Last Updated on July 23, 2019 by admin
Swami Vivekananda Hindi Story
★ स्वामी विवेकानंद(Swami Vivekananda) के पास एक युवक आया । उसने कहा : मैं सत्य को, ईश्वर को पाना चाहता हूँ । मैंने बहुत लेक्चर सुने, थियोसोफिकल सोसायटी में गया, वहाँ के सिद्धांत सुने । वहाँ का जो मास्टर था, उसका मैंने खूब पूजन किया, सत्कार किया । वर्षों बीत गये मगर मुझे अभी शांति नहीं मिली ।
★ मेरे चित्त में वही चंचलता और विकार जारी हैं । मैं वैसे का वैसा अशांत हूँ । मुझे कोई अनुभूति, कोई रस, कोई आनंद आज तक नहीं आया । उसके बाद मैंने साधना करनेवाले किसी योगी की शरण ली । योगी ने कहा : ‘कमरा बंद करके बिल्कुल अंधकार में सुन्न होकर बैठे रहो । कुछ चिंतन न करो । उपाय तो बिढया था । मैं सुन्न होकर चिंतन न करने की कोशिश करते हुये अंधकारयुक्त कमरे में नियम से बैठता हूँ । अभी भी मेरा यह नियम चालू है ।
★ आप से बात करने के बाद संध्या के समय में उसी कमरे में बंध हो जाऊँगा । सुनसान बैठूँगा । मगर इसमें भी आठ नौ महीने गुजर गये । मुझे कोई अनुभूति नहीं हो रही है । कोई शांति नहीं मिल रही है । दुनिया ऐसी ही है । लोग भी स्वार्थी हैं । माया का विस्तार बडा प्रबल है । सब जगह झंझट है । कुटंबी भजन करने नहीं देते ।
इस प्रकार का वह निवेदन किये जा रहा था ।
★ विवेकानंद (Swami Vivekananda)ने कहा : ‘‘इतने वर्ष थियोसोफीवाले मास्टर के निर्देशों में गुजरे । इतने महीने तूने एकांत कमरे में बिताये तुझे कोई अनुभूति नहीं हुई । तो डरने की कोई बात नहीं है । चिंता की कोई बात नहीं है । अब तो जिन मानवदेहों में प्रकट स्वरूप महेश्वर विराजमान हैं उन दीन दुःखियों की सेवा कर ।
★ मगर ‘ये दीन दुःखी हैं और मैं दाता हूँ ऐसा भाव दिल में न रख । यही देख कि दीन-दुःखी का स्वांग लेकर मेरा नारायण बैठा है । मुहताजों को सहायरूप हो जा । भक्तों को सहायरूप हो जा । जो पवित्र संत हों उनमें अपने ईश्वर को निहारनेकी आँख खोल दे । अहोभाव से भर जा ।
★ बंद कमरे की साधना छोड । अब खुले विश्व में आ जा । सारा विश्व ईश्वर से ओतप्रोत है, अपनी निगाह बदल दे । निगाहों में ईश्वरभाव भर दे । तू जिससे मिले उसे ईश्वर से कम नहीं परंतु अनेक रूपों में वह भी ईश्वर का ही एक रूप है ऐसा मान । एक ही ईश्वर अनेक रूपों में प्रकट हो रहा है, कहीं सत्त्व रूप में, कहीं रज रूप में, कहीं तम रूप में । नाम और रूप विभिन्न दिखते हैं, मगर नाम और रूप को सत्ता देनेवाला वह अनामी अरूप मेरा ही सर्वेश्वर है । ऐसा भाव प्रकट कर ।
★ हजारों-हजारों भारतवासी दुर्बल विचारों में पीडे जा रहे हैं, दबे जा रहे हैं, सरकार शोषण किये जा रही है और जिनमें बोलने की हिम्मत तक नहीं है ऐसे दबे मानस में विचारों की, शक्ति की, दिव्यता की फूँक मारता जा और जो मुहताज हैं उसको तेरे पास कुछ हो तो दे एवं जो रुग्ण हैं उनकी सेवा में लग जा । यही साधना मैं तुझे बताता हूँ । इससे तू शीघ्र ही लाभान्वित होगा । जिनकी सेवा तू करेगा, उनको तो बाह्य वस्तुओं का, सुविधाओं का अल्प लाभ होगा परंतु तेरा अंतरात्मा अपने स्वरूप में प्रकट होगा ।
★ सुख लेने की वासना को मिटाने के लिए सुख देने की शुरुआत कर दो । मान लेने की वासना को मिटाने के लिए मान देने की शुरुआत कर दो । भोग भोगने की वासना से बचने के लिए आत्म-नियंत्रण का व्रत ले लो ।
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श्रोत – ऋषि प्रसाद मासिक पत्रिका (Sant Shri Asaram Bapu ji Ashram)
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