Last Updated on July 24, 2019 by admin
क्या आप जानते हैं कि-
१. वो उन बिरले क्रान्तिकारियों में से थे, जिनका नाम ही अंग्रेज सरकार को अन्दर तक हिला देता था।
२. जब वो मात्र 25 वर्ष के थे, उनके लिए लोकमान्य तिलक जैसे व्यक्ति ने कहा था कि वो भारत का राष्ट्रपति बनाने की योग्यता रखते हैं।
३. वो शहीद-ए-आजम भगतसिंह के प्रेरणाश्रोत थे और उन्हीं के पदचिन्हों पर चलकर भगतसिंह क्रान्ति की राह के राही बने।
४. अपने अंतिम समय में भी भगतसिंह उन्हीं के दर्शन चाहते थे या उनके बारे में जानकारी चाहते थे।
५. उन्होंने भारत की आज़ादी के लिए पूरे 38 वर्ष विदेशों में रहकर अलख जगाई और अपने को तिल तिल कर गला दिया।
६. जब देश से बाहर जाने के पूरे 38 वर्ष बाद वो भारत वापस आये तो उनकी एक झलक पाने के लिए पूरा कराची स्टेशन पर जमा हो गया था पर उनकी अपनी पत्नी को विश्वास नहीं हो पाया कि ये उनके पति ही हैं।
७. 15 अगस्त 1947 को जब स्वतंत्रता की देवी अपनी आँखें खोल रहीं थीं, ये हुतात्मा चहल पहल और जलसों से दूर अपनी आँखें बंद कर रहा था, हमेशा के लिए , इन शब्दों के साथ कि उसका लक्ष्य पूरा हुआ।
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कौन थे ये महान हुतात्मा ?
ये थे शहीद-ए-आजम भगतसिंह के चाचा, उनके प्रेरणाश्रोत,और ब्रिटिश सत्ता को चुनौती देने वाले पंजाब के आरम्भिक विप्लवियों में से एक सरदार अजीत सिंह ( Sardar Ajit Singh ), जिन्हें अंग्रेजी सत्ता ने राजनीतिक विद्रोही घोषित कर दिया था और जिनके जीवन का अधिकांश भाग जेलों में बीता |
पंजाब के जालंधर जिले में एक छोटे से गाँव खटकरकलां में उन फ़तेह सिंह के यहाँ अजीत सिंह ( Sardar Ajit Singh )का जन्म हुआ था जिन्होंने महाराज रणजीत सिंह के साथ अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए और सब कुछ अंग्रेजी सरकार जब्त कर लिए जाने के बाबजूद भी अंग्रेजों के आगे घुटने नहीं टेके|
ऐसे परिवार में २३ जनवरी १८८१ को जन्में सरदार अजीत सिंह की पढाई पहले डी.ए.वी. कालेज लाहौर से हुयी और बाद में ला कालेज बरेली से परन्तु बीच में ही क्रान्तिकारी गतिविधियों और समाज सेवा के कार्यों में संलग्न हो जाने के कारण वो कानून की पढाई पूरी नहीं कर सके| वो १८५७ की तर्ज पर एक बड़ी क्रांति का आरम्भ चाहते थे और इस हेतु उन्होंने अथक प्रयास किये पर दुर्भाग्यवश ये सफल नहीं हो सके|
अपने प्रयासों को गति देने हेतु इन्होंने भारतमाता सोसाइटी की स्थापना की जो एक गुप्त संगठन था और जिसका उद्देश्य भारत को पराधीनता की बेड़ियों से किसी भी तरह से मुक्त कराना था| इसी समय पंजाब में ब्रिटिश शासन की गलत नीतियों के कारण किसानों में जबरदस्त असंतोष फैलने लगा और शीघ्र ही सरदार अजीत सिंह इस विद्रोह के सेनानायक बन कर सामने आये|
३ मार्च १९०७ को उन्होंने सरकार के विरुद्ध एक बहुत बड़ी रैली का आयोजन किया जिसमें एक अखबार के सम्पादक बांकेदयाल ने पगड़ी सम्हाल जट्टा, पगली सम्हाल नामक गीत प्रस्तुत किया| इस गीत की प्रसिद्धि इतनी फैली कि ये संघर्ष कर रहे किसानों के लिए मंत्र बन गया और सरदार अजीत सिंह का ये आन्दोलन पगड़ी सम्हाल जट्टा आन्दोलन के नाम से जाना जाने लगा| जल्दी ही सारा पंजाब अजीत सिंह के साथ नजर आने लगा और डर कर अंग्रेजी सरकार ने उन्हें १९०७ में लाला लाजपत राय के साथ बर्मा की मांडले जेल भेज दिया गया, जहाँ से मुक्ति के बाद वो वो इरान चले गए और अपने प्रयासों से इसे ब्रिटिश सत्ता के विरोध में भारतीयों का केंद्र बना दिया पर १९१० में ब्रिटिश शासन के दबाव में इरानी सरकार ने कार्यवाही करते हुए सभी गतिविधियों को बंद करा दिया|
अजीत सिंह जी( Sardar Ajit Singh ) इसके बाद रोम, जेनेवा, पेरिस और रिओ-डि-जेनेरियो गए और भारत को स्वतंत्र करने के प्रयास करते रहे| १९१८ में वो अमेरिका में सैन फ्रांसिस्को में ग़दर पार्टी के संपर्क में आये और इसके साथ जुड़ कर अहर्निश काम किया|
१९३९ में वो यूरोप लौटे और इटली में नेता जी सुभाष चन्द्र बोस के मिशन को सफल बनाने में भरसक सहायता की| १९४६ में वो भारत लौटे और देहली में कुछ समय बिताने के बाद डलहौजी में रहने लगे| १५ अगस्त १९४७ को जब सारा भारत आज़ादी की खुशियाँ मना रहा था, आज़ादी की लड़ाई का ये सेनानी इन शब्दों के साथ अपनी आँखें मूँद रहा था कि भगवान तेरा शुक्रिया, मेरा लक्ष्य पूरा हुआ|
डलहौजी के नजदीक पंजपुला में बनी उनकी समाधि हमें हमेशा प्रेरणा देती रहेगी| आश्चर्य कि भारतीयों को पीड़ित करने वाले डलहौजी का नाम अब भी एक स्थान के रूप इस देश में अमर है और अपने को तिल तिल कर गला देने वाले सरदार अजीतसिंह गुमनाम हो गए।
हुतात्मा को कोटि कोटि नमन एवं विनम्र श्रद्धांजलि–