Last Updated on July 22, 2019 by admin
नीरोग कौन रहता है ? तथा किसे वृद्धावस्था नहीं आती ?
swasthya rahne ke upay / niyam
1- रोग उस मनुष्य के पास नहीं जाते, जो इनके निवारण का उपाय जानता है और संयम से रहता है। उसे देखकर रोग उसी तरह भागते हैं, जैसे गरुड़को देखकर साँप।
2- नेत्रों को जल से धोना, प्रति दिन व्यायाम करना, पैरों के तलवों में तेल मलना, दोनों कानों में तेल डालना और मस्तक पर भी तेल रखना-यह प्रयोग जरा और व्याधि का नाश करने वाला है।
3- जो वसन्त-ऋतु में भ्रमण, स्वल्प मात्रा में अग्नि सेवन तथा नयी अवस्था वाली भार्या का यथा समय उपभोग करता है, उसके पास जरा अवस्था नहीं जाती।
4- ग्रीष्म ऋतुमें जो तालाब या पोखरे के शीतल जल में स्नान करता, घिसा हुआ चन्दन लगाता और वायु सेवन करता है, उसके निकट जरा अवस्था नहीं जाती।
5- वर्षा-ऋतुमें जो गरम जलसे नहाता, वर्षाके जलका सेवन नहीं करता और ठीक समयपर परिमित भोजन करता है, उसे वृद्धावस्था नहीं प्राप्त होती।
6- जो शरद्ऋतु की प्रचण्ड धूप का सेवन नहीं करता, उस में घूमना फिरना छोड़ देता है तथा कुएँ, बाव ड़ी या तालाब के जल में नहाता है और परिमित भोजन करता है, उसके पास वृद्धावस्था नहीं फटक पाती।
7- जो हेमन्त-ऋतु में प्रात:काल अथवा पोखरे आदि के जल में स्नान करता, यथा समय आग तापता, तुरंत की तैयार की हुई गरम-गरम रसोई खाता है, उसके पास जरा-अवस्था नहीं जाती।
8- जो शिशिर-ऋतु में गरम कपड़े, प्रज्वलित अग्नि और नये बने हुए गरम-गरम अन्नका सेवन करता है तथा गरम जल से ही स्नान करता है, उसके समीप वृद्धावस्था की पहुँच नहीं हो पाती।
9- जो तुरंत के बने हुए ताजे अन्न का, खीर और घृत का उचित सेवन करता है, वृद्धावस्था उसके निकट नहीं जाती।
10- जो भूख लगनेपर ही उत्तम अन्न खाता तथा प्यास लगनेपर ठंडा जल पीता है, उसके पास वृद्धावस्था नहीं पहुँच पाती।
11- जो प्रतिदिन दही, ताजा मक्खन और गुड़ खाता तथा संयमसे रहता है, उसके समीप जरावस्था नहीं जा पाती।
12- जो मांस, वृद्धा स्त्री, नवोदित सूर्य तथा तरुण दधि (पाँच दिनके रखे हुए दही)-का सेवन करता है,उस पर जरावस्था अपने भाइयों के साथ हर्षपूर्वक आक्रमण करती है।
13- जो रातको दही खाते हैं, कुलटा एवं रजस्वला स्त्रीका सेवन करते हैं, उनके पास भाइयों सहित जरावस्था बड़े हर्षके साथ आती है।
14- रजस्वला, कुलटा, विधवा, जारदूती तथा ऋतुहीना जो स्त्रियाँ हैं, उनका अन्न ग्रहण करने वाले लोगों को बड़ा पाप लगता है। उस पापके साथ ही जरावस्था उनके पास आती है।
15- रोगों के साथ पापों की सदा अटूट मैत्री होती है। पाप ही रोग, वृद्धावस्था तथा नाना प्रकारके विप्नों का बीज है। पाप से रोग होता है, पाप से बुढ़ापा आता है और पाप से ही दैन्य, दु:ख एवं भयंकर शोक की उत्पत्ति होती है। वह महान् वैर उत्पन्न करने वाला, दोषों का बीज और अमङ्गलकारी होता है। इसलिये भारतके संत पुरुष सदा भयातुर हो कभी पापका आचरण नहीं करते
पापेन जायते व्याधिः पापेन जायते जरा।
पापेन जायते दैन्यं दुःखं शोको भयङ्करः॥
तस्मात् पापं महावैरं दोषबीजममङ्गलम्।
भारते संततं सन्तो नाचरन्ति भयातुराः ॥
(ब्रह्मखण्ड १६।५१-५२)
16- जो अपने धर्मके आचरणमें लगा हुआ है, भगवान्के मन्त्र की दीक्षा ले चुका है, श्रीहरिकी समाराधनामें संलग्न है, गुरु, देवता और अतिथियों का भक्त है, तपस्यामें आसक्त है, व्रत और उपवासमें लगा रहता है।और सदा तीर्थसेवन करता है, ऐसे पुरुषोंके पास जराअवस्था नहीं जाती है और न दुर्जय रोगसमूह ही उसपर आक्रमण करते हैं।