Last Updated on December 31, 2024 by admin
महाभारत से जुड़े कई किस्से ऐसे हैं, जो रहस्यमयी होने के साथ-साथ चौंका देने वाले भी हैं। इन्हीं में से एक प्रसंग है भगवान श्री राम के वंशज का, जिन्होंने महाभारत युद्ध के दौरान पांडवों को चुनौती दी थी। आइये जानते हैं इसके बारे में।
त्रेता युग वह समय था, जब रामायण घटित हुई, और द्वापर युग वह समय था, जिसमें महाभारत जैसा विध्वंसकारी युद्ध हुआ। महाभारत युद्ध को ब्रह्मांड का सबसे भयानक युद्ध माना गया है। इसके बारे में कहा जाता है कि हर दिन लाखों योद्धा इस युद्ध में मारे जाते थे। यह युद्ध इतना भीषण था कि कुरुक्षेत्र की धरती आज भी उस रक्तपात की गवाही देती है।
लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस विनाशकारी युद्ध के दौरान भगवान श्री राम के वंशज भी शामिल थे? और हैरानी की बात यह है कि उन्होंने पांडवों का साथ न देकर कौरवों का समर्थन किया।
भगवान श्री राम के पुत्र कुश के 32वें वंशज बृहद्बल थे अयोध्या के राजा :
भगवान श्री राम के ज्येष्ठ पुत्र कुश के वंश में जन्मे बत्तीसवें वंशज बृहद्बल, अयोध्या के प्रतापी राजा थे। उनका नाम महाभारत के उन योद्धाओं में शुमार है, जो अपनी शक्ति और धर्मपरायणता के लिए विख्यात थे। बृहद्बल न केवल कौशल साम्राज्य के गौरवशाली सम्राट थे, बल्कि महाभारत युद्ध में भी अपनी वीरता से इतिहास का हिस्सा बने।
हैरानी की बात यह है कि बृहद्बल ने पांडवों का साथ न देकर कौरवों के पक्ष में लड़ाई लड़ी। उनकी इस भूमिका ने पांडवों के लिए युद्ध को और कठिन बना दिया। हालांकि, कौरवों का पक्ष चुनने के पीछे उनके पास एक विशेष कारण था, जिसने उन्हें इस निर्णय के लिए प्रेरित किया।
बृहद्बल ने क्यों दिया था अधर्मी कौरवों का साथ :
बृहद्बल ने कौरवों का साथ क्यों दिया? इसका उत्तर महाभारत की एक महत्वपूर्ण घटना में छिपा है। जब पांडवों ने इन्द्रप्रस्थ का राज्य संभाला, तो उन्होंने राजसूय यज्ञ का आयोजन किया। इस यज्ञ के नियमों के तहत, पांडव अलग-अलग राज्यों को अपने अधीन करने निकले। जो राज्य उनकी अधीनता स्वीकार नहीं करते, उन्हें युद्ध का सामना करना पड़ता।
इसी क्रम में भीम अयोध्या पहुंचे, जहां बृहद्बल राजा थे। भीम ने युद्ध में बृहद्बल को हराकर अयोध्या को पांडवों के अधीन कर लिया। इस हार से बृहद्बल अत्यंत आहत हुए और पांडवों के प्रति उनके मन में बदले की भावना पैदा हो गई। पांडवों को सबक सिखाने के लिए उन्होंने महाभारत के युद्ध में कौरवों का साथ देने का निर्णय लिया।
बृहद्बल एक शक्तिशाली योद्धा थे। कौरव सेना के मुख्य योद्धाओं में वह गिने जाते थे। भीष्म पितामह ने भी उन्हें एक महान रथी योद्धा बताया। महाभारत युद्ध में उन्होंने 13 दिनों तक पांडवों की सेना के खिलाफ बहादुरी से युद्ध किया, जिससे उनकी वीरता का परिचय मिलता है।
महाभारत युद्ध में कैसे और किसके हाथों मारे गये बृहद्बल :
महाभारत युद्ध में बृहद्बल की शक्ति इतनी थी कि वे पांडवों के लिए हार का कारण बन सकते थे। इसे भांपकर भगवान कृष्ण ने उन्हें समझाने का प्रयास किया। हालांकि, बृहद्बल ने पहले ही कौरवों का पक्ष चुन लिया था और अंतिम समय में इसे छोड़ना उन्हें अपनी मर्यादा के खिलाफ लगा। लेकिन कृष्ण के आदेश पर उन्होंने अपनी पूरी ताकत से युद्ध न करने का फैसला लिया और एक उदासीन योद्धा की तरह लड़ाई लड़ी। यही कारण था कि इतने बलशाली होने के बावजूद, महाभारत युद्ध के तेरहवें दिन वह वीरगति को प्राप्त हो गए।
अर्जुन पुत्र अभिमन्यु जब चक्रव्यूह भेदने के लिए अंदर घुसे, तो दूसरे द्वार पर बृहद्बल उसकी राह में खड़े थे। दोनों के बीच भयंकर युद्ध हुआ, और अंततः अभिमन्यु ने बृहद्बल को परास्त कर वीरगति दी। बृहद्बल की मृत्यु के बाद अयोध्या का राजपाठ उनके ज्येष्ठ पुत्र बृहत्क्षण ने संभाला और राज्य की बागडोर को आगे बढ़ाया।
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