विभिन्न रोगों में अनुपान या सहपान

Last Updated on September 8, 2021 by admin

जिन पदार्थों में मिलाकर औषधि का सेवन किया जाए उन्हें अनुपान कहते हैं। जैसे शहद,घी, शर्बत, चाशनी आदि या औषधि खाने के बाद दूध, छाछ, काढ़ा, अर्क या पानी आदि पिलाया जाए उसे अनुपान कहते हैं।

कुछ रोगों के अनुपान :

खूनी बवासीर में – मक्खन, मिश्री, नागकेशर, घी, शक्कर, आवंले का चूर्ण या आंवले का मुरब्बा।

बादी बवासीर में – घी और त्रिफला चूर्ण।

अजीर्ण में – गर्म पानी, हींग, और सेंधा नमक, छाछ, नींबू, प्याज या पुदीने का रस, अजवायन का फांट, पीपलामूल चित्रक, काली मिर्च, सौंठ और हींग का चूर्ण, गर्म पानी में नींबू निचोड़कर, सोडा वाटर।

अग्नि माद्य में – गर्म पानी, औषधि सेवन के बाद पान खिलाएं।

विशूचिका में – जो अनुपान अजीर्ण में बताए गए हैं।

भस्मक रोग में – पका केला पांच तोला और घी।

कृमि रोग में – वायविडंग, शहद, अनार की जड़ का क्वाथ, अनन्नास के पत्तों का रस, खजूर, भिंडी या चम्पा की पत्तियों का रस।

नेत्र रोग में – घी, त्रिफला चूर्ण और घी, महात्रिफलादि घृत।

शिरो रोग में – घी और गुड़ या घी और शक्कर।

प्रदर के लिए – चावल का धोवन, जीरा, मिश्री, प्याज का रस, आंवले का मुरब्बा, दाडिमावलेह, गुलकंद, दारुहल्दी अडूसा और गिलोय का काढ़ा।

शुक्र वर्धक – मक्खन, कौंच के बीज, विदारीकंद, अश्वगंधा, सेमल की मूसली का रस और अनन्त मूल का रस, मिश्री मिला गर्म दूध, मलाई।

पांडु रोग में – त्रिफला चूर्ण और शहद, त्रिफला चूर्ण, मिश्री या गोमूत्र, गन्ने का रस, मौसमी
का रस, बीदाना अनार का रस।

कामला में – त्रिफला व शक्कर, कुच्ची चूर्ण व शक्कर।

रक्तातिसार और रक्त पित्त में – अडूसे के पत्तों का रस, पान का स्वरस, अनार के पत्तों का स्वरस, गूलर का फल, कुटज वृक्ष की छाल का चूर्ण, दूर्वा स्वरस, बकरी का दूध और गोखरू का चूर्ण।

यक्ष्मा में – मक्खन, शहद और मिश्री,शहद, मिश्री यदि कब्ज, श्वास या प्रतिश्वास हो जाए तो अडूसे के पत्तों का रस, तुलसी के पतों का स्वरस, पान का रस, अदकर का रस, मुलैठी, कंटवारि या जायफल में से किसी का काढ़ा, तालीस पत्र, पिप्पली, काकड़ा सिंगी और वंशलोचन में से किसी का भी चूर्ण।

कफ निकलने वाली खांसी या दमा में – पका पान, अदरक का रस और शहद, तुलसी का रस और मिश्री चातुर्जातावलेह।

कफ न निकलता हो तो – अडूसे का रस और शहद, अडूसे का रस और मिश्री, काले अंगूर, मुलैठी का काढ़ा या दाडिमावलेह, द्राक्षासव या पिप्पलासव में वासाक्षार या अपामार्ग क्षार चार रत्ती मिलाकर।

काली खांसी में – पका केला, मक्खन, मिश्री, दाडिमावलेह, आंवले का मुरब्बा, द्राक्षारिष्ट।

हिचकी में – मोरपंख की राख, पीपल व बेर की गुठलियों का मग्ज व शहद मिलाकर।

अरुचि में – अदरक, विजौरा, अनार और नींबू में से किसी एक या दो या चारों का रस या मिश्री मिला अवलेह।

स्वर भेद में – मुलैठी या द्राक्ष का काढ़ा, कुलंजन का काढ़ा।

वमन में – पीपल वृक्ष का क्षार, इलायची का चूर्ण या काढ़ा।

बेहोशी और चक्कर में – धमासे का काढ़ा व घी, ब्राह्मी का रस, दूध, मिश्री, आंवले का मुरब्बा, अनार का रस या दाडिमावलेह, गुलकंद, ठंडा जल, इनमें से कोई भी ।

दाह में – औदुम्बरावलेह, दाडिमावलेह, आंवले का मुरब्बा, धनिए का हिम, नींबू का शर्बत,
सफेद चंदन घिसकर जल में मिलाकर, मिट्टी के घड़े के ठंडे जल में खस डालकर।

उन्माद व अपस्मार में – घी या ब्राह्मी का रस या दोनों, पुराना घी।

वात रोग, आमवात और लकवा आदि में – घी, गर्म पानी, रेंडी का तेल, वातघ्न औषधियों का काढ़ा या स्वरस।

मूत्र कृच्छ या मूत्रघात में – चावल का धोवन, गोखरु का काढ़ा, दूध, पानी, ढाक के फूल और धनिए में मिश्री मिलाकर काढ़ा।

प्रमेह में – हल्दी व मिश्री, त्रिफला, आंवला व मिश्री, शहद व मिश्री।

बहुमूत्र में – पका केला, जम्वावलेह, पुराना शहद, दूध,घी।

शोध में – पुनर्नवा चूर्ण का काढ़ा, गौमूत्र, केले के पत्तों का स्वरस, सफेद अपामार्ग का काढ़ा या स्वरस, मूली का काढ़ा और काली मिर्च का चूर्ण और आर्क मकोय का स्वरस।

गुल्म, उदर, तिल्ली, यकृत आदि में – गौमूत्र, त्रिफला का काढ़ा, घी, अरंडी का तेल,
पुनर्नवादि क्वाथ, विडंगासव या कुमारी आसव में चार रत्ती यवक्षार मिलाकर।

गलगंड ग्रन्थि, अबुर्द, विद्रधि आदि में – गौमूत्र, घी।

सुजाक में – गिलोय का रस, कच्ची हल्दी का रस, आंवले का रस, लघु शतमली (सेमर) वृक्ष का स्वरस, दारुहल्दी का चूर्ण, मजीठ और असगन्ध का काढ़ा, सफेद चंदन का कल्क (चटनी), बबूल के गोंद का हिम, कदम्ब की छाल का रस और कसेरन का रस।

उपदंश में – घी, खोवा, पका पान।

विसर्प व कुष्ठ में – नीम के पंचाग या चूर्ण, त्रिफला, वाकुची का चूर्ण और घी।

शीत पित्त में – अदरक का रस या घी, छुहारे का काढ़ा।

अम्ल पित्त में – अदरक का रस, अनार व मिश्री, आंवले का मुरब्बा, चंदन व मिश्री का काढ़ा, दूध, घी।

ज्वर में – तुलसी की चाय, तुलसी के पत्तों का रस, पान का रस, अदरक का रस या मिश्री
की चाशनी।

वातज्वर में – शहद, गिलोय का रस, पटसन या चिराअते का शीत क्वाथ, तुलसी के पत्तों
का स्वरस या काढ़ा, लौंग का पानी।

पित्त ज्वर में – पटोल पत्र का स्वरस, पित्त पापड़ का स्वरस या काढ़ा। गिलोय का स्वरस
या काढ़ा, नीम छाल का काढ़ा या स्वरस, मुस्तकादि काढ़ा।

श्लेष्म ज्वर में – शहद, पान का रस, अदरक का रस, तुलसी के पत्तों का रस या काढ़ा।

विषम ज्वर में – शहद, पीपल का चूर्ण, हरसिंगार के पत्तों का रस, बेलपत्रों का स्वरस, बेल की जड़ का चूर्ण, नागरमोथा, कुश्द बीज (इन्द्र जौ), पाठामूल, आम्रबीज, दाडिम मूल या फलत्वक, कुरंज वृक्षत्वद।

सन्निपात जवर में – अदरक का स्वरस, तुलसी या सहजन का रस, दशमूल या तगरादि क्वाथ, पिप्पली मूल क्वाथ।

शीत ज्वर में – मोगरे का रस या काली मिर्च का क्वाथ या गर्म जल।

जीर्ण ज्वर में – शहद, पीपल, जीरा, गुड़, जीरा मिश्री। वर्धमान पीपल, सितोपलादि चूर्ण और शहद या सितोपलादि चूर्ण और घी, धारोष्ण या गर्म करके ठंडा किया गया दूध, शक्कर या सौंठ का चूर्ण।

अतिसार में – छाछ, चावल का धोवन, कुटज की छाल या जड़ को सिल पर पीस कर निकाला गया स्वरस, धान्य पैचक क्वाथ, बेलगिरी का क्वाथ।

आमांश में – छाछ यदि ज्वर हो तो शहद। यदि आव में रक्त हो तो आम का रस, कदली का पानी, ईसबगोल का हिम, सौंफ का अर्क।

संग्रहणी में – छाछ, दही का निथरा हुआ पानी।

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