Last Updated on July 22, 2019 by admin
Adhyatmik Anubhav : Divine Experience
★ मेरे घर पर यदि कोई साधु-संत आते तो मेरे द्वारा उनका हँसी-मजाक होता था । मेरे इस असभ्य व्यवहार से मेरी धर्मपत्नी और माता-पिता के हृदय में खूब दुःख होता था । परंतु मुझे आनंद और अभिमान होता है ।
★ मेरा स्वभाव भी अत्यंत क्रोधी, नीच और स्वच्छंदी था । मेरे घर के सभी लोग मेरे इस स्वभाव से त्रस्त हो जाते और खूब दुःखी होते । अमेरिका में एक अच्छे स्कॉलर के रूप में मेरी गिनती होती थी । अमेरिका से आने के बाद वापी में एक दवा के कारखाने में Testing and Reasearch Laboratory Incharge के रूप में लम्बे समय तक काम करके उनसठ वर्ष की उम्र में निवृत्त हुआ ।
★ निवृत्त होने के बाद मुझे पहला हलका हृदयरोग का हमला हुआ । उसके दस महीने के बाद फिर दूसरा हमला हुआ । बम्बई के ‘हिंदुजा हॉस्पिटल” में बताया । मेरी रिपोर्ट थी कि हृदय में ८५-९० प्रतिशत खराबी है और तत्काल ऑपरेशन) बाय-पास सर्जरी) करना पडेगा । मैंने ऑपरेशन करवाने का तय किया । अस्पताल में भर्ती हुआ । मृत्यु का भय खूब लगता था ।
★ अस्पताल में बीमारी के साथ रहती हुई एक सिंधी माँजी को मेरे ऑपरेशन की खबर मिली । इसलिए वह मेरे पास आयी और बोली :
‘‘बेटा ! डरना नहीं, भगवान पर भरोसा रखना, सब कुछ ठीक हो जायेगा ।
पुस्तक बताकर माँजी ने कहा : ‘‘ये संत आसारामजी पर सब छोड दो । ये संत बहुत दयालु हैं, श्रद्धा रखो । साँर्इं का स्मरण करो । “हरि ॐ, हरि ॐ” करते रहो । सांईगुरु सब संभाल लेगा ।
★ उन्होंने मुझे दो पुस्तकें… एक ‘ईश्वर की ओरङ्क एवं दूसरी “मंगलमय जीवन-मृत्यु” दीं । मैंने दो बार पढी । पुस्तकों में पू. बापू का फोटो छपा था । पढकर आँख में आँसू आ गये । खूब पश्चात्ताप हुआ कि जीवन के उनसठ वर्ष व्यर्थ बरबाद कर दिये । माँजी ने लगभग नौ बजे मेरे बिस्तर के पास आकर पूछा : ‘‘पुस्तक पढी ? कैसी लगी ?
मैं कहा : ‘‘अच्छी है । देर हो गयी । जिंदगी बरबाद कर डाली । मरने का समय आ गया ।
★ माँजी बोली : ‘‘मरना तेरे हाथ में है क्या ? सांई गुरु पर भरोसा रखो, श्रद्धा रखो और ‘हरि ॐ, हरि ॐ का जप करते रहो । सांर्इं गुरु सब संभाल लेगा । मेरे पास अब कोई दूसरा इलाज न था । आँखें बन्द करके पू. बापू का स्मरण करते-करते “हरि ॐ” का जप चालू कर दिया । जप करते-करते मुझे नींद आ गयी ।
★ दिनांक : २६-९-९१ की सुबह को, आश्चर्य की बात तो यह थी कि मन में जरा भी घबराहट या डर न था । डॉक्टर आये : ‘‘ऑपरेशन सात बजे करेंगे । आधे घंटे की देर है । भगवान को मानते हो तो इष्टदेव या गुुरु का स्मरण करो ।
★ मैंने पूज्य बापू का स्मरण करना शुरू किया । हरि ॐ का जप चालू ही था । फिर क्या हुआ मुझे कुछ पता नहीं है । कोई मुझे जगाने का प्रयत्न कर रहा था । मैंने आँखें खोलीं । पास में नर्स खडी थी । उसने पूछा : “Uncle,Hou Do You feel ? Are you feeling O.K ?‘ मैंने कहा : “ I am perfectly alright .No problem” तुरंत ही उसने फोन करके डॉक्टर को सूचना दी कि पेशेन्ट होश में आ गया है । डॉक्टर आये और पूछा : ‘‘कहो मिस्टर देसाई ! कैसे हो ?आये और पूछा : ‘‘मैं ठीक हूँ । आप कब मेरा ऑपरेशन करने जा रहे हैं ?
डॉक्टर-नर्स हँसे और बोले : ‘‘मिस्टर देसाई ! आपका ऑपरेशन तो तीन दिन पहले हो गया । ऑपरेशन सफल रहा । कोई परेशानी नहीं है ।
मैंने पूछा : ‘‘मेरा ऑॅपरेशन हो गया ?
‘‘हाँ ।
★ मुझे खूब आश्चर्य हुआ । तुरंत ही पू. बापू की छबि मेरी स्मृति में आयी । मेरी आँखों में आँसू आ गये । पू. बापू ने ही मुझे बचाया ।
डॉक्टर ने कहा : ‘‘ऑपरेशन से पूर्व आप गहरी नींद में थे । हमने आपको जगाने की कोशिश की । किंतु फिर आपको एनेस्थेशिया दे दिया ।
★ मैंने मन में ही बापू का स्मरण करते हुये कहा : “Bapu is great… Bapu is great… Bapu is great… (बापू महान हैं, बापू महान हैं, बापू महान हैं) दस दिन के बाद मैं अस्पताल से घर आया । मन में पू. बापू का स्मरण और ‘हरि ॐ” का जप चालू था । बापू के दर्शन की खूब इच्छा थी । ऑपरेशन के एक महीने के बाद बलसाड में बापू के सत्संग-समारोह के समाचार मिले । दर्शन की खूब इच्छा थी । पू. बापू के सूरत आश्रम में शिविर में बैठने की भी खूब इच्छा थी । ऑपरेशन के तीन महीने बाद मैं और मेरी पत्नी सूरत मेरे बेटे के यहाँ गये । वहाँ सूरत आश्रम में शक्तिपात-साधना शिविर के समाचार मिले ।
★ मैंने आश्रम पर फोन किया । किसी साधक भाई ने फोन उठाया । मैंने कहा :
‘‘शिविर में रहने की इच्छा है परंतु ऑपरेशन के कारण बैठ नहीं सकता । शिविर भरने की खूब इच्छा है । आश्रम को कोई आपत्ति है क्या ?
यह बात चल रही थी तभी बीच में किसी ने फोन पर बात चालू की : ‘‘मैं आसारामजी बोल रहा हूँ । बोलो, क्या तकलीफ है ?
मैं तो आश्चर्य में पड गया । मुझसे कुछ बोला न गया । उन्होंने पूछा : ‘‘शिविर में रहना है ? आओ, सब ठीक हो जायेगा ।
उन्होंने फोन रख दिया । मैंने मेरी पत्नी से बात की । उसे भी खूब आश्चर्य हुआ । उसने कहा : ‘‘पू. बापू की हम पर कृपा है । शिविर में रहो ।
मैं अकेला ही शिविर में गया । बैठने-उठने की तकलीफ थी पर दो दिन कहाँ निकल गये, पता ही न चला । अब आनंद हुआ ।
★ उसके बाद मैंने दिसम्बर ९२ का शिविर भरा जिसमें २९-१२-९२ के दिन नामदान लिया और दूसरा शिविर मार्च ९३ में ‘होली शिविर भरा, जिससे पू. बापू की कृपा से आज मैं पूर्ण रूप से स्वस्थ हूँ ।
★ रोज जप, ध्यान, बापू के सत्संग की कैसेट, आसारामायण का पाठ, गुरुगीता आदि का पाठ, मैं नियमित रूप से करता हूँ । मेरे मन में ऐसा होता रहता है कि पू. बापू के आश्रम में थोडे समय रहूँ तो वहाँ के सत्संग के पवित्र वातावरण के आंदोलनों का लाभ मिले ।
पू. गुरुदेव की दया-कृपा । हरि ॐ… जय गुरुदेव ।
-कान्तिलाल गुलाबभाई देसाई
रामझरोखा, पहली मंजिल, वलसाड ।
श्रोत – ऋषि प्रसाद मासिक पत्रिका (Sant Shri Asaram Bapu ji Ashram)
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