कैलास मानसरोवर में सिद्ध योगी महात्माओं के दर्शन (सत्य घटना)

Last Updated on July 19, 2019 by admin

कैलाश मानसरोवर के सिद्ध योगी :

हमारे जिन कैलास-मानसरोवर आदि पावन तीर्थोंको चीन हड़प चुका है। वहाँ आज भी कैसे-कैसे महान् सिद्ध, त्रिकालदर्शी योगी महात्मा रहते हैं, इसके सम्बन्ध में कुछ आँखों देखी आश्चर्यजनक सच्ची बातें सुनिये। कुछ समयपूर्व भारतके प्रसिद्ध आर्य संन्यासी महात्मा श्रीआनन्दस्वामीजी महाराज (गृहस्थरूपमें महाशय खुशहालचंद सम्पादक ‘मिलाप’) पिलखुवा पधारे थे। उन्होंने अपनी कैलास-मानसरोवरयात्रा के सम्बन्ध में बड़े महत्त्वपूर्ण भाषण दिये थे। उन्हीं में से कुछ प्रसंग यहाँ प्रस्तुत किये जाते हैं

अद्भुत आनन्द :

मैं कैलास-मानसरोवर की यात्रा कर आया हूँ। कैलासमानसरोवर जाना एक प्रकार से मृत्यु के साथ खिलवाड़ करना है। वहाँ ऐसी बरफ पड़ती है कि शरीर ठंड से जम गया-सा प्रतीत होने लगता है। मैं जब मानसरोवर और गौरीकुण्ड पहुँचा, तब मेरे साथियों ने वहाँ स्नान नहीं किया। बहुत अधिक शीत होने के कारण उनकी हिम्मत ही नहीं हुई, पर मैं नहीं माना। मुझसे सबने कहा कि स्वामीजी महाराज! ठंड बहुत है, बरफ पड़ रही है, आप भी स्नान मत करो। कहीं ठंडमें स्नान करने से निमोनिया हो जायगा तो आप मर जायँगे।’ इसपर मैंने उनसे कहा कि ‘जब मेरी पार्वतीमाता ने, मेरी गौरीमाता ने इसमें स्नान किया है तो भला
मैं इसमें स्नान क्यों नहीं करूंगा? मैं यहाँ मरूंगा तो पवित्र स्थानपर ही मरूँगा, इससे बढ़कर मेरा क्या परम सौभाग्य होगा।’ मैंने अपने हाथों से बरफ हटाकर जब अपने कमण्डलु से बरफ तोड़कर जल भरकर अपने एक हाथ पर डाला तो ऐसा लगा कि मानो हाथ ही नहीं रहा। जब दूसरी ओर जल डालकर स्नान किया तो वहाँ भी ऐसा ही प्रतीत हुआ। जब अपने सिरपर डाला तो सारा शरीर ही जैसे न रहा हो, ऐसा प्रतीत हुआ। तदनन्तर मैं कम्बल ओढ़कर वहाँ ध्यान करने बैठ गया। मुझे वहाँ बैठे ६-७ घंटे हो गये।

ऐसा अद्भुत आनन्द आया कि मुझे भान ही नहीं रहा कि मैं यहाँ कबसे बैठा हूँ। मेरा मन एकदम एकाग्रशान्त हो गया। जो महान् सुख, जो अद्भुत आनन्द मैंने आज पाया, वैसा मैंने जीवनभर में कभी नहीं पाया। तीर्थयात्रा करने से क्या लाभ है, तीर्थयात्रा क्यों की जाती है और तीर्थस्थानका क्या प्रभाव है, इसका मुझे अपने जीवनमें आज पहली बार अनुभव हुआ। गाइड ने आकर जब मुझे अपने हाथों से झकझोरा, तब मुझे होश हुआ। मैंने गाइड से कहा कि तुमने मुझे व्यर्थ ही क्यों छेड़ा? मैं तो अद्भुत दिव्य आनन्द में डूब रहा था। तुमने मुझे छेड़कर मेरे आनन्दमें विघ्न डाला, यह ठीक नहीं किया। गाइडने कहा-‘महाराज ! आपको यहाँ बैठे ६-७ घंटेसे भी अधिक हो गये हैं। अब दिन छिपनेवाला है, बरफ भी पड़नी प्रारम्भ हो गयी है, अब आप यदि और अधिक बैठे तो बरफमें जम जाओगे और मर जाओगे।’ मैंने कहा कि मुझे भले ही मर जाने दो, पर मुझे ऐसा सुख फिर कहाँ मिलेगा?’ उसने कहा‘महाराज ! यहाँ मत मरो, मेरी जिम्मेदारी है, इसलिये अब आप उठो।’ मैं उठा मैंने सारे पहाड़की ओर दृष्टि डाली तो चारों ओर बरफ-ही-बरफ जमी थी और वह साक्षात् शंकरभगवान्का मन्दिर-सा प्रतीत हो रहा था।

मैंने वहाँ एक बड़ा ही अद्भुत दिव्य स्थान देखा। सारे पहाड़पर बरफ जमी होनेपर भी बीचमें वह ऐसा स्थान था, जहाँ बिलकुल ही बरफ नहीं थी। कहते हैं कि यह वही दिव्य स्थान है, जहाँ बैठकर श्रीशिवजीने श्रीपार्वतीजीको अमरकथा सुनायी थी।

मैंने अपने गाइडसे कहा कि तुम मुझे वहाँपर ले चलो,जहाँ भगवान् श्रीशंकरजीने माता श्रीपार्वतीजी को अमरकथा सुनायी है। उसने कहा-‘महाराज! वहाँ कोई नहीं जाता है। उधर बहुत ज्यादा बरफ है और जाने का कोई रास्ता भी नहीं है।’ वह मुझे बहुत मना करता रहा, पर मैं नहीं माना। मैंने उससे कहा कि मैं तो वहाँ अवश्य ही जाऊँगा।’ मैं वहाँ गया, पर बड़े ही कष्टसे गया। कहीं पर बरफ से फिसलकर गिरा, कहीं पैर फिसला तो कहीं चोट लगी। अन्तमें जैसे-तैसे मैं वहाँ पहुँच ही गया और मैं उस दिव्य अद्भुत स्थानपर बैठकर आया, जहाँ शंकरभगवान् श्रीपार्वतीजीको कथा सुनाया करते थे। वहाँ बैठते ही मेरा मन एकदम शान्त हो गया और मुझे एक प्रकारसे समाधि-सी लगने लगी।

वहाँ से उतरनेपर मैंने देखा कि एक मद्रासी साधु बेहोशी की हालत में एक किनारे पर मुर्दा-जैसा पड़ा हुआ था। कहते हैं कि मना करनेपर भी उसने कुण्डमें स्नानके लिये छलाँग लगा दी थी, इसीसे वह ठण्डके मारे बेहोश हो गया था और अब उसके बचनेकी कोई आशा नहीं थी। मैंने गाइडसे कहा और उस साधुको एक झब्बूपर लदवाया। फिर उसे बेहोशीकी हालतमें ही नीचे लाया गया। तदनन्तर उसे अग्निसे तपाया गया, तब उसे कुछ होश हुआ। वहाँ जलानेकी लकड़ी बिलकुल नहीं मिलती। वृक्षोंका भला वहाँ क्या काम? बकरियों की मैंगनी ही वहाँ पर जलायी जाती है।

योगी प्रणवानन्दजी महाराजके दर्शन :

योगी स्वामी श्रीप्रणवानन्दजी महाराज मानसरोवर में लगभग बीस वर्ष से रहते हैं। मैंने जब उनकी कुटिया में जाकर देखा तो मुझे वे पूर्वपरिचित-से प्रतीत हुए। याद आते ही मैंने कहा‘सोमयाजी ! सोमयाजी !!’ वे भी मेरी ओर देखने लगे। वे बीस वर्षपूर्व जब लाहौरमें रहते थे, तब कुछ दिनोंतक मेरे पास रहे थे। उस समय वे राजनीतिमें भाग लिया करते थे। मैंने उन्हें जब इस बातका स्मरण दिलाया तो उन्हें भी याद आ गया और उन्होंने मुझसे कहा कि मैं बीस वर्ष पहले राजनीतिमें भाग लेता था और राजनैतिक नेताओंके साथ मिलकर काम किया करता था। पर जब मैंने देखा कि राजनीतिमें भाग लेनेवाले प्रायः सभी चरित्रभ्रष्ट हैं तब मेरे मनमें बड़ी ग्लानि हुई और मैं एकदम वहाँसे हटकर यहाँ चला आया। तबसे योगाभ्यास करता हुआ मैं यहींपर रहता हूँ। मैंने जब उनसे पूछा कि आपने योगमें क्या सीखा है?’ तब उन्होंने मुझे कुछ क्रियाएँ दिखायीं। प्राणायामद्वारा लम्बे-लम्बे श्वास खींचे और पेट, छाती, टाँग, बाँह, सिर सभीको फुटबालकी तरह फुला लिया, फिर एकदम बैठे-बैठे उनका आसन पृथ्वीसे ऊपर उठ गया और ऊपर छततक लग गया। फिर नीचे आ गया। उनके योगका यह आश्चर्यजनक चमत्कार मैंने अपनी आँखोंसे देखा। उन्होंने और भी बहुत-सी योगकी बातें बतायीं, जो सर्वसाधारणके सामने नहीं बतायी जा सकतीं।

देखते-देखते अदृश्य हो जानेवाले सिद्ध योगी के दर्शन :

यात्रासे लौटते समय मुझे एक दूसरे महान् सिद्ध योगी मिले। मुझे उनके दर्शनका ही परम सौभाग्य नहीं प्राप्त हुआ, वरं उनसे मेरी खूब बातें भी हुईं। संध्याका समय था। उस दिन बरफ भी खूब पड़ रही थी। मेरे सब साथी अपने अपने तम्बुओं में बैठे थे। मैं तम्बू से बाहर निकला। मैं खड़ा होकर कहने लगा कि ‘हम यह सुना करते थे कि कैलासमें देवी-देवताओंका निवास है और वहाँ बड़े-बड़े सिद्ध योगी रहते हैं, पर यहाँपर हमें तो कोई भी सिद्ध योगी नहीं मिला, फिर हम कैसे माने कि यहाँ कोई सिद्ध योगी रहते हैं।’ मेरा इतना कहना ही था कि वहाँ मेरे सामने अचानक एक योगी प्रकट होकर खड़े हो गये। मैंने उनकी ओर आश्चर्यके
साथ देखा। उन सिद्ध योगीके सारे शरीरपर भस्म लगी हुई थी। वे बड़े ही भव्य और सुन्दर प्रतीत हो रहे थे। मैंने तुरंत उन्हें नमस्कार किया और उन्होंने मुझे अपने हृदयसे लगा लिया। फिर उन्होंने मुझसे कहा कि तुम जो यह कहते थे कि कैलास-मानसरोवर की यात्रामें कोई सिद्ध योगी नहीं मिला, सो योगी मिलें कहाँसे ? योगीकी कोई खोज भी तो नहीं करता? जो खोज करता है, उसे अवश्य मिलते हैं। इतने में ही मैंने क्या देखा कि वे परम सिद्ध योगी मेरे देखते-देखते तुरंत अदृश्य हो गये। मैंने इधर-उधर देखा तो कहींपर भी दिखायी नहीं पड़े। मुझे बड़ा भारी आश्चर्य हुआ कि ऐसे पहाड़ों पर जहाँ बरफ-ही-बरफ पड़ रही है, वृक्षका नाम-निशान भी । नहीं है और कोई मनुष्य तो क्या, पशु-पक्षी भी नहीं रहता,ये योगी यहाँ कैसे रहते हैं? और मेरे मनकी बात इन्हें कैसे मालूम हो गयी? फिर एकदम अदृश्य कैसे हो गये? मुझे लगा कि कहीं मैंने यह स्वप्न तो नहीं देखा है या मुझे कोई भ्रम तो नहीं हो गया है? मैंने अंदर अपने तम्बूमें आकर टार्च जलाकर गौरसे देखा तो रोशनीमें मुझे सचमुच अपने कपड़ोंपर योगीके शरीरकी भस्म लगी दिखायी दी, तब तो मुझे पूरा निश्चय हो गया कि यह स्वप्न या भ्रम नहीं था, वरं बिलकुल सत्य घटना थी और वास्तवमें ही मुझे महान् सिद्ध योगीके दर्शन करनेका परम सौभाग्य प्राप्त हो गया है। और सचमुच यहाँ बड़े-बड़े सिद्ध योगी निवास करते हैं।

दूसरे दिन सिद्ध योगी से भेंट :

दूसरे दिन प्रात:काल मैंने अपने गाइडसे, जिसका नाम ‘शीशखम्भाजी’ था, कहा-‘शीशखम्भाजी ! बताइये, यहाँपर कोई योगी महात्मा रहते हैं?’ शीशखम्भाजी ने कहा कि ‘महाराज ! एक योगी रहते तो हैं।’ मैंने उनसे कहा कि तुम मुझे उन योगीके दर्शन कराओ।’ शीशखम्भाजीने कहा-‘महाराज ! उनके पास जो जाता है, वे उसे खा जाते हैं। मैंने कहा-‘तुम इस बातकी परवाह मत करो कि वे योगी मुझे खा जायँगे। तुम मुझे उनके दर्शन अवश्य करा दो’, उन्होंने कहा-‘महाराज ! मेरी हिम्मत नहीं है कि मैं वहाँ जाऊँ, वह मुझे जाते ही खा जायँगे’, मैंने कहा-‘अच्छा, तुम्हारी जानेकी हिम्मत नहीं है तो तुम न जाओ, पर तुम मुझे वहाँका रास्ता बता दो। मैं स्वयं वहाँ चला जाऊँगा।’ वे मुझे बहुत मना करते रहे, अन्तमें मेरे बार-बार आग्रह करनेपर मेरे साथ चले और कुछ दूरसे ही रास्ता बतानेको तैयार हो गये। उन्होंने मुझसे चलती बार कहा कि ‘महाराज! आपको कहीं वह योगी खा गया तो हम जिम्मेदार नहीं हैं; अब आप जानो?’ मैंने कहा कि तुम इस बातकी तनिक भी चिन्ता मत करो, मुझे उनके स्थानकी पहचान बता दो।’ उन्होंने दूरसे अपने हाथका निशाना करके बताया कि सीधे कुछ दूरीपर चलनेपर नीचे की ओर इस प्रकारका एक पत्थर आयेगा। उसके पास एक और पत्थर है, उसे हटा देना। उसी गुफाके अंदर योगी रहता है। वे यों बताकर पीछे हट गये और अपने स्थानपर लौट गये। मैं धीरे-धीरे चलकर वहाँ पहुँचा। वहाँ जाकर मैंने वह पत्थर हटाया और गुफामें देखा तो वे गत रात्रिको दर्शन देनेवाले महान् सिद्ध योगी महात्मा ही सारे शरीरपर भस्म लगाये विराजमान हैं। उन्होंने मुझे देखा और बड़े प्रेमसे मुझे अपने पास बुला लिया। अब तो मेरी उनसे खूब खुलकर बातें हुईं। मैंने उनसे पूछा‘महाराज ! क्या यह बात सत्य है कि आपसे जो मिलने आता है, उसे आप मारकर खा जाते हैं। उत्तरमें उन्होंने हँसते हुए कहा‘क्या मैं कोई राक्षस हूँ कि जो मनुष्यको खा जाता हूँ। कोई मनुष्य मेरे पासतक न आये, इसलिये यह डर दिखाया हुआ है। और कोई बात नहीं है। मैं किसीको खाता नहीं हूँ।’

उन सिद्ध योगी संतसे मेरी बातें होती रहीं। उन्होंने बहुतसी ऐसी बातें भी बतायीं, जिनको किसी दूसरे मनुष्यको बतानेसे मुझे मना कर दिया। इधर मैं उनसे बात कर रहा था और बहुत देर होनेके कारण उधर हमारे साथियों में मेरे न लौटनेसे बड़ी चिन्ता हो रही थी। वे सोच रहे थे कहीं योगीने उन्हें मारकर खा न लिया हो ! वे दूरसे मेरा नाम ले-लेकर आवाज दे रहे थे, पर उनकी इतनी हिम्मत नहीं थी कि जो मेरे पासमें आ सकें। मुझे इस बातका कुछ भी पता नहीं था। उन सिद्ध योगीको वहीं बैठे-बैठे सब पता लग गया और उन्होंने कहा कि ‘अच्छा, अब तुम जाओ, तुम्हारे साथी बहुत घबरा रहे हैं। वे बड़े व्याकुल हो रहे हैं। उन्हें चिन्ता हो गयी है कि कहीं योगीने तुम्हें मारकर खा न डाला हो?’ मैंने कहा‘महाराज! आपको यह कैसे मालूम हो गया कि वे बड़े चिन्तित हो रहे हैं? आप तो यहाँ बैठे हैं?’ उन्होंने कहा-‘रात्रि को जब तुमने यह कहा था कि हमें कैलास-मानसरोवरकी यात्रामें कोई योगी नहीं मिले, तब बताओ मुझे कैसे मालूम हो गया था और मैंने उसी समय प्रकट होकर कैसे तुम्हें दर्शन दिये थे? मुझे भूत, भविष्य, वर्तमान सबका ज्ञान है। अमेरिका, इंग्लैण्ड, रूस, जर्मनी, हिंदुस्थान आदि देशों में कहाँ कब क्या हो रहा है, इसका भी मुझे सब पता है।’

मैं उन त्रिकालज्ञ सिद्ध योगीको नमस्कार करके अपने स्थानपर लौट आया। आकर देखा तो मेरे साथी वास्तवमें बहुत घबराये हुए थे और बहुत ही चिन्तित थे। मुझे योगी के पाससे जिन्दा वापस लौटा देखकर वे बहुत ही प्रसन्न हुए। मैंने उन महान् सिद्ध योगीसे भेंट करके अपने जन्म को सफल माना। इससे मुझे जो प्रसन्नता हुई वह वर्णनातीत है।

जीवात्माका दर्शन करानेवाले लामा योगी :

मैं वहाँ एक बहुत बड़े बौद्ध लामा योगीके पास उनके दर्शनार्थ गया। न तो वे बौद्ध लामा हमारी भाषा जानते थे और न हम उनकी भाषा जानते थे, इसलिये एक दुभाषियाको बुलाया गया। उसके माध्यमसे उनकी मेरी खूब बातें हुईं। मैंने जब उनसे योगके सम्बन्धमें गुप्त बातें पूछीं तो उन योगीने कहा कि यह दुभाषिया अनधिकारी है, इसके सामने ये बातें नहीं बतायी जा सकतीं। इसलिये इस दुभाषियेको यहाँसे हटा दो।’ मैंने वहाँसे उसे हटा दिया। पर बात तो भाषा-ज्ञानके अभावमें हो नहीं पायी, अतः फिर दुभाषियेको बुलाकर मैंने कहा कि ‘इनसे कहो कि ये मुझसे यौगिक भाषामें बातें करें, जिससे हम एक-दूसरेकी बातें भलीभाँति समझ सकें।’ उन्होंने यौगिक भाषामें बातें करना स्वीकार कर लिया। फिर उनकी हमारी यौगिक भाषामें खूब बातें होती रहीं। उन्होंने प्राणायामद्वारा अपने शरीर, छाती आदिको फुलाया और हृदय-स्थानके पास एक चमकती झिलमिलाती मणिके रूपमें अँगूठेके बराबर जीवात्माका मुझे साक्षात् दर्शन कराया। इससे मुझे बड़ा ही वर्णनातीत आनन्द प्राप्त हुआ।

मुझे वहाँ और भी बड़े-बड़े सिद्ध योगी मिले, पर उन्होंने अपने सम्बन्धमें किसीको भी कुछ भी बतानेसे मना कर दिया। इसलिये मैं उनके सम्बन्धमें किसीको कुछ भी नहीं बता सकता। कैलास-मानसरोवर में आज भी बड़े-बड़े सिद्ध योगी गुप्तरूप से रहते हैं, यह मुझे पूर्ण निश्चय हो गया। शास्त्रों में इनकी महिमाके सम्बन्धमें लिखी बातें अक्षरशः सत्य हैं; इसमें तनिक भी संदेह नहीं है।

( और पढ़ेपंद्रह वर्ष पूर्व की गयी भविष्यवाणी सच्ची निकली )

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