महामना मदनमोहन मालवीयजी के हृदय में अपनी राष्ट्रभाषा के प्रति अपार प्रेम था। एक बार वे इलाहाबाद विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में भाषण दे रहे थे। अभी उन्होंने कुछ ही वाक्य बोले होंगे कि एक नवयुवक बीच सभा में से उठ खड़ा हुआ व ऊँची आवाज में बोलाः “Sir, Speak in English. We can’t catch your Hindi.” अर्थात् ʹश्रीमान् ! आप अंग्रेजी में बोलिये। आपकी हिन्दी हमारी समझ में नहीं आती।ʹ)
यह सुनकर मालवीय जी ने दृढ़तापूर्वक प्रखर स्वर में कहाः “महाशय ! मुझे अंग्रेजी बोलनी आती है। शायद हिन्दी की अपेक्षा मैं अंग्रेजी में अपनी बात अधिक अच्छे ढंग से कह सकता हूँ परंतु मैं एक पुरानी अस्वस्थ परम्परा को तोड़ना चाहता हूँ।” यह सुनकर वह युवक बहुत शर्मिन्दा हुआ और उसे एक नयी प्रेरणा मिली।
Sant Shri Asaram ji Ashram (Tejasvi Bano Book)