Last Updated on July 22, 2019 by admin
कसीस क्या होता है ? : Kasis kya hota hai
आयुर्वेद मतानुसार कसीस {Ferrous Sulphate (FeSO4. 7H2O)}दो तरह का होता है। एक पुष्प कसीस और दूसरा बालूकसीस।
बालूकसीस को धातु कसीस भी कहते हैं। यह खनिज तथा कृत्रिम दोनों प्रकार का होता है। कृत्रिम लोहा और गन्धक के तेजाब से बनता है। प्राय: बाजार में यही मिलता है। अंग्रेजी दवा विक्रेताओं के यहाँ सल्फेट ऑफ आयरन के नाम से विशुद्ध कसीस (हरा) मिलता है। औषध प्रयोग के लिए यह उत्तम है।
सेवन की मात्रा और अनुपान :
१ से ३ रत्ती, सुबह-शाम शहद के साथ सेवन करें।
कसीस भस्म के फायदे और उपयोग : kasis bhasma ke fayde / benefits
1-यह भस्म पाण्डु, रक्ताल्पता, क्षय, कुष्ठ, यकृत्-प्लीहा-वृद्धि आम विकार, उदर रोग, गुल्म, शूल आदि रोगों में उपयोगी है।
2- रोग छूटने के बाद की कमजोरी को दूर करने तथा शरीर में नया रक्त पैदा कर शरीर को पुष्ट बनाने के लिये यह उत्तम है।
3-यह पाचक पित्त के विकार को दूर कर अग्नि प्रदीप्त करती है।
4-रक्तवर्धक एवं पित्तनाशक गुण विशेष होने से सुकुमार (कोमल) प्रकृतिवालों को विशेष अनुकूल पड़ती है।
5-कसीस की भस्म मण्डूर से भी ज्यादा सौम्य है।
6- यह कषाय-गुणयुक्त होने से नेत्र-रोगों में भी लाभदायक है।
8-यह ढीले अंगों में मजबूती और कड़ापन ला देती है।
9-जख्म (व्रण) पर लगाने से खरोटें ला देती है।
10-तर खुजली अर्थात् जिस खुजली के फोड़ों से बराबर मवाद बहता हो उसमें तथा सिर की गञ्जता में लाभदायक है।
11-नासूर में इसकी बत्ती रखने से बहुत लाभ होता है।
12-इसको मञ्जन में डालने से मसूढ़ों विकार अच्छे हो जाते हैं।
13-आधुनिक अन्वेषणों से ज्ञात होता है कि कासीस कारबंकल नामक फोड़ा के अन्दर बहुत लाभदायक सिद्ध हुआ है।
कसीस भस्म से रोगों का उपचार : kasis bhasma se rogon ka upchar
1-पाण्डु और रक्ताल्पता में – जब शरीर में रक्तकणों की कमी हो जाती है- इसका कारण यह होता है कि पाचक पित्त दूषित होकर अपना कार्य बन्द कर देता है, जिससे खायी हुई वस्तुओं का ठीक से पाचन न होने से अच्छा रस नहीं बनता और अच्छा रस न बनने से अच्छा रक्त भी नहीं बनता, अतः रक्तकणों का बनना बन्द हो जाता है रक्त कण कम होने से पित्त भी कम बनता है, क्योकि ये दोनों एक दूसरे के सहारे रहते हैं। इनमें से किसी एक के दूषित होने से दूसरा भी दूषित हो जाता है. यह स्वाभाविक है। ऐसी हालत में कसीस भस्म शहद के साथ कुछ दिन तक सेवन करने से बहुत लाभ होता है। इससे अग्नि प्रदीप्त होती है और पाचक पित्त काम ठीक करने लगता है तथा क्रमश: अच्छा स्क्त भी बनने लग जाता है।
2-क्षय रोग- क्षय रोग में चौसठ प्रहरी पीपल के साथ दें।
3-श्वेत कुष्ठ- श्वेत कुष्ठ में त्रिफला और वायविडग चूर्ण तथा न्यूनाधिक मात्रा में घृत और मधु के साथ दें। ( और पढ़े –सफेद दाग का कारण व आयुर्वेदिक इलाज )
4-प्लीहा-वृद्धि- यकृत् और प्लीहा-वृद्धि में शहद और गो-मूत्र के साथ दें।
5-आम-आम विकार में शहद और धान्यपंचक के क्वाथ के साथ दें।
6-उदर रोग- उदर रोग में त्रिकटु चूर्ण और शहद से दें। ( और पढ़े – पेट फूलना (अफरा) का घरेलु उपचार)
7-गुल्म शूल-गुल्म शूल में घृत कुमारी रस और शहद से दें।
8-नेत्र रोग-नेत्र रोग में त्रिफला घृत अथवा आमले के मुरब्बा से दें।
9-मासिक धर्म – रजोरोध में एलुवा और हींग के साथ देने से मासिक धर्म साफ होकर गर्भाशय शुद्ध हो जाता है। ( और पढ़े – मासिक धर्म की अनियमितता को दूर करते है यह 19 घरेलू उपचार)
सावधानियां :
★ अधिक मात्रा में इसका सेवन शरीर को नुकसान पहुंचाता है।
★ सही प्रकार से बनी कसीस भस्म का ही सेवन करे।
★ अशुद्ध कसीस भस्म से शरीर पर बहुत से हानिकारक प्रभाव उत्पन्न होतें है |
★ इसे डॉक्टर की देख-रेख में ही लें।
Good for patients for knowledge what he take and what it’s result after take in his illness