Last Updated on July 22, 2019 by admin
रामकृष्ण परमहंस जी के जीवन का एक प्रेरक प्रसंग : Motivational Story in Hindi
★ रामकृष्ण परमहंस(Ramkrishna Paramhansa) केशवचंद्र सेन के घर जा रहे थे । रास्ते में उन्हें प्यास लगी पानी माँगा । केशव ने कहा : ‘‘बस, अभी घर आ रहा है । थोडी ही देर है । घर आया । घर में जाते ही केशवचंद्र सेन ने नौकर को आदेश दिया कि : ‘‘पानी लाओ ।
★ नौकर जग साफ करके पानी भर लाया । रामकृष्ण का चित्त तो अत्यंत स्वच्छ था । उनकी बुद्धि शुद्ध थी । शुद्ध बुद्धि में सब ठीक दिखाई देता है । रामकृष्ण ने उसे देखते ही मुँह मोड लिया । नौकर को डाँट पडी ।
★ ‘‘जाओ, फिर से स्वच्छता से भरकर ले आओ ।
नौकर फिर से जग और गिलास ठीक से मलकर पानी भर लाया । रामकृष्ण ने पीने के लिए पानी में निहारा । प्यास तो खूब थी मगर मुँह मोड लिया । तीसरी बार भी वही हुआ । रामकृष्ण उठकर चल दिये ।
★ गुरु घर पर आते हों, प्यासे हों और शिष्य कहता हो कि : ‘गुरुजी ! अभी घर आया… अभी घर आया । घर आने पर शिष्य उन्हें पानी दे और गुरुजी पानी को अस्वीकार करके वापस चले जायें तो शिष्य के मन में क्या गुजरती होगी ?
★ मौका पाकर केशवचंद्र सेन ने गुुरुजी को रिझाकर पूछ ही लिया ।
‘‘गुरुदेव ! आप इतने प्यासे, रास्ते में दो-तीन बार पानी पीने की याद दिलाई और फिर जब पानी आपके आगे लाया गया तो आपने मुँह मोड लिया । तीन बार पानी का अस्वीकार किया । हमसे क्या गलती हो गयी ?
★ रामकृष्ण : ‘‘केशव ! जाने दो उस बात को ।
केशव : ‘‘गुरुदेव ! कृपा करो । मैं इस संदेह को मिटाना चाहता हूँ ।
रामकृष्ण : ‘‘जग तो माँजा हुआ था । देखो, अपने नौकर को डांँटना मत । वह नौकर सच्चरित्रवान नहीं था, क्रूर था । उसके हाथ से पानी आने से, पानी में उसकी निगाह पडने से पानी अशुद्ध हो गया था । मैं प्यासा मरना कबूल करता हूँ मगर मेरी साधना बिखर जाय यह मुझे कबूल नही है ।
★ प्यास जोर करेगी, शरीर मिटेगा तो एक बार मिटेगा मगर मेरी साधना अगर बिखर जायेगी तो न जाने मुझे कितनी बार मिटना पडेगा ।
साधक को भगवत् तत्त्व का, साधना का रस मिलता है । वातावरण और सत्संग के संयोग से कुछ ऊँचाई आती है । फिर उसे लगता है कि कुछ खो दिया । ऐसा क्यों ? हम लोग आहार-विहार का ख्याल नहीं रखते और साधना को बिखेर देते हैं ।
★ साधु पुरुष का संग जीव को ऊध्र्वगामी बनाता है । जबकि विषयी पुुरुषों का संग अधोगामी बना देता है । जो साधक हैं, पवित्र लोग हैं वे भी अगर विषयी और विकारी लोगों के बीच बैठकर भोजन करें, विषयी पुरुषों के साथ हाथ मिलावें, उनकी हाँ में हाँ करें तो साधक की साधना क्षीण हो जाती है । साधक के सात्त्विक परमाणु नष्ट हो जाते हैं ।
श्रोत – ऋषि प्रसाद मासिक पत्रिका (Sant Shri Asaram Bapu ji Ashram)
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