह मेरे कान का भ्रम है,” मैंने सोचा। लेकिन यह अनुभव ऐसा था जिसने मेरे दिल को गहराई तक छू लिया।
“चाहे यह भ्रम हो, लेकिन इस बांसुरी की ध्वनि ने मेरे मन में एक अजीब-सी शांति स्थापित कर दी। मातृशोक, जो अब तक मेरे दिल को जकड़े हुए था, वह अचानक समाप्त हो गया।”
जब अमल ने यह अनुभव अपने मित्र आसित को बताया, तो आसित अवाक रह गया। उसने कहा, “अमल, तुम भाग्यशाली हो। तुम्हारे जैसे सरल और पवित्र हृदय वाले व्यक्ति पर ही भगवान की कृपा होती है। तुम जिसे भ्रम समझ रहे हो, वह भ्रम नहीं है। तुम्हारे जैसा पागलपन उन्हीं को होता है जिन पर भगवान की विशेष कृपा होती है।
आसित ने फिर कहा, “मैं कल कलकत्ता जा रहा हूँ, लेकिन मैं चाहता हूँ कि तुम अपने अनुभवों को मुझसे पत्र के माध्यम से साझा करते रहो।”
आसित के जाने के बाद, अमल खुद को संभालने की कोशिश करता रहा। लेकिन उसके अनुभव और भावनाएँ लगातार गहरी होती जा रही थीं। कभी-कभी उसे बांसुरी की धुन सुनाई देती, तो कभी नूपुरों की झंकार। वह सोचता, “यह क्या हो रहा है? क्या मेरे मस्तिष्क में कोई समस्या है? या फिर यह सचमुच भगवान की कोई लीला है?”
अमल ने अपनी आँखों और कानों की सुनी बातों को भ्रम मानने की कोशिश की। लेकिन उसके हृदय में जो आनंद और शांति का साम्राज्य स्थापित हो चुका था, उसे वह नकार नहीं सका। धीरे-धीरे उसका अविश्वास कम होने लगा।
अमल ने एक दिन स्वप्न में देखा कि एक दिव्य संत उसके पास आए और उसे एक मंत्र प्रदान किया। उस मंत्र को जपते समय अमल को लगा कि उसका पूरा शरीर मंत्र जप कर रहा है। उसके रोंगटे खड़े हो गए और वह भावा-वेश में डूब गया। इसी अवस्था में उसकी नींद टूट गई। जागते ही उसने गोपाल की ओर देखा। उसे लगा कि वहाँ कोई मूर्ति नहीं, बल्कि स्वयं गोपाल खड़े हुए हैं। गोपाल मुस्कुराते हुए बोले, “अब भी विश्वास नहीं करोगे?” यह कहते ही गोपाल अंतर्धान हो गए।
अमल के लिए यह अनुभव अविश्वसनीय था। उसके नेत्रों से आँसू बहने लगे और वह पूरी तरह से रोमांचित हो गया। उसका शरीर पसीने से भीग गया और उसका हृदय अद्भुत आनंद से भर गया। अमल अब पूरी तरह बदल चुका था। अविश्वास का अंधकार समाप्त हो गया और उसके अंतःकरण में भक्ति और श्रद्धा का उज्ज्वल प्रकाश फैल गया।
अब गोपाल की मूर्ति अमल के लिए केवल एक मूर्ति नहीं रह गई थी। गोपाल अब उसे सजीव प्रतीत होते थे। वे न केवल मुस्कुराते, बल्कि अमल के द्वारा अर्पित मोहन भोग को भी प्रेम से ग्रहण करते। अमल अब ज्यादातर समय घर पर ही बिताता और गोपाल की सेवा में लगा रहता। उसे बाहर जाना बिल्कुल अच्छा नहीं लगता।
अमल, जो पहले भगवान के अस्तित्व में विश्वास नहीं करता था, अब धीरे-धीरे अद्भुत आध्यात्मिक अनुभवों से गुजर रहा था।
अमल अब अपना पूरा समय गोपाल की सेवा में लगा रहा था। हालांकि उसे स्कूल जाना पड़ता था क्योंकि नौकरी उसकी जीविका का एकमात्र साधन थी। लेकिन स्कूल में पढ़ाते समय भी उसका मन गोपाल के पास ही रहता था। वह खोया-खोया सा रहता, जिसे देख कर अन्य शिक्षक उसे पागल समझने लगे। उन्हें लगता कि अमल अब सामान्य नहीं है। दूसरी ओर, अमल को लगता था कि बाकी सभी लोग ही पागल हैं क्योंकि वे उस आनंद, शांति और रस को नहीं अनुभव कर पाए थे, जो वह गोपाल की भक्ति में अनुभव कर रहा था।
अमल को अब घर से बाहर निकलना अच्छा नहीं लगता था। वह गोपाल के सम्मुख रहकर उनकी सेवा में समय बिताना चाहता था। पटना में जहाँ वह नौकरी कर रहा था, वहाँ कोई भी ऐसा नहीं था जिससे वह अपने हृदय की बात साझा कर सके। कुछ समय बाद उसके मित्र आसित, जो कलकत्ता में रहते थे, पटना आए। साहित्य और संगीत सम्मेलनों के उद्देश्य से यात्रा करने वाले आसित का पटना आने का अब एक और उद्देश्य था—अमल से मिलना। जब वह पटना पहुँचे और अमल से मिले, तो अमल के आँसू छलक पड़े। उसने अपने मित्र को गोपाल के साथ बिताए गए सभी अद्भुत अनुभवों को विस्तार से बताया।
आसित, जो स्वयं एक साहित्यकार थे, अमल की बातें सुनकर गदगद हो गए। अमल ने गोपाल की लीला, उनके दर्शन और उनके द्वारा किए गए संवाद की घटनाओं को साझा किया। आसित ने यह सब सुनकर कहा, “तुम धन्य हो, अमल। मैंने आज तक सिर्फ सुना था कि भगवान भक्तों को दर्शन देते हैं और उनसे बात करते हैं, लेकिन आज पहली बार मैं तुम्हारे माध्यम से इसे प्रत्यक्ष घटित होते हुए देख रहा हूँ।”
एक दिन, पूर्णिमा की रात, गंगा तट पर बैठकर दोनों गोपाल की चर्चा कर रहे थे। चंद्रमा की किरणें गंगा के जल पर झिलमिला रही थीं, मानो गंगा भी गोपाल की बातों को सुनकर प्रसन्न हो रही थी। अचानक, चीख-पुकार सुनाई दी। मुड़कर देखा तो एक झोपड़ी में आग लगी हुई थी। लोग आग बुझाने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन तेज हवा के कारण आग और भड़क रही थी।
अमल ने बिना समय गवाए तीर की तरह दौड़ लगाई। आग बुझाने में मदद करने के लिए उसने पेड़ पर चढ़कर छप्पर पर छलांग लगा दी। नीचे से लोग उसे पानी की बाल्टियाँ दे रहे थे, और अमल ऊपर से पानी डाल रहा था। तभी हवा के झोंके से आग और भड़क उठी। आसित और अन्य लोग चिल्ला रहे थे कि अमल नीचे कूद जाए, लेकिन धुएँ और लपटों के बीच अमल को कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था किधर जाना है। उसने दोनों हाथ से आंख बंद कर ली और वह गिर गया । अचानक, उसका एक पैर छप्पर से बाहर निकल गया, जिसे पकड़कर आसित ने उसे खींच लिया।
अमल का चेहरा बुरी तरह झुलस गया था और वह बेहोश हो चुका था। आसित ने तुरंत टैक्सी बुलवाई और उसे अस्पताल ले गया। डॉक्टर ने कहा कि चिंता की कोई बात नहीं है, अमल ठीक हो जाएगा। लेकिन उनका चेहरा सफेद दागों और झुर्रियों से विकृत हो जाएगा। अमल का चेहरा इतना बदल गया कि उसे पहचान पाना मुश्किल हो गया।
हालांकि अमल का शरीर ठीक हो गया, लेकिन उसका चेहरा अब पूरी तरह से बदल चुका था। अमल के चेहरे की स्थिति ऐसी हो गई थी कि स्कूल के विद्यार्थी, जो उसे पहले बहुत प्यार करते थे, अब उसे देखकर मुँह फेरने लगे। कुछ अपनी आँखें बंद कर लेते, कुछ चीख उठते, और कुछ तो भयभीत होकर भाग जाते। स्कूल के मैनेजर ने स्थिति देखकर अमल को स्कूल से निकाल दिया। उसकी नौकरी खत्म हो गई। यह देखकर आसित का दिल टूट गया। उसने व्यथित होकर पूछा, “गोपाल की यह कैसी लीला है? जो गोपाल इतने प्रेम और आनंद से खेलते थे, वह इतने कठोर कैसे हो सकते हैं?”
लेकिन अमल ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया, “गोपाल का इसमें कोई दोष नहीं है। तुम इसे समझ नहीं सकते। उन्होंने मेरे ऊपर जो कृपा की है, वह इससे कहीं अधिक मूल्यवान है। उन्होंने मेरे चेहरे की सुंदरता तो छीनी, लेकिन मुझे सुंदरता के अहंकार से मुक्त कर दिया। मुझे मेरी सुंदरता पर बड़ा अभिमान था।”
आसित ने फिर से पूछा, “लेकिन उन्होंने तुम्हारी नौकरी भी छीन ली। अब तुम जीवन निर्वाह कैसे करोगे?” इस पर अमल ने हंसते हुए कहा, “यह तो गोपाल की और बड़ी कृपा है। नौकरी मेरे और गोपाल के बीच एक व्यवधान बन गई थी। अब मैं पूरी तरह से गोपाल के साथ रह सकता हूँ। मुझे उनकी सेवा के लिए अधिक समय मिल गया है।”
अमल ने आगे कहा, “जीवन निर्वाह की चिंता मुझे नहीं है। गोपाल ने अब तक मुझे सब कुछ दिया है, और आगे भी देंगे। मेरा सारा जीवन अब उनकी कृपा पर निर्भर है। मैं इस बात को लेकर निश्चिंत हूँ कि गोपाल कभी भी मुझे अकेला नहीं छोड़ेंगे।”
यह सुनकर आसित गहरे विचार में पड़ गया। उसने महसूस किया कि अमल का समर्पण और विश्वास कितना गहरा है। जो यह मानता है की, हर घटना, चाहे वह सुखद हो या दुखद, गोपाल की इच्छा से ही होती है और उसी में हमारा मंगल है।
अमल का जीवन अब पूरी तरह से बदल चुका था। जहाँ पहले वह साधारण व्यक्ति था, अब वह पूरी तरह से भगवान के प्रति समर्पित हो चुका था।
असित ने एक दिन अमल से कहा, “जब गोपाल तुम्हारे ऊपर इतनी कृपा कर रहे हैं, तो उनसे कोई वर मांग लो न।” इस पर अमल ने मुस्कुराते हुए कहा, “आसित, गोपाल जी ने स्वयं मुझसे कहा था कि मैं उनसे कोई वर मांग लूँ। उन्होंने कहा, ‘जो भी तू माँगेगा, मैं तुझे दूँगा। बता, तू क्या चाहता है?’
प्रभु बोले “अरे देख मेरे नाम पर कलंक लगता है। लोग कहते हैं मैं केवल भक्तों का भोग खाता हूँ, और उनसे उनका प्रारब्ध भुगवाता हूँ। उनके अच्छे- अच्छे पदार्थ खाता रहता हूँ, और उनको कुछ देता नहीं हूँ। उन्हें उनके प्रारब्ध पर छोड़ देता हूँ। लेकिन मैं तुझे कुछ दे करके प्रमाणित करना चाहता हूँ, कि मैं केवल लेने में ही उस्ताद नहीं हूँ देना भी जानता हूँ। तू कुछ मांग करके मेरा कलंक मिटा दे कि मैं कुछ देता नहीं हूँ, केवल लेता खाता रहता हूँ।”
आशित ने पूछा तो तुमने मांगा नहीं? अमल ने कहा मुझे कुछ नहीं सूझा। मैं उनसे क्या माँगता?
आसित ने अमल से कहा, “यदि अपने लिए नहीं, तो कम से कम गोपाल के लिए ही एक वर मांग लो। इससे उनके नाम और सम्मान की भी रक्षा होगी। देखो, लोग यह कह रहे हैं कि गोपाल अपने भक्तों की सहायता नहीं करते। तुम्हारा चेहरा जो इतना विकृत हो गया है और अब तक ठीक नहीं हुआ, यह उनके लिए एक कलंक बन गया है। लोग यह कहने लगे हैं कि गोपाल अपने भक्तों का ख्याल नहीं रखते। क्या यह सही होगा कि यह कलंक उन पर बना रहे?”
आसित ने समझाया, “तुम्हें यह वरदान मांगना चाहिए ताकि गोपाल का यह कलंक मिट सके। लोग यह न कहें कि गोपाल ने अपने भक्त की पीड़ा की अनदेखी की। यह वरदान केवल तुम्हारे लिए नहीं, बल्कि गोपाल के सम्मान के लिए होगा।”
अमल ने कहा “ठीक कहते हो। गोपाल के लिए, और उन लोगों के लिए, जो मेरा चेहरा देखकर विचलित हो जाते हैं, मैं यह वर जरूर मांगूँगा।”
बस उसी समय अमल को गोपाल का दर्शन हो गया और उसने कहा अरे-अरे देखो आसित ये तो रहे गोपाल जी।
अमल अब गोपाल की ओर देख कर बोले, इस बार तुमसे मैं वर मांगूंगा। पर क्या तुम मेरा जला मुख ठीक कर सकोगे?
गोपाल मुस्कुराए और बोले, “इसमें मेरे लिए कौन सी कठिनाई है। जन्माष्टमी के दिन गंगा स्नान करने के बाद तुम्हारा चेहरा पहले जैसा हो जाएगा। यह मेरा वचन है।” अमल इस वचन को सुनकर भावविभोर हो गया। उसकी आँखों से आँसू बहने लगे। उसने अपने दोनों हाथों से मुँह ढक लिया और गोपाल को धन्यवाद देने लगा।
हालांकि अमल ने गोपाल की बात पर विश्वास कर लिया था, लेकिन उसके मित्र आसित के मन में अभी भी शंका बनी हुई थी। उसे यह सब अमल की कल्पना लग रही थी। उसने सोचा, “क्या वाकई भगवान ने ऐसा कहा होगा? क्या यह संभव है कि जन्माष्टमी के दिन गंगा स्नान से अमल का चेहरा ठीक हो जाए?” लेकिन उसने ठान लिया कि वह इस दिन अमल के साथ जाएगा और इस घटना का साक्षी बनेगा।
जन्माष्टमी का दिन आ पहुँचा। अमल और आसित गंगा घाट पहुँचे। अमल, जो गोपाल की लीला में इतना खो गया था, वरदान की बात लगभग भूल चुका था। लेकिन आसित हर दिन सिर्फ इस पल का बेसब्री से इंतजार कर रहा था। गंगा में डुबकी लगाने के बाद जो हुआ, उसने सबको चकित कर दिया।
ज्यों ही अमल ने गंगा में डुबकी लगाई और बाहर आया, आसित चिल्ला उठा, “अमल! तुम्हारा चेहरा !” अमल, जो पूरी तरह गोपाल के ध्यान में मग्न था, कुछ समझ नहीं पाया। आसित ने उसके चेहरे की ओर इशारा किया। अमल ने पास ही एक शीशा उठाकर देखा और खुद को पहचान नहीं पाया। उसका चेहरा पूरी तरह पहले जैसा सुंदर और चमकदार हो गया था। जलने का एक भी निशान नहीं बचा था।
अमल खुशी से झूम उठा। उसने अपने गोपाल की जय-जयकार करनी शुरू कर दी। घाट पर मौजूद लोग यह दृश्य देखकर हैरान रह गए। जिन्होंने पहले अमल को जले हुए चेहरे के साथ देखा था, वे अपनी आँखों पर विश्वास नहीं कर पा रहे थे।
अमल ने माँ गंगा को दंडवत किया और गोपाल को कृतज्ञता से याद करते हुए उनके प्रति आभार प्रकट किया। उसने कहा, “प्रभु, आपकी कृपा का मैं कैसे वर्णन करूँ? आपने मेरे जीवन को नई दिशा दी है।”
आसित, जिसने यह चमत्कार अपनी आंखों के सामने घटित होते देखा, वह अब गोपाल की कृपा के आगे नतमस्तक था। उसने कहा, “अमल, तुम धन्य हो। तुम्हारे माध्यम से मैंने भगवान की शक्ति और करुणा को प्रत्यक्ष देखा। मेरा संदेह अब पूरी तरह समाप्त हो गया है। गोपाल सचमुच अपने भक्तों की हर परिस्थिति में रक्षा करते हैं।”
अमल का चेहरा ठीक हो गया था, लेकिन उसने अपनी पुरानी नौकरी पर वापस जाने का विचार नहीं किया। और अपना सारा समय गोपाल की सेवा में समर्पित कर दिया। आसित, जो अब पूरी तरह से अमल की भक्ति से प्रभावित था, अपने जीवन में एक नई प्रेरणा लेकर अपने शहर लौटा। और जब कुछ दिन बाद वापस लौटकर के पटना आए तो अमल वहाँ नहीं था, न अपने कमरे में था, न कॉलेज में। अमल मिला ही नहीं वहाँ। अमल कहां चला गया यह किसी को पता नहीं था।
कई सालों के बाद, आसित को अमल वृंदावन मे मिल जाते है। आज दोनों मित्रों का वर्षों बाद मिलन हो रहा था। लेकिन अमल के साथ बातचीत के बाद, आसित उन्हें फिर से खो देते हैं। इसके बाद अमल कहाँ गया, इसका किसी को पता नहीं। फिर वह कभी किसी को नहीं दिखा।
संसार की दृष्टि से देखने पर अमल ने न कोई साधन-भजन किया, न माला जपी, न पाठ किया और न ही ध्यान लगाया। उसने भगवान में विश्वास तक नहीं किया था। लेकिन फिर भी, भगवान की कृपा उस पर इतनी अधिक हुई कि बड़े-बड़े भक्त और तपस्वी भी ऐसे कृपा को कठिन तप और भक्ति से प्राप्त नहीं कर पाते, वह अमल को सहजता से प्राप्त हो गई।
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