निरोग-स्वस्थ व तेजस्वी संतान-प्राप्ति के शास्त्रीय नियम

Last Updated on March 5, 2023 by admin

किसी भी देश का भविष्य बालकों पर निर्भर करता है जो दम्पति सुविचारी, सदाचारी एवं पवित्रात्मा हैं तथा शास्त्रोक्त नियमों के पालन में तत्पर हैं ऐसे दम्पति के घर में दिव्य आत्माएँ जन्म लेती हैं ऐसी संतानों में बचपन से ही सुसंस्कार, सदगुणों के प्रति आकर्षण एवं दिव्यता देखी जाती है वर्त्तमान में देश के सामने बालकों में संस्कारों की कमी यह एक प्रमुख समस्या है, जिससे उबरने ले हेतु संतानप्राप्ति के इच्छुक दम्पति को ब्रह्मज्ञानी संतों-महापुरुषों के दर्शन-सत्संग का लाभ लेकर स्वयं सुविचारी, सदाचारी बनना चाहिए, साथ ही उत्तम संतानप्राप्ति के नियमों को भी जान लेना चाहिए

वास्तव में पत्थर, पानी, खनिज देश की सच्ची सम्पत्ति नहीं हैं अपितु ॠषि-परम्परा के पवित्र संस्कारों से सम्पन्न तेजस्वी बालक ही देश की सच्ची सम्पत्ति हैं लेकिन मनुष्य धन-सम्पत्ति बढ़ाने में जितना ध्यान देता है उतना संतान पैदा करने में नहीं देता यदि शास्त्रोक्त रीति से शुभ मुहूर्त में गर्भाधान कर संतानप्राप्ति की जाय तो वह परिवार व देश का नाम रोशन करनेवाली सिद्ध होगी गर्भाधान के लिए 8 जनवरी 2014 से 8 सितम्बर 2014 तक ग्रहदशा बहुत ही अनुकूल है इसके प्रभाव से उच्च आत्माएँ पृथ्वी पर आयेंगी

उत्त्म संतानप्राप्ति के लिए सर्वप्रथम पति-पत्नी का तन-मन स्वस्थ होना चाहिए वर्ष में केवल एक ही बार संतानोत्पत्ति हेतु समागम करना हितकारी है

गर्भाधान के लिए समय:

ॠतुकाल की उत्तरोत्तर रात्रियों में गर्भाधान श्रेष्ठ है लेकिन 11वीं व 13वीं रात्रि वर्जित है

यदि पुत्र की इच्छा हो तो पत्नी को ॠतुकाल की 8, 10, 12, 14 व 16वीं रात्रि में से किसी एक रात्रि का शुभ मुहूर्त पसंद कर समागम करना चाहिए

यदि पुत्री की इच्छा हो तो ॠतुकाल की 5, 7, 9 या 15वीं रात्रि में से किसी एक रात्रि का शुभ मुहूर्त पसंद करना चाहिए

कृष्णपक्ष के दिनों में गर्भ रहे तो पुत्र व शुक्लपक्ष में गर्भ रहे तो पुत्री पैदा होती है

रजोदर्शन दिन को हो तो वह प्रथम दिन गिनना चाहिए सूर्यास्त के बाद हो तो सूर्यास्त से सूर्योदय तक के समय के तीन समान भाग कर प्रथम दो भागों में हुआ हो तो उसी दिन को प्रथम दिन गिनना चाहिए रात्रि के तीसरे भाग में रजोदर्शन हुआ हो तो दूसरे दिन को प्रथम दिन गिनना चाहिए

निषिद्ध रात्रियाँ:

पूर्णिमा, अमावस्या, प्रतिपदा, अष्टमी, एकादशी, चतुर्दशी, सूर्यग्रहण, चंद्रग्रहण, ऊत्तरायण, जन्माष्टमी, रामनवमी, होली, शिवरात्रि, नवरात्रि आदि पर्वों की रात्रि, श्राद्ध के दिन, चतुर्मास, प्रदोषकाल, क्षयतिथि (दो तिथियों का समन्वय काल) एवं मासिक धर्म के चार दिन समागम नहीं चाहिए शास्त्रवर्णित मर्यादाओं का उल्लंघन नहीं करना चाहिए

माता पिता की मृत्युतिथि, स्वयं की जन्मतिथि, नक्षत्रों की संधि (दो नक्षत्रों के बीच का समय) तथा अश्विनी, रेवती, भरणी, मघा, मूल इन नक्षत्रों में समागम वर्जित है

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