Last Updated on January 13, 2017 by admin
साँईं श्री लीलाशाहजी महाराज के सत्संग में एक सज्जन आते थे। उनके विवाह को 17 साल हो गये थे पर प्रारब्धवश कोई संतान नहीं हुई। चिकित्सकों ने स्पष्ट कह दिया कि “आपकी पत्नी को गर्भ नहीं ठहर सकता, अतः बच्चा होना नामुमकिन है।” साँईं श्री लीलाशाहजी के प्रति उस सज्जन का पूर्ण विश्वास था और वह उनके श्रीचरणों में श्रद्धा से सिर भी झुकाता था। साँईं जी भी उसे प्रेमपूर्वक दया की दृष्टि से देखते थे।
एक दिन प्रातःकाल साँईं जी सत्संग कर रहे थे। सत्संग में वह व्यक्ति भी बैठा था। अचानक साँईं जी ने उसकी ओर इशारा करते हुए सत्संगियों से कहाः “सब लोग प्रभु के नाम पर एक ताली बजाओ कि इसे संतान मिले।” सभी ने ताली बजायी। साँईं जी ने फिर कहाः “एक ताली और बजाओ।” सबने दुबारा ताली बजायी। तीसरी बार फिर कहाः “एक ताली और बजाओ।”
कुछ समय पश्चात ईश्वर की कृपा से उसकी पत्नी गर्भवती हुई। समय बीतता गया। अब बच्चे के जन्म का समय आया। गर्भवती को अस्पताल में भर्ती कराया गया। डॉक्टर ने कहाः “ऑपरेशन करवाना पड़ेगा।” उसने कहाः “मुझे अपनी पत्नी का ऑपरेशन नहीं करवाना है।”
डॉक्टरः “ऑपरेशन नहीं करेंगे तो माँ और बच्चा दोनों की जान को खतरा है।”
परंतु वह नहीं माना, डॉक्टर घर चली गयी। जब वह वापस आयी तो उसने देखा कि बच्चा प्राकृतिक रूप से संसार में आ चुका है। दो साल बाद उसे दूसरा पुत्र और पाँच साल बाद तीसरा पुत्र भी हुआ। तीन बार तालियाँ बजवायीं तो पुत्र भी तीन ही हुए। यह सब देख महिला डॉक्टर दंग रह गयी और उसने कहा कि “हमारे विज्ञान के अऩुसार इस महिला को बच्चा होना नामुमकिन था।” तब उस व्यक्ति ने कहाः “यह मेरे संतों का विज्ञान है !”
संत-महापुरुषों पर दृढ़ श्रद्धा-विश्वास रखने से असम्भव कार्य भी सम्भव हो जाते हैं।