Last Updated on August 2, 2021 by admin
सदा स्वस्थ रहने के लिए नीचे दिये गये 30 नियमों का पालन करें।
1). ‘मेरे पास बीमार रहने का टाईम नहीं है, यह विचार रखनेवाला इंसान उन लोगों से कम बीमार रहता है, जो लोग बिना लक्ष्य लेकर जी रहे हैं इसलिए स्वस्थ जीवन जीने के लिए सबसे पहले अपने लिए एक लक्ष्य निर्धारित करें।
2). हम अपनी काया में रोज परिवर्तन ला रहे हैं, उसे मंदिर बनाकर या खंडहर बनाकर तो क्यों न इसे होश के साथ पवित्र मंदिर बनाया जाय। इसके लिए भोजन अधिक से अधिक सादा और सरल होना चाहिए। भोजन में अधिकांश भाग ताजे फल, कच्ची और भाप से पकी तरकारियों का होना चाहिए तथा भोजन में दूध, दही, मेवों का समावेश भी होना चाहिए। सुबह के नाश्ते में अपने शरीर की प्रकृति के अनुसार ताजे फल या फलों के साथ दूध भी ले सकते हैं।
3). दोपहर के खाने में दाल, चावल, रोटी, सब्जी के साथ कच्ची तरकारियाँ जैसे टमाटर, गाजर, पत्तागोभी, प्याज, पालक, मूली लें। यह न मिले तो मौसमी फल लें और साथ में थोड़ा अखरोट, बादाम, मूंगफली या 250 ग्राम दही या अधिक अंकुरित मूंग या चना लें।
4). शाम को भाप से पकी 2-3 तरकारियाँ, चोकर समेत आटे की रोटी और साथ में थोड़ा घी, मक्खन लें। ज्यादा चरबीवाले लोग तेल, घी, मक्खन, पनीर से बचें तथा हमेशा स्किम्ड मिल्क- बिना मलाई, चिकनाईवाला दूध ही लें।
5). भोजन तभी करें जब भूख लगी हो। यदि भोजन के समय भूख न हो तो भोजन बिलकुल न करें या कम करें। चालीस साल की उम्र के बाद सुपाच्य, साधा, सात्विक आहार लें, 2 वक्त के भोजन को 6 हिस्सों में यानी दिन में 6 बार थोड़ा-थोड़ा लें। भोजन हल्का होना चाहिए। मसालेदार, तला हुआ या ज्यादा मीठा न लें।
6). भोजन के पहले भूख लगे तो पानी, कोई फल, टमाटर या गाजर का 200 ग्राम रस पी लें। इन तरल पेयों, रसों को छोड़कर भोजन के समय से पहले कोई भी ठोस चीज खाना हानिकारक है।
7). भूख से अधिक खाना भी हानिकारक होता है। देखा गया है कि लोग चटपटा व मसालेदार भोजन ज्यादा पसंद करते हैं और जरूरत से ज्यादा ही खा लेते हैं। यदि आप स्वाभाविक भोजन करेंगे तो अधिक खाने की आदत यानी पेटूपन से आसानी से छुटकारा पायेंगे।
8). भोजन को अच्छी तरह से चबाना जरूरी होता है। अच्छी तरह से चबाने से मुँह की लार भोजन में अच्छी तरह मिल जाती है, जो अमाशय और आंतों में भोजन के आसानी से पचने का कारण बनती है।
9). अधिक से अधिक पैदल चलें। तेज चलना, सैर करना एक बढ़िया व्यायाम है।
10). महीने में एक दिन भोजन का उपवास, चिंता का उपवास (Worry Fast – इस दिन चाहे कुछ भी हो जाय हम चिंता नहीं करेंगे), वाणी का उपवास (मौन) रखें।
11). चाय या कॉफी अधिक न लें। जरा ध्यान से देखेंगे तो आपको स्वास्थ्य विनाशक चीजों की जगह लेनेवाली बहुत सी स्वास्थ्यकारक चीजें मिल जायेंगी। जैसे कि अदरक की चाय, पाचक चाय, ठंढी पुदीना चाय, हरे पत्ते की चाय – इस चाय में भरपूर मात्रा में ऐंटीऑक्सिडेंट्स पाये जाते हैं, जो हृदय के लिए लाभदायी हैं साथ ही इस चाय से विषैले पदार्थ भी बाहर निकलते हैं।
12). भोजन के समय पानी नहीं पीना चाहिए। भोजन के एक-आध घंटा पहले या दो घंटे बाद पानी पीना श्रेष्ठ होता है। यदि प्यास लगे तो भोजन के दौरान थोड़ा पानी पी सकते हैं। यह आदत डालने के लिए गिलास की जगह एक कप पानी भरकर रखें।
13). स्वस्थ रहने के लिए आप नित्य आवश्यक नींद लें। स्वस्थ रहने में नींद बड़ी सहायक होती है। जरूरत से कम सोना, यह स्वास्थ्य नाशक आदत है। कम सोने से स्वास्थ्य का नाश होता है। साधारणतः इंसान को सात-आठ घंटे जरूर सोना चाहिए और ऐसी जगह या ऐसे कमरे में सोना चाहिए, जिसमें शुद्ध और ताजी हवा आती हो।
14). त्वचा का कार्य करते रहना उतना ही जरूरी है, जितना कि फेफड़ों, गुर्दो का ठीक ढंग से काम करना। यदि त्वचा ठीक से काम नहीं करती तो मल निष्कासन अंगों को अधिक काम करना पड़ता है। जिसके फलस्वरूप शरीर के अंग कमजोर हो जाते हैं इसलिए त्वचा की साफ-सफाई का ध्यान रखें। ठंढे पानी से नहायें। कफ व वात प्रकृति के लोग गरम पानी से नहायें।
15). रोज भरपूर गुनगुना पानी पीयें। पित्त प्रकृति के लोग ताजा, ठंढा जल पीयें (बर्फ का पानी न पीयें)। फ्रिज से निकाला गया फल या पदार्थ तुरंत न खायें, कुछ समय उसे बाहरी तापमान पर आने दें फिर ही उसका सेवन करें। सुबह उठकर ‘पानी पीयो प्रयोग करें।
16). सोने से पहले कुछ गहरी साँसें लें, शुभ विचार रखें, प्रार्थना करें, धन्यवाद दें। दिन में दो बार शौचालय जाने की आदत डालें, चाहे उसकी आवश्यकता आपको महसूस न हो रही हो। अपनी शौच क्रिया नियमित रखें।
17). स्वास्थ्य का पूर्ण ज्ञान प्राप्त करें। इस लेख को पूरा पढ़ डालें। योग्य जानकारी को समय-समय पर बार-बार पढ़ते रहें।
18). स्वास्थ्य के लिए छः डॉक्टर (हवा. खाना. सर्य प्रकाश. पानी. व्यायाम और विश्राम) के साथ छः रसों का भी उपयोग करें। अपने भोजन में इन छ: रसों का समावेश करें। ये रस हैं मीठा (उदा. शहद), खट्टा-अम्ल (उदा. नींबू), नमकीन-खारा (कुदरती नमक), तीखा (उदा. मसाले), कड़वा (उदा. करेला), कषाय-रूखा, रूक्ष (उदा. आलू, पत्तागोभी) । ये रस अपनी प्रकृति के अनुसार अलग-अलग भोजनों से प्राप्त करें।
19). जीने की आशा सदा तीव्र रखें। जो लोग जीने की इच्छा को सदा जगाये रखते हैं, वे बीमार होने पर जल्दी ठीक हो जाते हैं। जिनके जीने की आशा मंद होती है, वे जल्दी ठीक नहीं होते।
20). जब भी हम भोजन करने बैठे तो ध्यान रहे कि वातावरण, खुशनुमा, शांत और सरल हो। क्रोध, ईर्ष्या जैसे नकारात्मक विचारों को मन में स्थान न दें। चिंता एवं भय से मुक्त होकर अपने मन में आत्मविश्वास की भावना पैदा करें। खाना खाने से पूर्व ईश्वर को समर्पण अवश्य करें।
21). केवल दवाओं से रोग को न दबायें। रोग के कारण जानकर उन्हें ठीक करें। दवाओं से राहत मिलते ही अपनी दिनचर्या, जीवनशैली को भी बदलें।
22). दो आहार के बीच 4 घंटों का अंतर होना चाहिए। सोने से दो-तीन घंटे पहले भोजन अवश्य कर लेना चाहिए। जलपान यदि 7-8 बजे किया हो तो भोजन दोपहर को 12 से 1 बजे और शाम को 6 से 7 बजे करें। रात का भोजन दोपहर के भोजन से कम हो। ‘जो पच जाय वह भोजन, जो न पचे वह कचरा, यह कहावत सदा याद रखें।
23). ‘जो इस्तेमाल नहीं होगा, वह बेकार हो जायेगा यानी जो अंग हम कम इस्तेमाल करते हैं, वह कमजोर होता जाता है इसलिए शरीर को व्यायामासन जरूर दें, लेटे-लेटे भी कुछ व्यायाम करें।
24). अंग्रेजी में कहावत है कि Eat your liquid and drink your solid. खाना पीयो, पानी खाओ। जब भूख हो तब ही भोजन करना चाहिए। पहले का भोजन पचे बिना दुबारा भोजन करना हानिकारक हो सकता है। स्वस्थ रहने के लिए निरंतर थोड़ा भूखा रहना चाहिए। इससे मस्तिष्क हमेशा साफ व चुस्त रहकर काम कर सकता है।
25). सप्ताह में एक समय या एक दिन उपवास या फलाहार करना उत्तम है। इससे पाचन तंत्र को आराम मिलता है तथा रोगों से खुद-ब-खुद बचाव होता है। कब्ज होने से सदा बचें।
26). नशीले तथा उत्तेजक पदार्थों का सेवन हितकर नहीं है। इनका त्याग करें। अधिक मिर्च मसाले, तेल तथा अचार, चटनी, खटाई आदि का प्रयोग न करें।
27). स्वास्थ्य विज्ञान की दृष्टि से शाकाहारी भोजन ही उत्तम आहार है। पेट को कब्रिस्तान न बनायें। इसके अलावा मैदे तथा महीन पिसे हए आटे से बने पदार्थ जैसे पूरी, केक, पेस्ट्रीज, मिठाइयाँ टालें। अपने ही दाँतों से आँतों की कब्र न खोदें।
28). नींबू पानी, फलों का रस, कच्ची हरी सब्जियों का रस, तुलसी के पत्तियों का काढ़ा आदि प्राकृतिक पेय ही रुचि के अनुसार लेने चाहिए।
29). प्रार्थना और दवा दोनों का उपयोग करें। दवा और दुआ दोनों स्वास्थ्य सुधारने के लिए आवश्यक हैं।
30). सबसे पहले अपनी काया के स्वभाव को पहचानें। काया की प्रकृति (वात, कफ, पित्त) अनुसार योग्य आहार का चयन करें।
ऊपर दी गयीं 30 छोटी-छोटी लेकिन बड़ी (असरदार) बातों का पालन करने से आप सदा स्वस्थ जीवन जी सकते हैं।
नोट: एक बार में अनेक पदार्थ, अनेक सब्जियाँ एक साथ खाना टालें। आप दोपहर के भोजन में रोटी-सब्जी, मूंग की दाल और सलाद ले रहे हैं तो रात में चावलदाल और सलाद लें।