हम आरती क्यों करते है ?

जब भी कोई घर में भजन होता है, या कोई संत का आगमन होता है या पूजा पाठ के बाद हिंदू धर्म में दीपक को दायें से बाएँ तरफ़ वृताकार रूप से घुमा कर साथ में कोई वाद्य यन्त्र बजा कर अन्यथा हाथ से घंटी या ताली बजा कर भगवान की आरती की जाती है.

ये पूजा की विधि में षोडश उपचारों में से एक है. आरती के पश्च्यात दीपक की लौ के उपर हाथ बाएँ से दायें घुमा कर हाथ से आँखों और सर को छुआ जाता है.आरती में कपूर जलाया जाता है वो इसलिए की कपूर जब जल जाता है तो उसके पीछे कुछ भी शेष नही रहता. ये दर्शाता है कि हमें अपने अंहकार को इसी तरह से जला डालना है की मन में कोई द्वेष, विकार बाकी न रह जाए.

कपूर जलते समय एक भीनी सी महक भी देता है जो हमें बताता है कि समाज में हमें अंहकार को जला कर खुशबु की तरह फैलते हुए सेवा भावः में लगे रहना है.

दीपक प्रज्वालित कर के जब हम देव रूपी ज्ञान का प्रकाश फैलाते है तो इससे मन में संशय और भय के अंधकार का नाश होता है. उस लौ को जब हम अपने हाथ से अपनी आँखों और अपने सर पर लगा कर हम उस ज्ञान के प्रकाश को अपनी नेत्र ज्योति से देखने और दिमाग से समझने की प्रार्थना करते है

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