Last Updated on July 22, 2019 by admin
कैसे हुई रुद्राक्ष की उत्पत्ति ?
• हिमालय पर्वतराज के ऊपर तीनों लोकों में विचरण करने वाले महाबली त्रिपुरासुर का वध करने के लिए भगवान शिव को उन असुरों के साथ वर्षों तक युद्ध करना पड़ा था । इसलिए उनकी आँख में वेदना होने से अश्रुपात होने लगा था, उन अश्रु-बिन्दुओं को निष्फल न जाने देने के उद्देश्य से सृष्टि रचियता ब्रह्मा ने एक वृक्ष की उत्पत्ति की यही रूद्राक्ष के नाम से प्रसिद्ध हुआ ।
रुद्राक्ष के लाभ : rudraksha ke labh
• मोती, मूंगा आदि रत्नों की भांति रुद्राक्ष का भी शरीर पर वैधुत और चुम्बकीय प्रभाव युक्त होता है । यह मस्तिष्क और हृदय को बल प्रदान
करता है। रुद्राक्ष विविध वात और कफ रोग नाशक, कृमि, शिरोरोग, भूतबाधा या भूतग्रह शामक, विष नाशक और रूचिकारक होता है ।
रुद्राक्ष के प्रकार : rudraksha ke prakar
• समस्त विश्व में इसकी जातियाँ 90 प्रकार की हैं । भारत में 19 जातियाँ प्राप्य हैं।
• रुद्राक्ष का फल स्वाद में अम्ल (खट्टा) होता है । निकटवर्ती देश नेपाल में इसका अचार बनाकर खाया जाता है । इसका बीज 1 मुखी से लेकर 14 मुखी तक का होता है जिसका धार्मिक दृष्टि से सभी का महत्व अलग-अलग है।
असली रुद्राक्ष की पहचान : asli rudraksh ki pehchan
• लालची व्यवसायी बाजार में नकली (आर्टीफीशियल) रुद्राक्ष बेचते हैं। असली रुद्राक्ष वजनदार, स्पष्ट रेखायुक्त लाल व काले (मिश्रित) रंग में निहित होता है। रुद्राक्ष शैव, शाक्त, वैष्णव प्रभृति सभी सम्प्रदायों के लोग धारण करते हैं। माला के रूप में गठित कर मन्त्र जाप तथा यन्त्र-मन्त्र के द्वारा मनोवैज्ञानिक लाभ अर्जित करते हैं । रुद्राक्ष में धार्मिक सम्बल के साथ ही साथ रोग निवारण की भी अद्भुत क्षमता है।
रुद्राक्ष के फायदे / औषधीय प्रयोग : rudraksha ke fayde
• रुद्राक्ष का स्वरस अपस्मार (मृगी) रोग नाशक है । किसी भी प्रकार की दिमागी शिकायत इसके काढ़े, हिम, फान्ट चूर्ण या वटिका के रूप में प्रयुक्त कर दूर की जा सकती है ।
• संक्रामक रोग (शीतला प्रभेदों के रोग) प्रतिषेधक के रूप में बहुत लोग | इसे धारण करते हैं । ( और पढ़ें – रुदाक्ष धारण करने के 5 जबरदस्त लाभ )
• शीत-पित्त रोग में रुद्राक्ष की माला धारण करने से रोग शमन हो जाता है तथा ग्रह तथा भूत-प्रेत बाधा दूर हो जाती है ।
• इसे जल में घिसकर (चन्दन की भांति) लेप करने से चेचक के घाव की जलन और खुजली दूर होकर घाव सूख जाता है और दाग मिट जाता है ।
• श्लेष्मायुक्त रोग जैसे—श्वसनक रोग (निमोनिया बुखार) जुकाम, डब्बा | रोग (पसली चलना), पीनस, प्रतिश्याय आदि में रुद्राक्ष को तुलसी स्वरस में घिसकर या अदरक रस में मधु के साथ चटाने से रोग शान्त होता है ।
• जब रोगी भयानक रोग की चपेट में आ जाता है तो उसकी नाड़ी (नब्ज) क्षीण हो जाती है, हाथ-पैर ठण्डे पड़ जाते हैं उस अवस्था में मकरध्वज खरल किया हुआ 1 रत्ती और रुद्राक्ष पान या अदरक के स्वरस में घिसकर 1 मात्रा को मधु के साथ मिलाकर 1 से 2 बार तक चटाने से ही शरीर में गरमी आ जाती है और हृदय सबल हो जाता है ।
नोट-यदि मकरध्वज प्राप्त न हो तो मात्र उपयुक्त स्वरस में दो माशा रुद्राक्ष के कल्क को जरा सा गरम करके मधु के साथ सेवन कराना भी लाभप्रद है।
• रुद्राक्ष को पानी में घिसकर दो से चार रत्ती तक शहद में मिलाकर चटाने से मसूरिका का निवारण सुखपूर्वक हो जाता है ।
• रुद्राक्ष को गले में धारण करने से हृदयावसाद और रवतचाप वृद्धि का भय नहीं होता है ।
मुजे रुद्राक्ष चाहिए कैसे मिलेगा