१०८ दिनों की साधना

Last Updated on July 24, 2019 by admin

सब तकलीफों का मूल है पाँच क्लेश है | अविद्या माना जो विद्यमान वस्तु नहीं है उसको विद्यमान दिखाये और जो विद्यमान है उसको ढक दे.. उसको अविद्या बोलते है, माया भी बोलते है | तो एक है अविद्या सब दु:खों का मूल | फिर अविद्या के बल से आती है अस्मिता – शरीर को ‘मैं’ मनाने की बेवकूफी | ये अस्मिता के दो बच्चे है – राग और द्वेष | राग – पक्षपात करायेगा और द्वेष – जलायेगा | और पाँचवा है अभीनिवेश – मृत्यु का भय | मृत्यु से भय से मृत्यु तो नहीं टलता लेकिन मृत्यु बिगडता है | तो रोज सुबह उठे, मेरे जठरा में जठराग्नि है | अविद्या – स्वाहा, अस्मिता – स्वाहा, राग – स्वाहा, द्वेष – स्वाहा और अभीनिवेश (मरने का डर) – स्वाहा |

ये तीन महीने १८० दिन करो हलका-फुल हो जायेगा मन, बुद्धि, शरीर, निरोगता में भी मदद मिलेगी | रोज सुबह जठरा नाभि के आगे देख के ये भावना करों ये जठराग्नि है | त्रिकोणाकार जैसे यज्ञ कुंड चौड़ा होता है अग्नि की लौ ऊपर पतली होती है | ऐसे अग्नि तो है ही है | उस अग्नि में ये पाँच – अविद्या, अस्मिता, राग, द्वेष और अभीनिवेश स्वाहा करो | बहुत लाभ होगा | १०८ दिन का ये कोर्स करो |

-Pujya Bapuji Ahmedabad 22nd June’ 2013

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