टी.बी (क्षय रोग / यक्ष्मा / तपेदिक) क्या है ? : TB kya hai
क्षय रोग, यक्ष्मा अथवा तपेदिक जिसे अंग्रेजी में टयूबरकुलोसिस (टी.बी) भी कहते हैं। यह एक छूत का (संक्रामक रोग है । जो एक से दूसरे में बहुत तेजी से हो जाता है । उचित चिकित्सा के अभाव में यह रोग मारक सिद्ध होता है ।
टी.बी रोग मायकोबेक्टेरियम टयूबरकुलोसिस नामक जीवाणु के संक्रमण से होने वाला रोग है। इसमें प्रायः मरीज के फेफड़े ही प्रभावित होते हैं लेकिन बीमारी, त्वचा, आँतों, हड्डियों, जोड़ों, मस्तिष्क की झिल्लियों, और जनन अंगों को भी प्रभावित कर सकती है। लसिका ग्रन्थियों में भी रोग का संक्रमण हो सकता है। इस तरह केवल यह मानना कि तपेदिक फेफड़ों का रोग है सही नहीं है। यह शरीर के प्रायः सभी अंगों में हो सकता है।
टी.बी रोग की जानकारी प्राचीन काल में भी लोगों को रही है। आज से 50-60 वर्ष पूर्व इस रोग को बहुत बड़ा हत्यारा माना जाता था। यह रोग जिसको लग जाता था उसकी मौत सुनिश्चित समझी जाती थी। लेकिन अब ऐसा नहीं है। चिकित्सा विज्ञान की प्रगति के कारण मरीज कुछ ही महीनों के इलाज से पूर्णरूपेण स्वस्थ हो जाता है और यदि वह पूरा इलाज ले ले तो भविष्य में भी उसे रोग नहीं होता । अतः टी.बी (क्षय रोग) असाध्य नहीं है।
टी.बी में रोग का जीवाणु शरीर में क्या करता है ? :
इस बीमारी में जीवाणु आक्रमण करके एक ट्यूबरकल या उभार का निर्माण करते हैं। इसमें श्वेत रक्त कोशिकाओं (लिम्फोसाइट्स) जीवाणु तथा ऊतकों के तंतु होते हैं। यह ट्यूबरकल शुरू में आकार में बढ़ता है, फिर इसके बीच के भाग की कोशिकाएँ नष्ट होने लगती हैं और यह आसपास के ऊतकों को भी नष्ट करता है। चूंकि इस रोग में ट्यूबरकल का निर्माण होता है इसलिए इस रोग को ट्यूबरकुलोसिस कहा जाता है।
शुरू में संक्रमण केवल फेफड़ों में होता है लेकिन यह टांसिल और आँतों में भी जा सकता है। प्राथमिक संक्रमण गरदन की लसिका ग्रन्थियों और आँतों की लसिका ग्रन्थियों में भी हो सकता है। कई मरीजों में यह बीमारी संक्रमित भाग में कैलशियम जमा होने के पश्चात् ठीक हो जाती है। लेकिन कुछ मरीजों में जीवाणु शरीर के किसी भी हिस्से में जाकर बीमारी उत्पन्न करते हैं। जीवाणु रक्त द्वारा एक स्थान से दूसरे स्थान तक जाते हैं।
जब प्राथमिक संक्रमण ठीक नहीं हो पाता तो फिर यह फेफड़ों में फैलकर फेफड़ों का क्षय रोग उत्पन्न करता है। इसके अलावा यह रोग हृदय और मस्तिष्क की झिल्लियों, पेट, जनन अंगों इत्यादि में भी फैल सकता है। क्षय रोग का संक्रमण फेफड़ों में कई तरह का हो सकता है जैसे छोटे-छोटे धब्बों के रूप में या गुहाओं (केविटीज़) के रूप में, इत्यादि।
आइये जाने टीबी के क्या लक्षण है,tb ke kya lakshan hote hai
टी.बी के लक्षण : TB ke lakshan
यह रोग आयुर्वेद के मतानुसार वात, पित्त, एवं कफ तीनों दोषों के कारण हो सकता है –
यदि टी.बी किसी रोगी को वात प्रधान होगा तो उसकी पसलियों और कन्धों में दर्द होगा ।
- यदि टी.बी पित्त प्रधान होगा तो ज्वर रहेगा, खून की उल्टियां और खूनी दस्त होंगे ।
- यदि टी.बी कफ प्रधान होगा तो खाँसी और बुखार का जोर रहेगा ।
- रोग की अन्तिमावस्था में सब कुछ कफ प्रधान ही हो जाता है । टी.बी में बुखार तोड़ने की औषधि सेवन नहीं करना चाहिए। क्योंकि रोग का लक्षण छिपा लेने से रोग नष्ट नहीं होता है, बल्कि कालान्तर में और भी अधिक उग्र रूप धारण कर लेता है ।
आइये जाने टीबी कितने प्रकार की होती है, t b kitne prakar ki hoti hai
टी.बी के प्रकार : TB ke prakar
टी.बी रोग में कई तरह के लक्षण मिलते हैं। लक्षणों को दो श्रेणियों में बाँट सकते हैं।
(1) संक्रमण के कारण वे लक्षण जो पूरे शारीरिक तन्त्र को प्रभावित करते हैं :
इनमें थकान, कमजोरी, भूख न लगना, वजन घटना, रक्ताल्पता, रात में सोते समय पसीना आना, बुखार रहना (बुखार अक्सर दोपहर बाद या शाम को आता है) इत्यादि शामिल हैं।
(2) स्थानीय अंगों में संक्रमण के कारण उत्पन्न लक्षण :
• फेफड़ों के क्षय रोग में- खाँसी, खंखार में रक्त आना, साँस लेने में तकलीफ, सीने में दर्द इत्यादि
• स्वर यंत्र का क्षय रोग- आवाज मोटी हो जाना, खाने में तकलीफ होना।
• आँतों का क्षय रोग- दस्त लगना, पेट दर्द, आँतों में रुकावट, खाने का अवशोषण ठीक से न होना।
• गुर्दे (किडनी) का क्षय रोग- पेशाब से खून आना, बार-बार पेशाब जाना।
• डिंब नलिकाओं (फेलोपियन ट्यूब्स) का क्षय रोग- नलिकाओं में सूजन, मवाद बनना, बांझपन।
• मस्तिष्क की झिल्लियों (मेनिनजीन) का क्षय रोग- सिर दर्द, गरदन में अकड़न, झटके आना (कनवलशन) उल्टियाँ होना।
• लसिका ग्रन्थियों का क्षय रोग- ग्रन्थियों का आकार बढ़ना, उनमें मवाद पड़ना, दर्द होना।
• हड्डियाँ एवं जोड़ों का क्षय रोग- दर्द और सूजन आना, मवाद पड़ना, फोड़े (एब्सेस) बनना।
आइये जाने टी बी रोग कैसे होता है ,tb kin karno se hota hai
टी.बी (क्षय रोग) होने के कारण : TB hone ka karan
टी.बी होने में कई कारण सहायक होते हैं। जैसा कि बतलाया जा चुका है कि यह एक संक्रमण रोग है। गाँव-देहातों में स्वास्थ्य सुविधाएँ उपलब्ध न होने के कारण रोग का निदान और इलाज जल्दी नहीं हो पाता। ऐसी स्थिति में टी.बी रोगी, जो इलाज नहीं ले पाते हैं, जब खाँसते है तो लाखों की संख्या में रोग के जीवाणु ड्रापलेट्स अथवा बलगम की छोटी-छोटी बूंदों के द्वारा बाहर निकलते हैं। आसपास मौजूद स्वस्थ व्यक्ति जब इन जीवाणुओं को श्वास द्वारा खींचते हैं तो उन्हें भी तपेदिक का संक्रमण लग जाता है। जैसा कि कहा जा चुका है कि विश्व में 15 से लेकर 20 करोड़ क्षय रोगी हैं जो अन्य स्वस्थ व्यक्तियों में रोग फैला रहे हैं। इस तरह प्रभावी नियंत्रण के अभाव में भी रोग फैल रहा है। अतएव स्वस्थ व्यक्तियों का रोगी से बचाव भी जरूरी है।
आइये जाने टीबी (क्षय रोग) से कैसे बचें,tb se kaise bache
टी.बी (क्षय रोग) से बचाव : TB se bachne ke upaye
- सदा खुली हवा और खुली जगह में रहिए। भीड़-भाड़ से बचिए।
- रात को कमरे की खिड़की खुली छोड़कर सोइए, जिससे स्वस्थ वायु आ-जा सके।
- गर्मी, धूल और धूप से बचिएं।
- अपना घर और आसपास की जगह साफ रखिए।
- रोगी का प्याला, चम्मच, तौलिया, चिलमची अपने काम में मत लीजिए।
आइये जाने टी.बी के मरीज को क्या खाना चाहिए, tb me khanpan
टीबी (क्षय रोग) में क्या खाना चाहिए : tb me kya khana chaiye
- टी.बी रोग में हितकारी आहार का सेवन करना चाहिए। हल्का, ताजा एवं सरलता से पचनेवाला आहार अनुकूल होता है।
- निश्चित समय पर एवं थोड़ा-थोड़ा आहार हितकारी सिद्ध होता है।
- इस रोग में बकरी का दूध बड़ा ही लाभकारी होता है। बकरी का दूध न मिले तो गाय के दूध का सेवन करना चाहिए।
- इस रोग में पौष्टिक आहार दें। घी, मक्खन भी हितकर होता है।
- फलों में संतरा, मौसंबी, अनार, सेब, अंगूर, पपीता आदि लाभकारी होते हैं।
- लहसुन का सेवन भी क्षय-नाश में उपयोगी माना गया है।
आइये जाने टी.बी का आयुर्वेदिक इलाज ,देसी नुस्खे
टीबी (क्षय रोग) का घरेलू इलाज : TB ka gharelu ilaj in hindi
1) प्रथम दिन 10 ग्राम की मात्रा में गौमूत्र पिलायें, 3 दिन पश्चात् 15 ग्राम कर दें । इसी क्रम से प्रत्येक 3 दिन बाद गौमूत्र की मात्रा 5-5 ग्राम बढ़ाते जाये । इस प्रकार मात्रा बढ़ाते हुए 50 ग्राम तक प्रतिदिन पिलायें । निरन्तर गौमूत्र । के सेवन से टी.बी नष्ट हो जाता है। ( और पढ़ें – T.B.रोग का सरल 24 आयुर्वेदिक उपचार )
2) काली मिर्च, गिलोय सत्व, छोटी इलायची के दाने, असली वंशलोचन, शुद्ध भिलावा सभी को बराबर लेकर कूटपीसकर कपड़छन चूर्ण कर लें। दिन में 3 बार 2 ग्रेन (1रत्ती) की मात्रा में यह औषधि मक्खन या मलाई में रखकर रोगी को सेवन करायें । टी० बी० का अमृत तुल्य योग है । ( और पढ़ें –कालीमिर्च के 51 हैरान कर देने वाले जबरदस्त फायदे )
3) सुबह-शाम गधी का दूध 100-100 ग्राम की मात्रा में क्षय के रोगी को पिलाना अत्यन्त ही लाभकर है । यह टी.बी नाशक तथा पौष्टिक होता है ।
4) हल्दी से टी.बी का इलाज – सौ ग्राम हल्दी लेकर कूट पीस छानकर रख लें । इसे आक के दस ग्राम दूध में रचा लें । यदि खून की उल्टियाँ (पित्त प्रधान) आ रहीं हों तो बड़ या पीपल का दूध डालें । इसे 2-2 रत्ती की मात्रा में सुबह-शाम सेवन करायें । ( और पढ़ें – हल्दी के अदभुत 110 औषधिय प्रयोग )
5) लहसुन से टी.बी का इलाज – छिलके रहित लहसुन 250 ग्राम, बकरी का दूध 1 कि.ग्रा. गाय का घी ढाई किलोग्राम तथा जल 10 किलोग्राम, लें । लहसुन को यवकुट करके जल में चतुर्थांश शेष रहने तक पकायें । फिर उसमें घी तथा दूध डालकर घृत सिद्ध होने तक पकायें । इस घृत को धान्य राशि (अनाज के ढेर) में 1 माह तक रखने के बाद 5 से 10 ग्राम की मात्रा में सुबह शाम सेवन करायें । इस योग के सेवन करने से टी.बी शर्तिया ही नष्ट हो जाती है ।
यही नहीं, बल्कि इस घृत के प्रभाव से बन्ध्या (बाँझ औरत) नपुंसक एवं वृद्ध पुरुषों तक में अपार ताकत का संचार होकर काम-शक्ति बढ़ जाती है।
6) लहसुन छिला हुआ 1 किलो यवकूट कर 500 ग्राम गाय के घी में डालकर किसी घी के ही चिकने पात्र में रखकर धान्य राशि में 1 वर्ष तक पड़ा रहने दें। तदुपरान्त इसका टी.बी रोग के रोगी को सेवन कराने से टी.बी रोग अवश्य ही नष्ट हो जाता है । ( और पढ़ें – लहसुन के औषधिय प्रयोग )
7) लहसुन 5 ग्राम, घृत 10 ग्राम, मधु 5 ग्राम को मिलाकर अवलेह जैसा बनाकर, ऐसी एक-एक मात्रा नित्य सुबह शाम सेवन करने (भोजन में दूध चावल लें) से टी.बी रोग नष्ट हो जाता है । रोगी रोग मुक्त होकर दीर्घायु हो जाता है ।
8) अस्थि क्षय (Bone T. B.) में लहसुन की चर्बी, शहद या घृत अथवा ताजा निकाले मक्खन की लौनी के साथ लेप करने से आराम आ जाता है । रोग की अवस्थानुसार प्रतिदिन 1 या 2 बार महीना डेढ़ महींना प्रयोग जारी रखें ।
9) काली मिर्च 9 नग, निम्बपत्र 9 नग, दोनों को 5 लीटर पानी में उबाले। आधा जल शेष रहने पर छान लें । टी.बी से पीड़ित रोगी को यह जल पीना परम गुणकारी है । सुबह का बनाया जल शाम तक तथा शाम का बनाया जेल सुबह तक 12 घन्टे में पी लेना चाहिए ।
10) चूने का निथरा हुआ पानी और बकरी का दूध मिलाकर पीने से टी.बी रोग नष्ट हो जाता है ।
11) टी.बी रोगी के लिये बकरी का दूध, बकरी का घी व बकरियों के बीच रहना अर्थात हर प्रकार से छाग (बकरी) का सेवन यक्ष्मा नाशक है ।
टी बी (क्षय रोग) की आयुर्वेदिक दवा : TB ki dawa
टी.बी (क्षय रोग) में शीघ्र राहत देने वाली लाभदायक आयुर्वेदिक औषधियां |
1) गोझरण अर्क Gaujaran Ark)
2) तुलसी अर्क (Tulsi Ark)
3) अडूसी अर्क (Ardusi Ark)
(दवा व नुस्खों को वैद्यकीय सलाहनुसार सेवन करें)