Last Updated on November 13, 2022 by admin
अगस्तिया (अगस्ता) क्या है ? :
अगस्तिया (अगस्ता) का वृक्ष बड़ा होता है। बगीचों और खुदाई की हुई जगहों में यह उगता है। अगस्ता की दो जातियां होती हैं। पहले का फूल सफेद होता है तथा दूसरे का लाल होता है। अगस्ता के पत्ते इमली के पत्तों के समान होते हैं। अगस्ता के वृक्ष पर लगभग एक हाथ लम्बी और बोड़ा की मोटी फलियों की तरह फलियां लगती है। इनका शाक बनाया जाता है। फूल भी साग-सब्जी बनाने के काम में आता है। पत्तों का भी शाक बनाया जाता है।
अगस्तिया का विभिन्न भाषाओ में नाम :
- संस्कृत – अगस्त्य, मुनिद्रुम।
- हिंदी – अगस्तिया, अगस्त।
- बंगला – बक।
- गुजराती – अगिस्थ्यों।
- मराठी – अगस्ता, अगस्था, अगसे गिडा।
- कन्नड़ – अगसेयमरनु चोगची।
- पंजाबी – हथिया
- तामिल – अक्कं, अर्गति, अगति।
- तेलगु – अविसि, अवीसे।
- मलयालम – अगठी।
- अंग्रेजी – सेसबंस
- लैटिन – ऑगटि ग्लांडिफलोरा
अगस्तिया के औषधीय गुण : agastya ke aushadhi gun
आयुर्वेदिक मत –
- भावप्रकाश के मतानुसार अगस्तिया शीतल, रूखा, बात-कारक, कडुआ तथा शीतवीर्य है और पित्त, कफ, और चौथे दिन आने वाले बुखार तथा जुकाम को नष्ट करने वाला है ।
- इसके फूल शीतल, चातुर्थिक ज्वर को दूर करने वाले, कडवे, कसैले, पचने में चरपरे तथा पीनसरोग, कफ, पित्त और वात को नाश करनेवाले हैं ।( निघंटु-रत्नाकर )
- इसके पत्ते चरपरे, कड़वे, भारी, मधुर, किंचित गरम, स्वच्छ तथा कृमि, कफ, विष और रक्तपित्त को हरने वाले हैं । इसकी फली हलकी, दस्तावर, बुद्धिदायक ,रुचिकारक, पचने में मधुर, कड़वी स्मरण-शक्ति-वर्द्धक, तथा त्रिदोष, शूल, कफ, पाडुरोग, और गुल्मनाशक है।
- स्वाद : इसका स्वाद फीका होता है।
- स्वभाव : अगस्तिया की प्रकृति सर्द व खुश्क प्रकृति की होती है।
- रंग : अगस्ता के फूलों का रंग गुलाबी व सफेद होता है।
यूनानी मत –
यूनानी ग्रन्थकार इसको दूसरे दर्जे में ठण्डा और रुक्ष मानते है । मीर महमद हुसैन के कथनानुमार इसके पत्तों का रस निकालकर 2-3 बूंद नाक में टपकाने से छींक कर तथा नाक बहकर सिर दर्द व सिर का भारीपन दूर होता है।
अगस्तिया के फायदे और उपयोग (agastya ke fayde aur upyog)
1. शीत, मस्तक-शूल और चौथिया ज्वर (बुखार) : अगस्तिया के पत्तों के रस की बूंदे नाक में डालने से शीत, मस्तक दर्द और चौथिया के बुखार में आराम होगा।
2. आधाशीशी (आधे सिर का दर्द) पर : इस रोग में जिस ओर सिर में दर्द होता हो, उसके दूसरी तरफ की नाक में अगस्तिया (अगस्त) के फूलों अथवा पत्तों की 2-3 बूंदे रस को टपकाने से तुरंत लाभ होता है। इससे कफ निकलकर आधाशीशी का नाश होता है।
3. कफ विकार : लाल अगस्त की जड़ अथवा छाल का रस निकालकर शक्ति के अनुसार 10 ग्राम से 20 ग्राम की मात्रा का सेवन करें। यह औषधि यदि बालकों को देनी हो, तो केवल इसके पत्ते का 5 बूंद रस निकालकर शहद के साथ पिलायें। यदि दवा का असर अधिक हो, तो मिश्री को पानी में घोलकर पिलायें।
4. सूजन : लाल अगस्तिया और धतूरे की जड़ को साथ-साथ गरम पानी में घिसकर उसका लेप करना चाहिए। इससे तुरंत ही सभी प्रकार की सूजन का नाश होता है।
5. जुकाम के कारण नाक रुंघने और सिर में दर्द होने पर : अगस्तिया के पत्तों का दो बूंद रस नाक में टपकाना चाहिए।
6. मिर्गी :
- अगस्तिया के पत्तों का चूर्ण और कालीमिर्च के चूर्ण को बराबर मात्रा में लेकर गोमूत्र के साथ बारीक पीसकर मिर्गी के रोगी सुंघाने से लाभ होता है।
- यदि बालक छोटा हो तो इसके 2 पत्तों का रस और उसमें आधी मात्रा में कालीमिर्च मिलाकर उसमें रूई का फोया तरकर उसे नासारंध्र के पास रखने से ही अपस्मार (मिर्गी) शांत हो जाता है।
7. प्रतिश्याय (जुकाम) : जुकाम के वेग से सिर बहुत भारी तथा दर्द हो तो अगस्तिया के पत्तों के रस की 2-4 बूंदे नाक में टपकाने से तथा इसकी जड़ का रस 10 से 20 ग्राम तक शहद मिलाकर दिन में 3-4 बार चाटने से कष्ट दूर हो जाता है।
8. आंखों के विकार :
- अगस्तिया के फूलों का रस 2-2 बूंद आंखों में डालने से आखों का धुंधलापन मिटता है।
- अगस्तिया के फूलों की सब्जी या शाक बनाकर सुबह-शाम खाने से रतौधी मिटती है।
- अगस्तिया के 250 ग्राम पत्तों को पीसकर 1 किलोग्राम घी में पकाकर 5 से 10 ग्राम सुबह-शाम सेवन करने से लाभ होता है।
- अगस्ता के फूलों का मधु आंखों में डालने से धुंध या जाला मिटता है। फूल को तोड़ने से भीतर से 2-3 बूंद शहद निकलता है।
- अगस्तिया के पत्तों को घी में भूनकर खाने से और घी का सेवन करने से धुंध या जाला कटता है।
9. चित्तविभ्रम : अगस्त के पत्तों के रस में सोंठ, पीपर और गुड़ को बराबर मात्रा में मिलाकर 1 या 2 बूंद नाक में डालने से लाभ होता है।
10. स्वर भंग (आवाज के बैठने पर) : अगस्तिया की पत्तियों के काढ़े से गरारे करने से सूखी खांसी, जीभ का फटना, स्वरभंग तथा कफ के साथ रुधिर (खून) के निकलने आदि रोगों में लाभ होता है।
11. उदर शूल (पेट दर्द) : अगस्तिया (अगस्त) की छाल के 20 ग्राम काढ़े में सेंधानमक और भुनी हुई 20 लौंग मिलाकर सुबह-शाम पीने से 3 दिन में पुराने से पुराने उदर विकार और शूल नष्ट हो जाते हैं।
12. कब्ज : अगस्तिया के 20 ग्राम पत्तों को 400 मिलीलीटर पानी में उबालकर, 100 मिलीलीटर शेष रहने पर 10-20 मिलीलीटर काढ़े को पिलाने से कब्ज मिटती है।
13. श्वेत प्रदर : अगस्तिया की ताजी छाल को कूटकर इसके रस में कपड़े को भिगोकर योनि में रखने से श्वेत प्रदर और खुजली में लाभ होता है।
14. जोड़ों के दर्द में : धतूरे की जड़ और अगस्तिया की जड़ दोनों को बराबर मात्रा में लेकर पीस लें और पुल्टिस जैसा बनाकर दर्दयुक्त भाग पर बांधने से कष्ट दूर होता है। सूजन उतर जाती है। कम वेदना में लाल अगस्तिया की जड़ को पीसकर लेप करें।
15. वातरक्त : अगस्तिया के सूखे फूलों का 100 ग्राम महीन चूर्ण भैंस के 1 किलो दूध में डालकर दही जमा दें, दूसरे दिन मक्खन निकालकर मालिश करें। इस मक्खन की मालिश खाज पर करने से भी लाभ होता है।
16. बुद्धि (दिमाग) को बढ़ाने वाला : अगस्तिया के बीजों का चूर्ण 3 से 10 ग्राम तक गाय के ताजे 250 मिलीलीटर दूध के साथ सुबह-शाम कुछ दिन तक खाने से स्मरण शक्ति तेज हो जाती है।
17. ज्वर (बुखार) होने पर :
- अगस्तिया के फूलों या पत्तों का रस सुंघाने से चातुर्थिक ज्वर (हर चौथे दिन पर आने वाला बुखार) और बंधे हुए जुकाम में लाभ होता है
- अगस्तिया के पत्ते का रस 2 या 3 चम्मच में आधा चम्मच शहद मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से शीघ्र ही चातुर्थिक ज्वर का आना रुक जाता है। इसका प्रयोग बराबर 15 दिन तक करना चाहिए।
- फेफड़ों के शोथ एवं कफज कास श्वास के साथ यदि ज्वर हो तो इसकी जड़ की छाल अथवा पत्तों का या पंचाग (जड़, तना, पत्ती, फल और फूल) का 10 या 20 मिलीलीटर रस में बराबर शहद मिलाकर दिन में 2 से 3 बार सेवन करने से अत्यंत लाभ होता है।
- 10 से 20 ग्राम अगस्तिया की जड़ की छाल पान के साथ या उसके रस को शहद के साथ सुबह-शाम सेवन करने से कफ निकल जाता है, पसीना आने लगता है और बुखार कम होने लगता है।
- अगस्तिया की जड़ की छाल के 2 ग्राम महीन चूर्ण को पान के पत्तों के 10 मिलीलीटर रस के साथ दिन में 3 बार सेवन करने से भी कफज कास श्वास के साथ ज्वर में लाभ होता है।
18. मूर्च्छा : केवल अगस्तिया के पत्ते के रस की 4 बूंदे नाक में टपका दने से ही मूर्च्छा दूर हो जाती है।
19. बच्चों के रोग में : अगस्तिया के पत्तों के रस को लगभग 5 से 10 मिलीलीटर की मात्रा में पिलाने से 2-4 दस्त होकर बच्चों के सब विकार शांत हो जाते हैं।
20. खून के बहने पर (रक्तस्राव) : अगस्तिया के फूलों का शाक खाने से लाभ होता है।
21. कनीनिका की सूजन में : अगस्तिया के फूल और पत्तों का रस नाक में डालने से आंखों के रोगों में पूरा लाभ होता है।
22. निमोनिया : अगस्तिया की जड़ की छाल पान में रखकर चूसने से या इसका रस 10 से 20 मिलीलीटर की मात्रा में सुबह-शाम सेवन करने से कफ (बलगम) निकलने लगता है और पसीना निकलना शुरू हो जाता जिसके फलस्वरूप बुखार धीरे-धीरे कम हो जाता है।
23. नखटन्ड : 14 मिलीलीटर अगस्तिया के पत्तों का रस या इसका 12 से 24 ग्राम कल्क (लई) को 10 ग्राम घी में भूनकर दिन में 2 बार लेना चाहिए।
24. रोशनी से डरना : अगस्तिया के पत्तों का रस और फूलों के रस को नाक मे डालने से रोशनी से डरने के रोग में आराम आता है।
25. सब्ज मोतियाबिंद : आंखों की रोशनी कमजोर होने पर या आंखों से दिखाई न देने पर अगस्तिया के फूलों का रस रोजाना दो से तीन बार आंखों में डालने से काफी आराम आता है।
26. उपतारा सूजन : अगस्तिया के फूल और पत्तों के रस को नाक में डालने से आंखों के रोगों में लाभ होता है।
27. बंद माहवारी (नष्टार्तव) होने पर : अगस्तिया के फूलों की सब्जी बनाकर खाने से रुकी हुई माहवारी पुन: शुरू हो जाती है।
28. अम्लपित्त होने पर : अगस्त की छाल 60 ग्राम को एक लीटर पानी में पकाकर काढ़ा बना लें। जब पानी 250 ग्राम बच जायें, तब इस काढ़े को छानकर 2 ग्राम की मात्रा में हींग मिलाकर 4 हिस्से करके दिन में 4 बार पिलाने से अम्लपित्त के होने वाले पेट के दर्द में लाभ होता है।
29. दर्द व सूजन में : चोट, मोच की पीड़ा पर अगस्त के पत्तों का लेप करें। पूर्ण लाभ होगा।
30. नाक के रोग में : अगस्त के फूलों और पत्तों के रस को नाक में डालने से जुकाम में आराम आता है।
31. चेचक के लिए : मसूरिका (चेचक) रोग में 40 ग्राम से 80 ग्राम तक अगस्तिया की छाल का फांट (घोल) रोगी को देने से लाभ होता है।
32. सिर का दर्द : सिर में दर्द होने पर अगस्त के पत्तों और फूलों का रस सूंघने से सिर का दर्द खत्म होने के साथ ही साथ जुकाम भी ठीक हो जाता है।
अगस्तिया के दुष्प्रभाव :
अगस्तिया का अधिक मात्रा में सेवन से पेट में गैस बनती है।
(अस्वीकरण : दवा, उपाय व नुस्खों को वैद्यकीय सलाहनुसार उपयोग करें)