Last Updated on July 21, 2022 by admin
जोड़ों का दर्द (joint pain)
- इस रोग में रोगी को शरीर के किसी एक कई जोड़ों में सूजन(शोथ) हो जाती है और उनमें बहुत ही तीव्र दर्द होता है ।
- यह रोग कई प्रकार का हुआ करता है जैसे—बच्चों और युवाओं में गठिया का ज्वर, बूढों में आर्थराइटिस, फाईब्रोसाइटिस, घुटने के जोड़ का दर्द इत्यादि।
- यह रोग चिकित्सीय दृष्टिकोण से 2 प्रकार का माना जाता है । 1- नया (एक्यूट), 2. पुराना (क्रोनिक) ।
- नये रोग में रोगी को ज्वर होकर जोड़ सूज जाते हैं और उनमें सख्त दर्द होता है । यह दर्द कभी एक जोड़ में होता है और कभी किसी दूसरे जोड़ में होता है । दर्द और शोथ के स्थान बदलते रहते हैं ।
- पुराने रोग में जो जोड़ बहुत अधिक सूजकर मोटे हो जाते हैं और प्रायः जुड़ जाते हैं, उन्हें हिलाना भी कठिन हो जाता है । यह रोग वर्षों तक रहता है और हर जोड़ में रोग हो जाता है ।
- यह रोग एक विशेष प्रकार के कीटाणु (स्ट्रप्टो कोक्स और हेमालाइटित्स) से होता है। ये कीटाणु गले और टान्सिल द्वारा रोगी के शरीर में चले जाते हैं । यह रोग 4 वर्ष से 15 वर्ष के बच्चों को भी हो सकता है। पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियों को अधिक होता है। |
- गठिया ज्वर का कोई विशेष परीक्षण नहीं खोजा जा सका है। आधुनिक (ऐलोपेथी) चिकित्सकों के मतानुसार यदि रोगी को सोडा सैलीसिलास नामक औषधि 2-3 दिन खिलाने पर ज्वर, शोथ और दर्द कम न हो तो गठिया (छोटे जोड़ों का दर्द) विसर्प, डेंगु फीवर, आरिटा आमाइलाईटिस आदि का सन्देह करना चाहिए।
- इस रोग का उपचार रोग उत्पन्न होते ही अर्थात् शीघ्र कर लेना चाहिए क्योंकि चिकित्सा (उपचार) न करने से हृदय और मस्तिष्क तक रोगग्रस्त हो जाते हैं। उस अवस्था में यह रोग खतरनाक समझा जाता है ।(इसे भी पढ़े : घुटने के दर्द को जड़ से खत्म करेंगे यह 13 देसी घरेलु उपचार)
जोड़ों के दर्द के घरेलु इलाज और नुस्खे (jodo ke dard ka gharelu ilaj)
1. गिलोय – 20 ग्राम गिलोय को जौ कूटकर 250 ग्राम पानी में औटायें । जब पानी चौथाई रह जाए तब इस काढ़े के साथ एरन्ड की जड़ का चूर्ण 6 ग्राम की मात्रा में दिन में 3 बार सेवन करें । गठिया नाशक अति उत्तम प्रयोग है ।
2. कपूर – कपूर 10 ग्राम, तिल का तैल 40 ग्राम, दोनों को शीशी में भरकर मजबूत कार्क लगा दें तथा शीशी को धूप में रख दें जब कपूर और तैल मिलकर एकजान हो जायें, तब इसे गठिया तथा अन्य वात विकारों में मालिश हेतु काम में लें । अल्प समय में इसके प्रयोग से लाभ हो जाता है।
3. अश्वगंधा – अश्वगंधा की जड़ और खांड दोनों को सममात्रा में लेकर कूट-पीसकर चूर्ण बनाकर सुरक्षित रखें । इसे 5 से 10 ग्राम तक की मात्रा में गरम दूध से खायें । गठिया का रोगी भी इस प्रयोग से स्वस्थ हो जाता है।
4. अजवायन – अजवायन, शुद्ध गुग्गुल, माल कंगनी, काला दाना–सभी औषधि सममात्रा में लेकर कूट-पीसकर जल के साथ चने के आकार की गोलियाँ बनाकर सुरक्षित रख लें। यह 3 से 5 गोलियाँ दुग्ध से खायें । गठिया नाशक सर्वोत्तम घरेलू इलाज है।
5. लौंग – लौंग 1 ग्राम, सम्भालू के पत्ते (कोपले) 20 ग्राम लें। दोनों को बारीक पीसकर बेर के आकार की गोलियां बनाकर सुरक्षित रखें । ये 2-3 गोली सुबह-शाम बासी पानी से खायें ।
6. कलौंजी – सम्भालू, कलौंजी, मैथी और अजवायन चारों को समभाग लेकर कूटपीसकर चूर्ण बनाकर सुरक्षित रखें । 3 ग्राम चूर्ण को पानी के साथ नित्य फांके। गठिया तथा कमरदर्द में अत्यधिक लाभप्रद है।
7. इन्द्रजौ – इन्द्रजौ (आवश्यकतानुसार) लेकर बारीक पीसकर रखले । फिर इसमें दुगुनी मात्रा में खान्ड मिलाकर प्रतिदिन 10 ग्राम की मात्रा में दूध के साथ सेवन करें । महीनों का जुड़ा रोगी कुछ ही दिनों में खुलकर ठीक हो जाएगा ।
8. एरन्ड – एरन्ड का तैल, लहसुन तथा रत्नजोत का रस प्रत्येक 6-6 ग्राम ले । तीनों को मिलाकर पीने से 3-4 दिन में ही गठिया का दर्द(jodo ke dard ) नष्ट हो जाता है ।
9. दूध – भेड़ का दूध 125 ग्राम, काला जीरा 6 ग्राम एवं अफीम आधा ग्राम लें। तीनों को घोट पीसकर मिलाकर मालिश करने से गठिया का दर्द नष्ट हो जाता है । इसकी सम्पूर्ण शरीर पर भी मालिश की जा सकती है।
10. हरड़ – नमक 20 ग्राम, अजमोद 30 ग्राम, सौंठ 50 ग्राम, हरड़ 120 ग्राम लें । सभी को कूट पीसकर चूर्ण बनाकर सुरक्षित रखलें । प्रतिदिन 6 ग्राम चूर्ण जल के साथ खायें । गठिया नाशक उत्तम योग है।
11. शतावरी – शतावरी और विधारा 10-10 ग्राम का काढ़ा बनाकर पीना गठिया रोग में परम लाभप्रद है।
12. बकरी का मूत्र 6 कि. ग्रा., लाल मिर्च 250 ग्राम दोनों को एक मिट्टी के बर्तन में पकायें। जब पकते-पकते मूत्र मात्र 1 किलो रह जाये तो उतारकर छान लें । इसकी नियमित मालिश करने से लाभ हो जाता है।
13. सोंठ – जोड़ों के दर्द को ठीक करने के लिए 5 ग्राम सोंठ, 50 ग्राम काला नमक तथा 100 ग्राम अजवाइन को एक सूखी कड़ाही में डालकर इसे भूने और फिर इसे गर्म-गर्म ही एक रूमाल में बांध लें। इसके बाद इससें जोड़ों पर सिंकाई करें। इससे कुछ ही समय में जोड़ों का दर्द ठीक हो जाता है।
14. मिट्टी तेल – मिट्टी का तैल 40 ग्राम, कपूर पिसा हुआ 10 ग्राम लेकर दोनों को शीशी में डालकर मजबूत कार्क लगाकर आधा घन्टा तक शीशी में धूप में रखें । फिर शीशी हिलाकर सुरक्षित रखलें । शरीर में चाहें कहीं भी दर्द हो वहाँ पर इसकी धीरे-धीरे मालिश करने के बाद सिकाई करें। दर्द ठीक हो जाएगा । यह वातनाशक तैल वात रोगियों के लिए अमृत समान लाभप्रद है।
15. तारपीन तेल – तारपीन का तैल 30 ग्राम, अरन्डी का तैल 30 ग्राम, सैंधानमक बारीक पिसा हुआ 10 ग्राम, कपूर 6 ग्राम, पिपरमैन्ट का तैल 20 बूंद लें । सभी को एक शीशी में मिलाकर सुरक्षित रखलें । शीशी को हिलाकर पीड़ायुक्त शरीर के भाग पर दिन में 2-3 बार मलें । इसके प्रयोग से भयंकर से भयंकर वायु-पीड़ा मिटती है।
16. चित्रक – चित्रक की जड़, इन्द्र जौ, पाढ़ की जड़, कुटकी, अतीस और हरड़ सभी समभाग लेकर कूट पीसकर कपड़ छनकर शीशी में सुरक्षित रखलें । इसे 2 से 4 ग्राम तक की मात्रा में गरम पानी से खाये । इसके सेवन से समस्त वात रोग निश्चित रूप से नष्ट हो जाते हैं । कम से कम एक माह सेवन करें ।
17. अरन्डी तेल – jodo ke dard ka ilaj arandi ke tel se -अरन्डी का तैल 20 ग्राम तथा अदरक का रस 20 ग्राम लें। दोनों को मिलाकर धीरे-धीरे पीवें । ऊपर से 2-4 गरम पानी पी लेने से भयकंर से भयंकर वायु-शूल नष्ट हो जाता है ।
(अस्वीकरण : दवा, उपाय व नुस्खों को वैद्यकीय सलाहनुसार उपयोग करें)