Last Updated on May 12, 2020 by admin
आभूषण पहनें के फायदे और महत्व : Aabhushan Pahnane se labh
★ कान में कुंडल, हाथों में बाजूबंद ये वीरता के गुण को विकसित करते है, शरीर सुडोल करने में मदत करते है, उर्जा शक्ति का रक्षण करते है, पाचनतंत्र को ठीक करते है |
★ कंगन जनेइंद्रिय को नियंत्रित रखते है, कामवासना में संतुलन लाते है और हृदय को पुष्ट करते है, इसलिये कंगन सोने के अथवा पंचधातु के पहनना भी स्वास्थ के लिए अच्छे माने गये है |
★ अंगूठी उर्जा का विकास करती है, मानसिक तनावों से दूर रखती है, और हार पहनने से थायोरेड ग्रंथी (स्वसन तंत्र ) नियंत्रित होता है |
★ कानो में सोने की बालियां अथवा झुमके आदि पहनने से स्त्रियों में मासिक धर्म सम्बन्धी अनियमितता कम होती हैं, हिस्टीरिया रोग में लाभ होता हैं तथा आंत उतरने अर्थात हर्निया का रोग नहीं होता हैं।
★ नाक में नथुनी धारण करने से नासिका सम्बन्धी रोग नहीं होते तथा सर्दी खांसी में राहत मिलती हैं।
★ पैरो की अंगुलियों में चांदी की बिछिया पहनने से स्त्रियों में प्रसव पीड़ा कम होती हैं, साइटिका रोग एवं दिमागी विकार दूर होकर स्मरणशक्ति में वृद्धि होती हैं।
★ पायल पहनने से पीठ, एड़ी एवं घुटनो के दर्द में राहत मिलती हैं, हिस्टीरिया के दौरे नहीं पड़ते तथा श्वास रोगो की संभावना दूर हो जाती हैं। इसके साथ ही रक्तशुद्धि होती हैं तथा मूत्ररोग की शिकायत नहीं रहती।
★ बिंदिया अथवा तिलक लगाने से चित्त की एकाग्रता विकसित होती हैं तथा मस्तिष्क में पैदा होने वाले विचार असमंजस की स्थिति से मुक्त होते हैं। मस्तिष्क के भ्रु-मध्य ललाट में जिस स्थान पर टीका या तिलक लगाया जाता है यह भाग आज्ञाचक्र है । शरीर शास्त्र के अनुसार पीनियल ग्रन्थि का स्थान होने की वजह से, जब पीनियल ग्रन्थि को उद्दीप्त किया जाता हैं, तो मस्तष्क के अन्दर एक तरह के प्रकाश की अनुभूति होती है । इसे प्रयोगों द्वारा प्रमाणित किया जा चुका है हमारे ऋषिगण इस बात को भलीभाँति जानते थे पीनियल ग्रन्थि के उद्दीपन से आज्ञाचक्र का उद्दीपन होगा । इसी वजह से धार्मिक कर्मकाण्ड, पूजा-उपासना व शूभकार्यो में टीका लगाने का प्रचलन से बार-बार उस के उद्दीपन से हमारे शरीर में स्थूल-सूक्ष्म अवयन जागृत हो सकें ।
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किसके आभूषण कहाँ पहनें ?
★ सोने के आभूषणें की प्रकृति गर्म है तथा चाँदी के गहनों की प्रकृति शीतल है। यही कारण है कि सोने के गहने नाभि से ऊपर और चाँदी के गहने नाभि के नीचे पहनने चाहिए। सोने के आभूषणों से उत्पन्न हुई बिजली पैरों में तथा चाँदी के आभूषणों से उत्पन्न होने वाली ठंडक सिर में चली जायेगी क्योंकि सर्दी गर्मी को खींच लिया करती है। इस तरह से सिर को ठंडा व पैरों को गर्म रखने के मूल्यवान चिकित्सकीय नियम का पूर्ण पालन हो जायेगा। इसके विपरीत करने वालों को शारीरिक एवं मानसिक बिमारीयाँ होती हैं।
★ जो स्त्रियाँ सोने के पतरे का खोल बनवाकर भीतर चाँदी, ताँबा या जस्ते की धातुएँ भरवाकर कड़े, हंसली आदि आभूषण धारण करती हैं, वे हकीकत में तो बहुत बड़ी त्रुटि करती हैं। वे सरे आम रोगों को एवं विकृतियों को आमंत्रित करने का कार्य करती हैं।
★ सदैव टाँकारहित आभूषण पहनने चाहिए। यदि टाँका हो तो उसी धातु का होना चाहिए जिससे गहना बना हो।
★ माँग में सिंदूर भरने से मस्तिष्क संबंधी क्रियाएँ नियंत्रित, संतुलित तथा नियमित रहती हैं एवं मस्तिष्कीय विकार नष्ट हो जाते हैं।
★ शुक्राचार्य जी के अनुसार पुत्र की कामना वाली स्त्रियों को हीरा नहीं पहनना चाहिए।
★ ऋतु के अनुसार टोपी और पगड़ी पहनना स्वास्थ्य-रक्षक है। घुमावदार टोपियाँ अधिक उपयुक्त होती है।