Last Updated on September 9, 2020 by admin
जलोदर (पेट में पानी पड़ जाना) के कारण : jalodar rog ke karn
जब किसी व्यक्ति के पित्ताशय, गुर्दे ,जिगर, और हृदय कमजोर हो जाते हैं तो वे अपना काम ठीक प्रकार से नहीं करपाते हैं | इसके कारण शरीर का खून पिघल कर पानी बन जाता है और शरीर के किसी भाग के तंतुओं या गह्नर में जमा होकर जलोदर रोग की उत्पत्ति करता है। इस रोग के कारण पानी रोगी के पूरे शरीर में या शरीर के किसी एक भाग खासकर पेट में जमा हो जाता है।
जलोदर (पेट में पानी पड़ जाना) के लक्षण : jalodar rog ke lakshan
यकृत सम्बन्धी रोग की अन्तिमावस्था ही जलोदर अथवा जलन्धर या पेट में पानी भर जाने के रूप में परिलक्षित होती है । इसमें पेट को छूने से पानी की लहरें स्पष्ट दिखाई देती हैं । पेट सूजा हुआ दृष्टिगोचर होता है। पेट सूजकर (पानी भरकर) मटके के समान हो जाता है ।
आइये जाने जलोदर का आयुर्वेदिक उपचार ,jalodar ayurvedic treatment,jalodar ka ayurvedic upay
जलोदर के घरेलु इलाज : jalodar ke gharelu upay
1- करेले के पत्तों का स्वरस जलोदर के रोगी को उचित मात्रा में कुछ दिनों | तक पिलाने से ज़लोदर में लाभ होता है। इससे पेशाब बढ़ जाता है तथा 1-2 बार शौच भी हो जाता है तथा जलीयांश कम होने लगता है । ( और पढ़ें – गुणकारी करेला के 24 लाजवाब फायदे )
2- अजवायन को बछड़े के मूत्र में भिगोकर शुष्क कर लें । इसे थोड़ी-थोड़ी मात्रा में सेवन कराने से जलोदर में लाभ हो जाता है । ( और पढ़ें – गोमूत्र है 108 बिमारियों की रामबाण दवा)
3- दूब (घास) के पंचांग का फान्ट या रस पिलाने से पेशाब अधिक होकर | पेट हल्का हो जाता है । फान्ट या रस के साथ काली मिर्च का चूर्ण मिलाकर पिलाने से जलोदर के साथ-साथ सर्वांग-शौथ में भी लाभ होता है।
4- पुनर्नवा की जड़ 10 ग्राम को गोमूत्र 20 ग्राम में पीसकर सुबह-शाम | पिलाने से मूत्र खूब खुलकर आने लगता है जिससे जलोदर में लाभ होता है । पथ्य में केवल दूध का सेवन करायें । ( और पढ़ें – पुनर्नवा के हैरान करदेने वाले 65 फायदे )
5- पुनर्नवा का जौकुट किया हुआ चूर्ण 20 ग्राम को 200 ग्राम जल में पकाकर 50 ग्राम शेष रहने पर इसमें चिरायता तथा सौंठ का चूर्ण 2 ग्राम तथा कलमी शोरा 6 से 8 रत्ती तक मिलाकर पिलाने से जलोदर में लाभ होता है ।
6- सत्यानाशी का दूध 10 ग्राम जल तथा गोदुग्ध 60-60 ग्राम मिलाकर प्रात:काल पिलाने से मूत्र तथा मल का सम्यक विरेचन होकर उदर हल्का हो जाता है और जलोदर में भी लाभ होता है ।
7- बिना बच्चा पैदा किये हुए (बिना ब्याही) घोड़ी का मूत्र 400 ग्राम में काली मिर्च 6 ग्राम पीसकर मिलाकर सम्पूर्ण मूत्र 1 बार में ही पिला दें। फिर रोगी को दिन भर दूध ही पिलाते रहें । यह प्रयोग 1 दिन बीच में छोड़कर (अन्तराल से) मात्र 3 बार सेवन करायें, जलोदर में लाभप्रद है।
8- प्रथम 10-15 दिन तक जलोदर रोगी को उपवास करायें। इस उपचार से वमन तथा विरेचन होकर जल निकलना प्रारम्भ हो जाता है। जब पेट का सम्पूर्ण जल निकल कर अपनी असली अवस्था पर आ जाये, तब उपवास छुड़ा दें। उपवास छोड़ते समय मठे का पानी, गेहूँ की रोटी, ऊँटनी या गाय का दूध सेवन कराना चाहिए । इस प्रयोग से रोगी जलोदर से रोगमुक्त हो जाता है।
9- लाल मिर्च के पौधे की पत्तियाँ 20 ग्राम, काली मिर्च 10 दाने लें । दोनों को ठण्डाई की भांति पीस-छानकर 1-1 ग्राम नौसादर और सेंधा नमक मिलाकर पिलाना जलोदर में अतीव गुणकारी है।
10- एक बड़ा बैंगन लेकर उसमें छेद करके नौशादर भरकर ओस में रख दें । प्रात:काल इसे निचोड़कर रस निकालें । इस रस की 4-5 बूंदें बताशे में डालकर रोगी को निगलवाने से जलोदर रोगी को एक मटका पेशाब होगा । निरन्तर 1 मास तक इसके सेवन से जलोदर और तिल्ली के रोग अवश्य मिट जाते हैं ।
11- ताजा अदरक के रस में 5 तोला समभाग मिश्री मिलाकर प्रात:काल पिलावें। फिर दूसरे दिन ढाई तोला रस की मात्रा और समान भाग मिश्री बढ़ाकर प्रयोग करें। इसी प्रकार 25 तोला अदरक रस और 25 तोला मिश्री तक पहुँच जायें फिर इसकी अनुपात (ढाई तोला) से घटाकर प्रयोग 5 तोला पर स्थगित कर दें। इस प्रयोगकाल में रोगी को पथ्य में मात्र दुग्धपान ही करना चाहिए । इस योग से जलोदर में अवश्य लाभ होता है। ( और पढ़ें – गुणकारी अदरक के 111 औषधीय प्रयोग )
12- करेले के ढाई तोला रस में एक चौथाई तोला शहद मिलाकर प्रात:सायं पिलाने से जलोदर नष्ट हो जाता है। यह प्रयोग मलेरिया ज्वर में भी लाभप्रद है।
13- करौदा के पत्तों का स्वरस प्रथम दिन 1 तोला, दूसरे दिन 2 तोला इसी प्रकार 10 वें दिन तक नित्य 1 तोला बढ़ाते हुए 10 तोला तक पिलावें । फिर इसी क्रम से 1-1 तोला घटाते हुए 1 तोला पर आकर पिलाना बन्द कर दें । इतने प्रयोग से ही जलोदर स्वयं मिट जायेगा ।
14- कच्चा लहसुन दो कली प्रतिदिन खाने से (भोजन के साथ) जलोदर स्वयं ही धीरे-धीरे ठीक हो जाता है । ( और पढ़ें – लहसुन के फायदे और औषधीय गुण )
15- कच्ची प्याज बार-बार खाने से मूत्र अधिक होता है । यह जलोदर के लिए अच्छी औषधि है। ( और पढ़ें – प्याज खाने के 141 फायदे )
जलोदर रोग की प्राकृतिक चिकित्सा : jalodar rog ki Prakritik Chikitsa
1- रोगी ऐसे पदार्थों का सेवन अधिक करे जिनसे पेशाब अधिक मात्रा में आए तथा पेशाब साफ हो।
2- अधिक कमजोर नहीं होने पर रोगी को एक दिन उपवास करना चाहिए।
3- रोगी को जल पीना बंद कर देना चाहिए तथा भोजन भी बंद कर देना चाहिए। प्यास लगने पर उसे फलों का रस,दही का पानी, मखनियां, ताजा मट्ठा, तथा गाय के दूध का मक्खन देना चाहिए। इसके अलावा रोगी को और कुछ भी सेवन नहीं करना चाहिए।
4- रोगी को अपनी पाचनतंत्र ठीक करने के लिए प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार करना चाहिए |
5- रोगी के पेट में जहां भी सूजन आ रही हो वहां पर नित्य 1-2 बार मिट्टी की गीली पट्टी लगानी चाहिए।
6- कुछ दिनों तक रोगी को सोने से पहले प्रतिदिन गुनगुने पानी का एनिमा लेकर अपने पेट को साफ करना चाहिए।
जलोदर की दवा : jalodar ki ayurvedic dawa
अच्युताय हरिओम फार्मा द्वारा निर्मित जलोदर में शीघ्र राहत देने वाली लाभदायक आयुर्वेदिक औषधियां |
1) पुनर्नवा अर्क (Achyutaya Hariom Punarnava Ark)
2) गोझरण अर्क(Achyutaya Hariom Gaujaran Ark)
(अस्वीकरण : दवा ,उपाय व नुस्खों को वैद्यकीय सलाहनुसार उपयोग करें)