Last Updated on August 25, 2022 by admin
हैजा (कॉलरा/विशूचिका) के कारण : haija kaise failta hai iske karan
- हैजा (कॉलरा,विशूचिका) बहुत खतरनाक रोग है। यह अधिकतर ग्रीष्म ऋतु में फैलता है। शीत ऋतु के अन्त में, ग्रीष्म ऋतु के अन्त में अथवा वर्षा ऋतु में इसका प्रकोप बढ़ जाता है।
- सड़े- गले फल, पेय, खाद्यान्न आदि में स्थित हुए विषाणु शरीर में प्रवेश करते हैं, तब यह रोग संक्रामक रूप से उत्पन्न होकर फैल जाता है।
- यह रोग प्रदूषित आहार, अति भोजन आदि कारणों से होता है, किन्तु भोजन न करने अर्थात् भूखे रहने से भी हो जाता है । खाली पेट रहने पर गर्मी में लू का प्रकोप आसानी से होता है, इसलिये उस ऋतु में पानी अधिक पीना चाहिये।
- कुछ विद्वान् आयुर्वेद में वर्णित ‘विशुचिका’ और आम भाषा में कहे जाने वाले हैजा रोग को मिन्न-भिन्न मानते हैं। किन्तु लक्षणों के साम्य होने के कारण उसके भिन्न या अभिन्न मानने में कुछ अन्तर नहीं पड़ता। आयुर्वेद में विशूचिका के लिये जो औषधियाँ और चिकित्सा – क्रम कहा गया है, उसका पालन करने पर इस रोग से छुटकारा पाया जा सकता है ।
हैजा (कॉलरा/विशूचिका) के लक्षण : haija ke lakshan
- शारंगधर के अनुसार यह रोग तीन प्रकार का होता है, यथा-“विचूची त्रिविधा प्रोक्त दौषैः सा स्यात् पृथक् पृथक् “ वातादि दोषों के भेद से विधूची तीन प्रकार की होती है ।
- अन्य आचार्य के कथनानुसार विशूचिका में मूर्च्छा, अतीसार, वमन, तृषा, शूल, भ्रम, हाथ- पाँव का ऐंठना, बँभाई आना, दाह, वैवयं (रंग बदल जाना), कम्प, हृद्य में पीड़ा तथा सिरदर्द प्रभृति लक्षण प्रकट होते हैं।
हैजा से बचने का उपाय : haija se bachane ke upay
- सदैव ताजा, हल्का, सन्तुलित भोजन करना चाहिये । सड़े हुए फल, काट कर रखे हुए फल, प्रदूषित हो जाते हैं, इसलिये उनका त्याग करें ।
- बासी अन्न, बासी शाक – सब्जी, तरल खाद्य, दुग्धादि सदा ताजा ही प्रयोग में लाना हितकर है।
- फल, तरकारी आदि को प्रयोग में लाने से पहिले ठीक प्रकार से धो लेना चाहिये ।
- मक्खी, मच्छर आदि को यथा सम्भव भगाने, नष्ट करने का उपाय करना चाहिये । इस प्रकार हैजा से बचा जा सकता है।
किन्तु हैजा हो ही जाय तो उसका तुरन्त उपचार करना चाहिए। उसकी शंका होते ही अमृतधारा, अर्क कर्पूर, प्याज का रस आदि अवश्य दे देना चाहिये । हैजा में वमन होने लगती है । पानी जैसे दस्तों का ताँता लग जाता है, पेशाब बन्द हो जाता है। ऐसी स्थिति में औषधोपचार में जरा भी लापरवाही करने से रोगी के प्राणों पर नौबत आ सकती है।
हैजा का आयुर्वेदिक इलाज : haija ka ayurvedic ilaj
1. बड़ी इलायची – बड़ी इलायची के छिलके 3 ग्राम को 250 ग्राम गुलाब के अर्क में उबालकर हैजा के रोगी को पिलाने से लाभ होता है। ( और पढ़े – उल्टी के 37 घरेलु उपचार )
2. प्याज – प्याज का रस, सेंधा नमक, जीरा भुना, काली मिर्च और हींग मिला कर दें ।
3. लोंग – लोंग पानी में घोट कर, उसमें सेंधा नमक या काला नमक मिला कर देना चाहिये ।
4. कल्मी शोरा – पेशाब बन्द होने की स्थिति में नाभि पर कल्मी शोरा का हल्का लेप करना चाहिये। अतिसार चिकित्सा में कही गई दवाएँ इस रोग भी लाभदायक हो सकती हैं, उसमें से कोई दवा देनी चाहिये
5. पेशाब बन्द रहने की स्थिति में निम्न योग शीघ्र लाभकारी होता है :-
शुद्ध पारद और शुद्ध गन्धक 5-5 ग्राम लेकर, खरल में कज्जली कर लें और उसे 30 ग्राम असली जवाखार (यवक्षार) में मिला, ठीक से खरल करके रखें । इसकी मात्रा आधा से एक ग्राम तक, मिश्री युक्त ठण्डे पानी के साथ दें तो पेशाब हो जायेगा । ( और पढ़े – बंद पेशाब को खुलकर लाने वाले आयुर्वेदिक घरेलु नुस्खे )
6. पतले दस्त और वमन की स्थिति में लाल मिर्च, अजवाइन, शुद्ध कर्पूर, शुद्ध अफीम और शुद्ध.कुचला संमान भाग लेकर, जल योग से चना के बराबर गोलियाँ बना लें ।
मात्रा -1 से 3 गोली तक रोग और रोगी की प्रकृति के अनुसार ठण्डे पानी के साथ देने से लाभ होगा। ( और पढ़े – दस्त रोकने के 33 घरेलु उपाय )
7. यदि हैजा के रोगी की वमन न रुक सकें तो उसे निम्न योग हितकर रहता है।
मोरपंख की भस्म, पुराने टाट की भस्म, मक्का के भुट्टा की भस्म और बड़ी इलायची के बीज समान मात्रा में कपड़छन करके रखें । इस चूर्ण की मात्रा 300 से 500 मिलीग्राम तक है, जो कि शहद के साथ दी जा सकती है।
8. हैजा में लाभकारी औषधि – भुनी हुई हींग 3 ग्राम, जीरा काला, जीरा सफेद, लाल मिर्च, सोंठ और शुद्ध रसकर्पूर 2-2 ग्राम तथा शुद्ध अफीम 1 ग्राम लेकर कूट पीस लें और पानी के साथ खरल करके उड़द प्रमाण गोली बना कर सुखावें और शीशी में भर लें।
मात्रा -1-1 गोली ताजा पानी के साथ 1-1 घंटे के अन्तर से दें । आवश्यक होने पर 30-30 मिनट के अन्तर से भी दे सकते हैं । हैजा में यह दवा प्रायः अव्यर्थ ही है ।
9. विशूचिका (हैजा) नाशिनी वटी – शुद्ध कर्पूर 20 ग्राम, भुनी हुई हींग 12 ग्राम, शुद्ध अफीम 10 ग्राम, लाल मिर्च और ईसब गोल 5-5 ग्राम लेकर पानी के साथ पीसें और चना प्रमाण गोलियाँ बना लें ।
मात्रा-1-1 गोली गुलाब के अर्क से अथवा ताजा पानी से 1-1 घंटा के अन्तर से देनी चाहिये । 2-3 मात्राएँ पेट में पहुँचने पर दस्त और वमन रुक जाते हैं।
10. विभूचिका (हैजा) नाशक अर्क – सोंफ 4 किलोग्राम, प्याज और पोदीना की पत्तियाँ 1-1 किलोग्राम, आलूबुखारा और गुलाब के फूल 500-500 ग्राम, बड़ी इलायची के दाने 250 ग्राम, श्वेत चन्दन और वंश लोचन 125-125 ग्राम, लोंग, छोटी इलायची के दाने, अनार दाना, दालचीनी और देशी कपूर 60-60 ग्राम लेकर सभी काष्ठौषधियों को जौकुट करें और कर्पूर भी मिला कर 20 लीटर पानी में 24 घण्टे भीगने दें। फिर भवके के द्वारा अर्क खींच लें ।
मात्रा –20 मिली लीटर से 50 मिली लीटर तक रोग और रोगी की स्थिति के अनुस.. 1-1 घण्टे अथवा कम या अधिक अन्तर से देनी चाहिये । हैजा को सभी अवस्थाओं में यह अर्क शीघ्रातिशीघ्र कार्य करता है। लू लगने की स्थिति में भी यह उपयोगी है।
11. हैजा में अर्कपत्र भस्म का जल – धरती में गिरे पीले पड़े आक के 5 पत्ते लेकर उन्हें जलाओ, जब वे कोयला हो जाय, तब आधे लीटर पानी को किसी स्टील के पात्र में भरो और उसमें इन कोयलों को बुझाओ फिर इस पानी को छान कर रखो । हैजा के रोगी को इसमें से थोड़ा-थोड़ा पानी देते रहने से शीघ्र लाभ होता है ।
12. विशुचिकाघ्नी वटिका – भुनी हुई हींग 30 ग्राम, लाल मिर्च का छिलकां (बीज निकाल दें) तथा आम की गुठली की गिरी 20-20 ग्राम, जायफल, जावित्री, शुद्ध शिंगरफ और शुद्ध अफीम 10-10 ग्राम और पीपरमेंट फूल (क्रिस्टल) 5 ग्राम लेकर काष्ठादि को कूट- छान लें तथा हींग, शिंगरफ, अफीम और पीपरमेंट को पृथपीस कर मिलायें और सबको एकत्र तथा खरल में घोट कर एकजीव कर लें । तदुपरान्त एक भावना लहसुन के स्वरस की और एक भावना कागजी नींबू के स्वरस की देकर चना के बराबर की वटी बनावें और छाया में सुखा कर सुरक्षित रखें।
मात्रा -1-1 गोली प्याज के स्वरस के साथ अथवा ठण्डे पानी या बर्फ के पानी के साथ दें । बर्फ के पानी में अर्क कर्पूर प्रभृति किसी तरल की 5-10 बूंद डाल कर, उसके साथ देना भी उपयुक्त रहता है। रोग और रोगी की शक्ति के अनुसार दवा आधा घंटा, एक घंटा अथवा दो घंटा के अन्तर से देनी चाहिये । इससे हैजा (विशूचिका) के सभी लक्षणों में लाभ होता है । वमन, दस्त, पेट दर्द, अफरा आदि का शीघ्र शमन होता है और मूत्र भी खुलकर आता है।
13. विषूची विध्वंस रस –भुना सुहागा, स्वर्णभाक्षिक भस्म, सोंठ, शुद्ध पारद, शुद्ध गन्धक, शुद्ध सुहागा, प्रत्येक 1 भाग, और हिंगुल 7 भाग लेकर जम्भीरी नीबू के स्वरस में घोट कर सरसों प्रमाण गोलियाँ बना लें । इसकी मात्रा 1 रत्ती (लगभग 125 मिलीग्राम) तक हो सकती है । मृत संजीवनी सुरा और यह रस, दोनों ही समान गुणकारी है, विशुचिका (हैजा) और त्रिदोषज अतिसार को भी नष्ट करते हैं।
यह योग ‘भैषज्य रत्नावली‘ का है। अनेक योगों में मृत संजीवनी सुरा की चर्चा हुई है और वह अनेकानेक रोगों में हितकर भी है, इसलिये उसके बनाने की विधि भी प्रसंग की पूर्णता के लिये लिखना आवश्यक है। भैषज्य रलावली में वर्णित इस सुरा का योग भी यहाँ ज्यों का त्यों प्रस्तुत है।
14. विशूचिका आदि में मृत संजीवनी सुरा- एक वर्ष से अधिक पुराना गुड़, 12 सेर 64 तोला, बबूल की छाल कुटी हुई 80 तोले, अनार की छाल, वासाकी छाल, मोचरस, लजैना, अतीस, असगन्ध, देवदारू, बेल की छाल, श्यानक की छाल, पाडर की छाल, शालिपर्णी, पृश्निपर्णी, बड़ी कटेरी, छोटी कटेरी, गोखरू, बेर, इन्द्रायण मूल, चित्रक, कौच के बीज, पुनर्नवा, यह सब भी कुटे हुए, कुल मिला कर 40 तोले ले और सभी को अंठगुने पानी में डाल कर, मिट्टी के (भीतर से घृत से चिकने) पात्रों में भर कर, उनके मुख सकोरों से बन्द करके 16 दिन तक रखें ।
फिर इनमें कुटी हुई सुपारी 2 सेर तथा धतूरे की जड़, पद्माख, खस, लाल चन्दन, सौंफ, अजवाइन, काली मिर्च, जीरा श्वेत, जीरा काला, कचूर, जटामाँसी, दालचीनी, छोटी इलायची, जायफल, नागरमोथा, ग्रन्थिपर्णी (गठिवन), सोंठ, मेथी, मेषश्रृंगी और चन्दन प्रत्येक आठ-आठ तोला लेकर, कूट- पीस कर मिलावें तथा पुनः उन पात्रों के मुख यथावत् बन्द कर दें । तदुपरान्त, चार दिन पश्चात् मिट्टी के पात्र से बनाये गये मोचिका यन्त्र या मयूराख्या यन्त्र में डाल कर चुआवें और सुरा बना लें । इसकी मात्रा बल, अग्नि और अवस्था के अनुसार निश्चित करनी चाहिये।
इसके सेवन से शरीर दृढ़ होता है, उसमें बल, वर्ण और अग्नि की वृद्धि होती है । सन्निपात- जन्य ज्वर अथवा विशूचिका (हैजा) में जब अंगों में शिथिलता आ जाय, तब पुनः- पुनः इस ‘मृत संजीवनी सुरां’ का प्रयोग किया जा सकता है।
(अस्वीकरण : दवा, उपाय व नुस्खों को वैद्यकीय सलाहनुसार उपयोग करें)