Last Updated on July 22, 2019 by admin
अभ्रक क्या होता है ? : abhrak kya hota hai
यह बहुधा पर्वतों पर पाया जाता है। भारतवर्ष में सफेद, भूरा और काले रंग का अभ्रक मिलता है, बिहार प्रान्त में हजारीबाग और गिरीडीह तथा बंगाल में रानीगंज के आसपास कोयले की खानों के अन्दर मिलता है। राजस्थान में चित्तौड़, भीलवाड़ा में इसकी खाने हैं। यह तह पर तह जमे हुए बड़े-बड़े ढोकों (स्थानों) में पहाड़ों में मिलता है। साफ करके निकालने पर इसकी तह काँच की तरह निकलती है। इसके पत्र पारदर्शक, मृदु और सरलता से पृथक्-पृथक् किये जा सकते हैं। आयुर्वेद में इसकी गणना महारसों में की गयी है। भस्म बनाने के लिए वज्राभ्रक (काला अभ्रक) काम में लिया जाता है। वभ्रक में लोहे का अंश विशेष होने से इसकी भस्म बहुत गुणदायक होती है।
अभ्रक के प्रकार / भेद : abhrak ke prakar
आयुर्वेदीय मतानुसार, पनाक, दर्दूर, नागे और वज्राभ्रक भेद से अभ्रक चार प्रकार का होता है। इन्हें आग में डालने से जिस अभ्रक के पत्ते खिल जायें उसे “पनाक” और जो अभ्रक आग में डालने से मेढक के समान (टर्र-टर्र) आवाज करे उसे “दर्दुर” तथा जो अभ्रक आग में डालने से साँप की तरह फुफकार छोड़े, उसे “नाग” एवं जो अभ्रक आग पर डालने से अपना रूप नहीं बदले तथा आवाज भी न करे, उसे “वज्र’ कहते हैं। वज्राभ्रक का ही विशेषतया उपयोग भस्म और रसायनादि में किया जाता है। वज्राभ्रेक का धान्याभ्रक बनाकर | भस्मादि कामों में लिया जाता है।
वाभ्रक के लक्षण यदञ्जन-निभं क्षिप्तं न बह्नौ विकृतिं व्रजेत् ।।
बज्रसंज्ञं हि तद्योग्यमभं सर्वत्र नेतरत् ।।
-र० चि०
जो अभ्रक अंजन के समान काला हो और आग पर रखने से किसी तरह तिकृत न हो, वही “बज्राभ्रक” है। यह सर्वत्र हितकारक है। भस्मादिक काम में यही अभ्रक लेना उत्तम है।
अंजन समान कृष्णाभ्रक (बज्राभ्रक) वही होता है, जिसमें लौहांश अधिक हो। अच्छा कृष्णाभ्रक हिमालय तथा पंजाब में कांगड़ा जिले के नूरपुर तहसील की खानों में मिलता है और उ०प्र० में अल्मोड़ा के आगे बाघेश्वर में भी कहीं-कहीं मिलता है। कभी-कभी भूटान से भी यह अभ्रक आता है।
अच्छे अभ्रक की पहचान :
जो अभ्रक श्रेष्ठ कृष्णवर्ण का, छूने से चिकना और देखने में चमकदार ढेले के रूप में हो तथा जिसके पत्र मोटे हों और वे सहज ही खुल जाते हों एवं जो तौल में भारी हो, वह अभ्रक सबसे अच्छा होता है।
अभ्रक भस्म के गुण / रोगों में लाभ : abhrak bhasma ke gun / labh
अभ्रक भस्म अनेक रोगों को नष्ट करता है, देह को दृढ़ करता है एवं वीर्य बढ़ाता है। तरुणावस्था प्राप्त कराता और मैथुन करने की शक्ति प्रदान करता है। राजयक्ष्मा,कफक्षय, बढ़ी हुई खाँसी, उरःक्षत, कफ, दमा, धातुक्षय, विशेषकर मधुमेह, बहुमूत्र, बीसों प्रकार के प्रमेह, सोम रोग, शरीर का दुबलापन, प्रसूत रोग और अति कमजोरी, सूखी खाँसी, काली खाँसी, पाण्डु, दाह, नकसीर, जीर्णज्वर, संग्रहणी, शूल, गुल्म, आँव, अरुचि, अग्निमांद्य, अम्लपित्त, रक्तपित्त, कामला, खुनी अर्श (बवासीर), हृद्रोग, उन्माद, मृगी, भूत्रकृच्छ, पथरी तथा नेत्र-रोगों में यह भस्म लाभदायक सिद्ध हुई है। रसायन और वाजीकरण भी है।
सेवन की मात्रा और अनुपान :
1 से 2 रत्ती प्रातः-सायं रोगानुसार अनुपान अथवा शहद के साथ।
अभ्रक भस्म के उपयोग और फायदे : abhrak bhasma ke fayde / benefits
• त्रिदोष (वात, पित्त, कफ) में जो दोष-विशेष उल्बण अर्थात् बढ़े हुए हों, उन्हें शमित करने के लिए उचित अनुपान के साथ अभ्रक भस्म का सेवन करना चाहिए|
• शिलाजीत के साथ और कुष्ठ तथा रक्त-विकार में अभ्रक भस्म 1 रत्ती. बावची चूर्ण 4 रती खदिरारिष्ट के साथ दें।
• उदर रोगों में कुमार्यासव के साथ इसका सेवन करना लाभदायक है।
• राजयक्ष्मी की प्रारम्भिक अवस्था में जब रोगी कास और ज्वर से दुर्बल हो गया हो, उस अवस्था में प्रवाल पिष्टी, मृगशृङ्ग भस्म और गिलोय सत्त्व के साथ अभ्रक भस्म के नियमित सेवन से 80 प्रतिशत लाभ हुआ है। • रक्ताओं की कमी से उत्पन्न पाण्डु और कामला पर अभ्रक भस्म को मण्डूर भस्म और अमृतारिष्ट के साथ देने से बहुत लाभ होता है। आजकल डॉक्टर लोग शरीर में रक्त की कमी की पूर्ति दूसरों के रक्त का इंजेक्शन देकर करते हैं, किन्तु कभी-कभी इसके परिणाम भयंकर भी सिद्ध होते हैं। परन्तु आयुर्वेद में गुडूची सत्त्व के साथ, अभ्रक सेवन कराने से यह काम निरापद रूप से पूरा हो जाता है।
• संग्रहणी में अभ्रक भस्म का सेवन कुटजावलेह के साथ करने से यह आँव रोग को समूल नष्ट कर शरीर को नीरोग बना देती है। वातजन्य शूल में अभ्रक भस्म का सेवन शंख भस्म में मिलाकर अजवायन अर्क के साथ करना परमोपयोगी है।
• श्वास-रोग पुराना हो जाने पर रोगी बहुत कमजोर हो जाता है और बहुत खाँसने पर थोड़ा-सा चिकना सफेद कफ निकलता है तथा थोड़ा-सा भी परिश्रम करने से पसीना आ जाता है। ऐसी अवस्था में अभ्रक भस्म का सेवन पिप्पली चूर्ण के साथ मधु मिलाकर करना बहुत लाभदायक है। अथवा 1 तोला च्यवनप्राश चौथाई रत्ती स्वर्ण वर्क के साथ सेवन कराने से भी लाभ होता है।
• सामान्य कास कि कफस्राव होने पर शृङ्ग भस्म या वासावलेह के साथ तथा शुष्क कास रोग में प्रवाल पिष्टी, सितोपलादि चूर्ण तथा मक्खन या मधु के साथ इस भस्म का सेवन कराने से भी लाभ होता है।
• आँव (पेचिश) में कुटजारिष्ट के साथ, मन्दाग्नि में त्रिकटु (सोंठ, पीपल, मिर्च) चूर्ण के साथ तथा जीर्णज्वर में लघुवसन्तमालिनी के साथ अभ्रक भस्म विशेष लाभ करती है।
• रक्तार्श (खूनी बवासीर) पुराना हो जाने पर बारम्बार रक्तस्राव होने लगता है। शरीर में थोड़ा भी रक्त उत्पन्न होने से रक्तस्राव होने लगता है। ऐसी अवस्था में अभ्रक भस्म शुक्ति पिष्टी के साथ देने से रक्तस्राव बन्द हो जाता है।
• मानसिक दुर्बलता होने पर कार्य करने का उत्साह नष्ट हो जाता है। चित्त में अत्यधिक चंचलता रहती है। रोगी निस्तेज, चिन्ताग्रस्त और क्रोधी हो जाता है, ऐसी अवस्था में अभ्रक भस्म का सेवन मुक्तापिष्टी के साथ करना अधिक लाभप्रद है।
• ह्रदय की दुर्बलता को नष्ट करने के लिए अभ्रक भस्म बहुत उपयोगी हैं। नागार्जुनाभ्र जो हृदय-पुष्टि के लिए ही प्रसिद्ध हैं, इसके गुणों में सहस्रपुटी अभ्रक भस्म का ही विशेष प्रभाव है। अभ्रक भस्म हृदय को उत्तेजना देने वाली है. किन्तु यह कपूर और कुचिला के समान हृदय को विशेष उत्तेजित नहीं करती। यह हृदय के स्नायुमंडल को सबल बनाकर हृदय में स्फूर्ति पैदा करती है। अभ्रक सहस्रपुटी 1-1 रत्ती को मधु में मिलाकर सेवन करने से हृदय रोग में अच्छा लाभ होता है।
• पुरानी खाँसी, श्वास, दमा आदि रोगों में रोगी खाँसते-खाँसते या दमा के मारे परेशान हो जाता हो, स्वासनली या कण्ठ में क्षत (घाव) हो गया हो, ज्यादा खाँसने पर जरा-सा सफेदचिकना कफ निकल पड़ता हो, रोगी पसीना से तर हो जाता हो इन कारणों से दुर्बलता विशेष बढ़ गयी हो, तो अभ्रक भस्म, पिप्पली चूर्ण और मिश्री की चाशनी के साथ मिलाकर लेने से अच्छा लाभ करती है।
• चिरस्थायी (बहुत दिनों का) अम्लपित्त रोग में अनेक दवा करके थक गए हों. अनेक डॉक्टर या वैद्य, हकीम असाध्य केहकर छोड़ दिये हों, पेट में दर्द बना रहता हो, हर वक्त वमन करने की इच्छा होती हो, कुछ खाते ही वमन हो जाय, वमन के साथ रक्त भी निकलता हो, तो ऐसी अवस्था में अभ्रक भस्म को अम्लपित्तान्तक लौह और शहद के साथ मिलाकर देने से बहुत शीघ्र लाभ होता है।
• प्रसूत रोग में देवदार्वादि क्वाथ अथवा दशमूल क्वाथ या दशमूलारिष्ट के साथ अभ्रक भस्म का सेवन लाभप्रद है।
• धातुक्षीणता की बीमारी में च्यवनप्राश और प्रवाल पिष्टी के साथ इसका सेवन करना उत्तम हैं।
• अभ्रक भस्म योगवाही है। अतः यह अपने साथ मिले हुए द्रव्यों के गुणों को बढ़ाती है। पाचन विकार को नष्ट कर आंत को सशक्त बनाने और रुचि उत्पन्न करने के लिए अभ्रक भस्म को मिश्रण देना अत्युत्तम है।
• संग्रहणी में अभ्रपर्पटी (गगन पर्पटी) उत्तम कार्य करती है। मलावरोध तथा संचित मल के विकारों के लिये अभ्रपर्पटी का प्रयोग महोपकारी है।
अभ्रक भस्म से रोगों का उपचार : abhrak bhasma se rogon ka upchar
1) प्रमेह के लिए – ‘अभ्रक भस्म को पीपल और हल्दी के चूर्ण में मिला शहद (मधु) के साथ दें।
2) क्षय के लिए – सोना भस्म चौथाई रत्ती (अथवा वर्क) सितोपलादि चूर्ण या च्यवनप्राशावलेह में मिला न्यूनाधिक मात्रा में घी और शहद के साथ दें।
3) रक्तपित्त के लिए- अभ्रक भस्म को गुड़ या शक्कर और हरड़ का चूर्ण मिलाकर या इलायची का चूर्ण और चीनी मिलाकर दूर्वा-स्वरस के साथ दें।:
4) बवासीर (अर्क) पाण्डु और क्षय के लिए-दालचीनी, इलायची, नागकेशर, तेजपा, सोंठ, पीपर, मिर्च, आँवला, हरड़, बहेड़े को महिन चूर्ण,चीनी या मिश्री मिलाकर शहद के साथ हैं। ( और पढ़ें – बवासीर के मस्से जड़ से खत्म करेंगे यह 9 देशी घरेलु उपचार )
5) भूत्रकृच्छ के लिए – इलायची, गोखरू, भूमि-आँवले का चूर्ण एवं मिश्री मिलाकर दूध के साथ हैं। ( और पढ़ें –पेशाब रुक जाने के 24 रामबाण घरेलु उपचार )
6) जीर्णज्वर और भ्रम के लिए- पिपलामूल का चूर्ण मिलाकर शहद के साथ दें
7) नेत्र की ज्योति अढ़ाने के लिए – त्रिफला, हरड़, बहेड़ा, आँवला के चूर्ण और शहद के साथ दें। ( और पढ़ें – चाहे चश्मा कितने भी नंबर का हो वो भी उतरेगा )
8) व्रण-नाश के लिए- मूर्वा का चूर्ण मिलाकर शहद के साथ दें।
9) बल-वृद्धि के लिए – विदारीकन्द का चूर्ण मिलाकर गाय के थारोष्ण दूध के साथ दें। ( और पढ़ें – शक्तिवर्धक कुछ खास प्रयोग )
10) अम्लपित्त में – आँमला चूर्ण डेढ़ माशा या आमला-रस 1 तोला के साथ दें। ( और पढ़ें – एसिडिटी के सफल 59 घरेलु उपचार )
11) स्नायु दौर्बल्य में – अभ्रक भस्म 1 रत्ती को मकरध्वज आधी रत्ती के साथ मिलाकर मक्खन या मलाई के साथ दें।
12) हृदय रोग में – अभ्रक भस्म एक रत्ती को मोती पिष्टी 1 रत्ती और अर्जुनाल चूर्ण 4 रत्ती के साथ मधु में मिलाकर दें। ( और पढ़ें – हृदय की कमजोरी के घरेलू उपचार )
13) वातव्याधि के लिए – सोंठ, पुष्करमूल, भारङ्गी और असगन्ध का चूर्ण मिलाकर शहद (मधु) के साथ दें। ( और पढ़ें – वात नाशक 50 घरेलु उपचार)
14) पित्त-प्रकोप में – दालचीनी, इलायची, तेजपात और नागकेशर का चूर्ण मिलाकर चीनी या मिश्री के साथ दें। ( और पढ़ें – पित्त को शांत करने के घरेलु उपचार )
15) कफ-प्रकोप में – कायफल और पिप्पली के चूर्ण में शहद के साथ दें। ( और पढ़ें – कफ दूर करने के सबसे कामयाब 35 घरेलु उपचार )
16) अग्नि प्रदीप्त के लिए- यवछार , सुहागे की खील (फुला), सज्जीखार के चूर्ण में मिलाकर गर्म जल के साथ दें।
17) मूत्राघात और पथरी के लिए- मूत्रकृच्छ्र का अनुपान ठीक है।
18) पाण्डु, संग्रहणी और कुष्ठ के लिए – वायडिंग, त्रिकुटा और घी के साथ 2-4 रत्ती की मात्रा में अभ्रक भस्म सेवन करें। ( और पढ़ें –कुष्ठ (कोढ़) रोग का 17 घरेलु इलाज )
19) धातु बढ़ाने के लिए- सोना और चाँदी की भस्म चौथाई रत्ती या वर्क ,छोटी इलायची के चूर्ण और शहद (मधु) यो मक्खन के साथ दें। ( और पढ़ें – वीर्य वर्धक चमत्कारी 18 उपाय )
अभ्रकभस्म के नुकसान : abhrak bhasma ke nuksan (side effects)
1-अभ्रक भस्म केवल चिकित्सक की देखरेख में लिया जाना चाहिए।
2-अधिक खुराक के गंभीर दुष्प्रभाव हो सकते हैं ।
3-डॉक्टर की सलाह के अनुसार अभ्रक भस्म की सटीक खुराक समय की सीमित अवधि के लिए लें।