Last Updated on July 22, 2019 by admin
वेग 13 प्रकार के बताए गए हैं ।
1-अधोवायु
2- दिशाबाधा
3-मूत्रबाधा
4-डकार
5-छींक
6-तृषा
7-क्षुधा
8-नींद
9-कास
10-खेद का श्वास
11-जंभाई
12-आँसू
13-वमन
ये 13 वेग हैं। इन वेगों को वृथा रोके और इनसे उत्पन्न हुए वेग को धारण करे तो निश्चय मनुष्य के रोग उत्पन्न होते है इन रोगों को क्रम से कहा जा रहा हैं।
1-जो पुरुष अधोवायु को रोके –
उसके गोला, उदर में अफरा और पीड़ा ये रोग होते हैं तथा उसके अधोवायु अच्छे प्रकार से नहीं निकलती है और मूत्रकृच्छ, बद्धकोष्ठ, नेत्ररोग, मन्दाग्नि और हृदयपीड़ादि रोग होते हैं।
2-मल रोकने के रोग –
जो पुरुष मल की बाधा को रोके उसके हाथ पैर में हड़फुटन, पीनस, मस्तकपीड़ा और वायु की ऊर्ध्वगति और अधोवायु की प्रवृत्ति अच्छे प्रकार से नहीं होती तथा हृदयपीड़ा, उदावते, वायुगोला, उदररोग, उदरपीड़ा, मूत्रकृच्छ, बद्धकोष्ठ, नेत्ररोग और मन्दाग्नि ये रोग होते हैं।
3- मूत्र रोकने के रोग –
जो मनुष्य मुत्र की बाधा को रोके उसके ये रोग होते हैं। अंग में हड़फूटन, पथरी, लिङ्गेन्द्रिय की सन्धि में पीड़ा तथा वायुगोला आदि ।
4-डकार रोकने के रोग –
जो मनुष्य आती हुई डकार को रोकते हैं उनके इतने रोग होते हैं। अरुचि, शरीर काँपै, हृदय रुक, अफरा, खाँसी और हिचकी इत्यादि।
5-छींक रोकने के रोग –
जो मनुष्य छींक के वेग को रोके उसके ये रोग उत्पन्न होते हैं। मस्तकपीड़ा, शरीर की सम्पूर्ण इन्द्रियों में शिथिलता तथा गर्दन का न मुड़ना और मुख का टेढ़ा हो जाना आदि।
6-तृषा (प्यास) रोकनेवाले के ये रोग होते हैं-
मुख सूखे, सब अङ्गों में हड़फूटन, बधिरता, मोह और भ्रम हो तथा हृदय दूखे ।
7-क्षुधा रोकने के रोग –
जो पुरुष भूख के वेग को रोके उसके सब अंग टूटने लगे, अरुचि होय और सर्व वस्तुओं के ऊपर ग्लानि, शरीरकृश, शूल भ्रम तथा बिना ही श्रम किये श्रम और सब इन्द्रियाँ शिथिल एवं शरीर का वर्ण और का और हो जाये |
8-नींद रोकने के रोग-
जो मनुष्य आती हुई नींद को रोके उसके ये रोग उत्पन्न हों मोह, मस्तक और नेत्र भारी, आलस्य, उबासी, अङ्ग पीड़ा इत्यादि।
9-खाँसी रोकने के रोग –
जो मनुष्य खाँसी को रोकता है उसके खाँसी, श्वास, अरुचि हृदयरोग और हिचकी आदि रोगों की वृद्धि होती है ।
10-श्रम के श्वास रोकने के रोग –
जो पुरुष श्रम के श्वासों को रोके उसके इतने रोग होते हैं । वायुगोला, हृदयरोग, मोह और प्रमेह ।
11-उबासी रोकने के रोग –
जो मनुष्य आती हुई उबासी को रोकता है उसके मस्तकपीड़ा, इन्द्रियों की दुर्बलता और गर्दन व मुख टेढ़ा हो जाता है।
12-आँसू रोकने के रोग-
जो मनुष्य आँसू रोकता है उसके पीनस, नेत्ररोग, मस्तक, हृदय और गर्दन में पीड़ा तथा अरुचि, भ्रम, वायुगोला होता है।
13-वमन रोकने के रोग –
जो मनुष्य आते हुए वमन के वेग को रोकता है उसके रतुआ, पिची, कोढ़, नेत्ररोग, खाज, पाण्डुरोग, ज्वर, खाँसी, श्वास, हृदयशूल, मुखकील अथवा मुखछाया ये रोग हो