Last Updated on July 23, 2019 by admin
१०८ दिनों की दिव्य साधना : Divya Sadhana
★ सब तकलीफों का मूल है पाँच क्लेश है | अविद्या माना जो विद्यमान वस्तु नहीं है उसको विद्यमान दिखाये और जो विद्यमान है उसको ढक दे.. उसको अविद्या बोलते है, माया भी बोलते है |
★ तो एक है अविद्या सब दु:खों का मूल |
★ फिर अविद्या के बल से आती है अस्मिता – शरीर को ‘मैं’ मनाने की बेवकूफी |
★ ये अस्मिता के दो बच्चे है – राग और द्वेष | राग – पक्षपात करायेगा और द्वेष – जलायेगा |
★ और पाँचवा है अभीनिवेश – मृत्यु का भय | मृत्यु से भय से मृत्यु तो नहीं टलता लेकिन मृत्यु बिगडता है |
साधना प्रयोग :-
★ तो रोज सुबह उठे और मानसिक भावना करें की जो मेरी जठरा(नाभि प्रदेश या मणिपूर चक्र का छेत्र ) में जठराग्नि है मै उसमे अपने पाँचों क्लेशों की आहुति दे रहाँ हूँ | अविद्या – स्वाहा, अस्मिता – स्वाहा, राग – स्वाहा, द्वेष – स्वाहा और अभीनिवेश (मरने का डर) – स्वाहा |
★ ये तीन महीने १८० दिन करो हलका-फुल हो जायेगा मन, बुद्धि, शरीर, निरोगता में भी मदद मिलेगी |
★ रोज सुबह जठरा नाभि के आगे देख के ये भावना करों ये जठराग्नि है | त्रिकोणाकार जैसे यज्ञ कुंड चौड़ा होता है अग्नि की लौ ऊपर पतली होती है | ऐसे अग्नि तो है ही है | उस अग्नि में ये पाँच – अविद्या, अस्मिता, राग, द्वेष और अभीनिवेश स्वाहा करो | बहुत लाभ होगा | १०८ दिन का ये कोर्स करो |
श्रोत – ऋषि प्रसाद मासिक पत्रिका (Sant Shri Asaram Bapu ji Ashram)
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