Last Updated on January 8, 2025 by admin
क्या आप जानते हैं कि तिरुपति बालाजी मंदिर में जो मूर्ति स्थापित है, वह किसी मानव द्वारा बनाई गई कृति नहीं है, बल्कि यह स्वयं भगवान का प्रकट रूप है? यह अद्भुत मूर्ति जितनी रहस्यमय है, उतनी ही चमत्कारी भी। और सबसे खास बात- वैंकटेश्वर स्वामी की इस मूर्ति पर जो बाल हैं, वे असली हैं! हां, आप सही सुन रहे हैं। ये बाल न तो कभी उलझते हैं और न ही अपनी कोमलता खोते हैं। आज हम आपको भारत के ऐसे दिव्य मंदिर के आश्चर्यजनक तथ्य सुनाने वाले हैं, जहाँ भगवान वैंकटेश्वर स्वयं विराजमान हैं। इस मंदिर के चमत्कारों और रहस्यों को जानने के बाद आपका मन और मस्तिष्क हैरानी से भर जाएगा।
दक्षिण भारत के मंदिर अपनी भव्यता और दिव्यता के लिए प्रसिद्ध हैं, लेकिन उनमें से सबसे अनोखा और चमत्कारी है तिरुपति बालाजी मंदिर। यह मंदिर श्री वैंकटेश्वर बालाजी को समर्पित है, जिन्हें भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है। आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिले में स्थित यह मंदिर तिरुमला स्वामी पुष्करणी नामक कुंड के पास बना है। भगवान विष्णु ने कुछ समय के लिए इसी कुंड के किनारे निवास किया था। आज भी यह कुंड विद्यमान है जिसके जल से ही मंदिर के कार्य सम्पन्न होते हैं। इस कुंड के चारों ओर की पहाड़ियां शेषनाग के सात फनों के प्रतीक स्वरूप सत्यगिरी कहलाती हैं।
इस मंदिर का इतिहास पांचवीं शताब्दी से जुड़ा है और सबसे अद्भुत बात यह है कि यह सभी धर्मों के लिए खुला हुआ है। यहाँ विराजमान भगवान बालाजी की मूर्ति किसी इंसान की बनाई हुई नहीं है, यह तो स्वयं प्रकट हुई दिव्य प्रतिमा है।
कहते हैं कि भगवान वेंकेटेश्वर के सिर के बाल असली हैं जो कभी उलझते नहीं और हमेशा मुलायम बने रहते हैं। ऐसी कई अन्य चमत्कारी विशेषताओं ने इस मंदिर को रहस्यों और आस्था का केंद्र बना दिया है।
भगवान बालाजी की प्रतिमा के हृदय पर देवी लक्ष्मी की दिव्य उपस्थिति का अनुभव किया जा सकता है। हर गुरुवार को जब बालाजी का पूरा श्रृंगार उतारकर उन्हें स्नान करवाया जाता है और चंदन का लेप लगाया जाता है, तब चंदन हटाने पर उनके हृदय पर देवी लक्ष्मी की छवि प्रकट होती है।
तिरुपति बालाजी की प्रतिमा अपने आप में एक अनसुलझा चमत्कार है। अगर आप ध्यान से सुनें, तो इस मूर्ति के भीतर से समुद्री लहरों की आवाजें आती हैं। यह मंदिर समुद्र तल से 32,000 फीट की ऊंचाई पर स्थित है, लेकिन फिर भी यहां भगवान की मूर्ति से समुद्र की लहरों जैसा स्वर सुनाई देता है।
कहा जाता है कि भगवान वेंकटेश्वर की यह दिव्य मूर्ति स्वयं समुद्र से प्राप्त हुई थी। कुछ मान्यताओं के अनुसार, यह स्वर भगवान विष्णु के वैकुंठ धाम के क्षीरसागर का है, जहां वह शेषनाग पर विराजमान रहते हैं। ऐसा लगता है मानो समुद्र की लहरें आज भी अपने स्वामी, भगवान विष्णु के साथ जुड़ी हुई हैं और उनकी महिमा का गुणगान कर रही हैं। इतना ही नहीं, यह प्रतिमा हमेशा नम रहती है, और इसका कारण आज तक कोई नहीं समझ पाया।
भगवान बालाजी पर पचाई नामक कर्पूर लगाया जाता है। पचाई कपूरम, जो आमतौर पर किसी भी पत्थर को धीरे-धीरे चटका देता है, वेंकटेश्वर भगवान की प्रतिमा पर अपना कोई भी विपरीत प्रभाव नहीं डालता। यह भी भगवान का एक अलौकिक चमत्कार माना जाता है।
तिरुपति बालाजी मंदिर की पूजा विधि अन्य मंदिरों से कुछ अलग और विशेष है। यहाँ भगवान को प्रतिदिन तुलसी पत्र अर्पित किए जाते हैं, लेकिन इसे भक्तों को प्रसाद के रूप में नहीं दिया जाता। पूजा के बाद इन तुलसी पत्रों को मंदिर परिसर में स्थित एक विशेष कुएं में डाला जाता है, और परंपरा के अनुसार, इसे पीछे मुड़कर देखना अशुभ माना जाता है।
मंदिर से जुड़ी एक अनूठी कथा प्रचलित है, जो श्रद्धालुओं के मन को छू जाती है। मुख्य द्वार के दाईं ओर एक छड़ी रखी गई है, जिसके बारे में मान्यता है कि बाल्यावस्था में इसी छड़ी से भगवान बालाजी की पिटाई की गई थी। इसी कारण उनकी ठोड़ी पर चोट का निशान है। आज भी इस घाव को ठीक करने के प्रतीक स्वरूप उनकी ठोड़ी पर चंदन का लेप लगाया जाता है।
तिरुपति बालाजी के गर्भगृह में प्रवेश करने का अनुभव अद्वितीय और चमत्कारी है। जब आप अंदर खड़े होकर भगवान बालाजी की प्रतिमा को देखेंगे, तो वह गर्भगृह के बिल्कुल मध्य में प्रतीत होती है। लेकिन जैसे ही आप बाहर आते हैं, ऐसा लगता है कि मूर्ति दाईं ओर स्थित है। यह दृष्टि भ्रम या दिव्यता, भक्तों के लिए हमेशा रहस्यमय बनी रहती है।
भगवान बालाजी की प्रतिमा को प्रतिदिन विशेष परिधान में सजाया जाता है। नीचे धोती और ऊपर साड़ी पहनाई जाती है। इसके पीछे मान्यता है कि बालाजी में माता लक्ष्मी का स्वरूप भी समाहित है।
तिरुपति बालाजी मंदिर में केस दान की परंपरा न केवल प्रसिद्ध है, बल्कि बेहद अनोखी भी है। यहाँ आने वाले भक्त मन्नत पूरी होने पर अपने बाल दान करते हैं, और इसके पीछे एक दिव्य कथा छिपी है। मान्यता है कि भगवान वेंकटेश्वर ने अपने विवाह के समय कुबेर देवता से ऋण लिया था। पद्मावती से विवाह के लिए एक परंपरा के तहत वर को कन्या के परिवार को शुल्क देना होता था, लेकिन भगवान वेंकटेश्वर के पास इसे चुकाने का साधन नहीं था। तब उन्होंने कुबेर से ऋण लिया और वचन दिया कि कलियुग के अंत तक यह ऋण चुकाएंगे।
भगवान ने यह वचन भी दिया कि जो भक्त इस ऋण को चुकाने में उनकी सहायता करेंगे, उन्हें देवी लक्ष्मी दस गुना धन का आशीर्वाद देंगी। यही कारण है कि लाखों श्रद्धालु भगवान विष्णु का ऋण उतारने में मदद करने के लिए बाल दान करते हैं। इस अनोखी परंपरा के तहत रोजाना लगभग 20,000 भक्त अपने बाल अर्पित करते हैं, जो भगवान वेंकटेश्वर के प्रति उनकी अटूट आस्था और प्रेम का प्रतीक है।
मंदिर में प्रतिदिन श्रद्धालु भक्तों के प्रसाद वितरण हेतु तीन लाख लड्डू बनाए जाते हैं। मंदिर से करीब 23 किलोमीटर दूर एक अनोखा गाँव है, जहाँ के लोग प्राचीन परंपराओं का पालन करते हैं। इस गाँव से ही मंदिर के लिए फूल, फल, घी, मक्खन जैसे पूजन सामग्री लाई जाती है। इस परंपरा की शुरुआत कब और कैसे हुई, इसका कोई लिखित प्रमाण नहीं है, लेकिन यह आज भी श्रद्धा और भक्ति से निभाई जाती है। गाँव की महिलाएँ भगवान विष्णु की गहरी भक्त हैं। वे भजन गाते हुए अपने हाथों से मिठाइयाँ और फूलमालाएँ बनाती हैं, जो विशेष रूप से तिरुपति बालाजी को अर्पित की जाती हैं।
तिरुपति बालाजी मंदिर में भगवान वेंकटेश्वर की मूर्ति पर चढ़ाई गई पुष्पमालाओं को लेकर एक विशेष परंपरा है। इन पुष्पमालाओं को भक्तों में वितरित नहीं किया जाता, बल्कि मंदिर परिसर के पीछे स्थित एक पुराने कुएं में डाल दिया जाता है। इस प्रक्रिया के दौरान, पुजारी इन पुष्पों को मूर्ति के पीछे से फेंकते हैं और उन्हें देखने से बचते हैं, क्योंकि इन्हें देखना अशुभ माना जाता है।
तिरुपति बालाजी मंदिर में एक विशेष दीपक हमेशा जलता रहता है, जो एक अद्वितीय चमत्कार है। यह दीपक बिना किसी तेल या घी के जलता है, और इसकी ज्योति निरंतर प्रज्वलित रहती है। अचंभे की बात यह है कि यह दीपक कैसे और कब प्रज्वलित हुआ, इसका कोई ज्ञात विवरण नहीं है। यह रहस्य आज तक अनसुलझा है, और इसे देखकर भक्तों की आस्था और बढ़ जाती है।
भगवान बालाजी की प्रतिमा को देखकर ऐसा लगता है मानो वह पत्थर नहीं, बल्कि जीवंत स्वरूप में हों। यह प्रतिमा एक विशेष प्रकार के चिकने पत्थर से बनी है, लेकिन इसकी दिव्यता इसे अलौकिक बना देती है। मंदिर का वातावरण हमेशा ठंडा रखा जाता है, लेकिन इसके बावजूद प्रतिमा का तापमान हमेशा 110 फारेनहाइट रहता है। इतना ही नहीं, भगवान की प्रतिमा को पसीना आता है, जिसे पुजारी समय-समय पर पोछते रहते हैं।
इसके साथ ही, क्या आप जानते हैं कि तिरुपति बालाजी मंदिर दुनिया के सबसे अमीर मंदिरों में से एक है? इसकी धन-समृद्धि और भक्तों की अनगिनत आस्था इसे विश्वभर में अद्वितीय बनाती है।
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