Last Updated on July 22, 2019 by admin
सिंहासन के फायदे / लाभ : simhasana ke fayde / labh
1- इस आसन से मेरुदण्ड में दृढ़ता आती है ।
2- आमाशय, छोटी तथा बड़ी आँत, गुर्दे, जिगर और तिल्ली शुद्ध होकर अपना कार्य सुचारु रूप से करने लगते हैं ।
3- छाती से ऊपर के अंग-आँख, नाक, कान, जीभ आदि पुष्ट होते हैं।
4- जीभ, तालु और दाँत के जबड़े सशक्त बनते हैं।
5- देखने और सुँघने की शक्ति बढ़ती है और गले के सभी रोग दूर हो जाते हैं।
6- हकलाहट दूर होती है।
7- गले की जकड़न, श्वास और स्वर-संस्थान की खराबियाँ दूर होती हैं।
सिंहासन की विधि : simhasana ki Vidhi
इस आसन की 2 विधियाँ हैं
विधि नं -1
1-दोनों पैरों को पीछे की ओर मोड़कर, पंजों को खड़े रखते हुए एड़ियों पर बैठे। जैसाकि वज्रासन की स्थिति में बैठा जाता है। एड़ियाँ परस्पर मिली रहें,
परन्तु घुटने एक-दूसरे से दूर-दूर रहने चाहिए तथा ये पृथ्वी पर टिके रहने चाहिए।
2-अब दोनों जाँघों के बीच में दोनों हाथों को पृथ्वी पर जमाएँ ।
3- हथेलियों तथा अँगुलियों को भीतर की ओर रखें । परन्तु इस स्थिति में हाथ एकदम सीधे ही रहने चाहिए। कुहनियों से मुड़ने नहीं चाहिए।
4-अब पेट को थोड़ा-सा भीतर की ओर खींचकर छाती को उभारे तथा गर्दन को सीधा रखते हुए
जीभ को अधिक-से-अधिक बाहर निकालते हुए दृष्टि को नाक के अग्रभाग पर टिका दें।
विधि नं. 2 :
1-दोनों पैरों को पीछे की ओर मोड़कर, पंजों को खड़े रखते हुए एड़ियों पर बैठे । एड़ियाँ परस्पर मिली रहें तथा घुटने जमीन पर टिके हुए एक-दूसरे से अधिकाधिक दूरी पर रहें । अब दोनों हाथों को जाँघों के बीच ले जाकर, पृथ्वी पर टिका दें। हाथ के पंजे बाहर की ओर खुले रखें।
टिप्पणी – विधि नं. 1 में-पंजे भीतर की ओर रखे जाते हैं तथा विधि नं. 2 में-पंजे बाहर की ओर रहते है |
2-उक्त दोनों विधियों में से किसी भी एक विधि के अनुसार बैठ जाने के बाद कमर को थोड़ा-सा नीचे झुकाकर नाक से साँस लें तथा उसे गले से घरघराहट के रूप में छोड़े।
3- अन्त में कमर को थोड़ा-सा नीचे दबाते हुए भरपूर शक्ति से जोर-से गर्जना करें । गर्जना करते समय मुँह नीचे से उठता हुआ आकाश की ओर ऊँचा हो जाएगा ।
4-बीच-बीच में 1-1 मिनट का विश्राम लेते हुए उक्त क्रिया को 3 बार तक दोहराएँ।
नोट-सिंहासन करते समय मलद्वार की माँसपेशियों को सिकोड़ते रहना चाहिए।
विशेष :
‘सिंहासन’ आसन किसी भी विधि से किया जाए-लाभ समान रूप से प्राप्त होते हैं । इस आसन को किसी भी समय किया जा सकता है। स्त्री-पुरुष सभी के लिए यह उपयोगी है। चूंकि इस आसन में ‘सिंहनाद’ (गर्जना) भी करनी पड़ती है। अतः इसे किसी एकान्त स्थान में ही करना उचित रहता है।