संत के संकल्प से जब आये खुद भगवान (सत्य घटना) | Hindi storie with moral

Last Updated on July 23, 2019 by admin

संत जीवन का एक रोचक प्रसंग : Hindi story

★ एक बाई राम-राम रटती थी। बड़ी अच्छी, सात्त्विक बाई थी। एक बार वह रोती हुई शरणानंदजी महाराज के पास गयी और बोलीः “बाबा ! मुझे रामजी के दर्शन करा दो।”

★ बाबा ने कहाः “अब रामरस जग रहा है तो राम में ही विश्रांति पा। दर्शन के पचड़े में मत पड़।”
बोलीः “नहीं बाबा ! आप जो बोलोगे वह करूँगी लेकिन रामजी का दर्शन करा दो।”
“जो बोलूँ वह करेगी ?”
“हाँ, करूँगी।”
“राम-राम रटना छोड़ दे।”

★ अब ʹहाँʹ बोल चुकी थी, वचन दे दिया था तो रामनाम रटना छोड़ दिया। दो दिन के बाद आयी और बोलीः “बाबा ! यह आपने क्या कर दिया ? मेरा सर्वस्व छीन लिया। राम-राम करने से अच्छा लगता था, वह भी अब नहीं करती हूँ, मेरा क्या होगा ?”

★ बाबा बोलेः “कुछ नहीं, जब मेरे को मानती है तो मेरी बात मान। बस, मौज में रह।”
“लेकिन राम जी का दर्शन कराओ।”
“ठीक है, कल होली है। रामजी के साथ होली खेलेगी ?”
बोलीः “हाँ।”
“रामजी आ जायेंगे तो दर्शन करके क्या लेगी ?”
“कुछ नहीं, बस होली खेलनी है।”

★ दूसरे दिन सिंदूर, कुंकुम आदि ले आयी। बाट देखते-देखते सीतारामजी प्रकट हुए, लखन भैया साथ में थे। वह देखकर दंग रह गयी, बेहोश-सी हो गयी। रामजी ने कहाः “यह क्या कर रही है ! आँखें बद करके सो गयी, होली नहीं खेलेगी ?”
वह उठी और रामजी के ऊपर रंग छिड़क दिया, लखन भैया के ऊपर भी छिड़का। रामजी ने, सीता जी ने उसके ऊपर छिड़का। होली खेलकर भगवान अंतर्धान हो गये।

★ बाबा मिले तो पूछाः “क्या हुआ ?”
बोलीः “भगवान आये थे, होली खेली और चले गये लेकिन अब क्या ?”
“पगली ! मैं तो बोल रहा था न, कि वे आयें, यह करें….इस झंझट में मत पड़। भगवान जिससे भगवान हैं, उस आत्मा को जान ले न ! उस आत्मा में संतुष्ट रह। रामजी ने वसिष्ठजी से जो ज्ञान पा लिया, वह ज्ञान तू भी पा ले। जो नित्य है, चैतन्य है, अपना-आपा है, उसी को जानने में लग जा।”

★ जिस आत्मदेव को जानने से सारे पाशों से, सारे बंधनों से मुक्त पा जाते हैं, उस आत्मदेव को जानो। इष्टदेव आ गये, शिवजी आ गये, विष्णुजी आ गये तो वे भी बोलेंगे कि ʹजाओ, तुम्हें नारदजी का सत्संग मिलेगा।ʹ (जैसा ʹभागवतʹ में वर्णित प्रचेताओं के प्रसंग में हुआ।) इसलिए आत्मज्ञान, परमात्मज्ञान में आओ। परमात्म-विश्रान्ति योग, परमात्म-साक्षात्कार योग सबसे आखिरी है।

★ एक तो होती है मनचाही, दूसरी होती है शास्त्रचाही, तीसरी होती है शास्त्रज्ञ महापुरुष जो बतायें वह – गुरुचाही। गुरुचाही में आदमी निश्चिंत यात्रा करता है। शास्त्रचाही करेगा तो कर्मकांड में, उपासना में लगेगा। मनचाही करेगा तो कहीं भी लग जायेगा लेकिन अनुभवी महापुरुष के अनुसार चलेगा तो रास्ता सहज, सरल हो जायेगा।moral stories in hindi ,hindi stories with moral
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~~ पूज्य संत श्री आशारामजी बापूजी (Pujya Asaram Bapu Ji)~~

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