Last Updated on November 21, 2019 by admin
रजत भस्म (चांदी भस्म या रौप्य भस्म) क्या है ?
रजत भस्म चांदी से तैयार एक आयुर्वेदिक दवा है। इसका उपयोग चक्कर आना, नेत्र रोग,शक्ति,दाह ,मस्तिष्क की दुर्बलता,पाण्डु रोग,अत्यधिक प्यास, मधुमेह ,वात,अनिद्रा,ज्वर,सुखी खाँसी आदि के आयुर्वेदिक उपचार में प्रयोग किया जाता है। रजत भस्म को रौप्य भस्म, चांदी भस्म के नाम से भी जाना जाता है। चाँदी एक सुप्रसिद्ध धातु है। हिन्दुस्तान में बहुत प्राचीन काल से यह औषध प्रयोग के काम में आती है। इसकी गणना खनिज द्रव्यों में की जाती है।
भस्म करने योग्य चाँदी – तौल में भारी, चिकनी, कोमल और आग में तपाने तथा तोड़ने में सफेद, घन की चोट सहन करनेवाली, सुन्दर वर्णयुक्त और चन्द्रमा के समान निर्मल, इन गुणों से युक्त चाँदी भस्म के लिये अच्छी होती है।
रजत भस्म शोधन विधि : Rajat Bhasma Shodhan Vidhi
चाँदी के (कंटकवेधी) पत्रों को आग में तपा-तपाकर तैल, गो-मूत्र, मट्ठा, कांजी और कुलथी के क्वाथ में २-३ बार बुझाने से चांदी शुद्ध होती है।
भस्म बनाने की विधि : Rajat Bhasma Bnane ki Vidhi
चाँदी के पत्र से दूनी हरताल को सत्यानासी के क्वाथ में महीन पीसकर, शुद्ध चाँदी के पत्रों पर लेप कर, सुखाकर, सम्पुट में रख, कपड़-मिट्टी कर १ सेर कण्डों की आँच का पुट दें। दूसरे पुट में आधी और तिसरी पुट में चौथाई हरताल लेवें, इस प्रकार १० पुट दें। क्रमशः आँच थोड़ी-थोड़ी बढाती जायें, पीछे गुलाब के फूलों के स्वरस में पीसकर, टिकिया बना, सुखाकर, सराब-सम्पुट में रख ५ सेर कण्डों की आँच दें। ऐसे तीन पुट देने से उत्तम भस्म बनती है और इसी भस्म को रस-रसायन के काम में लावें।
– सि.यो.सं.
वक्तव्य- चौथे पुट से १० पुट तक प्रतिबार चौथाई भाग हरताल मिलाकर ही पुट दें।
नोट-घर पर किसी औषधि को बनाने की योग्यता, क्षमता, कुशलता और विधि-विधान की जानकारी प्रत्येक व्यक्ति को नहीं हो सकती, फिर भी कुछ पाठक घटक द्रव्य और निर्माण विधि को भी बताने का आग्रह करते हैं। उनके संतोष के लिए हम योग के घटक द्रव्य और उसकी निर्माण विधि का विवरण भी प्रस्तुत कर दिया करते हैं।
मात्रा और अनुपान : Rajat Bhasma Dosage & How to Take in Hindi
१ रत्ती, सुबह-शाम मधु, घृत, मलाई, मक्खन, मिश्री आदि के साथ दें।
रोगानुसार अनुपान :
1- नेत्र रोग में –चॉदी भस्म १ रत्ती को मुलेठी चूर्ण ४ रत्ती के साथ महात्रिफलादि घृत में मिलाकर दें। ( और पढ़े – आँखों की रौशनी बढ़ाने के 44 घरेलू नुस्खे)
2-वीर्य-वृद्धि के लिये- चाँदी भस्म १ रत्ती, मोती भस्म आधी रत्ती, वंशलोचन, छोटी इलायची, केशर का चूर्ण प्रत्येक दो-दो रत्ती शहद में मिलाकर दें। ऊपर से गोदुध मिश्री मिला हुआ पीवें अथवा चाँदी भस्म १ रत्ती को प्रवाल भस्म १ रत्ती के साथ मक्खन में मिलाकर दें।
3-शक्ति – विशेष शारीरिक परिश्रम अथवा मानसिक चिन्ता, भय, शोक आदि कारणों से वात बढ़ जाता है और मस्तिष्क की शक्ति कमजोर हो जाती है। ऐसी अवस्था में रौप्य भस्म १ रत्ती, असगन्ध का चूर्ण १ माशा मधु के साथ देने से बहुत शीघ्र लाभ करती है। ( और पढ़े – बल वीर्य वर्धक चमत्कारी 18 उपाय)
4-पित्त विकार में –रौप्य भस्म आधी रत्ती, गुलकन्द १ तोला या आँवले के मुरब्बे के साथ देने से पित्त -विकार शमन हो जाता है।
5-दाह में- मिश्री १ माशा और चाँदी भस्म आधी रत्ती मिला कर दें। ऊपर से धनिये का हिम पिला दें।
6-बढ़े हुए वात और पित्त दोष में- चाँदी भस्म १ रत्ती, अभ्रक भस्म १ रत्ती, छोटी इलायची चूर्ण २ रत्ती, मधु के साथ आँवले के मुरब्बे के साथ दें।
7-प्रमेह में- चाँदी भस्म १ रत्ती, छोटी इलायची चूर्ण, दालचीनी चूर्ण और तेज पत्र का चूर्ण प्रत्येकी ३-३ रत्ती में मिलाकर शिलाजीत के साथ गोली बना मलाई या मक्खन के साथ दें।
8-मस्तिष्क की दुर्बलता में- चाँदी भस्म १ रत्ती को प्रवालपिष्टी १ रत्ती और स्मृति सागर रस १ रत्ती के साथ देकर ब्राह्मी शर्बत पिलावें। अथवा- चाँदी भस्म १ रत्ती, वंग भस्म १ रत्ती, शिलाजीत १ रत्ती, शहद के साथ दें। ( और पढ़े – यादशक्ति बढ़ाने के उपाय )
9-पाण्डु रोग में- चाँदी भस्म १ रत्ती, मण्डूर भस्म १ रत्ती, त्रिकटु (सोंठ, पीपल, मिर्च) का चूर्ण ४ रत्ती मिला कर शहद से दें।
10- सुखी खाँसी में- चाँदी भस्म १ रत्ती, प्रवाल चंद्रपुटी १ रत्ती, शु. टंकण २ रत्ती मिलाकर शर्बत अडूसा से दें। ( और पढ़े – खांसी और कफ हो दूर करेंगे यह 11 रामबाण घरेलु उपचार )
11-ज्वर में- चाँदी भस्म १ रत्ती, छोटी पीपल चूर्ण और इलायची चूर्ण २-२ रत्ती में एकत्र मिलाकर दें। धनिये का अर्क २ तोला ऊपर से पिला देने से नवीन ज्वर दूर हो जाता है।
12-उदर वात में- चाँदी भस्म १ रत्ती को भुने हुए जीरे के ४ रत्ती चूर्ण एवं भुनी हींग चूर्ण १ रत्ती के साथ गरम जल से देने पर उत्तम लाभ होता है।
13-वायु दर्द में- चाँदी भस्म १ रत्ती, बच का चूर्ण १ माशे मिलाकर सेवन करें, ऊपर से गो-दुग्ध पाव भर पीवे ।
14-अनिद्रा में- चाँदी भस्म १ रत्ती, स्वर्णमाक्षिक भस्म १ रत्ती, प्रवाल चन्द्रपुटी १ रत्ती मिलाकर गाय के गरम दूध से दें।
15-उन्माद और अपस्मार में- चाँदी भस्म १ रत्ती, बच और ब्रह्मदण्डी का चूर्ण ३-३ रत्ती, घी के साथ दें।
16-स्नायु दौर्बल्य में- चाँदी भस्म १ रत्ती को अभ्रक शतपुटी १ रत्ती के साथ मक्खन में मिलाकर दें।
17-हिचकी (हिक्का) में- चाँदी भस्म १ रत्ती, आँवला व छोटी पीपल के चूर्ण २-२ रत्ती में मिलाकर मधु के साथ दें।
18- वात प्रधान या पित्त प्रधान नेत्र रोगों में –रौप्य भस्म आधी रत्ती, त्रिफलादि घृत १ तोला, मिश्री १ तोला मिला कर सेवन करें और प्रात:सायं त्रिफला के जल से आँख धोने से बहुत शीघ्र फायदा होता है।
19-शुक्रजन्य क्षयादि रोगों में –रौप्य भस्म १ रत्ती, वंग भस्म १ रत्ती, शंख भस्म २ रत्ती मलाई के साथ देना उत्तम है, किन्तु यदि शुक्र-क्षय में वात-प्रकोप होकर कमर, पीठ आदि स्थानों में दर्द हो, पेशाब में जलन और अधिक दर्द आदि उपद्रव हो, तो रौप्य भस्म १ रत्ती, वंशलोचन और छोटी विलायची चूर्ण २-२ रत्ती मिलाकर मधु से दें,
20-वात प्रधान शुष्क कास (खाँसी) में- रौप्य भस्म आधी रत्ती, प्रवाल पिष्टी १ रत्ती में मिला मलाई या मक्खन के साथ देने से लाभ होता है।
21-यकृत या प्लीहा वृद्धि में –रौप्य भस्म आधी रत्ती, मण्डूर भस्म १ रत्ती के साथ मिला कर देना श्रेष्ठ है।
22-रस-रक्तादि धातु बढाने के लिये –रौप्य भस्म आधी रत्ती, मोती भस्म आधी रत्ती में मिला मक्खन और मिश्री के साथ देना चाहिए।
23-अपस्मार, हिस्टीरिया, उन्मादादि मस्तिष्क सम्बन्धी रोगों में –रौप्य भस्म आधी रत्ती, बच और ब्राह्मी का चूर्ण ४-४ रत्ती घी के साथ देने से अधिक लाभ होता है।
24-खूनी और वादी दोनों प्रकार के बवासीर में –रौप्य भस्म आधी रत्ती, शक्कर लौह भस्म १ रत्ती, ईसबगोल की भूसी ६ मासे के साथ देने से बहुत शीघ्र लाभ करता है।
रजत भस्म के फायदे ,गुण और उपयोग : Rajat Bhasma ke fayde
Rajat Bhasma Benefits & Uses in Hindi
1- इसके सेवन से त्वचा का वर्ण निखर आता है। अतः यह त्वच्य है।
2- यह भस्म वीतहर और कफ प्रकोप नाशक है।
3- यह भस्म वय:स्थापक तथा बलवर्धक है।
4- यह शीत होने से पित्त प्रकोपजन्य दाह में लाभ करती है।
5- मस्तिष्क के पोषक होने से स्मरण-शक्ति बढाती है और शरीर में ओज-शक्ति की पुष्टि करने से कान्तिवर्द्धक है।
6- इसके सेवन से तृष्णा तथा मुख-शोष शान्त होता है।
7- शिरोविकार के कारण होनेवाले चक्करों में विशेष लाभ करती है।
8- गर्भाशय-शोधक के लिए यह बहुत उत्तम है।
9- इसके सेवन से पित्त प्रकोपजन्य रोग तथा प्रमेह आदि रोग दूर होते हैं।
10- शरीर में से वात-प्रकोप को दूर करने के कारण वातिक संस्थान को स्वस्थ सबल और क्षोभरहित करने के कारण यह आयुष्य कही जाती है। आँतों में वात प्रकोपजन्य विदग्धाजीर्ण में यह विशेष लाभदायक है। 11-मदात्यय के कारण होनेवाले अग्निमांद्य को दूर करती है।
12- ज्वर, विशेषतः, पुरातन ज्वरों और tलीहोदर रोग को शान्त करती है।
13- क्षय रोग के लिए स्वर्ण भस्म के समान ही गुणदायक है।
14- नाड़ीशूल और अपस्मार के लिए उत्तम द्रव्य है।
15- रौप्य भस्म विपाक में मधुर, कषाय और अम्ल रसात्मक, शीतल, सारक, लेखन, रुचिप्रद और स्निग्ध होती है। यह बृहण गुण होने के कारण प्रकुपित वात को शमन करती है।
16- बीसों प्रकार के प्रमेह, वात रोग, पित्त-विकार, नेत्र रोग, क्षय, वात-प्रधान कास, प्लीहा-वृद्धि, धातुक्षीणता, अपस्मार, हिस्टीरिया आदि रोगों में रौप्य भस्म का उपयोग अति लाभदायक है।
17- यह मूत्रपिंडों का शोधन कर उन्हें शुद्ध और बलवान बनाती है।
18- चाँदी भरम बृहण है। अतएव वातवाहिनी सिरा और रक्तवाहिनी स्नायुओं पर इसका असर ज्यादा पड़ता है। इसीलिए यह वातनाशक भी कही गयी है।
19- पुराने पक्षाघात तथा कलायखंजादि रोगों में बहुत शीघ यह अपना प्रभाव दिखलाती है। 20-रक्तवाहिनी सिरागत वायु के प्रकोप होने से शरीर में दर्द तथा रक्तवाहिनी सिरा का संकोच और जकड़ जाना, अन्तरायाम बहिरायाम और कुलजादि वात रोगों की उत्पत्ति होती है। इस वातप्रकोप का शमन रौप्य भस्म से बहुत शीघ्र होता है, क्योंकि यह वातवहिनी सिरा और रक्तवाहिनी सिरा में प्रवेश कर रक्त और वायु का संचालन अच्छी तरह से करती है और रक्त तथा वायु का शरीर में संचालन होन से वातादिक दोष हो ही नहीं सकते । अतः उपरोक्त वातजन्य विकार शीघ्र नष्ट हो जाते हैं। इसी कारण रक्तचापवृद्धि रोग में भी इसका उपयोग से उत्तम लाभ होता है।
यदि उपरोक्त वात-विकार केवल वातजन्य ही हों, तो रौप्य भस्म से अच्छा हो जायेगा अन्यथा अन्य दोषों से संयुक्त होने पर धातुगर्भित योगराज गुग्गुल देना उत्तम होगा।
21- वातवाहिनी सिरा की विकृति रौप्य भस्म के सेवन से दूर होकर, उसमें साम्यता भी आ जाती है। अतएव अपस्मार, उन्माद और विशेषतया आक्षेपक की प्रकोपावस्था में रौप्य भस्म का सेवन करने से बहुत लाभ होता है। स्त्रियों को वात प्रधान भूतोन्माद में रौप्य भस्म का सेवन करना श्रेष्ठ है. कारण कि वात प्रकुपित हो कर वातवाहिनी नाड़ी और रक्तवाहिनी में विकृति (विकार) उत्पन्न कर देता है, जिससे मनोवाहिनी सिरा दूषित हो उपरोक्त अपस्मारादि विकार उत्पन्न हो जाते हैं ऐसी अवस्था में रौप्य भस्म देने से प्रकुपित वात शान्त होकर उससे होनेवाले अपस्मारादि मानसिक रोग भी नष्ट हो जाते हैं।
22- प्रकुपित वात या पित्त के कारण नेत्र रोग हो तो रौप्य भस्म का उपयोग करना अच्छा है। ज्यादा क्रोध, परिश्रम या सूर्य-किरणों की प्रखरता से दृष्टि (आँख) में विकार उत्पन्न हो गया हो, तो इन रोगों के लिये एकमात्र रौप्य भस्म ही उत्तम है। यदि साथ में मोती पिष्टी या प्रवाल चंद्रपुटी मिलाकर दी जाये तो सोने में सुगन्ध जैसा उत्तम कार्य होता है।
23- शुक्र -क्षय से उत्पन्न हुए रोगों में रौप्य भस्म और वंग भस्म दोनों काम करते हैं। विशेष शुक्र क्षय होने से वायु प्रकुपित हो जाता हैं, जिससे कमर-दर्द तथा खिचाव होना, मुत्र-मार्ग में दाह तथा दर्द होना इत्यादि लक्षण हो जाते हैं। ऐसी अवस्था में रौप्य भस्म और वंग भस्म मिला कर देने से शुक्र पुष्ट होकर विकृत वात भी शान्त हो जाता है।
24- इसी तरह कीटाणुजन्य क्षय में स्वर्ण भस्म या स्वर्ण भस्म मिश्रित दवा हितकर है, क्योंकि स्वर्ण भस्म कीटाणु नाशक है । अतएव, राजयक्ष्मा आदि कठिन और संक्रामक रोगों में इसका प्रयोग किया जाता है, किन्तु साथ ही सर्वांग में दाह, आँखें और मूत्र पिण्ड में जलन हो, तो रौप्य भस्म का प्रयोग करना चाहिए। क्योंकि इसका प्रभाव मूत्रपिण्ड पर विशेष पड़ता है और यह दाह को भी शान्त करती है। अतः दाह-शमन के लिये इसका प्रयोग अकेले या सुवर्ण भस्म के साथ अवश्य करें।
25- अर्श (बवासीर) वात जन्य या पित्त जन्य इनमें से किसी भी कारण से उत्पन्न हुआ हो, तो रौप्य भस्म का उपयोग करना चाहिए। यदि रक्त भी निकल रहा हो तो भी अर्श रोग में रौप्य भस्म बहुत उपयोगी है। यदि बवासीर के मस्से बढ़ गये हों, तो उन मस्सों को निकलवा दें, फिर रौप्य भस्म का सेवन करें। रक्तार्श (खूनी बवासीर)में दर्द विशेष होता हो, या मस्सों में चिनचिनाहट (खुजली) होती हो अथवा सुई चुभोने सदृश पीड़ा होती हो, तो रौप्य भस्म देना अच्छा है और यदि मस्सों में जलन, वहाँ की खाल (चमड़ी) श्याम (काले) वर्ण की एवं कठोर हो गयी हो, तो गन्धक रसायन के साथ रौप्य भस्म देने से गन्धक रक्तशोधन का काम करता है और रौप्य भस्म दाहजलन आदि को शान्त करती है। इस तरह दोनों मिल कर उपद्रवों को नष्ट कर रोगी को स्वस्थ बना देते हैं।
26- पित्त की दृष्टि से उत्पन्न होनेवाले जलोदर रोग में रौप्य भस्म का उपयोग करना चाहिए। क्योंकि यह भस्म पित्त की विकृति दूर कर उनसे होनेवाले उपद्रवों को शान्त करती है और शरीर में रक्तकणों को बढ़ा कर शरीरस्थ जलीयांश भाग को भी सुखा देती और जलोदर रोग से मुक्त कर रोगी को स्वस्थ बना देती है।
27- विकृत वातजन्य अम्लपित्त में प्रधानतः आमाशय या कोषस्थ वातवाहिनियों में क्षोभ उत्पन्न हुआ हो तो रौप्य भस्म का प्रयोग करना अच्छा है। इस रोग में बीमारी कुछ दिन के लिये छूट जाती
और फिर किसी प्रकार के कुपथ्यादि होने पर शीघ्र ही उत्पन्न हो जाती है। ऐसे अम्लपित्त रोग के लिये “रौप्य भस्म” बहुत उपयोगी है। इसके अतिरिक्त पेट बढ़ कर यह रोग हुआ हो, और उसमें दर्द भी रहता हों, तो रौप्य भस्म का प्रयोग करने से अच्छा लाभ होता है, किन्तु शारीरिक शिथिलता और इन्द्रियों की आशक्ति विशेष हो, तो रौप्य भस्म के साथ वंग भस्म मिला कर देना चाहिए।
28- शुष्क कास (खाँसी) में – रौप्य भस्म प्रवाल पिष्टी में मिला कर वासावलेह के साथ अथवा आँवले के मुरब्बे के साथ देने से शीघ्र लाभ करती है। क्योंकि इनके साथ रौप्य भस्म देने से यह कफ को ढीला कर वातजन्य रूक्षता नष्ट कर देती और गले की फुन्सियाँ भी मिटा देती है।
29- वात प्रधान या वात-पित्त प्रधान पाण्डु रोग में रक्त कणों की कमी हो जाती है। विशेष मानसिक चिन्ता अथवा मन में किसी तरह का भारी आघात होने से भी शरीर में रक्त कणों की कमी हो जाती है, जिससे शरीर पीला-पीला-सा दिखाई पड़ता है। इसमें मन्दाग्नि रहना, भूख कम लगना, क्रमशः कमजोरी बढ़ते जाना, कब्ज रहना आदि -आदि लक्षण होते हैं। ऐसे समय में रौप्य भस्म को लौह भस्म अथवा मण्डूर भस्म के साथ देना अच्छा है। इससे रक्तकणों की वृद्धि हो शरीर के सब अवयव पुष्ट हो जाते हैं और रोगी स्वस्थ हो जाता है।
30- जठराग्नि का कार्य सुचारु रूप में चलाने के लिये समान वायु की आवश्यकता होती है। यदि समान वायु दूषित हो जाय तो जठराग्नि मन्द हो जाती है, जिससे अन्नादिक (खाये हुए) पदार्थ कच्चे ही आमाशय में पड़े रह जाते हैं। अतः समान वायु को सुधारकर जठराग्नि प्रदीप्त करने के लिये रौप्य भस्म का प्रयोग करें।
31-कोथ (कुर्थ)- यह रोग भयंकर है। एक बार जिसे पकड़ लेता है, उसका पुनर्जन्म ही होता है। इस रोग में शरीर के अन्दर रस-रक्तादि धातु सड़ने लगते हैं। जिस भाग में सड़ना प्रारम्भ होता है, उस भाग में दर्द भी होने लगता है तथा उस भाग की त्वचा (चमड़ी) काली पड़ने लगती है। साथ ही कभी-कभी ज्वर भी हो जाता है। यह रोग अक्सर पुराने प्रमेह, सूजाक या उपदंश वाले रोगियों को हो जाया करता है और इस रोग का प्रधान कारण प्रकुपित वात या प्रकुपित पित्त है। इसमें रौप्य भस्म देने से प्रकुपित वातादिकों का सुधार हो रस-रक्तादिक का भी सुधार हो जाता है।
32-रौप्य भस्म बल्य भी है, अतएव, स्त्रोतसों के संकोच से रक्तादि धातुओं का भ्रमण ठीक तरह न होने की वजह से शरीर के बाह्य अवयव हाथ-पैर आदि में थकावट आने लगती है और शक्ति क्षीण हो जाती है। इसमें रौप्य भस्म का उपयोग करना बहुत अच्छा होता है। स्त्रोतादिकों का संकोच दूर हो, अच्छी तरह से रस-रक्तादि धातुओं का परिभ्रमण होने लगता है, जिससे शारीरिक थकावट एवं कमजोरी आदि दूर हो जाती है।
33- रौप्य भस्म बुद्धिवर्धक भी है। बुद्धि का कार्य साधक पित्त के संयोग से अच्छी तरह होता है। यदि साधक पित्त में किसी प्रकार की विकृति आ गयी हो और बुद्धि सुचारू रूप से अपना कार्य नहीं कर पाती हो, तो इस विकृति को दूर करने के लिये रौप्य भस्म देना अच्छा है, क्योंकि यह मध्य अर्थात् बुद्धि को बढ़ाने वाली है।- औ. गु. ध. शा.
34-उपदंश या सूजाक होने के पश्चात् स्त्रोंतों के संकुचित होने के कारण अगर नपुंसकता आ गई हो, तो रौप्य भस्म १ रत्ती, वंग भस्म १ रत्ती, शिलाजीत २ रत्ती में मिलाकर धारोष्ण दूध के साथ देने से विशेष लाभ होता है। यह मांसपेशियां और रक्तवाहिनियों को बलवान बनाती है। और आयु, वीर्य, बुद्धि तथा कान्ति को भी बढ़ाती है।
35-बीसों प्रकार के प्रमेह पर रौप्य भस्म १ रत्ती शहद या मलाई के साथ दें और ऊपर से १ तोला ईसबगोल की भूसी को आधा सेर गो-दुग्ध में खीर बना कर मिश्री मिला कर खिला दें अथवा शिलाजीत १ रत्ती अथवा रौप्य भस्म आधी रत्ती दोनों एकत्र मिलाकर मलाई के साथ सेवन करें तो इस प्रयोग से २१ दिन में प्रमेह दूर हो जाता है।
रजत भस्म के नुकसान : Rajat Bhasma ke nuksan
1-रजत भस्म केवल चिकित्सक की देखरेख में लिया जाना चाहिए।
2-अधिक खुराक के गंभीर दुष्प्रभाव हो सकते हैं ।
3-सही प्रकार से बनी भस्म का ही सेवन करे।
4-डॉक्टर की सलाह के रजत भस्म की सटीक खुराक समय की सीमित अवधि के लिए लें।
रजत भस्म की आयुर्वेदिक दवा : Rajat Bhasma ki Ayurvedic Dawa
अच्युताय हरिओम फार्मा द्वारा निर्मित ” रजत मालती टेबलेट(Achyutaya Hariom Rajat Malti)” रक्त को बढाकर मांस-पेशियों को ताकत देती है ।आयुष्य ,वीर्य ,बुद्धि और कांति को बढाती है ।
प्राप्ति-स्थान : सभी संत श्री आशारामजी आश्रमों( Sant Shri Asaram Bapu Ji Ashram ) व श्री योग वेदांत सेवा समितियों के सेवाकेंद्र से इसे प्राप्त किया जा सकता है |