विवेक से काम लें (प्रेरक हिंदी कहानी)

Last Updated on July 22, 2019 by admin

बोध कथा : Hindi Storie With Moral

एक बार, एक बहुत ही प्रतिष्ठित और नामी बैरिस्टर ट्रेन के फर्स्ट क्लास कम्पार्टमेण्ट में सफ़र कर रहे थे । संयोगवश वे कम्पार्टमेण्ट में अकेले थे लेकिन एक स्टेशन पर गाड़ी रुकी तो एक आधुनिक फैशनेबल और मॉडल सी दिखने वाली युवती ने उनके कम्पार्टमेण्ट में प्रवेश किया और बड़ी अदा से सामने वाली बर्थ पर बैठ गई । जैसे ही ट्रेन रवाना हुई युवती ने बातचीत का सिलसिला शुरू करने के लिए अपना नाम बता कर बैरिस्टर का परिचय पूछा ।

बैरिस्टर ने अपना नाम और परिचय बताया तो वह युवती बड़े ठण्डे स्वर में बोली – आपके पास जितना रुपया पैसा हो वह निकाल कर दे दीजिए वरना मैं जंजीर खींच कर अपने कपड़े फाड़ कर शोर मचा दूंगी कि मुझे अकेली पा कर आपने मेरी इज्ज़त लूटने की कोशिश की है । अचानक यह धमकी सुन कर पहले तो बैरिस्टर सन्नाटे में आ गये लेकिन उन्होंने विवेक से काम लिया और बोले – मैं कुछ नहीं दूंगा तुम्हारी मर्जी पड़े सो करो ।

यह कह कर उन्होंने कुछ सोचा और सिगार निकाल कर सुलगा लिया और इत्मीनान से कश लगाने लगे । युवती ने जब बैरिस्टर का जवाब सुना तो उसने उठ कर चैन खींच दी और अपने कपड़े और बाल नोच डाले । बैरिस्टर टस से मस नहीं हुए और मज़े से सिगार के कश लगाते रहे तभी गाड़ी रुक गई तो वह युवती रोने चिल्लाने लगी । उसकी आवाज़ सुन कर ट्रेन कण्डक्टर और टी.टी. आई, दौड़े हुए आये साथ में कई यात्री भी आ गये । वह युवती रोते हुए सब को अपनी दुर्दशा का हाल बताने लगी जिसका मतलब था कि अकेला पा कर इस आदमी ने उसके साथ बलात्कार करने की कोशिश की तो उसे चैन खींचनी पड़ी।

सब ने उसके अस्त व्यस्त कपड़े और बाल देखे और फिर बैरिस्टर को देखा जो दिखने में बड़ा शरीफ़ और सभ्रान्त दिख रहा था और ऐसी घिनौनी हरकत ? और उस पर ढीटपना तो देखो, बैठा मज़े से सिगार फेंक रहा है । यात्री आपस में उसकी इस हरकत पर लानत मलामत कर रहे थे । हालात देख कर कण्डक्टर ने रेलवे पुलिस का जो कांस्टेबल ऑन ड्यूटी था उसे बुला लिया। उसने सारा माजरा देखा और कठोर लहज़े में बोला – क्यों मिस्टर, यह क्या हरकत की आपने ?

बैरिस्टर वैसे ही शान्त मुद्रा में बैठे रहे और बोले – यह लड़की झूठ बोल रही है । मैंने इसे हाथ तक नहीं लगाया है । कांस्टेबल बोला – यह आप कैसे कह सकते हैं । यह लड़की झूठी बात कह कर अपनी बदनामी क्यों करेगी ? बैरिस्टर ने सिगार का कश लगाया और शान्त स्वर में बोले – यह बात मैं कैसे कह सकता हूं यह तो मैं बाद में बताउंगा पहले यह बात बता दें कि लड़की ने ऐसा क्यों किया? इसने मुझे कहा कि मेरे पास जो भी रुपया पैसा है वह इसे दे दें वरना यह चैन खींच कर शोर मचा देगी । मैंने इसे रुपया पैसा नहीं दिया इसलिए यह ऐसा नाटक कर रही है । रही बात मेरी कि मैं ऐसा कैसे कह सकता हूं तो कण्डक्टर साहब यह लड़की इस कम्पार्टमेण्ट में कब आई थी । कण्डक्टर बोला – अभी इसी स्टेशन से ।
बैरिस्टर बोले – तब से अब तक कितना समय हुआ होगा ।
कण्डक्टर बोला – लगभग 8-10 मिनिट हुए होंगे।
बैरिस्टर बोले – अब मेरे सिगार को देखिए । इस पर जितनी राख जमी हुई है उतना सिगार जल चुका है । यदि मैं अपनी जगह से हिला भी होता तो सिगार की यह राख झड़ चुकी होती । यह सिगार मैंने तभी सुलगा लिया था यह सोच कर कि सिगार की राख झटका दिये बिना गिरती नहीं और मैं झटका दूंगा नहीं । सिगार पर जमी राख इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण है कि मैं दस मिनिट से अपनी जगह पर बैठा हूं । मैं एक प्रतिष्ठित बैरिस्टर हूँ । इसकी धमकी सुन कर पहले तो मैं सन्नाटे में आ गया था पर मैंने विवेक से काम लिया और बचाव का यह अकाट्य उपाय सोच लिया । यह दलील सुन कर सब यात्री उस युवती को धिक्कारने लगे और कांस्टेबल ने युवती को हिरासत में ले लिया ।

शिक्षा : आपने एक सूत्र सुना या पढ़ा होगा – विनाश काले विपरीत बुद्धि । यह चाणक्य नीति का वचन है जिसका अर्थ है कि जब विनाश काल यानी बुरा वक्त आता है तब मनुष्य की बुद्धि उलटी हो जाती है । इसे यूं भी कहा जा सकता है कि जब बुद्धि उलटी हो जाती है तब विनाश काल आता है । जो भी हो, बुद्धिमानी इसी में है कि विपत्ति के समय विवेक से काम लिया जाए । विवेक हमारा अत्यन्त विश्वसनीय शुभचिन्तक मित्र है जिसके बल पर हम किसी भी उलझन को सुलझा सकते हैं, किसी भी विपत्ति पर विजय प्राप्त कर सकते हैं । दुःख विपत्ति पड़ने पर चिन्ता नहीं, चिन्तन करना चाहिए क्योंकि चिन्ता करने से जहां निर्बलता बढ़ती है वहां चिन्तन करने से समस्या का कोई न कोई हल निकल ही आता है । विपत्ति के समय विवेक रूपी मित्र का साथ कदापि नहीं छोड़ना चाहिए ।

Leave a Comment

error: Alert: Content selection is disabled!!
Share to...